नौकरी के नौ सिद्धान्त – अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र

विपिन किशोर सिन्हा

प्रिय खेमका जी,

हमेशा खुश रहिए।

दिनांक १६ अक्टुबर के पहले न मैं आपको जानता था और न आप मुझे। लेकिन अब तो मैं ही क्या सारा हिन्दुस्तान आपको जान गया है। मुझे जानने की आपको कोई जरुरत नहीं। वैसे भी नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे किसी भी अधिकारी को अपने से छोटे ओहदेवालों को जानना या याद करना पद की गरिमा के अनुकूल नहीं होता। फिर भी मैं आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश में एक उच्च पदस्थ अधिकारी हूं। सरकारी नौकरी करने का मेरा अनुभव आपसे १४ वर्ष ज्यादा है। उम्र भी अधिक है। अतः बिना मांगे भी मुफ़्त की सलाह आपको देने का मुझे स्वाभाविक अधिकार प्राप्त है।

आपने हरियाणा के चकबन्दी महानिदेशक के पद पर रहते हुए १५ अक्टुबर को राज जमाता कुंवर राबर्ट वाड्रा द्वारा डीएलएफ को बेची गई ३.५३ एकड़ ज़मीन का म्यूटेशन (दाखिल खारिज़) रद्द कर दिया। यह म्यूटेशन २० सितंबर को गुड़गांव के कर्त्तव्यनिष्ठ, वफ़ादार और आज्ञाकारी सहायक चकबन्दी अधिकारी ने किया था। आपने बिना सोचे-समझे सहायक चकबन्दी अधिकारी का आदेश रद्द कर दिया। उसी दिन आपका तबादला कर दिया गया। यह तो होना ही था। शुक्र कीजिए कि हरियाणा एक छोटा प्रान्त है। हुड्डा जी आपका ट्रान्सफर कहां करेंगे – चन्डीगढ़, गुड़गांव, भिवंडी या हिसार। सारी जगहें राजमाता की राजधानी के पास ही हैं। कल्पना कीजिए, आप यू.पी. में होते! ऐसे अपराध के लिए आपका ट्रान्सफर पीलीभीत से बलिया या नोएडा से सोनभद्र भी हो सकता था। पता नहीं आपको नौकरी का सहूर क्यों नहीं आता। आपने मसूरी और हैदराबाद में सही प्रशिक्षण लिया भी था अथवा नहीं? २० साल की नौकरी में ४३ तबादले! अपने तौर-तरीके बदलिए ज़नाब वरना केजरीवाल की तरह सड़क पर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। उन्हें तो अन्ना जैसा एक गाड फादर मिल गया। आपको कौन मिलेगा? माना कि आप नौकरशाही के शीर्ष पद पर हैं, पर हैं तो नौकर ही न। जिस तरह न्यूटन ने गति के तीन नियम प्रतिपादित किए थे उसी तरह सरकारी नौकरी में सफलता के लिए मैंने नौ नियम प्रतिपादित किए हैं। मुगल काल से लेकर आज तक जिसने भी इन नियमों का ईमानदारी और निष्ठा से पालन किया है, उसकी दसों उंगलियां हमेशा शुद्ध देसी घी में रही हैं। अपने लंबे शोध और अनुभव के आधार पर मैंने इन्हें लिपिबद्ध किया है। आप बहुत बड़े आई.ए.एस. आफिसर हैं। मेरे इस शोध के लिए मेरा नाम अगर नोबेल प्राइज़ के लिए भेजने में यदि दिक्कत हो तो कम से कम रेवड़ी की तरह बंटने वाले राष्ट्रीय पद्म पुरस्कारों के लिए अनुमोदित तो कर ही सकते हैं। आप तो जानते ही हैं कि बिना पैरवी के सरकारी नौकरी में वार्षिक वेतनवृद्धि भी नहीं मिलती। विषयान्तर हो गया। कभी-कभी मेरा मन भी Inadia Against Corruption के नेताओं की तरह लक्ष्य से भटक जाता है।

सरकारी नौकरी के नौ सिद्धान्त

१. सदैव याद रखें – बास हमेशा सही होता है – Boss is always right.

२. अपने बास को कभी ‘ना’ मत कहो – Never say `No’ to your boss.

३. इस देश में दो तरह का राजस्व होता है – (अ) पी.आर. (personal revenue), (ब) एस.आर (State revenue)

पी.आर. बढ़ाने के लिए सतत त्रुटिहीन तकनीक डिजाइन करो।

४. प्राप्त पी.आर. का मात्र ५०% ही अपनी आनेवाली सात पीढ़ियों के लिए सुरक्षित जगह पर रखो। शेष ५०% को मंत्रियों, नेताओं, बास और मीडिया में ईमानदारी से बांट दो।

५. हमेशा आज्ञाकारी रहो और हर हाइनेस (Her Highness) यानि Mrs. Boss की हर पुकार पर एक पैर पर खड़े रहो।

६. श्रीमती बास की मखमली गोद में खेलते हुए अपने बास के सफ़ेद, प्यारे, नन्हे पामेलियन बबुआ कुत्ते को हमेशा पुत्रवत स्वाभाविक प्यार और स्नेह दो।

७. इस तथ्य को हृदयंगम कर लो कि तुम सत्ताधारी पार्टी के नौकर हो, केन्द्र या राज्य सरकार के नहीं।

८. काम कम दिखावा ज्यादा – Work less, show more.

९. बातें कम, सुनना ज्यादा – Talk less, listen more.

खेमका भाई! आप मेरे छोटे भाई की तरह हैं। इसलिए मैंने ३४ वर्षों के अनुभव के आधार पर स्वयं द्वारा प्रतिपादित इन शाश्वत सिद्धान्तों को आपके हित में सार्वजनिक किया। आप इन सूत्रों को अमली जामा पहनाइए। फिर देखिए यू.पी. की नीरा यादव, अखंड प्रताप सिंह और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बाल कृष्णन की तरह लक्ष्मी आपकी दासी होंगीं और कुबेर सबसे विश्वस्त दास। रिटायरमेन्ट के बाद भी नौकरी पक्की।

कम लिखना, ज्यादा समझना।

।इति।

शुभकामनाओं के साथ,

आपका शुभचिन्तक

यादव सिंह कृष्णन

6 COMMENTS

  1. yah ek vyangya hai aur usi rup mein padhe – Khemka ji koi anjaan vyakti nahin hain . kaafi suljhe hue hain . Desh agar rasatal ki araf jaa raha hai to us ke liye mukhya roop se aaj kaa rajneta zimmedaar hai – chahe vo kisi bhi dal kaa ho – ye sab ek hi thaili ke chatte batte hain | har shaakh pe ullu baitha hai – anjame gulistaan kya hoga | ab bhagwaan bhi kuchh nahi jaantaa |

  2. श्रीराम तिवारी जी,

    मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हो पा रहा हूं कि असत्य और अन्याय की ऊम्र बहुत ज्यादा नहीं होती ! आप एकता कपूर के सीरियल्स नहीं देखते क्या? गीता-रामायण-महाभारत के जमाने लद गये, अब तो टी.वी. सीरियल्स ही नई पीढ़ी को शिक्षित करने की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं और इस दृष्टि से देखें तो एकता कपूर भारत की ही नहीं, समूचे हिन्दी भाषी जगत की शिक्षा मंत्री हैं। हर सीरियल में यही दिखाया जाता है कि सत्य के मार्ग पर चलने वाले, कष्ट सहन करने वाले, बड़ों का आदर करने वाले, छोटों से स्नेह करने वाले, ईमानदारी से अपना जीवन जीने वाले हमेशा हारते हैं। जितने प्रपंच रचने वाले हैं, कुटिल बुद्धि, भ्रष्ट, अनाचारी, दुराचारी, षड्यंत्रकारी हैं, वे ही हमेशा जीतते हैं। अगर एक धारावाहिक पांच साल तक चलता रहे तो शरीफ आदमी पांच साल में हारता ही रहेगा, कष्ट ही सहता रहेगा और फिर एक दिन अचानक सीरियल बन्द हो जायेगा और ऐसा ही एक नया सीरियल आ जायेगा जो इस शिक्षा को आगे बढ़ायेगा।

  3. sinha jiki bat so pratisat sach hai is desh ke nokarshaho ke liye kyonki itne paise netao ke pass hai utne hi in nokarshaho ke pass hai unhe na it vale na hi koi desh vasi ouchh sakta hai kyonki ye log koi bhi stage par ja sakte hai ye nine sidhdhant un logo ke liye hai jo khate hai desh ka or gate hai sashak pax ka .

    ab is bat ko aage badhane ka samay hai khemka ji kyonki sarkarne klin chit di hai aab hame or khemkaji ko sach bahar lana hai .khemkaji ham aapke sath hai .

    tivariji aapki bat sahi hai ki uksane me nahi aana hai magar puri nokarshahi is nine sidhdhanto par hai aisa kehna sayad sinha ji ka ho sakta hai

  4. खेमका भाई ! आप सिन्हा जी के उक्सावे मेन न आवे. गीता के इस सिद्धान्त पर अदिग रहेः- स्वधर्मे निधनम श्रेयः पर धर्मो भयवहा ः यदि आप वाकई ईमान्दार है तो यह हमेशा याद रखे कि अस्त्य ओर अन्याय की उम्र बहुत ज्यादा नहि होती.

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