नरेन्द्र मोदी की पटना रैली और बोधगया में हुए बम धमाकों से जुड़ा एक बड़ा खुलासा हुआ है। एक समाचार चैनल(Etv) की रिपोर्ट की माने तो जदयू नेता और बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली खान ने बोध गया मे बम लगाने व ब्लास्ट करने मे आतंकियों की सहायता की थी। केन्द्रीय एजेंसी आईबी द्वारा 17 जनवरी, 2014 को भेजे अपने पत्र में बिहार पुलिस को यह जानकारी दिया गया था कि बिहार सरकार के मंत्री शाहिद अली का इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) से जुड़े आंतकी संगठन से गहरे सम्बन्ध है। चार पन्ने के अपने ख़त में एजेंसी ने मंत्री पर पटना में नरेन्द्र मोदी की रैली पर हुए हमले के आरोपी आंतकी जमील अख्तर और मंजूर को मदद पहुंचाने का आरोप लगाया है।
सीतामढ़ी के रहने वाले जमील और मंजूर के बारे में जो सूचना मिली है, उसके मुताबिक ये दोनों पाकिस्तान के जामिया इस्लामिक संगठन के हिस्सा हैं जो इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़ा है। इस संगठन को आईएसआई का भी समर्थन प्राप्त माना जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से एक ने पिछले वर्ष पाकिस्तान का दौरा भी किया था। अपने पूछताछ में आंतकी मंजुल और जमील ने स्वीकार किया है कि बिहार के मंत्री शाहीद अली ने पटना में हुए बम विस्फोट करने में उनकी मदद की थी। इन दोनों के मंत्री से अच्छे संबंध बताए जा रहे हैं।
केन्द्रीय एजेंसी के इस रिपोर्ट पर सरकार ने सीतामढ़ी एसपी से कारवाई रिपोर्ट मांगी है। धमाके के वक़्त गृह सचिव रहे आरके सिंह ने भी इस खबर की सच्चाई के बारे में संकेत दिया है। इस बीच शाहिद अली ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि इस तरह की कोई बात नहीं है। उन्होंने इस रिपोर्ट को मुसलमान होने की वजह से दामन पर दाग लगाने की साजिश बताया है तथा आरोप साबित करने की बात कही है। बिहार पुलिस ने इस खुलासे के बाद किए अपने प्रेस कांफ्रेंस में इस खबर की पुष्टि की है लेकिन सधी हुयी प्रतिक्रिया साफ़ बता रही थी कि कहीं न कहीं पूरे मामले को दबाने की कोशिश चल रही है। इस खुलासे के बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि आईबी की रिपोर्ट आने के बाद भी सरकार क्यों नहीं चेती? तत्काल जांच करवाने की वजाए रिपोर्ट को क्यों दबा दिया गया था? पकड़े गए आतंकियों की निशानदेही पर मंत्री से पूछताछ क्यों नहीं किया गया? वहीं शक की सुई केंद्र सरकार के मंसूबों पर भी उठती है कि आखिर केंद्र ने इस जानकारी की सत्यता मालुम करने के लिए राज्य सरकार पर दबाब क्यों नहीं डाला?
हाल के दिनों में आतंकवाद के प्रति बिहार के राजनीतिक और पुलिस नेतृत्व की उदासीनता की वजह से केन्द्रीय जांच एजेंसियां कई बार अपनी नाराजगी जता चुकी हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बिहार पुलिस के लचर रवैये की वजह से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को भी पटना धमाकों की छानबीन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। एनआईए तमाम कोशिशों के बावजूद अबतक ठीक से सीरियल बम धमाके की जांच को अंजाम तक नहीं पहुंचा पायी है। यही नही भटकल मामले में भी सरकार के रवैये पर गंभीर सवाल उठे थे। इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक यासीन भटकल को अगस्त में गिरफ्तार किया। उसे बिहार पुलिस को सौंपने की पेशकश भी हुई, पर बिहार पुलिस पूछताछ तो दूर, उसकी कस्टडी लेने तक से इन्कार कर दिया था।
बिहार पुलिस सिर्फ आतंकवाद के मामले में ही नहीं, बल्कि नक्सल विरोधी अभियान में भी ठंडी प्रतिक्रिया देती रही है। केंद्रीय बलों के देश व्यापी नक्सल विरोधी अभियान में बिहार सबसे कमजोर कड़ी साबित हुआ है। ज्ञात हो की शाहिद अली नीतीश के खासमखास माने जाते हैं, जिसकी वजह से उन्हें अल्पसंख्यक मंत्रालय की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी। बिहार सरकार आईबी की इस रिपोर्ट लिक होने के बाद घिरती नज़र आ रही है। एक समुदाय विशेष के वोट बटोरने की जुगत में लगे नीतीश की नीयत पर भी अब गंभीर सवाल उठते दिखाई दे रहे है। देखना है, सरकार मामले की तह तक जाती है या वोट बैंक की लालच में लीपापोती करने में जुट जाती है।
इस साज़िश में शाहिद अली ही नहीं बल्कि मेरे विचार में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से नितीश कुमार भी शामिल हैं और इसी कारण से सुरक्षा सम्बन्धी गम्भीर खामियां बरती गयीं.और नितीश कुमार कि प्रारंभिक प्रतिक्रिया भी घटना कि गम्भीरता को बहुत कम करने का प्रयास करती नज़र आयी,
तब ही तो शाहिद अली नितीश के प्रिय है.भारत में आतंकवादी गतिविधियों के जिम्मेदार ये नेता ही हैं, जिनके संरक्षण में यह आतंकी पलते है.ये राजनितिक दल इन नेताओं को जेल में डालने के बजाय अपनी पार्टी में शामिल कर मंत्री बनाते हैं ये ही सरकार कि सारी गतिविधियों को बहरी आतंकी संगठनों को दे देश को नुक्सान पहुंचते हैं.आधा आतंकवाद तो हमारा खुद का ही प्रायोजित है.इसमें कोई दल पीछे नहीं है.