जमीन हड़पने की साम्राज्यवादी मंशा

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प्रमोद भार्गव

images (1)चीन लगातार जमीन हड़पने के साम्राज्यवादी मंसूबों को विस्तार दे रहा है। चीन की सेना ने एक बार फिर भारतीय राजनैतिक नेतृत्व को बोना साबित करते हुए लद्दाख के सीमा क्षेत्र के चुमार गांव में घुसकर भारतीय सेना द्वारा निर्मित बंकर और सीमा चैकियों पर सुरक्षा की दृष्टि से लगे कैमरे तोड़ दिए हैं। इसके पहले चीन ने इसी साल अप्रैल – मई में लद्दाख के ही दौलत वेग ओल्डी क्षेत्र में घुसकर अस्थायी षिविर बना लिए थे। चीन ने ये शिविर, तब हटाए जब भारत ने चुमार क्षेत्र में स्थित अपने बंकरों को तोड़ गिराने को मजबूर हुआ। इस स्थिति के बरक्ष भारत चीन के आगे बौना ही साबित हुआ, जबकि चुमार ऐसा क्षेत्र है, जहां चरवाहा जनजातियों की कुछ झोंपडि़यों में आबादी है। ये चरवाहे इस क्षेत्र में अपनी भेड़-बकरियां चराया करते हैं। भारतीय सैनिकों की पैटोलिंग भी यहां जारी रहती थी। चीन अच्छी तरह से जानता है कि यह इलाका भारत का है और यहां के लोग हिन्दी भाशी हैं। इसीलिए चीन ने बेजा दखल देकर भारतवासियों को हिन्दी में धमकाया, जिससे लोग जान जाएं कि चीन इस क्षेत्र में अतिक्रमण कर चुका है, लिहाजा मूल निवासी नौ दो ग्यारह हो जाएं, अन्यथा उनकी खैर नहीं ?

व्यापार के बहाने चीन की सामरिक रणनीति जिस तरह से अमल में आ रही है,उससे लगता है,वह भारत को चैतरफा घेरने की कोषिष में लगा है। उसके इन नापाक मंसूबों को पकिस्तान अपनी सरजमीं पर उतारकर हवा दे रहा है। पाकिस्तान ने हाल ही में ग्वादर पोर्ट के निर्माण और उसके विकास की जिम्मेबारी चीन को सौंपी है। इससे चीन के दखल का विस्तार भारत की पश्चिमी सीमा तक हो जाएगा। देश की पूर्वी सीमा पर चीन बंगाल की खाड़ी,दक्षिण में हिंद महासागार और उत्तर में पाक अधिकृत कश्‍मीर में भी निर्माण कार्यों के बहाने अपनी मौजदूगी दर्ज करा चुका है। तिब्बत,अरूणाचल प्रदेश,अक्साई चीन और सिक्किम पर बेजा हस्तक्षेप से भी चीन बाज नहीं आता। हमारा कैलास मानसरोवर वह पहले ही हड़प चुका है। नेपाल और श्रीलंका में भी चीन का दखल बरकरार है। ब्रहम्पुत्र नदी पर चार नए बांध बनाने की हाल ही में चीन ने मंजूरी देकर भारत को आंख दिखाई है।

भारत के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने कभी भी चीन के लोकतांत्रिक मुखौटे में छिपि साम्राज्यवादी मंशा को नहीं समझा। यही वजह रही कि हम चीन की हड़प नीतियों व मंसूबों के विरूद्ध न तो कभी दृढ़ता से खड़े हो पाए और न ही कड़ा रूख अपनाकर विश्‍व मंच पर अपना विरोध दर्ज करा पाए। अलबत्ता हमारे तीन प्रधानमंत्रियों, जवाहर लाल नेहरू,राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी ने तिब्बत को चीन का अविभाजित हिस्सा मानने की भी उदारता जताई। इस खुली छूट के चलते ही बड़ी संख्या में तिब्बत में चीनी सैनिकों की घुसपैठ शुरू हुर्ह। इन सैनिकों ने वहां की सांस्कृतिक पहचान, भाषाई तेवर और धार्मिक संस्कारों में पर्याप्त दखलंदाजी कर दुनिया की छत को कब्जा लिया। ग्वादर बंदरगाह के निर्माण की शुरूआत चीन ने ही की थी,लेकिन बाद में पाकिस्तान सरकार ने यह काम सिंगापुर की एक निर्माण कंपनी को दे दिया। धीमी गाति से निर्माण होने के कारण पाक्स्तिान की बैचैनी बढ़ रही थी। लिहाजा इस अनुबंध को खारिज कर पाकिस्तान के केंद्रिय मंत्री मण्डल ने यह काम चीन के सुपुर्द करने की मंजूरी दे दी। यह सौदा 1331 करोड़ रूपये का है। इसका 75 फीसदी अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया है। पाकिस्तान की मंषा है कि चीन यहां अपना नौसेनिक अड्रडा बनाए। जब अड्डा बन जाएगा तो इस बंदरगाह पर चीनी युद्धपोतों की आवाजाही भी बढ़ जाने की आषंका है। यदि इसका उपयोग रक्षा संबंधी मामलों के परिप्रेक्ष्य में होने लग गया तो चीन यहां से मध्‍य-पूर्व में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डो की भी निगरानी रखने लग जाएगा। यहां गौरतलब है कि बलूचिस्तान में अषांत माहौल होने के बावजूद चीन वहां के विकास कार्य करने का जोखिम उठा रहा है। जाहिर है चीन की रणनीतिक मंशा मजबूत है। इस बंदरगाह से चीन शिनचांग प्रांत के लिए तेल और गैस भी ले जा सकता है। लेकिन इस मकसद पूर्ति के लिए उसे मोटी और लंबी पाइपलाइन शिनचांग तक बिछानी होगी। यह काम लंबे समय में पूरा होने वाला जरूर है,किंतु ऐसे चुनौती पूर्ण कार्यों को चीन अंजाम तक पहुंचाता रहा है।

चीन भारत को घेरने की गतिविधियों को अंजाम देने के काम में अर्से से लगा है। 1999 में चीन ने मालदीव के मराओ द्धीप को गोपनीय ढ़ंग से लीज पर ले लीया था। चीन इसका उपयोग निगरानी अड्डे के रूप में गुपचुप करता रहा। वर्ष 2001 में चीन के प्रधानमंत्री झू रॉन्गजी ने मालदीव की यात्रा की तब दुनिया इस जानकारी से वाकिफ हुई कि चीन ने मराओ द्वीप लीज पर ले रखा है और वह इसका इस्तेमाल निगरानी अड्डे के रूप में कर रहा है। इसी तरह चीन ने दक्षिणी श्रीलंका के हवनटोंटा बंदरगाह पर एक डीप वाटर पोर्ट बना रखा है। यह क्षेत्र श्रीलंका के राष्‍ट्रपति महेंद्र्रा राजपक्षे के चुनावी क्षेत्र का हिस्सा है। भारतीय रणनीतिक क्षेत्र के हिसाब से यह बंदरगाह बेहद महत्वपूर्ण है। यहां से भारत के व्यापारिक और नौसेनिक पोतों की अवाजाही बनी रहती है। बांग्‍लादेश के चटगांव बंदरगाह के विस्तार के लिए चीन करीब 46675 करोड़ रूपये खर्च कर रहा है। इस बंदरगाह से बांग्लादेश का 90 प्रतिशत व्यापार होता है। यहां चीनी युद्धपोतों की मौजदूगी भी बनी रहती है। म्यांमार के बंदरगाह का निर्माण किया तो भारतीय कंपनी ने था,लेकिन इसका फायदा चीन उठा रहा है। चीन यहां पर एक तेल और गैस पाइपलाइन बिछा रहा है,जो सितवे गैस क्षेत्र से चीन तक तेल व गैस पहुंचाने का काम करेगी।

भारत विरोधी मंशा के चलते चीन ने पाक अधिकृत कष्मीर में दखल दिया है। इस बाबत चीन ने इस क्षेत्र में 80 अरब डॉलर का पूंजी निवेष किया है। चीन की पीओके में शुरू हुईं ये गतिविधियां सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। यहां से वह अरब सागर तक पहुंचने की जुगाड़ में लगा है। इसी क्षेत्र में चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहुंचने के लिए काराकोरम सड़क मार्ग भी तैयार कर लिया है। इस हस्तक्षेप के बाद चीन ने पीओके क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा मानने की वकालत शुरु कर दी है। चीनी दस्तावेजों में अब इस इलाके को उत्तरी पाकिस्तान दर्शाया जाने लगा है। चीन ने पीओके-नागरिकों को नत्थी वीजा भी देना शुरु कर दिया है। चीन ने दुस्साहस से काम लेते हुए भारत की सीमा तक राजमार्ग बनाने में भी कामयाबी हासिल कर ली है। समुद्र तल से 3750 मीटर की उंचाई पर बर्फ से ढंके गैलोंग्ला पर्वत पर 3.3 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाकर सड़क मार्ग पूरा कर लिया है। यह सड़क सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बत में मोषुओ का उंटी भारत के अरुणाचल प्रदेश का अंतिम छोर है। अभी तक यहां सड़क मार्ग नहीं था। मार्च 2012 में विदेश मंत्री एसएम कृष्‍णा ने संसद को दी एक जानकारी में कहा था कि ‘1948 से जम्मू-कश्‍मीर का लगभग 78000 वर्ग किमी क्षेत्र पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। इसके अलावा 38000 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र 1962 से चीन के कब्जे में है।’ चीन भारत के खिलाफ नाजायज हरकतों को अंजाम दे सके, इस नजरिए से चीन ने पाकिस्तान की रजामंदी से पीओके का 5100 वर्ग किमी भू-भाग हासिल कर लिया है। इस भू-खण्ड पर चीन लगातार मिसाइलें तैनात कर रहा है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भविष्‍य की रणनीति के तहत चीन अपनी सवा दो लाख सैनिकों वाली पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। चीन ने पहले भारतीय वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तरल ईंधन वाली सीएसएस-2 आईआरबीएम मिसाइलें तैनात कर रखीं थीं और अब उनकी जगह एमआरबीएक मिसाइलें तैनात कर दी गई हैं।

चीन भारत पर शिकंजा कसने की दृश्टि से नेपाल में भी रुचि ले रहा है। कम्युनिष्‍ट विचारधारा के पोषक चीन ने माओवादी नेपालियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। चीन नेपाल में सड़कों का जाल बिछाने और विद्युत संयंत्र लगाने की दृष्टि से अरबों रुपये खर्च कर रहा है। इन्हीं कुटिल कूटनीतिक वजहों के चलते भारत और नेपाल के पुराने रिश्‍तों में हिंदुत्व और हिन्दी की जो भावनात्मक तासीर थी, उसका गाढ़ापन ढीला होता जा रहा है। नतीजतन नेपाल में चीन का दखल और प्रभुत्व लगातार बढ़ रहा है। चीन की ताजा कोशिशों में भारत की सीमा तक आसान पहुंच बनाने के लिए तिब्बत से नेपाल तक रेल मार्ग बिछाना शामिल है। पशुपति से लेकर तिरुपति तक आतंकी माओवादियों के जो हमले तेज हुए हैं, उन्हें भी चीन प्रोत्साहित कर रहा है। इस सब के बीच विडंबना है कि भारत चीन को यह अहसास कराने में असफल ही रहा है कि वह चीन से कम नहीं है ?

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