ज़हरीली होती यमुना आचमन योग्य नहीं

डा. राधेश्याम द्विवेदी
यमुना की त्रासद व्यथा:- कालिंदी का कल-कल निनाद शांत होता जा रहा है। उसकी धारा सिकुड़ती जा रही है । उसका पवित्र जल आचमन योग्य नहीं रहा है । जिससे यमुना प्रेमियों का मन आहत है। यमुना से कृष्ण का अटूट नाता रहा है और इसकी पवित्रता को बरकरार रखने के लिए उन्होंने कालिया नाग को खत्म किया था। द्वापर में प्रदूषित होने से बची यमुना कलयुग में जहर उगलते कारखानों और गंदे नालों की वजह से मैली हो गई है। यमुना की निर्मलता और स्वच्छता को बनाए रखने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन इस पर कायदे से अब तक अमल नहीं हो पाया है। अपने उद्गम से लेकर प्रयाग तक बहने वाली इस नदी की थोड़ी-बहुत सफाई बरसात के दिनों में इंद्र देव की कृपा से जरूर हो जाती है। लेकिन यमुनोत्री से निकली इस यमुना की व्यथा बेहद त्रासद है।
गंगा के बराबर ही अहमियत:- अतीत में यमुना को भी पवित्रता और प्राचीन महत्ता के मामले में गंगा के बराबर ही अहमियत मिलती थी। पश्चिम हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाओं की विभाजन रेखा बनी यह नदी पंचानवे मील का सफर तय कर उत्तरी सहारनपुर के मैदानी इलाके में पहुंचती हैं। फिर पानीपत, सोनीपत, बागपत होकर दिल्ली में दाखिल होती है। यहां से बरास्ता मथुरा और आगरा होते हुए प्रयाग पहुंच कर गंगा में समा जाती है। पिछले कई दशक में हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने यमुना की सफाई के नाम पर अरबों रुपए खर्च दिए। पर साफ-सुथरी दिखने के बजाए यमुना और ज्यादा मैली होती गई। सरकार ने इस प्राचीन नदी के अस्तित्व से सरोकार नहीं दिखाया तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने सवाल उठाते हुए कई बार सरकारों को कड़ी फटकार भी लगाई। उस पर किसी फटकार का कोई असर नहीं होता, और अगर होता भी है तो थोड़ी देर के लिए। तभी तो हर राज्य यमुना की सफाई को लेकर अपना ठीकरा दूसरे पर फोड़ देता है।
समझौते का पालन नहीं :– 1994 में यमुना के पानी के बंटवारे पर एक समझौता हुआ था। दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व अधिकारी रमेश नेगी के मुताबिक समझौते के तहत दिल्ली को हरियाणा से पेयजल की जरूरत के लिए यमुना का पानी मिलना तय हुआ था। बदले में दिल्ली से उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए पानी मिलना था, लेकिन विडंबना देखिए हरियाणा जहां अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली भी उत्तर प्रदेश को अपने गंदे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी ही सप्लाई कर रही है। दिल्ली में यमुना में अठारह बड़े नाले गिरते हैं, जिनमें नजफगढ़ का नाला सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रदूषित है। इस नाले में शहरी इलाकों के अड़तीस और ग्रामीण इलाकों के तीन नाले गिरते हैं। यह नाला वजीराबाद पुल के बाद सीधे यमुना में गिरता है। वजीराबाद, आईटीओ और ओखला में तीन बांध हैं। मकसद यमुना के पानी को रोक कर दिल्ली को पेयजल की जरूरत को पूरा करना है। वजीराबाद पुल से पहले तो फिर भी यमुना का पानी पीने लायक दिखता है। लेकिन यमुना यहां से आगे बढ़ती है तो नजफगढ़ का नाला इसमें गिरता है और फिर पानी का रंग बदल कर काला हो जाता है। एक तरफ यमुना में कचरे का अंबार दिखता है तो दूसरी तरफ काला स्याह पानी। आईटीओ पुल, निजामुद्दीन और टोल ब्रिज से गुजरने पर दो-तीन धाराओं में बहती यमुना नदी कम बड़ा नाला ज्यादा नजर आती है।
यमुना के किनारे बसे शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूषित इसे दिल्ली ही करती है। इसमें गिरने वाली कुल गंदगी में से अस्सी फीसद दिल्ली की होती है। प्रदूषत कचरे की वजह से ही इसके पानी में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग खत्म हो गई है। वजीराबाद से ओखला बांध तक सबसे ज्यादा प्रदूषण है। दिल्ली सरकार के ओखला में कूड़े से खाद बनाने के कारखाने से निकलने वाली जहरीली गैस से आसपास के लोगों का जीना दूभर हो गया है। ऐसा ही संयंत्र दशकों पहले वजीराबाद पुल के पास बना था।
यमुना एक्शन प्लान :-पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में लागू हुआ था। जिस पर करीब 680 करोड़ रुपए खर्च हुए। फिर 2004 में दूसरा प्लान बना। इसकी लागत 624 करोड़ रुपए तय की गई। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना की सफाई पर दिल्ली जल बोर्ड ने 1998-99 में 285 करोड़ रुपए और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपए खर्च किए। डीएसआईडीसी ने 147 करोड़ रुपए अलग खर्च कर दिए। यमुना को गंदा करने में दिल्ली सबसे आगे है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश भी कुछ कम नहीं रहे। उत्तर प्रदेश में भी मथुरा और आगरा जैसे शहरों के गंदे नाले सीधे यमुना में गिरते हैं। इन्हें रोकने के लिए अब तक गंभीर कोशिश नहीं हुई है। आज की यमुना अपने उद्गम से लेकर संगम तक कहीं भी गंदगी से मुक्त नहीं है। हालांकि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के इक्कीस शहरों में अब तक यमुना की सफाई पर 276 योजनाएं क्रियान्वित की जा चुकी हैं। जिनके माध्यम से 75325 लाख लीटर सीवर उत्प्रवाह के शोधन की क्षमता सृजित किए जाने का सरकारी दावा है। एक तरफ यमुना को बचाने के नाम पर सरकारी योजनाएं बन रही हैं तो दूसरी तरफ कुछ गैरसरकारी संस्थाएं भी मैली यमुना में सीधे न सही पर रस्म अदायगी के जरिए तो डुबकी लगा ही रही हैं। लेकिन ऐसे आधे-अधूरे प्रयासों से न यमुना की गत सुधरने वाली है और न इस प्राकृतिक धरोहर को बर्बाद होने से रोका जा सकता है। सचमुच यमुना को बचाना है तो इसके लिए एक तरफ तो सामाजिक चेतना जगानी होगी, दूसरी तरफ इसे गंदा करने वालों पर कड़ा दंड लगाना होगा।
दिल्ली में घुसते ही नदी नहीं रहती यमुना :- तीन-चौथाई की प्यास बुझाने वाली यमुना की हालत खस्ता दिल्ली की तीन चौथाई आबादी की प्यास बुझाने वाले यमुना नदी की हालत बेहद खराब है। वजीराबाद से आगे निकलते ही यमुना नाले जैसी दिखाई देती है। दिल्ली की 50 फीसदी से ज्यादा गंदा पानी यमुना में बिना ट्रीटमेंट के बहाया जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में रिपोर्ट देने के बाद भी यमुना की बदहाली में कोई सुधार नहीं हो रहा है। यमुना में प्रदूषण इतना ज्यादा है कि जलचर खत्म हो चुके हैं। ओखला बैराज के पास पानी में कुछ छोटी-छोटी मछलियाँ पाई जाती हैं, लेकिन वे साफ पानी की मछलियाँ नहीं होती और खाने में काम नहीं आ सकती। जानकारी के मुताबिक राजधानी दिल्ली में यमुना पल्ला से प्रवेश करती है। करीब 25 किलोमीटर के स्ट्रेज के बाद वजीराबाद तक यमुना पहुँचती है। इससे पहले ही जलबोर्ड दिल्ली में सप्लाई के लिए यहां से पानी उठा लेता है। इसके बाद यमुना नाले जैसी दिखाई देने लगती है।
यमुना प्रेमियों का आक्रोश :- 26 मार्च 2017 को सायंकाल 5 बजे यमुना तट स्थित हाथीघाट पर श्री गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति की बैठक हुई। इसमें देवी स्वरुपा मां यमुना पर विभिन्न प्रहारों की निन्दा की गयी। आगरा में गन्दे नालों को रोकने के लिए प्रयासों , पर्यावरण की शुद्धता , यमुना निर्मलीकरण तथा शुद्ध पेय जल की समस्या को देखते हुए यमुना मंथन विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है। यमुना मंथन कार्यक्रम में मां यमुना को जीवित प्राणी की संज्ञा दिये जाने पर विद्वान न्यायाधीश को बधाई दी गयी। इसके साथ ही साथ मां यमुना पर विभिन्न प्रकार के प्रहारों के स्लोगन लिखे तख्तियां लिये यमुना प्रमियों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया तथा प्रशासन को अपनी बेदना व्यक्त की। एक दृश्य में यमुना मां को रोते हुए दर्शाया गया है। श्री गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति के अध्यक्ष यमुना सत्याग्रही पं. अश्विनी कुमार मिश्र ने कहा कि यमुना मरी नहीं हैं उसे मारे जाने का रोज रोज प्रयास चल रहा है। श्रद्धालुओं के तख्तियों पर अनेक नारे लिखे हुए थे। आज का यमुना मंथन इसी थीम पर केन्द्रित रहा। अनेक वक्ताओं ने अपने विचार व अनुभवों को साझा किया। गंगा-यमुना सहित विभिन्न पवित्र नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जाहिर की गई। कई कानून और योजनाएं बनने के बाद भी गंगा और यमुना की स्वच्छता को लेकर गंभीर प्रयास नहीं हो पा रहा है। कानूनों का ठीक से पालन नहीं हो पा रहा है। वहीं सरकारी स्तर पर बनने वाली योजनाओं को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा। केन्द्र सरकार की योजनायें अब तक धरातल पर कोई असर नहीं डाल पायी है । पानी, पर्यावरण और नदियों की रक्षा-संरक्षा की शासकीय प्रशासकीय जवाबदेही तय करने के लिए जन जागरुक रहने का आहवान किया गया है। यह वेदना माननीय मुख्यमंत्री , प्रधान मंत्री को अवगत कराकर इसको रोकने का प्रयास किया जा रहा है। मिडिया के माध्यम से व्यापक जन जागरुकता कर इसे ओर अधिक प्रचारित किया जा रहा है। जनता से आपेक्षा की जा रही कि इस पावन कार्य में सहयोग करें तथा प्रत्यक्ष या परोक्षरुप से अपनी सहभागिता दिखायें। यह भी निश्चित किया गया कि यदि इस अनौतिक प्रहार पर जल्द से जल्द त्वरित कार्यवाही नहीं होती है तो यमुना भक्त जन आन्दोलन के लिए विवस होंगे जिसकी शुरुवात किसी एक नाले पर सांकेतिक अनशन के रुप में परिणित किया जा सकता है।

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