बस, शांति पुरुष घोषित करवा दो यार !!

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अशोक गौतम

कल बाजार में वे मिले। एक कांधे पर उन्होंने कबूतर बिठाया हुआ था तो दूसरे कांधे पर तोता। माथे पर बड़ा सा तिलक! हाथ में माला, तो शरीर जहां जहां भगवे से बाहर था वहां पर भूभत ही भभूत! अचानक वे मेरे सामने अल्लाह हो! अल्लाह हो! करते रूके तो उनपर बड़ा गुस्सा आया। मन में गुदगुदी हुई कि गृहस्थियों के बाजार में आकर ये साधु पता नहीं क्यों सुकून लेते हैं?

खुदा कसम! उस वक्त मैं आटे तक से डरा हुआ था सो मैं उनको पहचान न सका। पहचानता भी कैसे? बाजार में जो मिले थे। बाजार में तो बंदा अपने बाप तक को नहीं पहचानता! सो मैं उनकी अनदेखी कर आगे होने को हुआ तो वे पीछे से मेरी पैंट खींच बोले,‘ अरे ओ मियां लोटादास! पहचाना नहीं! अरे हम मर गए तो उसी के साथ हमें भूल भी गए! बस इसी का नाम यारी है क्या! ’

तो भीड़ की धकमपेल में मुझे न चाहकर भी रूकना पड़ा। आंखों पर दिमाग से अधिक जोर देने के बाद पाया कि बंदा तो देखा देखा सा है। वैसे भी मरने के बाद कौन किसको याद रखता है? यहां तो लोगों के पास जिंदाओं को याद रखने तक का वक्त नहीं! कुछ और दिमाग पर जोर डाला तो पहचानते देर न लगी। अरे ! ये तो अपने जिगरी ओसामा है। हम दोनों की स्पैशिलिटि- उन्होंने अमेरिका को तंग करके रखा और मैं अपने दोस्तों को धुआं देकर रखता हूं। अमेरिका को अभी भी जब सपने में वे दिखते हैं तो वह नींद से उठ बाहर चक्कर लगाने लग जाता है तो मेरे से मेरे दोस्त इतना डरते हैं कि अगर गलती से मैं उन्हें सपने में भी दिख जाऊं तो वे भी नींद में ही बहकी बहकी बातें करने लग जाते हैं। फर्क हम दोनों में केवल बस इतना है कि मेरे दोस्तों में मेरा टेरर अभी भी बाकी है भले ही ओसामा के साक्षात् डर के दिन लद गए हों।

मैंने उन्हें पहचाना तो उनके जी भर गले लगा। आह रे दैव! कबके बिछुड़े हुए हम आज कहां आ के मिले! जब दोनों का तन एक दूसरे को गले लगा थक गया मैंने उनसे क्षमा मांगते कहा,‘ गुरू! आपको कैसे भूल सकता हूं! पर क्या करूं बाजार की चकाचौंध ने आंखें इस कदर कमजोर कर दी हैं कि कई बार तो अगर शीशे के आगे मैं अपना थोबड़ा किए होता हूं तो उसे भी नहीं पहचान पाता। और कहो कैसे हो? स्वर्ग से कब आए? आगे का अब क्या क्या प्लान है,’ मैंने पूछा तो वे धीर गंभीर मुद्रा में बोले,‘ यार! पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे पत्रकार पूछता है। पत्रकार तो नहीं हो गए क्या?’ उन्होंने गुदगुदी की तो मैंने कहा,‘ प्रभु! कहां मेरी इतनी औकात! यहां तो अब अपनी ही खबर नहीं रहती। देश दुनिया की खबरों को कौन रखे। कहो कैसे आना हुआ? ऊपर जाकर कैसी रही? कुछ ज्यादा तंग वंग तो नहीं किया? कहते हें कि यहां बंदा चाहे कितनी ही दादागीरी क्यों न कर ले, कानून को कितना ही क्यों न नचा ले पर वहां जाने के बाद दूध का दूध पानी का पानी होकर ही रहता है। कुछ चाय वाय हो जाए तो…’ मैंने खड़े खड़े ही इधर उधर देखते कहा कि कोई पुलिस वाला मुझे देख तो नहीं रहा! एक सामने था भी पर वह सब्जी वाले से मुफ्त में सब्जी का बैग भरवाने में व्यस्त था, तो वे बदले में हंसते रहे, मेरी पीठ थपथपाते रहे । कुछ देर तक मंद मंद मुस्कुराहट के साथ मेरी पीठ थपथपाने के बाद बोले,‘ वहां भी कोई नहीं पूछता । जैसे जिसकी यहां चल रही है वह यहां चला रहा है वैसे ही जिसकी वहां चल जाती है वह वहां भी चला ही लेता है। दिल्ली आया था कि कोई मुझे भी उनकी तरह शांति पुरुष घोषित कर दे तो अपना मन रखने के लिए मैं भी अपने गुनाहों से मुक्ति पा लेता! तुम्हारा कोई अच्छा सा कद्दावर नेता जिसके बयान में दम हो तो उससे बयान दिलवा दो कि ओसामा भी शांति पुरुष थे, उम्र भर तुम्हारा ऋणी रहूंगा,’ कह उन्होंने इतनी लंबी आह भरी , शायद ही जीते जी कभी भरी होगी। उनके कहने पर मैं असमंजस में! ये क्या मांग लिया तुमने मेरे से मेरे यार! कहो तो तुम्हें जान भी हंसकर दे दूं पर…… चलो दोस्त हो कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा!

आपकी पहचान का कोई हो तो बताइए प्लीज! ताकी मुझे मित्र ऋण से मुक्ति मिल सके।

 

1 COMMENT

  1. अशोक जी लाजवाब
    मृतात्मा से कमसे कम इतना तो बता ही सकते थे मरने के बाद आपको कितनी इज्जत मिली इस सेकुलर देश से आज भी लोग ओसामा जी नाम की माला जप रहे है और भवसागर पार कर रहे है यह सब आपके नाम का ही पुण्यप्रताप है की एक राजनीतिक दल की दाल रोटी तो केवल आपके नाम से ही चल रही है

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