हर युग में राम की जय…

-अमल कुमार श्रीवास्तव

सत्य की हर युग में जीत होती है 30 सितम्बर 2010 को इलहाबाद हाइकोर्ट द्वारा अयोध्या मामले पर आने वाले फैसले ने इस बात को सार्थक साबित कर दिया। पिछले 60 वर्षो से चल रहे इस मामले ने कई बार तुल पकडी जिसका खामियाजा कई लोगों को भुगतना पडा लेकिन अंतत: इस मामले पर हाईकोर्ट ने अपनी मुहर लगा ही दी। वास्तव में अगर इस मामले को देखा जाए तो इस पर फैसला बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था। लेकिन यह मामला कुछ राजनितिक पार्टियों के लिए एक हथियार के रूप में था जिसका लाभ वह हर बार चुनाव में करते थे या यह भी कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की लगभग पूरी राजनिति इस मामले पर ही टिकी हुई थी। इन सबके बावजूद जो भी फैसला इस बाबत आया वह एक तरह से देखा जाए जो संतोषप्रद था भी और नहीं भी। संतोषप्रद इसलिए था क्योकि वर्तमान में जो देश की आर्थिक स्थिति चल रही है उसे देखते हुए दंगा ,फसाद जैसी स्थिति का पैदा होना वर्तमान परिवेश में देश की आर्थिक स्थिति के लिए सही नही था। एक तरफ केन्द्र में होने वाली राष्ट्रमंडल खेलों की सुरक्षा तो दूसरी तरफ बाढ पीडीतों की सहायता व वहीं तीसरी तरफ होने वाले चुनाव। ऐसे में इस मामले पर अगर कोई समुदायिक तुल पकडता तो वास्तव में देश के लिए इससे जुझना अत्यंत कठिन हो जाता। दूसरी तरफ अगर देखा जाए तो कहीं न कहीं यह प्रतीत होता है कि न्यायधीशों द्वारा दिए गए फैसले में भी पूर्ण रूप से समानता दिखाई प्रतीत नहीं होती। अगर किसी पक्ष की अपील खारिज हो जाए तो उसे किसी प्रकार का कोई अधिकार उस सम्बन्धित मामले में नहीं होता बावजूद इसके न्यायाधीशों द्वारा वफफ् बोर्ड को एक भाग देना अत्यंत सोचनीय विषय है। हाल फिलहाल लोगों ने न्यायपालिका द्वारा दिए गए इस फैसले का सम्मान करते हुए इसे स्वीकार जरूर कर लिया है लेकिन अभी भी कुछ लोग है जो इस बाबत असन्तुष्ट है। वास्तव में अगर कहा जाए तो जब न्यायपालिका ने इस सन्दर्भ में यह स्पष्ट कर दिया है कि रामलला की मूर्ति जहां स्थापित है वहीं रहेगी तो उसे यह भी स्पष्ट रूप से यह निर्णय दे देना चाहिए कि उक्त स्थान पर एक मात्र मन्दिर का ही निर्माण हो क्योकि देखा जाए तो बात फिर वहीं जा कर टिक गयी अधिपत्य पुर्ण रूपेण किसका है?

हालाकि न्यायपालिका हमारे देश में सर्वोपरि है और हर व्यक्ति को उसका सम्मान करते हुए उसके द्वारा दिए गए फैसले को स्वीकार करना चाहिए। लेकिन अगर बात करे की किसी एक पक्ष को भी पूर्ण रूप से इस फैसले से आत्मिक संतुष्टि मिली हो तो वर्तमान में लोगों द्वारा आने वाले विचारों से यह कहीं से भी स्पष्ट नहीं होता। हालांकि अभी भी दोनों पक्षों को यह अधिकार प्राप्त है कि इस बाबत वो सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के विरू़द्व याचिका दायर कर सकते है। लेकिन जो कुछ भी हो इतने बडे ऐतिहासिक व विवादास्पद मामले पर आने वाले फैसले के बावजूद देश व उत्तर प्रदेश की जनता ने अपनी गंगी-जमुनी तहजीब का परिचय देते हुए शांति व्यवस्था बनाए रखते हुए अपनी तहजीब का जो परिचय दिया है उससे सम्पूर्ण विश्व स्तब्ध है। अब देखना यह है कि इस सम्बन्ध में अगला कदम किस पक्ष द्वारा उठाया जाता है।

2 COMMENTS

  1. विधु महि पूर मयुखंह,रवि तप जितने हि काज .
    मांगे वारिधि देहिं जल .रामचंद्र के राज ..

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