अविकसित मानव बच्चों की कहानियां (5)
डा. राधे श्याम द्विवेदी
जान 1980 में दशक के मध्य पैदा हुआ था। उसके पिता ने उसकी मां की हत्या कर दिया था। जान ने एसा करते हुए पिता को देख लिया था। उसमें मन में पिता के प्रति डर समा गया था। तीन साल की उम्र में उसने अपना घर छोड़ दिया था। वह सिसूबूनिया के जंगलों में चला गया था। उसने अफ्रीकी बंदरों के साथ रहना शुरू कर दिया था। उसकी सारी आदते व व्यवहार बन्दरों जैसी ही हो रही थी। वह पेड़ों को अपना ठिकाना बना लेता था ं औेर जैसे बन्दर खाते पीते थे वैसे वह भी जंगलों में फल फूल पत्ते आदि खाने का अभ्यस्त हो गया था।
1991 में एक जन जातीय लड़की बुलाया मिली द्वारा इस मंकी ब्याय की खोज किया गया था। जब उसे पकड़ा गया तो वह आसानी से पकड़ में नहीं आया। उसने पूरा प्रतिरोध किया । उस दत्तक परिवार पर वह लाठी फेंक कर प्रहार करता था। वह उसे डरवाता था कि लोग उसको पकड़ना छोड़ दें और वापस लौट जांयें।
उसके पूरे शरीर पर बालों से ढकने का सुझाव दिया गया था। इससे लम्बे समय तक उसके शरीर में कीड़े नहीं उगेगें। वह बहुत मल त्याग करता था उससे उसे कीड़े लग जाते थे। यदि एक बार शरीर पर कीड़े लग गये तो जल्द उससे छुटकारा मिलना संभव नहीं था। उस पर जख्म व घाव हो गये हैं।
अनाथ बच्चों के देख् – रेख के लिए एक चैरिटेबल फाउण्डेशन चलाने वाले पाॅल और मौली वासवा ने इस मंकी ब्याय के देखभाल की जिम्मेदारी ली थी। यह बालक बात करने के शुरू में रोता है। बाद में कोशिस करने के वावजूद यह ज्यादा कुछ सीख नहीं सका। वह जंगल में अपने प्रवास के दौरान बहुत कुछ भाषण व कथन सीख सकता था। इतना करने के बाद इसका यह असर देखा गया कि जान अब न केवल बातचीत ही करता है अपुतु गीत भी गा लेता था। उसमें काफी अच्छे सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला था।