आतंकवाद के खात्मे के लिए जेहादी विचारधारा का अंत जरूरी

बृजनन्दन यादव

आतंकवाद एक संगठित विचारधारा है। एक निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किये गये हिंसात्मक तथा अनैतिक कार्यों द्वारा सरकार पर दबाव डालना अतंकवाद है। यह एक ऐसा सैद्धान्तिक तरीका है जिसके द्वारा कोई संगठित गिरोह अपने घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का योजनाबध्द ढंग़ से इस्तेमाल करता है। आतंकवादी समूह समाज में डर एवं दहशत का माहौल पैदा कर सरकार से अपनी मांगे मनवाते हैं।

आतंकवाद आज अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। यह किसी एक देश से सम्बन्धित नहीं है। विश्व के लगभग 62 देश आतंकवाद से ग्रस्त हैं। लेकिन आतंकवाद की कीमत भारत को ही सबसे ज्यादा चुकानी पड़ी है। मोस्ट वांटेड आतंकी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर पूरे विश्व के लोग राहत की सांस ले रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह नहीं है। उसके मारे जाने मात्र से आतंकी गतिविधियों में कोई कमी आने वाली नहीं हैं। क्योंकि आतंकवाद कुछ लोगों का मिशन बन चुका है और इनका संगठनात्मक ढांचा आज भी मौजूद है इसलिए संगठनात्मक ढांचे को ध्वस्त किये बिना आतंकवाद पर लगाम लगाना सम्भव नहीं है। वे दारूल हरब को दारूल इस्लाम में परिवर्तित करना चाहते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति में वे लगे हैं। आज एक लादेन मारा गया है और रोज सैकड़ों ओसामा पैदा हो रहे हैं तो इन लादेनों से निजात कैसे मिल सकती है। भारत में तो लादेनों की कमी नहीं है। हर गली एवं शहर में आपको एक लादेन मिल जायेगा। इसके लिए जरूरी है कि इसके मूल में जाना होगा और आतंकवादी विचारधारा को खत्म करना होगा। अन्यथा जब तक इस विचारधारा पर चोट नहीं की जायेगी तब तक ओसामा बिन लादेन जैसे ख्रूखांर आतंकवादी पैदा होकर विश्व समुदाय के समक्ष एक चुनौती के रूप में सामने आते रहेंगे। इसके खात्मे के लिए पूरे विश्व को एक साथ खुलेमन से पहल करनी होगी। अमेरिका को भी अपना रवैया स्पष्ट करना होगा। वह पूरे विश्व में केवल अपनी दादागीरी चलाना चाहता है। वह दूसरे देशों को अस्त्र, शस्त्र एवं कठोर कानून निर्माण एवं प्रयोग से रोकता है और शान्ति का पाठ पढ़ता है उल्टे वह इसके विपरीत आचरण करता है। वह जानता है कि अमेरिका से दी जाने वाली रकम पाक आतंकी गतिविधियों को रोकने के बजाए उसको बढ़ाने में मद्द करता है, लेकिन फिर भी अमेरिका इस को रोकने के बजाए इसमें इजाफा ही करता जा रहा है। वैसे ओसामा के मारे जाने से उसको दी जाने वाली सहायता राशि रोकने की बातें उसके ही देश में उठने लगी हैं।

ओसामा बिन लादेन पाक की मिलिट्री अकादमी की नाक के नीचे मारे जाने से उसका सच एक बार फिर सामने आ गया है। वैसे भारत बार-बार अमेरिका से यह बात उठाता रहा है कि पाक अपने यहाँ आतंकी कैम्पों को बन्द नहीं कर रहा है और अमेरिका से प्राप्त धनराशि को भारत के खिलाफ प्रयोग करता है लेकिन अमेरिका इस बात हमेशा को नजरन्दाज करता रहा है। इस समय पाक किंकर्तव्‍यविमूढ़ की स्थित में है। एक तरफ उसको मुस्लिम कट्टरपंथियों का दबाव झेलना पड़ रहा है तो दूसरी ओर विश्व समुदाय का आक्रोश। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. और पाकिस्तानी सेना का आतंकवादियों से सांठगांठ जगजाहिर है। 1947 में पाकिस्तान ने नारा लगााया था कि ‘कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है’ एवं हंस के लिया है पाकिस्तान लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान’। इस मंसूबे को अंजाम देने के लिए उसने 1947 में कबाइलियों के वेश में भारत पर हमला कर दिया। लेकिन उनको शिकस्त खानी पड़ी। फिर भी अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान भारत की 80 हजार वर्ग कि.मी. भूमि पर जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं। जो कि जम्मू कश्मीर की कुल भूमि का 40 प्रतिशत बनता है। कब्जा करने में सफल रहा। 1965 में फिर पाकिस्तान ने हमला किया लेकिन उस समय भी हमारी सेनाओं ने पाकिस्तान को लाहौर तक खदेड़ दिया था। 1971 में फिर पाकिस्तान ने प्रयास किया, भारत ने पाकिस्तान को तोड़ कर बंग्लादेश बना दिया। उस युध्द में पाकिस्तान की 93000 हजार सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। तब पाक के ध्यान में आया कि प्रत्यक्ष युद्व मे भारत को हराना संभव नहीं है। तब पाकिस्तान के तत्कालीन अध्यक्ष जनरल जिया और विश्व के अनेक नेता तथा अनेक कट्टरपंथी मूवमेंट के नेता एकत्रित हुए और उन्होंने आई.एस.आई. चीफ के नेतृत्व में ‘आपरेशन टोपेक’ को जन्म दिया। जिसको प्रारम्भ में प्राक्सीवार कहा गया। भारत के सन्दर्भ में इसके दो स्लोगन थे। एक था कश्मीर तो बहाना है लाल किला निशाना है’ और दूसरा था ‘Let India should be braken to piece.’ आई.एस. आई. चीफ ने कहा हम भारत में इस प्रकार के आतंक की खेती करेंगे कि पूरा भारत हजारों से अधिक स्थानों से एक साथ रक्तस्राव कर रहा होगा। भयग्रस्त होगा, किंकर्तव्‍यविमूढ़ होगा और आपस में लड़ रहा होगा। इसलिए आपरेशन टोपेक के अन्तर्गत 1972 में इस आतंकवाद को उसने नाम दिया जिहादी आतंकवाद और इसके लिए उसने विभिन्न नामों से आतंकी संगठन खड़े किये गये। आज देश में जिहादी आतंकवाद के 90 गिरोह काम कर रहे हैं। इनका उद्देश्य किसी न किसी तरीके से भारत को कमजोर करना, दिशाहीन करना प्रमुख है।

जेहादी आतंकवाद से आज पूरा विश्व ग्रसित है। इस्लाम का पूरा इतिहास रक्तरंजित है। मुसलमानों ने विशष रूप से जो आक्रामक युध्द क्षमता प्राप्त की उसे जेहाद कहा गया। जब तक जमात ए इस्लामी जिहाद को गैर इस्लामी घोषित नहीं करती तब तक इस्लाम की तुलना आतंक के पर्याय के रूप में की जाती रहेगी। अल्लाह के नाम पर लडाई लडने को जिहाद कहते हैं। मदरसों में जिहाद एवं युद्व की शिक्षा दी जाती है। इस विचारधारा का उदय ही घृणा, हिंसा और छल कपट के लिए ही हुआ है। शाब्दिक अर्थ में जिहाद का अर्थ है- प्रयास इस्लाम ने जिहाद की अवधारणा को अल्लाह के उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुस्लिमों के बीच धर्मयुद्व के रुप में प्रस्तुत किया। जिहाद का वास्तविक अर्थ कुरान के शब्दों में इस प्रकार हैर् उनसे युद्व करो जो अल्लाह और कयामत के दिन में विश्वास नही करते जो उस पन्थ को स्वीकार नही करते जो सच का पन्थ है और जो उन लोगों का पन्थ है जिन्हें कुरान दी गई है और तब तक युद्व करो जब तक वह उपहार न दे दें और दीनहीन न बना दिये जायें पूर्णता झुका न दिये जायें’। सूरा 9 आयत 5 , गैर मुस्लिमों के विरुद्व युद्व ही जिहाद है। इस्लाम के अनुसार जिहाद अल्लाह की सेवा के लिए लडा जाता है। इस्लामी शब्दकोश में मुहम्मद साहब के उपदेश में जिनका विश्वास नही है उनके विरुद्व धर्मयुद्व ही जिहाद है। सूरा -2 आयत 193 में कुरान कहता है ‘उनके विरुद्व तब तक युद्ध करो जब तक मूर्ति पूजा पूर्णता: बन्द न हो जाय और अल्लाह के पंथ की विजय सर्वसम्पन्न न हो जाय।

पाकिस्तान हमारी एक तिहाई भूमि पर अवैद्य कब्जा किये हुए है और उसी भूमि पर आतंकी शिविर लगा कर उन्हें जिहाद का प्रशिक्षण देकर भारत के खिलाब प्रयोग करता है। यह सब भारत सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव एवं आतंक के खिलाफ ढ़िलाई को प्रदर्शित करता है। अन्यथा देश मे इतने बडे- बडे हमले हुए फिर भी भारत सरकार चेतावनी एवं अल्टीमेटम के सिवा कुछ नहीं कर पाई। जब भी भारत में कोई भी बड़ा हमला होता है तो भारत हमेशा अमेरिका की तरफ ताकता है। अमेरिका हमें न्याय दिलायेगा? प्रधानमंत्री विरोध जताते हैं, वार्ता नहीं करेंगे ढोंग करते हैं उल्टे फिर वार्ता की पेशकश करते हैं। यह भारतीय प्रधानमंत्री की कमजोरी ही कही जायेगी। भारत सरकार को तो पाक से स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि अगर वार्ता होगी तो सिर्फ गुलाम कश्मीर पर इससे कम कुछ भी मान्य नहीं है। यही उचित समय है पाक के ऊपर दबाव बनाने का। ‘जग नहीं सुनता कभी दुर्बल जनों का शान्ति प्रवचन’ यह नियति की रीति है कि दुर्बल हमेशा सताये जाते हैं। नियम कानून उन पर लागू नहीं होते हैं। इसलिए अगर शान्ति की ही चर्चा करते रहोगे तो शेष बचा कश्मीर भी हमारे हाथ से निकल जायेगा और भारत का भविष्य भी अधर में पड़ जायेगा। जैये 1962 में हमारे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पंचशाील के सिद्धान्त और हिन्दी चीनी भाई- भाई का राग अलापते रहे और चीन ने भारत पर आक्रमण कर हजारों वर्ग कि.मी. भूमि पर कब्जा कर लिया। संसद भवन, अक्षरधाम वाराणसी में संकटमोचन हनुमान मंदिर अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि पर हमला एवं मुम्बई के ताज होटल पर हमला हुआ लेकिन भारत लगातार वार्ता प्रक्रिया को बढ़ा रहा है। अमेरिका से निवेदन कर रहा है। पाक को सबूतों एवं आतंकियों की सूची थमा रहा है फिर भी पाक मानने को तैयार नहीं हो रहा है। भारत को इसके लिए निर्णायक युद्व छेड़ने की आवश्यकता है। पाक से साफ- साफ कहना चाहिए कि गुलाम कश्मीर खाली करो, सारे आतंकवादियों को भारत के हवाले करो अन्यथा हम अपनी शक्ति के बल पर जो भी आवश्यक होगा वह सब करने के लिए बाध्य होंगे।

2 COMMENTS

  1. ब्रज नंदन जी ने एकदम सार्थक लेख लिखा है और इसके लिए प्रवक्ता को भी बधाई, क्योंकि कांग्रेस के शासन में रहते मीडिया में ऐसे लेखों की कल्पना करना भी मूर्खता है, और यहाँ पर भी आशंका यही है की गंगा-जमुनी तहजीब के तथाकथित लोग विधवा प्रालाप करेंगे ही, और कुछ स्व-घोषित शान्ति के वाहक मुस्लिम ब्लोगर भी अपने उलटे सीधे तर्क देने आते ही होंगे रही बात भारत सरकार की तो उसके बारें में कुछ कहना अपना समय व्यर्थ करना है.

  2. कम से कम इन किन्नर कांग्रेसियों से तो कोई उम्मीद नहीं की जा सकती ……उतिष्ठ कौन्तेय

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