यह राहुल गांधी का जादु नहीं – अमलेन्दु उपाध्याय

rahul-gandhi-congressलोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अनपेक्षित सफलता पर कांग्रेसजन तो अपने युवराज राहुल गांधी के महिमागान में जुट ही गए हैं, हमारे मीडिया के वे बड़े धुरंधर, जो पिछले एक वर्ष से भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी को पीएम इन वेटिंग कहते नहीं थक रहे थे, अब राहुल के गुणगान में उसी श्रध्दाभाव से लगे हुए हैं जैसे आडवाणी जी के लिए लगे हुए थे।
यह सही है कि कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है और उसे उसकी आशा से कहीं अधिक सीटें मिल गई हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ राहुल गांधी का ही कमाल था कि उसे 200 सीटें मिल गईं। ऐसा कहना सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह का अपमान है। क्योंकि इस जीत में कुछ न कुछ योगदान तो मनमोहन और सोनिया का है ही! ईमानदारी की बात यह है कि कांग्रेस की इस जीत के पीछे इस देश के बड़े पूुजीपतियों ध्दारा चलाए गए सतत प्रचार अभियान और भाजपा का योगदान है।
देश के बड़े पुंजीपतियों की पहली पसंद मनमोहन सिंह रहे हैं, क्योंकि जिस तेजी और ईमानदारी के साथ मनमोहन सिंह तथाकथित आर्थिक सुधारों के नाम पर देश को पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखने के कार्य को अंजाम दे सकते हैं, वह कार्य दूसरा राजनेता नहीं कर सकता था। इसलिए पूंजीपतियों के अखबारों ने भी अधिक मतदान का जो प्रचार छेड़ा, उसका मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र के प्रति आस्था नहीं थी बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य उस अमरीकापरस्त मध्यवर्ग को पोलिंग बूथ तक ले जाना था जो नेताओं को गाली तो बहुत शौक से देता है लेकिन वोट नहीं देता।
एक अन्य कारण कांग्रेस के जीतने का यह रहा कि विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जो प्रचार छेड़ा उसका आधार निजी आरोप थे। उन्होंने चुनाव को अमरीकी स्टाइल का चुनाव बनाने का प्रयास किया। लिहाजा लोगों को लगा कि आडवाणी तो स्वयं देश के गृह मंत्री रहे और उन मोर्चों पर बुरी तरह विफल रहे जिन पर विफल रहने का आरोप वह मनमोहन पर लगा रहे हैं। इस धारणा ने भी कांग्रेस को बढ़त दिलाने में सफलता दिलाई।
मीडिया ने एक तरीके से कांग्रेस के पक्ष में इस तरह माहौल बनाया कि सारे क्षेत्रीय दल ब्लैकमेलर हैं और देश को भाजपा और कांग्रेस में से ही किसी एक को चुनना चाहिए। मीडिया का यह कमाल काम कर गया और क्षेत्रीय दलों को खासा नुकसान उठाना पड़ा। चुनाव प्रचार के बीच में तो भाजपा और कांग्रेस में एक तरह से आम सहमति बन गई थी कि किसी भी तरह क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुंचाओ। अब लोगों को जब मनमोहन और आडवाणी में से किसी एक को चुनना था तो लोगों को मनमोहन सिंह, आडवाणी की बनिस्बत कुछ भले लगे।
यह जीत राहुल का करिश्मा नहीं है, के संदर्भ में एक और बहुत वजनदार तर्क है। अगर राहुल का कमाल ही था तो फिर राहुल बिहार में यह कमाल क्यों नहीं कर सके? राहुल यह कमाल छत्ताीसगढ़ में क्यों नहीं कर सके? यही कमाल राहुल उस बुंदेलखंड में क्यों नही कर पाए जहां उन्होंने सिर पर पला ढोने और भूख से हुई मौतों पर आंदोलन करने का स्वांग रचा था ? क्या राजस्थान में हुई कांग्रेस की जीत में अशोक गहलोत की जादूगरी और वसुंधरा की नाकामी का कोई रोल नहीं है? फिर यह राहुल का करिश्मा कैसे है?
कांग्रेसियों को सही मायनों में सिर्फ और सिर्फ दो लोगों का शुक्रगुजार होना चाहिए एक वरुण गांधी और दूसरे अमर सिंह। ऐसा वेवजह नहीं है। अभी जो आंकड़े आए हैं उनमें कांग्रेस ने जिन सीटों पर विजय हासिल की है उनमें 85 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मत 30 प्रतिशत हैं। अब समझा जा सकता है कि अमर सिंह और वरुण ने कैसे कांग्रेस की सरकार बनवाई? उत्तार प्रदेश में जिस समय अमर सिंह के प्रताप के चलते समाजवादी पार्टी ने कल्याण सिंह से हाथ मिलाया और सपा के फायरब्रांड नेता मौ. आजम खां ने कल्याण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला ठीक उसी समय वरुणोदय हुआ। उधर जब भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की खबरें आईं तो मुस्लिम समुदाय में जबर्दस्त निराशा भर गई। मुलायम कल्याण की दोस्ती से मुसलमान को लगा कि उसके साथ भयंकर धोखा हुआ है और अमर सिंह चुनाव के बाद सपा को भाजपा के खेमे में ले जाएंगे, सिर्फ इस एक भय ने मुसलमान को कांग्रेस के दर पर धकेल दिया और देश भर में एक फिजां बन गई। एक तरफ कांग्रेस और भाजपा के साथ मीडिया का दुष्प्रचार कि तीसरा मोर्चा बंदरबांट करेगा और दूसरी तरफ कल्याण – वरुण – मुलायम – अमर के खौफ ने क्षेत्रीय दलों को पीछे धकेल दिया और कांग्रेस को सत्ता दिलवाने में मदद की। क्योंकि पहले भी टीडीपी, अन्नाद्रमुक जैसे दल भाजपा के साथ रहे थे इसलिए अल्पसंख्यकों को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि ये दल तीसरा मोर्चा बनाए रखेंगे। यह शुध्द रूप से भाजपा की विफलता और पूंजीपति-मीडिया गठजोड़ का करिश्मा है वरना इसमें राहुल का न कोई योगदान है और न कोई करिश्मा। और अगर है तो क्या जुलाई में जब उत्तार प्रदेश में 11 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होंगे तब राहुल का करिश्मा चलेगा? हम भी देखेंगे और आप भी।

– अमलेन्दु उपाध्याय

5 COMMENTS

  1. This is an immitigable fact that India is ruled by dynasty. If I will say Nehru alone made the constitution because he was all in all and developed India as his dynasty. In these long 63 years again Soniya became UN crowned Queen of India. In British India, all British were Masters and brown Sahibs (Indian Christians’) were 1st grade citizens and Muslims were second grade citizens and Hindu’s were class les public. To maintain this grade secularism was enforced by Nehru. Nehru once said “It is a disgrace that I was born in India.” He use to write Pt. But he was a blind follower of British culture. President Obama recently said “election only is not democracy.”While leaving India British asked Gandhi “when 99% of Indians are illiterate how you are going to run India democratically”? You know what he said” I know my countrymen are fools but they are pious people, we can run democratically” I think what he said ‘fool’ is proved correct even today?

  2. Very good analysis on the subject. Manmohan Ji is good leader. Definitely our country will progress and every one will become millionaire. This is good fundamental – vanish the garibi or garib ‘poor’.

  3. Rahul ka Nahi Congress ka chala kyonki Congress Azadi se pahale ki party hian. Azadi ke baad Mahatma Gandhi ne kaha tha ki Hame Azadi mil gai hain aab congress ko khatm kar do. Lekin Us samay sattadhikario ne Satta ke lalach main congress ko khatm nahi kiya. Jiska khamyaja aaj BJP ko Bhogana Par raha hain. COngress main Yuvraj ka khel ho raha hain. congress jin yuvao ko ticket de rahi hain unme se adhiktar to yuvraj hain. Where is Yova raj ?

  4. बढ़िया विश्लेषण, सारे कांग्रसी पंरपरा को निभा रहे है, जीत गये तो राहुलजी की जय हो, हार जाते तो दिग्गी राजा के सर पर ठीकरा फोडते!!

  5. kuchh had tak aapki baat se sehmat hoon ki sonia manmohan ko bhi shrey jata hai baki parties ki nakaratmak raj neeti ko aur up mr nissandeh rahul ko punjab me rahul ko media vali bat se poori tarah sehmat nahi hoon media ne kahan sahi chunav vishleshan kya naa hi cong. ke pax me kabhi kuch nahi dikhaayaa baki apni apni soch hai ki aap arthik sudharon ko kis tarah lete hain aur baki log kis tarah hai cheez ke do pehloo hote hi hain agar skaratmak drishti se sochen to manmohan ki sarkar advani ki [agar ban jati]achhi hi rahegi

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