कैसे कैसे लोग से भरा हुआ संसार।
बोध नहीं कर्त्तव्य का बस माँगे अधिकार।।
कहने को आतुर सभी पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य हैं हो जाते क्यों मौन।।
आँखों से बातें हुईं बहुत सुखद संयोग।
मिलते कम संयोग यह जीवन का दुर्योग।।
मैं अचरज से देखता बातें कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिऐ अफसर बहुत प्रवीण।।
जनता बेबस देखती जन-नायक है दूर।
हैं बिकते अब वोट भी सुमन हुआ मजबूर।।