जानिए वर्ष 2016 में दीवाली पूजन का मुहूर्त—

diwaliश्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है. धन की देवी श्री महा लक्ष्मी जी का आशिर्वाद पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रुप से शुभ रहता है ||
दीवाली या कहें दीपावली भारतवर्ष में मनाया जाने वाला हिंदूओं का एक ऐसा पर्व है जिसके बारे में लगभग सब जानते हैं। प्रभु श्री राम की अयोध्या वापसी पर लोगों ने उनका स्वागत घी के दिये जलाकर किया। अमावस्या की काली रात रोशन भी रोशन हो गई। अंधेरा मिट गया उजाला हो गया यानि कि अज्ञानता के अंधकार को समाप्त कर ज्ञान का प्रकाश हर और फैलने लगा। इसलिये दीवाली को प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है।
जानिए क्यों हैं दीवाली/ दीपावली का महत्व—

भारत देश में हमेशा से सामाजिक और सामुदायिक बातचीत का बहुत महत्व रहा है पर शहरीकरण, विकास और व्यक्तिगत सफलता की होड़ में लोगों के बीच मेलजोल बहुत ही कम हो गया है। ऐसी स्थिति में दीवाली का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि यह शहरों और गांवों मंे लोगों को जोड़ने का काम करती है।
खुशी के भाव के साथ, आत्म-ज्ञान और उमंग की रोशनी सब जगह समान है, लेकिन उत्सव की क्षेत्रीय प्रथाओं का तरीका, संसाधनों की पहुंच और उस क्षेत्र के लोगों के अपने विश्वास पर निर्भर करता है। दीवाली का त्यौहार जब आता है तो साथ में अनेक त्यौहार लेकर आता है। एक और यह जीवन में ज्ञान रुपी प्रकाश को लाने वाला है तो वहीं सुख-समृद्धि की कामना के लिये भी दीवाली से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं होता इसलिये इस अवसर पर लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। दीपदान, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भैया दूज आदि त्यौहार दीवाली के साथ-साथ ही मनाये जाते हैं। सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक हर लिहाज से दीवाली बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है।
वर्तमान में तो इस त्यौहार ने धार्मिक भेदभाव को भी भुला दिया है और सभी धर्मों के लोग इसे अपने-अपने तरीके से मनाने लगे हैं। हालांकि पूरी दुनिया में दीवाली से मिलते जुलते त्यौहार अलग-अलग नामों से मनाये जाते हैं लेकिन भारतवर्ष में विशेषकर हिंदूओं में दीवाली का त्यौहार बहुत मायने रखता है। दीवाली शब्द का मतलब है ’रोशनी का त्यौहार’, यह शब्द संस्कृत के शब्द ’दीपावली’ से बना है, जिसका अर्थ होता है दीपों की पंक्ति या कह सकते हंै दीपों की श्रृंखला। यदि इस त्यौहार पर रात में किसी क्षेत्र का हवाई चित्र लिया जाए तो यह दृश्य बिलकुल चमक दमक से जगमगाती धरती का होगा।
एक मान्यता के अनुसार सभी बारह राशियों को दो भागों में बांटा गया है|| छ: राशियां एक बडे नाडीवृ्त के एक और है, तथा शेष 6 राशियां नाडीवृ्त के दूसरी ओर है. इसी मंथन को करने के बाद चौदह रत्न निकलते है. व लक्ष्मी जी अमावस्या तिथि के दिन प्रकट हुई थी ||
समुद्र मंथन करने के बाद ही लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था. देवी लक्ष्मी जी के अनेक रुप कहे गये है, उन्हें लक्ष्मी जी, महालक्ष्मी जी, राजलक्ष्मी, गृ्हलक्ष्मी जी आदि कहा जाता है || दीपावली के दिन घर की साफ – सफाई कर कूडा- करकट साफ कर घर से बाहर निकाला जाता है. साफ – सुथरे घर में ही श्री कमला लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है ||

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जानिए वर्ष 2016 में दीवाली पूजन का मुहूर्त—
घर में सुख-समृद्धि बने रहे और मां लक्ष्मी स्थिर रहें इसके लिये दिनभर मां लक्ष्मी का उपवास रखने के उपरांत सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न (वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है) में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये। लग्न व मुहूर्त का समय स्थान के अनुसार ही देखना चाहिये। वर्ष 2016 में दिपावली, 30 अक्टूबर, रविवार के दिन की रहेगी || इस दिन चित्रा/स्वाती नक्षत्र है, इस दिन प्रीति योग तथा चन्दमा तुला राशि में संचार करेगा. दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है || दिपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से शुभ मानी जाती है ||
प्रदोष काल मुहूर्त कब —
30 अक्टूबर 2016, (रविवार) के दिन दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में सूर्यास्त 17:34 पर होगा इसलिए 17:37 से 20:14 तक प्रदोष काल रहेगा. इसे प्रदोष काल का समय कहा जाता है. प्रदोष काल समय को दिपावली पूजन के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है. प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उतम रहता है. इस दिन प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों तथा इसके साथ शुभ चौघडिया भी रहने से मुहुर्त की शुभता में वृद्धि हो रही है ||
दिल्ली में 30 अक्तूबर 2016 को पूजन मुहूर्त—

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 18:27 से 20:09

प्रदोष काल- 17:33 से 20:09

वृषभ काल- 18:27 से 20:22

अमावस्या तिथि आरंभ- 20:40 (29 अक्तूबर)

अमावस्या तिथि समाप्त- 23:08 (30 अक्तूबर)

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उज्जैन (मध्यप्रदेश) में दीवाली लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त—

चौघड़िया का उपयोग किसी नये कार्य को प्रारम्भ करने के लिए शुभ समय देखने हेतु किया जाता है। परम्परागत रूप से चौघड़िया का उपयोग यात्रा के मुहूर्त के लिए किया जाता है लेकिन इसकी सरलता के कारण इसे अन्य मुहूर्त देखने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
किसी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने के लिए अमृत, शुभ, लाभ और चर, इन चार चौघड़ियाओं को उत्तम माना गया है और शेष तीन चौघड़ियाओं, रोग, काल और उद्वेग, को अनुपयुक्त माना गया है जिन्हें त्याग देना चाहिये।
सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य के समय को दिन का चौघड़िया कहा जाता है तथा सूर्यास्त और अगले दिन सूर्योदय के मध्य के समय को रात्रि का चौघड़िया कहा जाता है।

वार वेला, काल वेला एवं काल रात्रि के विषय में

यह माना जाता है कि वार वेला, काल वेला और काल रात्रि के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाने चाहिये। वार वेला एवं काल वेला दिन के समय प्रचलित रहते हैं जबकि काल रात्रि, रात के समय प्रचलित रहती है। ऐसा माना जाता है कि इस समय कोई भी मंगल कार्य करना फलदायी नहीं होता है।
प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = सुबह 07:59 से – दोपहर 12:10

अपराह्न मुहूर्त (शुभ) = दोपहर 13:34 से- 14:58

सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) =17:46 -से- 22:34

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उज्जैन में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त =18:42 to 20:19

अवधि = 1 Hour 37 Mins

प्रदोष काल = 17:45 to 20:19

वृषभ काल = 18:42 to 20:40

अमावस्या तिथि प्रारम्भ = 20:40 on 29/Oct/2016

अमावस्या तिथि समाप्त = 23:08 on 30/Oct/2016

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विशेष–इस वर्ष दीपावली के दिन ( 30 अक्टूबर 2016 -रविवार ) के दिन सूर्य और बुध तुला ऐयाशी में, स्वाति नक्षत्र में और चन्द्रमा सुबह लगभग 9 बजे से तूला राशि और स्वाति नक्षत्र में रहेगा ||

इस दिन स्वाति नक्षत्र का स्वामी राहु एवम तुला राशि का स्वामी शुक्र रहेगा जो सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा ||

वैदिक ज्योतिष के अनुसार तुला राशि का स्वामी शुक्र होता हैं ||काल पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव और धन भाव का स्वामी शुक्र होता हैं |

शुक्र सर्व भोगप्रद गृह हैं|| वीर्यत्व प्रधान होता हैं ||

जब सूर्य और चन्द्रमा शुक्र की राशि तुला में हो, तब केंद्र त्रिकोण सम्बन्ध से लक्ष्मी योग निर्मित होता हैं ||इसका कारण यह हैं की चन्द्रमा चतुर्थेश हैं और सूर्य पंचमेश हैं इन दोनों की एक ही राशि में युति होने के कारण पंचमेश-चतुर्थेश योग से इस दीपावली पर लक्ष्मी योग बनेगा ||

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प्रदोष काल का प्रयोग कैसे करें—
प्रदोष काल में मंदिर में दीपदान, रंगोली और पूजा से जुडी अन्य तैयारी इस समय पर कर लेनी चाहिए तथा मिठाई वितरण का कार्य भी इसी समय पर संपन्न करना शुभ माना जाता है.
इसके अतिरिक्त द्वार पर स्वास्तिक और शुभ लाभ लिखने का कार्य इस मुहूर्त समय पर किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त इस समय पर अपने मित्रों व परिवार के बडे सदस्यों को उपहार देकर आशिर्वाद लेना व्यक्ति के जीवन की शुभता में वृ्द्धि करता है. मुहूर्त समय में धर्मस्थलो पर दानादि करना कल्याणकारी होगा.
निशिथ काल—-
निशिथ काल में स्थानीय प्रदेश समय के अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो सकता है. 30 अक्टूबर को 20:14 से 22:52 तक निशिथ काल रहेगा. निशिथ काल में लाभ की चौघडिया भी रहेगी, ऎसे में व्यापारियों वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये इस समय की विशेष शुभता रहेगी.
दिपावली पूजन में निशिथ काल का प्रयोग कैसे करें—
धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.
महानिशीथ काल—
धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.
30 अक्टूबर 2016 के रात्रि में 22:52 से 25:31 मिनट तक महानिशीथ काल रहेगा. महानिशीथ काल में पूजा समय स्थिर लग्न या चर लग्न में कर्क लग्न भी हों, तो विशेष शुभ माना जाता है. महानिशीथ काल में सिंह लग्न एक साथ होने के कारण यह समय अधिक शुभ हो गया है. जो जन शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए.
महानिशीथ काल का दिपावली पूजन में प्रयोग कैसे करें —
महानिशीथकाल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी,यंत्र-मंत्र-तंत्र कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं एवं शक्तियों का आवाहन करना शुभ रहता है. अवधि में दीपावली पूजन के पश्चात गृह में एक चौमुखा दीपक रात भर जलता रहना चाहिए. यह दीपक लक्ष्मी एवं सौभाग्य में वृद्धि का प्रतीक माना जाता है ||
दीपदान —

दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ माना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।

दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता की एक अनोखी छठा को पेश करता है। आज अवश्य पटाखों की शोर में माता लक्ष्मी की आरती का शोर कम हो गया है लेकिन इसके पीछे की मूल भावना आज भी बनी हुई है।

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लक्ष्मी पूजन की विधि–

दिवाली पूजन में सामग्री का महत्व—
दीपावली के पर्व पर सदैव माता लक्ष्मी के साथ गणेश भगवान की पूजा की जाती है. इस का कारण यह है कि दीपावली धन, समृ्द्धि व ऎश्वर्य का पर्व है, तथा लक्ष्मी जी धन की देवी है. इसके साथ ही यह भी सर्वविदित है कि, बिना बुद्धि के धन व्यर्थ है. धन-दौलत की प्राप्ति के लिये देवी लक्ष्मी तथा बुद्धि की प्राप्ति के लिये श्री गणेश की पूजा की जाती है || श्री गणेश को शुभता का प्रतीक कहा गया है. श्री गणेश सिद्धि देने वाले देवता है. जीवन में सुख – शान्ति लाने के लिये श्री गणेश की आराधना की जाती है. यही कारण है कि सभी शुभ कार्य करने से पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है. पूजा और शुभ कार्यो को सुचारु रुप से चलाने के लिये सबसे पहले गणेश जी का ध्यान किया जाता है ||

माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
माँ लक्ष्मी को वस्त्र में लाल या पीले रंग का रेशमी वस्त्र प्रिय है। देवी लक्ष्मी की पूजा में दीपक, कलश, कमल पुष्प, जावित्री, मोदक, श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार के फल, गुलाब, चन्दन इत्र, चावल, केसर की मिठाई, शिरा आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। दीप प्रज्वलित करने हेतु गाय घी, मूंगफली या तिल के तेल के प्रयोग से लक्ष्मी माँ को प्रसन्न किया जाता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
पूजा की तैयारी —
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे। पूजा करने हेतु उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे।

चौकी —-

(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
पूजा की संक्षिप्त विधि—-

सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः

कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें।
आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
संकल्प – आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए।
हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए।
सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए।

लक्ष्मी पूजन के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें – “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:”

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जानिए विभिन्न धर्म दीवाली क्यों मनाते हैं?
हिंदू धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म में दीवाली मनाने के कारण अलग-अलग हैं।
हिंदू धर्मः—
महाकाव्य रामायण के अनुसार दीवाली 14 सालों के वनवास के बाद भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण की वापसी के उत्सव के रुप में मनाते हैं।
भारत के उत्तर के कुछ क्षेत्रों में दीवाली, देवी लक्ष्मी की पूजा और पूर्वी क्षेत्रों में काली की पूजा करके मनाते हैं।
जैन धर्मः—
जैन धर्म में दीवाली का विशेष महत्व है। यह भगवान महावीर के निर्वाण पाने की याद में मनाया जाता है।
सिख धर्मः—
सिख धर्म में दीवाली गुरु हर गोबिंद जी के जहांगीर की कैद से छूटने और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर लौटने की खुशी में मनाई जाती है। बंदी छोड़ दिवस के तौर पर सिख इस दिन को बहुत ही श्रृद्धा के साथ मनाते हैं।
भारत में दीवाली कैसे मनाई जाती है?

दीवाली का जश्न दीये जलाने से लेकर, घरों को सजाने, पूजा करने, मिठाई बनाने और खाने और अन्य क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ मनाया जाता है। बच्चों को पौराणिक कथाएं सुनाना, तोहफों का लेनदेन और पटाखे चलाना भी इसमें शामिल है।
पर्यावरण की दुर्दशा के प्रति चिंता और लोगों में बढ़ती जागरुकता ने इस त्यौहार को मनाने के तरीके को थोड़ा बदला है। कई जिम्मेदार परिवार अब प्रदूषण रहित दीवाली मनाना अपना रहे हैं, जहां उत्साह अच्छी सामाजिक प्रथाओं तक सीमित है। ना सिर्फ स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थाएं बच्चों को पटाखे चलाने से रोकते हैं बल्कि मीडिया, सरकार और माता पिता भी पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण के नुकसान प्रति जागरुकता फैलाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

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प्रेम, सद्भावना और प्रकाश के पर्व दीवाली के शुभावसर पर पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री की तरफ से आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं और हम कामना करते हैं कि आपका जीवन में खुशनुमा और प्रकाशमय रहें।

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