बस एक सरदार (पटेल )चाहिए कश्मीर के लिये

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-पंकज चतुर्वेदी

कश्मीर में अब निर्णय की उम्मीद दिखेगी इस आस में हम २७ अक्टूबर १९४७ से प्रतिक्षारत है। पाकिस्तान ने अपनी फौज को छदम रूप में भेजकर उस समय तक अधर में लटके कश्मीर को हड़पने की साजिश रची थी। तब से लेकर आज तक कश्मीर की बीमारी दूर होने के बजाय कुछ ऐसे बढ़ी जैसे के ज्यों –ज्यों इलाज किया मर्ज बढाता ही गया। आजादी के पहले के कश्मीर राज्य का लगभग पैंतालीस प्रतिशत भारत के पास है। पैंतीस प्रतिशत नापाक, पाक के कब्जे में है और बचा हुआ लगभग बीस प्रतिशत चीन ने अवैध रूप से दबा रखा हैं। भारतीय कश्मीर के भी तीन भाग है ,जम्मू में हिंदुओं का बाहुल्य है तो लद्दाख में बौद्ध धर्म के अनुयायी बहुतायात में है और कश्मीर घाटी मुस्लिम बाहुल्य है।

पाक कश्मीर को छोड़े तो भारतीय हिस्से में भी तीन तरह की विचार धारा वाले लोग है। एक पक्ष भारत में ही रहना चाहता है ,दूसरा पक्ष पाकिस्तान के साथ अपना भविष्य उज्जवल देखता है वही तीसरा धड़ा कश्मीर को एक अलग राज्य के रूप में स्वतंत्र किये जाने की मांग करता है। इस त्रिकोण में कश्मीर के अच्छे लोग और पर्यटन का प्रमुख व्यवसाय घुट-घुट कर मरणासन्न स्तिथि में आ चुका है। ये अलगाववादी लोग और इनके कार्यकर्ता अपने आप को आतंकवादी के स्थान पर तथाकथित स्वतंत्रता सेनानी मानते है और ऐसा प्रचार भी करते है। अफज़ल गुरु को आज भी ये अतिवादी आतंकवादी नहीं मानते और उसे कश्मीर के कथित स्वतंत्रता की मुहिम का सिपाही प्रचारित करते है। इस विचारधारा से संघर्ष एक बड़ी चुनौती बन गया है।

सैंतालीस में महाराजा हरि सिंह के भारत में शामिल होने के निर्णय में २० अक्टूबर से २७ अक्टूबर तक का समय निकल गया और इतनी देर में पाक ने पैंतीस प्रतिशत भू-भाग पर कब्ज़ा कर लिया, जो सिद्धांत रूप से गलत है। क्योंकि महाराजा ने पूरे कश्मीर का विलय भारत में चाहा था, विभाजित कश्मीर का नहीं। इसके बाद धीरे–धीरे घाटी से मुस्लिमों के अतिरिक्त अन्य धर्मावलंबियों को छल से या बल से बाहर कर दिया गया। आज भी ऐसे कई परिवार है जो कश्मीर में अपनी जमीन–जायदाद छोड़कर देश के कई भागों में शरणार्थियों के रूप में जी रहें है।

भारत पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, और दुनिया में सिर्फ इस विभाजन को छोड़ दे तो सभी जगह भूमि के साथ जनता ने अपने को विभाजित किया है, बुल्गारिया –तुर्की ,पौलैंड –जर्मनी ,बोस्निया –सर्बिया सहित पाकिस्तान और बंगलादेश ने भी विभाजन के बाद अन्य धर्मों के लोगो को बाहर का रास्ता दिखा दिया या फिर पीड़ित और प्रताडित किया। घाटी में मुस्लिम आबादी की अधिकता को देखकर पाकिस्तान इस पर अपने दांत गडाये बैठा है ,तो हमारे धर्मनिरपेक्ष स्वरुप के कारण ये हमारे लिए भी प्रतिष्ठा की बात है। सैंतालीस से कारगिल तक और आज भी इस भूमि पर स्वामित्व का संघर्ष जारी है। लेकिन ये प्रतिष्ठा की लड़ाई अब तक ना जाने कितने ही मानव और अर्थ संसाधन लील चुकी है और नतीजा सिफर है। कश्मीर में कानून –व्यवस्था राज्य सरकार का जिम्मा है फिर केंद्र सरकारों को भी अपनी पूरी दम–ख़म का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

कश्मीर उस सोये हुए ज्वालामुखी के सामान हो गया है ,जो अचानक कभी भी फट पड़ता है और परेशानी इस बात की है कि कोई भी इसकी तीव्रता का अंदाज नहीं लग सकता। कांग्रेस और मुफ्ती सईद की पिछली सरकार के समय ये ज्वालामुखी लगभग शांत सा बना रहा और पर्यटकों ने फिर कश्मीर को अपने कार्यक्रमों में शामिल कर लिया था, लेकिन कांग्रेस के हिस्से की सरकार के दौरान अमरनाथ यात्रा से उपजे विवाद ने जो माहौल खराब किया,तब से लेकर अब तक दिन –ब –दिन हालात खराब होते जा रहें है और उसे उमर अब्दुल्ला की वर्तमान सरकार भी नहीं सम्हाल पा रही है। इस आग में घी का कम एक लेखिका के बयान ने कर दिया जो सदा ही नक्सलियों और अलगाववादियों के साथ है। ,इस बयान की ध्वनि और अलगाववादियों के सुर एक से लगते है, जो किसी भारतीय को ललकारते से प्रतीत हो रहें है। सर्व –दलीय संसदीय दल के दौरे के विफलता के बाद नियुक्त तीन वार्ताकारों से कुछ आस बंधी थी के ये गैर राजनीतिक लोग शायद कुछ कर सके पर अफ़सोस की ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा। इन नव नियुक्त वार्ताकारों का दल भी असफलता के पथ पर जाते दिख रहा है।

भारत में कम्युनिस्ट मांग कर रहें है के कश्मीर के लिए एक विधिवत गठित संसदीय समित हो जो कश्मीर और जम्मू में लोगों से बात करे साथ ही विशेष सेना शक्ति अधिनियम को वापस लिया जाये, क्यो कि इस अधिनियम की आड़ में सेना कथित रूप से मानव अधिकारों का हनन का करती है, यद्यपि ये अधिनियम उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी लागू है। इस तरह से सरकार में शामिल दलों और विपक्षी दलों की सोच भी एकरूप नहीं है।

अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा ने इस विवाद को और भी गरमा दिए है और कश्मीर के अलगाववादियों ने ओबामा से बहुत उम्मीद बांध रखी है। हुर्रियत कांफ्रेंस ने तो ब-कायदा ५ नवम्बर तक एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया है ,इन हस्ताक्षरों को ६ नवम्बर को दिल्ली में अमरीकी दूतावास को सौंपा जायेगा। इस अभियान के द्वारा हुर्रियत अमेरिकी प्रमुख से ये अपील करना चाहती है कि कश्मीर के मसले पर अमरीकी सोच में बदलाव आये और भारत पर ये दवाब बनाया जाये की कश्मीर में जनमत संग्रह कर वह के लोगो की राय के हिसाब से इस मामले को हल किया जाये।

इस समस्या ने इस मिथक को भी तोड़ दिया की विकास की योजनाओं और बुनियादी अवशक्ताओ की पूर्ति से किसी भी समस्या का हल ढूंढा जा सकता है, कश्मीर में वो सब प्रयास विफल रहे है। वो हाथ जो डल झील में नाव चलाते थे, अब पत्थर-बाजी में शरीक है।

इन स्थितियों में तो ऐसा लगता है काश आज सरदार पटेल के कद और राजनीतिक दृढता वाला कोई नेता देश में होता तो अब तक ये विवाद कब का हल हो गया होता। हम एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी बिना नतीजा तक इस समस्या को स्थानान्तरित तो कर ही चुके है। अब तो कोई कड़ा और कड़वा निर्णय ही कश्मीर समस्या का हल दे पायेगा। नहीं तो यह विवाद ऐसे ही धधकता रहेगा और हमारे बहुमूल्य संसाधनों को ईधन के रूप में डकारता रहेगा

4 COMMENTS

  1. आदरणीय पंकज जी,
    आपका लेख वाकया में ही सटीक हैं, लेकिन एक जगह आपने अरुधती राय को सदा ही अलगाववादियों का हिमायती बताया, दिल्ली में कार्यक्रम हुआ वो गिलानी ने नही आयोजित करवाया वो कश्मीर पर केन्द्रित था तो अरुधती रॉय ने जो बयान दिया वो असहनीय सच है जो हमारी सरकार भी मानती हैं , पंकज जी एक लेखक राष्ट्रवादी सोच से भी बड़ी सोच रखता हैं , और वो हैं सत्य की ….. हमने तब विरोध क्यों नही किया जब भारत ने तसलीमा नसरीन को पनाह दी … हमें पता हैं वो सही थी …..हमें राष्ट्रवादी सोच से आगे निकलने की ज़रूरत हैं और वो हैं सत्य और निष्ठां की बुनियाद की ……

  2. बहुत ही सटीक यथार्थ परक विश्लेषण . नेहरु विचारधारा इस समस्या का मूल है. जब तक हम उस कुंठित विचार धारा और आज भी उसी विचारधारा के पोषक तत्वों को दरकिनार कर लोह पुरुष सरदार पटेल का अनुसरण करते हुए राष्ट्रहित में कठोर निर्णय नहीं लिए जाते तब तक राष्ट्र विरोधी तत्व यूं ही देश को खंड खंड करने की चालें चलते रहेंगे.

  3. लेखक पंकज चतुर्वेदी जी कहते हैं;==>”इन स्थितियों में तो ऐसा लगता है काश आज सरदार पटेल के कद और राजनीतिक दृढता वाला कोई नेता देश में होता तो अब तक ये विवाद कब का हल हो गया होता।”
    मुझे नरेंद्र मोदी ही ऐसे प्रतीत होते हैं।भारत माता भाग्य शालिनी हैं।
    एक “क्षेत्रीय आपात्काल” (इमर्जन्सी) घोषित करे, और काम तमाम करे।
    जो संविधान(?) में भी है। कारण के लिए पाकीस्तान प्रेरित आतंकवाद तो है ही।
    फौलादी इच्छाशक्ति चाहिए।आंतरिक समस्याओं की सुलझाव प्रक्रिया, –कोई यु एन ओ रोक नहीं सकती।

  4. आदरणीय पंकज जी कश्मीर की समस्या का पाकिस्तान से बड़ा कारण नेहरु है| सरदाल पटेल ने तो कश्मीर को भारत में मिला ही लिया था किन्तु नेहरु के प्रयासों ने इसे एक विवादित मुद्दा बना कर रख दिया| अमरीका को कश्मीर समस्या के सुलझने में कोई रूचि नहीं है| वह तो चाहता ही यही है की समस्या उलझी रहे और वह इसका लाभ उठाकर कश्मीर में अपने सैन्य अड्डे बना सके| जिनके द्वारा वह अपने तीन प्रतिद्वंदियों को साध सकता है-
    १-रूस
    २-चीन
    ३-भारत
    आपने सही कहा कि काश आज सरदार पटेल के कद और राजनीतिक दृढता वाला कोई नेता देश में होता तो अब तक ये विवाद कब का हल हो गया होता। सच है भारत की ५६५ रियासतों को एक करने वाला व्यक्ति ही इस समस्या को सुलझा सकता है| किन्तु वर्तमान में भी ऐसे दृढ निश्चयी नेता हैं जो कश्मीर को अखंड भारत का हिस्सा बना सकते हैं| गुजरात को चमन बना देने वाला व्यक्ति सरदार पटेल की भूमिका ही निभा रहा है|

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