झारखंड की अनुपम प्राकृतिक संपदा

बिहार से अलग होने के बाद झारखण्ड के पास मौका आया की वो अपने उपलब्ध संसाधनो का प्रचुर मात्रा में विकास कार्यों के लिए उपयोग करे। झारखण्ड ना केवल खनिज सम्पदा से लबालब भरा हुआ है, बल्कि वनों एवं जीव जन्तुओ की बहुलता के कारण पर्यटन का एक महत्वपुर्ण केन्द्र बनने का माद्दा रखता है। जैसा की नाम से हीं जाहिर होता है की ‘झार’ या ‘झाड़’ जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है और ‘खंड’ यानि टुकड़े से मिलकर झारखण्ड बना है।

वैसे तो सम्पूर्ण झारखण्ड पेड़, पौधो और कई प्रकार के संख्या में कम बचे जीव जन्तुओ से पटा पड़ा है पर सरकार की उम्दा कोशिशो से कुछ स्थानो को बहुत पहले हीं संरक्षित करने का कार्य शुरु कर दिया गया था जिसके कारण इन वन अभ्यारणों की खूबसूरती बरकरार हैं। आज पुर्वी प्रदेशों में झारखण्ड पर्यटन के लिहाज से पहली पसंद बनता जा रहा है। ये कोई कम महत्वपुर्ण बात नहीं है की झारखण्ड के निर्माण के पहले रांची बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रुप में विख्यात शहर था।

झारखण्ड में कई ऐसी जगह है जो अलग अलग वजहो से लोगों को आकर्षित करते हैं। एक तरफ जहां नेतरहाट वर्ष भर ठंडा रहता है और पर्यटको को गर्मी से बचने का मौका देता हैं वहीं देवघर सावन के महीने में श्रद्धालुओ से पटा पड़ा होता हैं।

झारखण्ड के उद्यानो में विशेष उल्लेख होता है बेतला और हजारीबाग के राष्ट्रीट उद्यानो का जो अपनी अप्रतिम सूंदरता और जीव जन्तुओ में विभिन्नता के लिए प्रसिद्ध हैं।

बेतला राष्ट्रीय अभ्यारण्य (पलामू) – डाल्टेनगंज से 25 किमी की दूरी पर स्थित है, लगभग 250 वर्ग किमी में फैला हुआ है। विविध वन्य जीव यथा बाघ, हाथी, भैंसे सांभर, सैंकड़ो तरह के जंगली सूअर एवं 20 फुट लंबा अजगर चित्तीदार हिरणों के झुंड, चीतल एवं अन्य स्तनधारी प्राणी इस पार्क की शोभा बढाते हैं। इस पार्क को 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। यह वन केच्की से शुरू होता है और नेतरहाट तक बढा हुआ है । वन में 970 प्रजाति के पौधे, 174 प्रजातियों के पक्षी, 39 स्तनधारी, 180 प्रजाति के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। पलामू जिले को ‘ बाघ देश ‘ के नाम से भी जाना जाता है।

हजारीबाग नेशनल पार्क – झारखण्ड की 615 मीटर की औसत ऊंचाई पर छोटी पहाड़ी तराइयों के बीच स्थित हजारी बाग नेशनल पार्क वन्य जंतुओं से भरा पड़ा है। जंगली सुअर, सांभर, नील गाय, चीतल और काकर को यहां निश्चित रूप से देखने के लिए शाम के समय पानी के स्रोत के पास बैठा जा सकता है। यह अभयारण्य, 184 वर्ग किलो मीटर के ऊंचे नीचे भौगोलिक क्षेत्र और एक सीधी खड़ी पहाड़ी वाला है जहां घने उष्ण् कटि बंधी वन घास के मैदान हैं। इस अभयारण्यष में 111 किलो मीटर लंबी सड़क मोटर यात्रियों को दूरदराज के कोनों में और मानव निर्मित स्तं भों तक ले जाती है। सोच समझ कर बनाई गई यह सड़क दर्शकों को वन्यस जीवन के दर्शन का उत्कृ ष्ट अवसर उपलब्ध कराती है। यह अभयारण्य जनजातीय अधिवास से घिरा हुआ है। ऐसे अनेक वॉच टावर हैं जो दर्शकों को इन वन्य् जंतुओं के प्राकृतिक अधिवास में रहने का दृश्यर उपलब्ध कराते हैं।

 

 

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