यह एकता नहीं छलावा है

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janta pariwar

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प्रवीण दुबे
यह कैसा जनता परिवार और कैसी एकता? भारतीय राजनीति में आज जो कुछ हो रहा है वास्तव में उसे देख आश्चर्य होता है। देश के तमाम बुजुर्ग नेता जो कि जनता परिवार का ढिंढोरा पीटने में लगे हैं आखिर वह इस सच्चाई को क्यों नहीं पचा पा रहे कि देश की जनता अब केवल भाषणों और आपस में वर्ग भेद, जातिवाद और गुमराह करने वाली राजनीति को नकार चुकी है। जनता अब विकास चाहती है। वह उकता चुकी है उन नेताओं से जो गला-फाड़-फाड़कर साम्प्रदायिकता का हौवा खड़ा करते रहे हैं। उन्हें जनता ने जब भी मौका दिया तब क्या हुआ? इस पर सरसरी नजर दौड़ाई जाए तो देश के सबसे विशाल राज्यों  में शामिल उत्तरप्रदेश और बिहार की दुर्दशा आंखों को चौंधिया देती  है। आज जो लालू यादव जनता परिवार की हिमायत करते दिख रहे हैं उन्हीं लालू को बिहार की जनता ने कभी सर माथे पर बिठाया था। क्या हुआ था उस दौरान? बिहार का नाम लेने तक सिर शर्म से झुक जाता था। वो अपहरण उद्योग, वो चारा घोटाला, वो सरेआम गुंडागर्दी, लूट, हत्या आखिर यह सब लालू के राज में ही तो बिहार ने भोगा था। केवल एक जो चीज थी जो दिखाई नहीं दी थी वह विकास। बिहार इतना पिछड़ा कि उसे संवारने में वर्षों लग जाएँगे। आखिर वो लालू किस मुंह से जनता परिवार के नाम पर एक सशक्त राजनीतिक विकल्प की बात करते हंै। इसे बेशर्मी न कहा जाए तो क्या कहा जाए? अब जरा इस पर भी बात करना जरुरी है कि जनता परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक इतिहास क्या कहता है। यह वही मुलायमसिंह यादव हैं जो कभी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, ये वही मुलायम सिंह यादव हैं जो पिछली यूपीए सरकार की वैशाखी बने रहे। कोई इनसे पूछे कि मनमोहन सरकार के समय जब जनता महंगाई, भ्रष्टाचार और गंभीर आंतरिक संकट से जूझ रही थी तब इन्हें देश की जनता के दुखदर्द का ख्याल क्यों नहीं आया? उस समय यह क्यों सोनिया गांधी की गोद में बैठ कर यूपीए सरकार को स्थिरता प्रदान करते रहे और अपरोक्ष रूप से भ्रष्टाचार, महंगाई का समर्थन करते रहे? आज जब उत्तरप्रदेश में चुनाव नजदीक हैं और उन्हें यह भय सता रहा है कि मोदी की विकास गंगा उनकी गंदे राजनीतिक कार्य-व्यवहार पर भारी पड़ सकती है, तो उनकी रातों की नींद उड़ गई है। ऐसी स्थिति में एक बार पुन: छल-कपट, जातिवाद, वर्गभेद की राजनीति को बढ़ावा देने का माहौल तैयार किया जा रहा है। मुलायम और लालू यादव तथा शरद यादव जैसे नेताओं को नहीं भूलना चाहिए कि देश की जनता ने उनके इस छद्म मेल-मिलावट को पहले भी  देखा है और छह बार इस जनता परिवार की एकता आपसी हितों की टकराहट के चलते टूटती रही है। ऐसे समय जब देश नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में स्थिरता के साथ विकासपथ पर तेजी से अग्रसर है देश की जनता लालू-मुलायम जैसे नेताओं की झूठी एकता में फंसने वाली नहीं है। भले ही जनता परिवार अस्तित्व में आ जाए लेकिन इससे देश का कोई भला होने वाला नहीं है, यह बात पूरा देश जानता है। यही वजह है कि जनता परिवार केवल दिखावटी दल बनकर रह जाएगा और इसकी एकता पूर्व की तरह एक बार फिर तार-तार हो जाएगी।

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प्रवीण दुबे
विगत 22 वर्षाे से पत्रकारिता में सर्किय हैं। आपके राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर 500 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से प्रेरित श्री प्रवीण दुबे की पत्रकारिता का शुभांरम दैनिक स्वदेश ग्वालियर से 1994 में हुआ। वर्तमान में आप स्वदेश ग्वालियर के कार्यकारी संपादक है, आपके द्वारा अमृत-अटल, श्रीकांत जोशी पर आधारित संग्रह - एक ध्येय निष्ठ जीवन, ग्वालियर की बलिदान गाथा, उत्तिष्ठ जाग्रत सहित एक दर्जन के लगभग पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया है।

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