अनिल अनूप
पत्रकार सत्या सरन ने गुरु दत्त के साथी और उनकी सफल फिल्मों के लेखक रहे अबरार आल्वी से बातचीत के आधार पर एक किताब लिखी थी, ‘टेन ईयर्स विद गुरु दत्त’. कहानी अबरार और गुरु दत्त की यात्रा की है.
लेकिन इसी किताब के आखिरी कुछ पन्नों में अभिनेत्री मीना कुमारी के आखिरी दिनों त्रासदियों का जिक्र है. अबरार लंबे समय तक मीना कुमारी के पड़ोसी भी रहे हैं, इसलिए उनकी आंखों देखी को भी किताब का हिस्सा बना लिया गया है.
जिस तरह गुरु दत्त को सिनेमा का एक अध्याय माना जाता है, उसी तरह मीना कुमारी खूबसूरती एक मिसाल थी.
लेकिन लाखों दिलों पर राज करने वाले हीरो-हीरोइनों की निजी जिंदगी का जब कभी पन्ना खुलता है चौंकाने वाला होता है.
कौन यकीन करेगा कि मीना कुमारी, (आज भी नाम लो तो युवाओं के दिमाग में भी एक बेहद खूबसूरत महिला की तस्वीर उभर आती है.) की हालत ऐसी रही होगी.
मीना कुमारी, पाकिजा, साहिब बीबी और गुलाम, बैजू बावरा, फूल और पत्थर, यहूदी, दो बीघा जमीन जैसी कितनी ही मशहूर फिल्मों की जान रहीं.
एक दौर ऐसा रहा जब निर्माता-निर्देशकों की उनके दरवाजे पर भीड़ लगी रहती और उन्हें घर के पिछले दरवाजे से निकलना पड़ता था. लेकिन उसी महिला के जब बुरे दिन शुरू हुए, विश्वास नहीं होता, खाना पड़ोसियों से मांग-मांग कर खायीं.
अबरार की जबानी जो उसकी किताब में दर्ज उसे हम यहां रख रहे हैं. इसमें एक नाम आएगा के आसिफ का वह मुगले आजम जैसी फिल्म के निर्देशक रहे हैं.
एक शाम मैं, गुरु दत्त और के आसिफ साथ बैठे इधर-उधर की बातें कर रहे थे. जब महिलाओं के बारे में बात होती थीं तो आसिफ अपनी शालीनता खो बैठते थे. उनके हिसाब से औरतों के बारे में इधर-उधर की बातें करना किसी भी मर्द का जन्मसिद्ध अधिकार था.
उन्होंने मुझसे पूछा, ‘तुम्हारा मीना कुमारी के साथ चक्कर चला या नहीं, अरे चला तो जरूर होगा. मैंने ऐसा सुना है कि मीना किसी भी लेखक पर दिल फेंक देती हैं. आखिरकार कमाल अमरोही भी तो एक अच्छे लेखक हैं’.
गुरु दत्त अपनी आदतानुसार मुस्कुराते हुए वहां से किनारे हो लिए. आसिफ कहां मानने वाले थे. वह मुझे छेड़ते रहे, ‘मैं विश्वास नहीं कर सकता कि तुम्हारे और मीना के बीच कोई संबंध नहीं है.’
मैंने आसिफ से कड़ाई से कहा, ‘अल्लाताला की मेहरबानी से मुझे दिमाग मिला है और मुझे यह अच्छी तरह से पता है कि अगर काई लेखक किसी स्टार के चक्कर में एक बार फिसला तो फिसलता ही जाएगा.’
मैं बोलता ही रहा, ‘उदाहरण के तौर पर केदार शर्मा को ही ले लीजिए, उस प्रतिभाशाली लेखक ने जब से अपना दिल गीता बाली को दिया तब से उनके लेखन का बंटाधार हो गया. उन्हें गीता बाली के अलावा कुछ और नहीं सूझता था और कहानी कैसी भी हो, उनकी फिल्मों के सारे क्लाइमेक्स गीता के इर्द-गिर्द ही ही घूमते थे. और उन फिल्मों का क्या हुआ आपको अच्छी तरह से पता है.’
मैंने आगे कहा, ‘और लोगों के साथ कमाल को भी यह अच्छी तरह से मालूम है कि मुझे अपने काम के अलावा किसी और वस्तु का कोई आकर्षण नहीं है. जाहिर है, उन्होंने मेरे ऊपर कभी भी शक नहीं किया.’
हो सकता है अबरार ठीक कह रहे हो. लेकिन किताब में आगे उन्हीं की बातों को पढ़कर लगता है कमाल अमरोही ने शायद अबरार पर कभी किसी किस्म का शक नहीं किया पर मीना कुमारी हमेशा उनके शक के दायरे में रहीं.
मेकअप कक्ष में कमाल अमरोही का गुप्तचर मीना को नहीं बख्शता.
अबरार बताते हैं कि कैसे कमाल अमरोही का एक विश्वसनीय गुप्तचर बेकर, मीना के चारों तरफ घूमता रहता था. यहां तक कि जब वह मेकअप कक्ष में भी रहती थीं तब भी यह इंसान उन्हें नहीं बख्शता था.
अबरार उस शाम की बातों को याद कर के विह्वल हो जाते हैं, जब मीना को एक सीन शूट करते हुए थोड़ी देर हो गई थी.
‘आज मेरी जमकर पिटाई होगी क्योंकि मुझे देर हो गई है’ सहमी सी मीना कुमारी ने सुबकते हुए मुझसे कहा. यह सबको पता था कि मीना कुमारी को न सिर्फ कमाल अमरोही बल्कि उनके मित्र बेकर भी बेतहाशा पीटा करते थे.
कमाल उनके पैसे भी छीन लिया करते थे. नौबत यहां तक आ गई थी कि मीना को घर बार छोड़कर अपने रिश्तेदार महमूद के रहने आना पड़ा. हजारों के दिलों दिमाग पर राज करने वाली, कला की इस धनी तारिका के पास उस वक्त पहनने को ढंग के कपड़े भी नहीं थे.
बचा खुचा खाना या फिर चाय में डूबी, सूखी ब्रेड, मीना के पेट का यही नसीब था.
यह बात भी सार्वजनिक है कि भारत के महानतम कलाकारों में से एक, इस नारी के जीवन के अंतिम दिन अत्यन्त अभाव और निर्धनता में बीते थे. अपने पति से और रिश्तेदारों से तिल-तिल लुटने के बाद किसी भी औरत के लिए क्या बच सकता है!
वह हमारे बंगले के बगल में रहती थीं. इसलिए मैंने सब कुछ अपनी आंखों से देखा.
तो ये थी महान शायरा और अदाकारा मीना कुमारी का जीवन….