जाने कहाँ गये वो दिन,
कहते थे आधी तनख़्वाह मे,
विधायक काम चलयेंंगे,
नीली वैगनार से वो,
ख़ुद दफ्तर आयें जायेंगे।जाने कहाँ गये………
अब तो सभी के पास मे,
बडी से बडी हैं गाड़ियाँ,
बंगला कोठी सबको मिले,
विदेश मे हों छुट्टियाँ।जाने कहाँ गये………
ग़रीब तो और भी ग़रीब हैं हो रहे,
दाल चावल भी अब पंहुच से बाहर हो रहे,
अपनी बढ़ाई चार गुना,
हमारी कब बढ़ाेंगे। जाने कहाँ गये………
हम तो समझे थे आप जो,
कहते हैं वो करते हैं,
लेकिन अब आप तो,
गढ़ते है बस कहानियाँ।जाने कहाँ गये………
सत्ता का स्वाद एक बार लग जाये तो फिर किस के वादे – कैसे वादे – कल किस ने देखा है – बड़ी मुश्किल से आज का दिन आया है .