जनलोकपाल बनाम भ्रष्टाचार

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सतीश सिंह 

भ्रष्टाचार की परिभाषाः

आमतौर पर सरकारी विभागों में महज घूसखोरी को भ्रष्टाचार माना जाता है। जबकि भ्रष्टाचार का दायरा काफी व्यापक है। रिश्‍वतखोरी के अलावा यदि हम अपना काम समय से या ईमानदारी पूर्वक नहीं करते हैं तो वह भी भ्रष्टाचार है। आज भ्रष्टाचार हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है और हम सभी किसी न किसी स्तर पर इसमें भागीदार हैं।

भ्रष्टाचार की व्यापकताः

पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार का बोलबाला अनादिकाल से रहा है। हमारा देष भी इसका अपवाद नहीं है। पर हाल के सालों में भ्रष्टाचार की व्यापकता में अकूत इजाफा हुआ है। इतने घोटाले हो चुके हैं कि अब नये घोटाले के खुलासे पर किसी की पेशानी पर शिकन तक नहीं आता है।

राष्ट्रमंडल खेल में हुए घोटाले की परत अभी भी खुल रही है। वोट के बदले नोट कांड का मामला फिर से खुल गया है। ज्ञातव्य है कि सरकार को बचाने के लिए झामुओं के सासंदों ने रिश्‍वत लिया था। इस मामले में नोट मुहैया करवाने का जिम्मा तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री श्री सतीष शर्मा ने लिया था। श्री शर्मा ने इसके लिए दरियादिली के साथ एस्सार और रिलायंस को तेल के कुएँ बांटे थे। स्पेक्ट्रम घोटाले के पहले दूरसंचार के क्षेत्र में बड़ा घोटाला करने का श्रेय पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुखराम को जाता है। उनके घर से बोरों में रखे तकरीबन साढ़े तीन करोड़ रुपये जब्त किए गए थे।

चीनी माफियाओं के साथ कल्पनाथ राय और षरद पवार की सांठगाठ जगजाहिर है। कांगेस के दिग्गज नेता श्री रामलखनसिंह यादव के बेटे श्री प्रकाशचंद्र यादव ने उर्वरक मंत्री रहते हुए 133 करोड़ रुपयों का उवर्रक तुर्की के कर्सन कंपनी से आयात किया था। जोकि कभी भारत आ ही नहीं सका। सारा खेल कागजों पर खेला गया। इस कांड में पी वी नरसिंहराव के बेटे श्री प्रभाकर राव का भी हाथ था। बोफोर्स कांड का पिटारा बार-बार खुलता रहा है। उल्लेखनीय है कि इसमें दिवगंत प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी का हाथ होने का आरोप लगाया गया था। 1995 के हवाला कांड में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिंहराव सहित उनके मंत्रीमंडल के 15 मंत्रियों के नाम थे। इस कांड के प्रणेता श्री एस के जैन रंगे हाथों पकड़ाने के बाद भी बेदाग छूट गए। हर्षद मेहता कांड, चारा घोटाला, कोड़ा के द्वारा किये गए घपले, कर्नाटक का खनन घोटाला सहित पूरे भारत में घोटालों की एक लंबी श्रंखला है।

इन बड़े घोटालों के अलावा छोटे स्तर पर भी भ्रष्टाचार बजबजा रहा है। आज यह आम जीवन में इस तरह से घुल-मिल गया है कि कोई भी यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके दामन पर भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा हुआ है। चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक इस भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं। व्यापारी और कॉरपोरेट समूह इसमें सबसे आगे हैं। जिस तरह से पैसा से पैसा बनता है। उसी तरह भ्रष्टाचार से भ्रष्टाचार में और भी इजाफा होता है। लेकिन भ्रष्टाचार के इस विकृत स्वरुप से किसी को कोई सरोकार नहीं है। हम अपनी दिनचर्या में हर पल गलत तरीके से फायदा लेना चाहते हैं। दस-बीस रुपये के लिए अपना ईमान बेचना आज आम बात बन चुका है। इसतरह से देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान करने पर आमादा है।

क्या है जनलोकपाल विधेयकः

जनलोकपाल विधेयक के मुख्य आर्कषण निम्नवत् हैं-

  • लोकपाल की जद में प्रधानमंत्री को भी रखा गया है और इनके खिलाफ कार्रवाई षुरु करने के लिए लोकपाल के सात सदस्यीय बेंच की सहमति आवश्‍यक होगी।
  •  न्यायधीष भी लोकपाल के दायरे में रहेंगे। इनके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए भी लोकपाल के सात सदस्यीय बेंच की सहमति आवश्‍यक होगी।
  • सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी उपर्युक्त प्रक्रिया दुहरायी जाएगी।
  • सभी सरकारी कर्मचारी व अधिकारी इसके दायरे में रहेंगे।
  • सीबीआई को लोकपाल के साथ मर्ज करना इस विधेयक में प्रस्तावित है।
  • लोकपाल के कर्मचारी व अधिकारी के खिलाफ आये षिकायतों का निपटारा स्वतंत्र निकाय के द्वारा किया जाएगा, जिसके सदस्य सिविल सोसायटी के सदस्य, अवकाशप्राप्त नौकरशाह एवं न्यायधीश रहेंगे।
  • राज्य स्तर पर नियुक्त लोकायुक्त पहले की तरह काम करते रहेंगे।
  • लोकपाल के पास यह अधिकार होगा कि वह दोषियों के खिलाफ सजा मुकर्रर कर सके। इसके अंतगर्त वह भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए व्यक्ति को कारावास व आर्थिक दंड की सजा सुना सकेगा। साथ ही उसकी संपत्ति को जब्त करने का आदेश भी दे पाएगा।
  • लोकपाल के विरुद्ध या कथित भ्रष्टाचारी के विरुद्ध झूठी षिकायत करने वाले के खिलाफ लोकपाल एक लाख तक आर्थिक दंड लगा सकेगा।
  • मोटे तौर पर भ्रष्टाचार के हर स्वरुप की जाँच लोकपाल करेगा।

अण्णा का भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिमः

अण्णा की गिरफ्तारी के खिलाफ एवं अनशन के पक्ष में दिल्ली के अतिरिक्त देष के कुछ हिस्सों में मसलन, पटना, भोपाल, लखनऊ एवं महाराष्ट्र के मुम्बई, नासिक, पुणे, जैसे षहरों में भी छिटपुट तरीके से धरने-पर्दषन हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जबर्दस्त माहौल का निर्माण हुआ है। पर इस माहौल के निर्माण में अण्णा से ज्यादा हाथ कांग्रेस का है। अब लड़ाई अण्णा समूह बनाम कांग्रेस के बीच हो गई है। अण्णा को गिरफ्तार करने से पूरा विपक्ष एक हो गया है। लेकिन वास्तव में न तो किसी राजनीतिक दल की भ्रष्टाचार को खत्म करने में रुचि है और न ही जनलोकपाल विधेयक को संसद में पारित करवाने में।

अण्णा के पीछे उमड़ी भीड़ में सिर्फ निम्न व मध्यम वर्ग के लोग हैं। कुछ के राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्त्ता होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस भीड़ में मस्ती करने वाले भी हैं जिनको जनलोकपाल के बारे में कुछ नहीं मालूम है और न ही भ्रष्टाचार से कोई लेना-देना है। बावजूद इसके मषाल व कैंडल लाईट मार्च करने की चोंचलेबाजी बढ़ती चली जा रही है।

सबसे अहम बात यह है कि इस भीड़ का हिस्सा भी भ्रष्ट ही है। भीड़ में छात्रों की संख्या अधिक है। पर छात्र भी अपने को पाक-साफ नहीं कह सकते हैं। हाल ही में दिल्ली विष्वविधालय में दाखिले के लिए जिस तरह से छात्रों ने गलत रास्ता अख्तियार किया था, वह जगजाहिर है।

रामलीला मैदान में अनषन के साथ-साथ अण्णा महिलाओं से अनुरोध कर रहे हैं कि वे अपने पतियों पर नजर रखें। अगर वे आमदनी से ज्यादा पैसा घर लाते हैं तो उनसे जरुर सवाल करें। अण्णा का यह कथन भ्रष्टाचार की गंभीरता को जाहिर करता है। इस संदर्भ में दिलचस्प बात यह है कि यदि महिला मोहाली की प्रथम डीएसपी राका गीरा की तरह भ्रष्ट होगी तो क्या होगा?

अण्णा के आंदोलन की जेपी के संपूर्ण क्रांति से तुलना

मीडिया अण्णा के आंदोलन की तुलना जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति से कर रही है। जबकि ऐसी तुलना बेमानी है। 25 जून 1975 को रामलीला मैदान में जेपी का तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के द्वारा आरोपित आपातकाल के खिलाफ जनसैलाब को संबोधित करना एक बड़े आंदोलन का आगाज था।

उनका दुश्‍मन उनके सामने था। उनकी लड़ाई दमन और अंधेरगर्दी के विरुद्ध थी। वहीं अण्णा भ्रष्टाचार जैसे अमूर्त्त मुद्दे के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

जनलोकपाल बनाम भ्रष्टाचार:

जाहिर है प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक को भ्रष्टाचार निवारण का सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है। जबकि यह आधा सच है। सरकारी संस्थानों को तो अण्णा समूह जनलोकपाल की परिधि में ला रहे हैं, किंतु निजी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का निवारण कैसे होगा या हम अपने अंतस के अंदर षुचिता का संचार कैसे करेंगे, जैसे मुद्दों पर अण्णा समूह चुप है।

प्रधानमंत्री, न्यायधीश और संसद को लोकपाल के दायरे में लाने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकेगा, यह निःसंदेह संदेहास्पद है। दरअसल आज भ्रष्टाचार लाइलाज रोग बन चुका है और इसका फैलाव हमारे पूरे षरीर में हो चुका है।

सच कहा जाए तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भ्रष्टाचार व्यापार बन चुका है तथा हम इसकी जमकर खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। ठेले और खोमचे पर इसको गली-मोहल्ले में खरीदा व बेचा जा रहा है। स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार हमें दिलोजान से पंसद है।

जो भीड़ अण्णा के आगे-पीछे घूम रही है वह भी दिल पर हाथ रखकर अपने को ईमानदार नहीं कह सकती है। दूसरी बात यह है कि जिस व्यवस्था में परिवर्त्तन लाने की बात अण्णा कर रहे हैं, उसके ठोस विकल्प फिलहाल तो उनके पास भी नहीं है।

गौरतलब है कि जनलोकपाल का उद्देष्य जनोन्मुख है। इसलिए आम जनता का इसके साथ जुड़ाव होना स्वभाविक है। लेकिन यह कहना कि इससे भ्रष्टाचार का खात्मा किया जा सकता है, गलत होगा।

भ्रष्टाचार का निदानः

सरकारी व्यवस्था में इतनी खामियां हैं कि जब आम आदमी का पाला सरकारी ऐजेंसियों से पड़ता है और भ्रष्टाचार की वजह से उनका काम नहीं हो पाता है तो उनके मन में असंतोष का गहन संचार होता है। भले ही ऐसे लोग व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार नहीं होते हैं, पर उनकी अपेक्षा दूसरों से सकारात्मक होती है। इन कारणों से टकराव का होना लाजिमी है।

आज सबसे बड़ी समस्या सरकार का विवेकाधीन अधिकार है। अस्तु इस तरह के हर किस्म के अधिकार से संबंधित निर्णय में नियंत्रण का होना आवश्‍यक है। लाइसेंसिंग व्यवस्था को खत्म करना भी लाभप्रद हो सकता है।

इस तारतम्य में भ्रष्टों को कठोर दंड देना, जांच ऐजेंसियों का इस्तेमाल स्वतंत्र निकाय की तरह करने एवं न्यायिक आयोग का गठन करके उसको न्यायधीशों को नियुक्त करने और उनको फैसला करने का अधिकार देने जैसे सुधार उपयोगी हो सकते हैं। पुनष्चः इसके बरक्स में सबसे महत्वपूर्ण कदम हर व्यक्ति का व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार रहना होगा।

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