भोपाल स्थित एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हो रहे हंगामें की लाइव रिपोर्ट…. दिनांक 25 सितंबर 2010 रात 11 बजे तक
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बी. के. कुठियाला के आने के बाद से लगातार माखनलाल में हंगामों का दौर क्यो जारी है! इन्हीं हंगामों में नया नाम जुड़ा है पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष पी पी सिंह का! पी पी सिंह पर उन्हीं की विभाग की एक शिक्षिका ने मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया है… अनुमान और परिणाम पर जाने से पहले सिलसिलेवार पूरे घटनाक्रम की लाइव रिपोर्ट जानिये …
तारीख – 23 सितंबर 2010
समय – लगभग दोपहर 1 बजे
सहारा समय न्यूज चैनल पर पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष पी पी सिंह को पद से हटाये जाने की खबर ब्रेक होती है…
ब्रेकिंग न्यूज
पुष्पेन्द्र पाल सिंह नपे
विभागाध्यक्ष पद से हटाया गया
महिला शिक्षिका ने लगाया मानसिक प्रताड़ना का आरोप
संजय दिवेदी को अतिरिक्त प्रभार
खबर फैलते ही विश्वविद्यालय परिसर में हंगामा शुरु होता है… पी पी सिंह के भोपाल में तैनात छात्रों का परिसर में आगमन… कुछ ही समय में पत्रकारिता विभाग के लगभग 50 से ज्यादा छात्रों का परिसर में हंगामा शुरु … कुलपति के कक्ष से लेकर पंचम तल पर स्थित कार्यालय में पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने जमकर उत्पात मचाया… अगर उस समय वहा कुलपति मौजूद होते तो उनके साथ भी कुछ हादसा हो सकता था.
इस पूरे मामले में पत्रकारिता विभाग की लेक्चरर राखी तिवारी, गरिमा पटेल, जया सुरजानी पुस्तकालय अध्यक्ष आरती सारंग सहित कुछ अन्य फेकल्टीज जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय दिवेदी से मिलने पहुंची और उन्हें पी पी सिंह से मिलने के लिए कहा… जब संजय दिवेदी पी पी सिंह से मुलाकात करने पहुंचे तो छात्रों को लगा कि वे पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष पद का चार्ज लेने पहुंचे हैं… छात्रों ने संजय दिवेदी को 45 मिनट तक पी पी सिंह के केबिन में बंद कर दिया और उनके बाहर आने पर गाली-गलौच शुरु कर दी… शब्द इतने गंदे थे कि लिखना नामुमकिन है… यह पूरा वाकया पी पी सिंह की आंखों के सामने चलता रहा लेकिन उन्होंने अपने छात्रों को रोकने की कोई कोशिश नहीं की… संजय दिवेदी के साथ हाथापाई करने की भी कोशिश की गई. हालांकि संजय दिवेदी ने अपने साथ हुई अभद्रता का हालांकि खंडन किया है, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना कुछ और ही है… हंगामें के बाद पुलिस ने पूरे प्रकरण में पत्रकारिता विभाग के छात्र अजय वर्मा, मनिंद्र पांड़े, परिक्षित सिंह, रोहित और कुलदीप समेत 40 अन्य लोगों को आरोपी बनाया है… इस पूरे मामले पर पी पी सिंह के दिहाडी पत्रकारों और कुछ पूर्व छात्रों ने एकतरफा रिपोर्टिंग की. पत्रिका समाचार पत्र है ने तो हद ही कर दी. पत्रिका ने तो समाचार की विश्वसनीयता ही खत्म कर दी… जितनी घटिया और एकतरफा रिपोर्टिंग की गई उसे देखकर नहीं लगता कि ये वही पत्रिका है जिसका नाम लोग राजस्थान प्रदेश में इज्जत के साथ लेते हैं… पर चूकिं खबर करने वाले अश्विनी पांडेय पत्रकारिता विभाग के ही विद्यार्थी हैं इसलिए ऐसा होना भी लाजमी है… खबर में शामिल आशीष महर्षि और गगन नायर भी पत्रकारिता के ही विद्यार्थी है… अखबारों में इस तरह की खबर करने वाले भी पत्रकारिता विभाग के ही पूर्व छात्र हैं.
तारीख – 24 सितंबर 2010
समय – सुबह 9 बजे
पत्रकारिता विभाग के छात्र कथित तौर पर भूख हड़ताल पर बैठे… असल में कथित तौर पर इसलिए क्यूंकि कुछ लोगों ने उन्हें समोंसों के साथ देखा. दोपहर दो बजे के करीब पत्रकारिता विभाग के कुछ छात्र संजय दिवेदी से माफी मांगने उनके केबिन में पहुंचे.. तीन बजे के लगभग कुलपति ने हड़ताल पर बैठे बच्चों को मिलने बुलाया लेकिन बच्चे नहीं पहुंचे. छात्रो ने कुलपति को ही आकर बात करने को कहा… कुलपति बच्चों की मांग पर नीचे पहुंचे लेकिन छात्र अपनी जिद पर अड़े थे… उनकी मांग थी कि पी पी सिंह को तुरंत बहाल किया जाये और छात्रों के खिलाफ दर्ज मुकदमें वापस लिये जायें… हालांकि कुलसचिव सुधीर कुमार त्रिवेदी ने छात्रो को समझाया की बहाली की मांग वे तब करे जब पी पी सिंह को हटाया गया हो… उन्हें तो सिर्फ अध्यक्ष पद से हटाया है न कि उनका निलंबन किया गया है… यानि उनकी पहली मांग ही गलत है… लेकिन छात्र अपनी मांग पर अड़े रहे…उनका कहना था कि वे अपने अध्यक्ष की कुर्सी पर किसी ओर को बैठा नहीं देख सकते… रात्रि करीब 8 बजे भोपाल एसडीएम विश्वविद्यालय परिसर पहुंचे और छात्रों को जगह खाली करने को कहा क्यूंकि एक ओर जहां शहर में धारा 144 लागू है वहीं दूसरी और हड़ताल पर बैठने की इजाजत न तो पुलिस से ली गई है और न ही विश्वविद्यालय प्रशासन से, जो कि गैर कानूनी है. पुलिस के आदेश पर विद्यार्थी अपना बैनर, पोस्टर उठाकर चलते बने… इस पूरे दिन भर में खास यह रहा कि जहां एक ओर पत्रकारिता विभाग के वर्तमान विद्यार्थी कथित भूख हड़ताल पर बैठे रहे, वहीं समर्थन के लिए बाहर से पहुंचे कुछ पूर्व विद्यार्थी परिसर के बाहर चाय, समोसे और सिगरेट का लुत्फ उठात रहे… रात को शराब और…
तारीख – 25 सितंबर 2010
समय – सुबह 9 बजे
पिछले दिन की तरह ही बच्चे फिर से हड़ताल पर बैठ गये… पर इस बार बैनर का शीर्षक परिवर्तित था… अब शीर्षक भूख हड़ताल नहीं अपितु क्रमिक भूख हड़ताल था. दोपहर लगभग दो बजे सहारा समय समेत कई चैनलों के पत्रकार परिसर में पहुंचे… पत्रकारों के पहुंचते ही हड़ताल पर बैठी एक लड़की बेहोश होकर गिर पड़ी… इसके तुरंत बाद एक ओर लड़की बेहोश… दोनों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया… हालांकि, पत्रकारों के जाने के बाद शाम तक कोई बेहोश नहीं हुआ… रात 9 बजे फिर से भोपाल एसडीएम मौके पर पहुंचे और परिसर को खाली करवाया… साथ ही विद्यार्थियों को फिर से हड़ताल पर नहीं बैठने की हिदायत भी दी… असल में कुछ लोग इस पूरे वाकये को कुलपति कुठियाला का पी पी सिंह पर वार बता रहे हैं तो कुछ लोग इसे उनके खिलाफ रची गई एक गहरी साजिश… पर वाकई में ऐसा कुछ भी नहीं है…. चूंकि पत्रकारिता विभाग की शिक्षिका ने पी पी सिंह पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया और पूरा मामला राज्य महिला आयोग के पास विचाराधीन है… इस मामले पर महिला आयोग ने कुलपति को कार्रवाई करने के लिए एक पत्र भी भेजा था… जिसको ध्यान में रखते हुए कुलपति ने पी पी सिंह को सिर्फ अध्यक्ष पद से हटाया है न कि उन्हें निलंबित किया है… मगर पी पी सिंह ने इसे अपने सम्मान से जोड़ लिया… उनके कुछ वर्तमान और कुछ पूर्व विद्यार्थी भी उनके बहकावे मे आ कर हड़ताल पर बैठ गए….
अब छात्रो और शिक्षको ने ही सवाल उठाना शुरु कर दिया है कि पी पी सिंह की इज्जत तो इज्जत और महिला शिक्षिका की कोई इज्जत नहीं.आखिर क्यो? आखिर ऐसा क्या कारण है कि लड़कों के साथ लड़कियां भी महिला शिक्षिका की बात गलत मान रही है… पत्रकारिता विभाग से ही शिक्षा प्राप्त कुछ पूर्व विद्यार्थियों की माने तो पी पी सिंह के समर्थन में बच्चों के बैठने का कारण उनका नौकरी दिलाने का किया गया वादा है… असल में पी पी सिंह के विभाग में बच्चों के भी कई स्तर होते हैं… कुछ उनके खास होते हैं और कुछ बेचारे पिछड़े हुए लोग… खास लोगों को तो अच्छी जगह नौकरी मिल जाती है लेकिन पिछड़े लोग नौकरी के लिए संघर्ष करते हैं.
अब सरेआम सवाल उठ रहे है कि अगर पी पी सिंह निर्दोष हैं तो उन्हें प्रशासनिक कार्रवाई का सम्मान करना चाहिए ओर बच्चों को वापिस पढ़ाई की ओर लौटने के लिए प्रेरित करना चाहिए… न कि अपने लिये आन्दोलन की आग मे झोंक देना चाहिये. क्यूंकि इस पूरे मामले में नुकसान तो बच्चों का ही हो रहा है..
यह संस्थान राजनीति का अड्डा बन गया है। इसमें कुछ दुर्बुद्धि दुर्योधन के सगे-संबंधियों का प्रवेश हो गया है, जिसके कारण हो-हल्ला हो रहा है और कोई दूसरी बात नहीं है।
पत्रकारिता सीख रहे बच्चों(?) का तो उपयोग किया जा रहा है, परदे के पीछे खेल करने वाले खिलाड़ी कोई और हैं… दुर्भाग्य यही है कि छात्रों का अक्सर “उपयोग” ही किया जाता रहा है, चाहे JNU हो, चाहे DU हो, चाहे माखनलाल या चाहे वर्धा…।
अन्त में (*&%*^ एक असंसदीय शब्द) तो छात्रों को ही बनना है… 🙂 🙂 अपना उल्लू सीधा करने वाले मतलब निकलने के बाद पतली गली से कट लेंगे…
यह सारी लड़ाई पूरी तरह से वैचारिक है, असल में संघ की पृष्ठभूमि वाले कुठियाला, उन लोगों को नहीं सुहा रहे हैं जो अब तक देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अपनी ऐंठ जमाये रहते थे। इनमें से अधिकतर कहलाते तो “बुद्धिजीवी और इतिहासकार”(?) हैं, लेकिन असल में यूजीसी की ग्राण्ट खाने और ठिकाने लगाने में उस्ताद हैं… उन्हें यह अच्छा नहीं लग रहा कि अक्सर देश के लाल और तिरंगे रहे विश्वविद्यालय, अचानक भगवा कैसे हो रहे हैं? 🙂 🙂
report bahut acchi aur santulit hai lekin kripya isme ek galati ja rahi hai use thik karein. date mein 2009 ja raha hai jabki ise 2010 hona chahiye.