याकूब मेमन के फांसी पर सियासत

yakoobयाकूब मेमन को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी दी है और यहां तक की राष्ट्रपति द्वारा भी मेनन के याचिका को ठुकराया जा चुका था। ऐसे में अगर मेनन को फांसी की सजा होती है तो इसमें उस व्यक्ति को बोलने का कतई अधिकार नहीं जो कानून और साक्ष्य के प्रति अपरिचित हो। उच्च न्यायालय से लेकर सर्वाेच्च न्यायालय के जज जिन्होंने फांसी की सजा सुनाई उनके समक्ष समस्त प्रकार के साक्ष्य थे। मेमन का सम्पूर्ण बायोडेटा उनके समक्ष था और उसी के परिपेक्ष्य में उन्होंने उसे फांसी की सजा सुनाई। लेकिन जो लोग आधे अधूरे ज्ञान के आधार पर याकूब की फांसी पर सियासती पैतरा खेल रहे अथवा सोशल मीडियाई बयानबाजी कर रहे है उनका यह कदम भारत के लिए एक तरह से धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दे सकता है।
यह सत्य है कि जब भारत का बँटवारा हुआ था तो समस्त मुसलमानों के लिए एक पाकिस्तान बनाकर दे दिया गया था ताकि समूचे मुसलमान पाकिस्तान नामक राष्ट्र में रह सके। लेकिन भारतीय नेताओं की वसुंधरा कुटुंबकम की भावना कहिये या दरियादिली, उन्होंने यह निर्णय किया कि बंटवारा हो जाने के बाद भी जो मुसलमान यहां रहना चाहे रह सके। यह भी सत्य है कि भारतीय उपमहाद्विप में धर्म को रौंदकर ही मुसलमान शासकों ने यहां अपने शासन की नींव रखी थी और तलवारों की नोंक पर हिन्दुओं के गले काटकर उन्हे जबरन मुस्लिम बनाया साथ ही बलात्कार, अत्याचार आदि आम रहें। आज जो मुसलमान हिन्दुस्तान में है उनमें अधिकांश मुसलमान तलवार की नोक पर बने हैं। हां तो जब बँटवारा हो गया उसके बाद भी मुसलमानों को यहां रखने की ईजाजत दे दी गई तो ज्यादातर मुसलमान यहां रूक गये। 1951 की जनगणना के अनुसार भारत में मुसलमानों की जनसंख्या 3.6 करोड़, 1961 में 4.7 करोड़, 1971 में 6.2 करोड़, 1981 में 7.7 करोड़, 1991 में 10.2 करोड़, 2001 में 13.1 करोड़, और 2011 की जनगणना के अनुसार 18.0 करोड़ से अधिक जनसंख्या हो गई जोकि राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका आदा करता है। वहीं 1947 में पाकिस्तान में 45 लाख हिन्दू थे एवं 2001 आते आते उनकी जनसंख्या 2 लाख तक पहुंच गई। इससे स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी धर्म द्वारा क्या किया गया और किया जा रहा है? हिन्दू और मुस्लिम के मध्य सहरहिता का अंदाजा इससे स्वतः लगाया जा सकता है।
यह सत्य है मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा समय समय पर मुस्लिम धर्म के विरोध होने पर जवाबी कारवाई किये जाते रहे है। जैसे कि बाॅम्ब ब्लास्ट से लेकर हत्या आगजनी। ऐसे में देश के कुछ लोगों के मन में भय या ओशों टाईप विचारधारा या वसुधैव कुटुंबकम टाइप की भावना घर कर गयी। ऐसे लोगों में इसी विचारधारा स्वरूप सेकुलराईस का वायरस लग गया जो किसी प्रयोजन के लिए शुरुआत तो सत्यनरायण भगवान पूजा से करते लेकिन भावनायें उनकी दोहरी थी। शायद ऐसे लोग सामने से मुस्लिम के निशाने पर नहीं आना चाहते थे। इनके अंतर्निहित में हत्या, बम्ब बलास्ट सरीखी कोई डर था या ये धार्मिक भावना के मध्य ऐसा कर रहे थे ये तो यही जाने लेकिन ऐसे में वे मुस्लिमों के प्रति कुछ भी बोलने से कतराने लगे और मुस्लिम पक्षकारिता के एक तरह से नपुसंक हिन्दू पोषक हो गये। ऐसा इसीलिए भी था कि वे अपने जीवन में खतरों का मोल न लेकर एक तरह की अहिंसावादी रास्ते को अपनाने को ज्यादा तरजीह देना ही उचित समझने लगे। ऐसे डरपोक, नपुंसक और धार्मिक लेखकों की जनसंख्या अच्छे माने जाने वाले विचारकों, पत्रकारों, सम्पादकों में हैं। इतिहास साक्षी है दुनिया बहादुरों को सलाम करती है। इस्लाम को इसलिए भी ज्यादातर सलाम किया गया क्योंकि इस्लाम के पास वह बहादुरी थी जोकि हिन्दू क्षत्रियों समेत हिन्दू वीरों द्वारा खो दी गई थी अथवा वे इनसे हार मान गये थे।
उसके बाद की कहानी सबको पता है जोकि लोकतंत्र में अकसर होता है। वोट बैंक की राजनीति। कांग्रेस ने सत्ता में बने रहने के लिए मुस्लिम पत्ते को बखूबी खेला। चाहे वह शाह बानो मामला हो अथवा राम मंदिर का ताला खुलवाना। लेकिन यह दोनो ही मामले राजीव गांधी के लिए घाटे के सौदे साबित हुये और तीसपर बफोर्स तोप ने उनको औंधे मुंह गिरने पर विवश कर दिया। कांग्रेस के बाद फिर बाद में इसे भूनाया बीजेपी ने। बाबरी मस्जिद विध्वंश ने बीजेपी को राष्ट्रीय पार्टी बनाकर रख दिया। हालांकि लालकृष्ण आडवानी के दोहरे चरित्र ने भारतीय हिन्दू जनमानस के मानस पटल दोहरापन दिखाकर एक तरह से बीजेपी के पतन का परचम फहराया जिसका घोर विरोध संघ मुख पत्र सहित बीजेपी मुख पत्र द्वारा किया गया। लेकिन अंततः बीजेपी को यह समझ में आ गया था कि बिना धार्मिक मामले को तूल दिये न तो चुनाव जीता जा सकता है और न ही सत्ता पाई जा सकती है। इसी क्रम में बीजेपी ने गोधरा कांड से अंतराष्ट्रीय फलक पर चमके कट्टर हिन्दू चेहरे नरेन्द्र मोदी को आगामी चुनावों में उतारने का फैसला लिया। दूसरी तरफ देश में हिन्दू मुस्लिम की खाईं बढ़ती जा रही थी। गोधरा कांड से नाराज मुसलमान जितना ही विरोध नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का कर रहा था उतनी ही सदभावना नरेन्द्र मोदी के लिए हिन्दूओं में बढ़ती जा रही थी। चुनाव होने से पहले समूचे देश में नरेन्द्र मोदी के प्रति हिन्दुओं में एक तरह से कट्टर हिन्दू की छवि उभरती जा रही थी। ईधर उतनी ही तीव्र गति से मुसलमान भी नरेन्द्र मोदी विरोधी बयान देते जा रहे थे। इन्हीं विरोधाभाषों के मध्य समेकित रूप में मोदी सरकार अंततः सत्ता में आने में सफल रही।
अब आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने फिर पत्ता खेला है। याकूब मेमन की फांसी का। और शायद बीजेपी इस पत्ते पर सत्ता हथिया भी लेगी। मेमन की फांसी का जितना विरोध सेकुलर और मुस्लिम समुदाय द्वारा किया जा रहा है उतना ही पक्षकारिता लगभग हिन्दू पक्ष द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में अगर जनसंख्या अनुपात को देखा जाये और कुछ प्रतिशत हिन्दू वोट भी अगर बीजेपी पर आकर्षित हो जाता है तब बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना एक तरह से दुरूह हो जायेगा। बीजेपी लोकसभा चुनावों से एक तरह का सबक ले चुकी है कि धार्मिक उन्माद फैलाकर ही भारत में सत्ता हथियाया जा सकता है और लगभग अन्य सभी पार्टियां इसी फार्मूले को अपनाती रहीं है। ऐसे में याकूब मेमन की फांसी करवाकर बीजेपी ने नया सियासी दांव खेला है और इसका भरपुर फायदा बीजेपी को बिहार विधानसभा चुनावों में होने जा रहा है। कयास तो यह भी लगाये जा रहे है कि बिहार विधानसभा चुनाव आने से पहले बीजेपी राम मंदिर मुद्दा समेत अन्य किसी की फांसी के मुद्दे को तूल देकर धार्मिक पोलराइजेशन का फायदा उठा सकती है।
भारत में रह रहे मुसलमानों को अंतर्राष्ट्र्रीय संस्थाओं तथा धार्मिक सियासतों द्वारा जिस प्रकार दिग्भ्रमित किया जा रहा है और जिस प्रकार से ये अपने राष्ट्र के अस्तित्ववाद को दरकिनार कर धार्मिक पक्षकारिता की ओर बढ़ रहे है ऐसे में हिन्दू धर्म के मानने वालों के मध्य एक प्रकार का असंतोष फैल रहा है और इसका फायदा भारत के सियासती लोग उठा रहे है।

1 COMMENT

  1. जितनी सराहना की जाये कम हैं… बिना लाग लपेट, जाति धर्म के प्रभाव में लिखा हैं आपने…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here