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झिरिया - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
झंकृत होती दुनियावीं कामनाओं के स्वर और अपुष्ट अप्रकटित कुछ पुरानी इक्छायें, ढूँढते हुए अपनें मूर्त आकार को आ गईं थी इस गली के मुहानें तक। अपनें दबें कुचलें रूप के साथ कुछ उपलब्धियों का असहज बोझ उठायें उन सब का गली से अन्तरंग होना और उससे तारतम्य में…