कला-संस्कृति की समृद्ध परंपरा को विस्तार देता मध्यप्रदेश

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी


मध्यप्रदेश की भूमि भारत भू की वह भूमि है, जि‍सने कभी अपनी जमीन पर कालीदास, भवभूति,  तानसेन जैसे महान साहित्यकार-कलाकारों को बनाया तो कभी इस भूमि से उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ , कृष्ण राव पंडित, उस्ताद आमिर ख़ाँ, डी. जे. जोशी, डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर, कुमार गंधर्व और अब्दुल लतीफ़ ख़ान, सैयद हैदर रजा जैसे तमाम गायक एवं कला संस्कृति के विद्वान जन्में। इन्होंने न केवल देशभर में बल्कि भारतीय कला-संस्कृति का लोहा पूरी दुनिया से मनवाने में सफलता प्राप्त की, इनके इस प्रयासों से मध्यप्रदेश की कला-संस्कृति की समृद्ध परंपरा के मामले में जो छवि बनी, आज उसे राज्य सरकार एक मुकाम देने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भारत के नक्शे पर राज्यों के स्तर से कला संस्कृति के विस्तार एवं नवाचारों के जो भी प्रयास हो रहे हैं, उन सभी के बीच मध्यप्रदेश आज अपने कार्यों से सबसे ऊपरी पायदान पर आ पहुँचा है।

देश का शायद ही मध्यप्रदेश के अलावा कोई अन्य राज्य हो गया, जहाँ वर्षभर में 365 दिनों के अंदर 1600 छोटे-बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए हों। ऐसा कर देश के हृदय प्रदेश से यही संदेश चहुँओर गया है कि मध्यप्रदेश से संस्कृति की अविरल धारा सदैव प्रवाहमान रहेगी। देखाजाए तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार ने वैचारिक महाकुंभ, अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन, शौर्य स्मारक का निर्माण और हाल ही में सम्पन्न लोक-मंथन के सफल आयोजन से इस बात पर मुहर लगा दी है कि भारत की अस्मिता और संस्कृति की पताका मध्यप्रदेश ने अपने हाथों में संयोए रखी है।

 

राष्ट्रीय और प्रादेशिक सम्मान-पुरस्कारों में आगे

कहना होगा कि प्रदेश की बहुवर्णी संस्कृति का संरक्षण-संवर्द्धन अपने आप में बड़ा काम है, जिसके कि सतत विकास एवं विस्‍तार के लिए यह राज्य लगातार अपने यहाँ राष्ट्रीय और प्रादेशिक सम्मान-पुरस्कारों में लगातार इजाफा कर रहा है । संभवत: मध्यप्रदेश देश का पहला प्रदेश होगा जहाँ साहित्य,संस्कृति, सिनेमा, सामाजिक समरसता, सदभाव आदि बहु-आयामी क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य और उपलब्धियों के लिये राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय सम्मान स्थापित किए गए हैं। आज से एक वर्ष पहले जहां 15 राष्ट्रीय और 6 राज्य स्तरीय सम्मान अस्तित्व में थे। सरकार ने उनमें इजाफा करते हुए उन्‍हें अब लगभग 81 राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय सम्मान,पुरस्कार एवं फैलोशप तक पहुँचा दिया है। इतना ही नहीं तो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार मंचों से दिए जाने वाले इन पुरस्‍कार और सम्‍मानों की घोषणा करते वक्‍त इसमें दी जाने वाली राशि में भी लगातार दो गुना बढ़ोत्‍तरी का एलान कर दिया है।

 

पिछले 11 वर्षों में कला-संस्‍कृति से जुड़े 12 नए राष्ट्रीय एवं एक राज्य स्तरीय सम्मान शिखर सम्मान श्रेणी में नये आरंभ किए गए हैं।

हिन्‍दी की उन्‍नति के लिए कार्य

बहुत पहले जिन पक्‍तियों की रचना करते हुए साहित्‍यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने यह प्रसिद्ध दोहा अपनी प्रसिद्ध कविता मातृभाषा के प्रति में लिखा था कि

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन

को ध्‍यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने हिन्‍दी के विकास के लिए अलग से देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से संस्‍कृति विभाग के अंतर्गत विश्‍वविद्यालय स्‍थापित करने के साथ ही आज कई अभिनव प्रयोग एवं पुरस्‍कारों की नवीन शुरूआत की है।  इनमें हिन्दी भाषा के एक-एक लाख रूपये के 5 नए राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2015-16 से स्थापित किये गये हैं, जिनमें हिन्दी साफ्टवेयर, सर्च इंजिन, वेब डिजाइनिंग, डिजिटल भाषा प्रयोगशाला,प्रोग्रामिंग, सोशल मीडिया, आडियो-विजुअल एडीटिंग में उत्कृष्ट योगदान के ‘सूचना प्रौद्योगिकी’, भारतीय अप्रवासी होकर विदेश में हिन्दी के विकास में अमूल्य योगदान करने वाले को ‘निर्मल वर्मा’, विदेशी मूल के ऐसे लोगों को जिन्होंने हिन्दी भाषा एवं उसकी बोलियों के विकास में उत्कृष्ट योगदान दिया है को ‘फादर कामिल बुल्के’, हिन्दी में वैज्ञानिक एवं तकनीकी लेखन एवं पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में उत्कृष्ट योगदान देने वाले को ‘गुणाकर मुले’सम्मान और ऐसे हिन्दी भाषा लेखकों और साहित्यकार जिन्होंने अपने लेखन तथा सृजन से हिन्दी को समृद्ध किया है, उन्हें ‘हिन्दी सेवा सम्मान’ दिया जाना आरंभ किया है।
मध्यप्रदेश संभवतः पहला राज्य है जहाँ भाषा एवं बोलियों के विकास के लिए अकादमी स्थापित की गयी हैं। लुप्त हो रही बोलियों और भाषा को समर्थन,संरक्षण एवं उनके दस्तावेजीकरण का कार्य किया जा रहा है। राजभाषा हिन्दी और प्रदेश के अंचलों की बोलियाँ बुन्देली, मालवी, निमाड़ी और बघेली बोलियों के शब्द अर्थ, कहावतें, मुहावरों का संकलन कर प्रकाशन करवाया जाता है। मालवी एवं निमाड़ी साहित्य के इतिहास की पुस्तक प्रकाशित की जा चुकी हैं। प्रत्येक आँचलिक बोली के कम से कम एक रचनाकार को वार्षिक आधार पर पुरस्कृत करने की योजना यहां बनाई गई है।
राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों में पुरातत्व विषय पर ‘डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर’, स्वाधीनता संग्राम के आदर्श, राष्ट्रभक्ति और समाज सेवा के लिए ‘अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद’, सामाजिक सदभाव और समरसता के लिए ‘महाराजा अग्रसेन सम्मान’, शिक्षा विषय के लिये ‘महर्षि वेद व्यास’, संगीत-संस्कृति एवं कला संरक्षण के लिए ‘राजा मान सिंह तोमर सम्मान’, सामाजिक, सांस्कृतिक समरसता, उत्थान, परिष्कार, आध्यात्म परम्परा के लिए ‘नानाजी देशमुख सम्मान’, देश की सुरक्षा-कर्त्तव्य में बलिदान, अदम्य साहस, वीरता, नारी उत्थान के लिए ‘वीरांगना लक्ष्मीबाई सम्मान’ शामिल हैं।राज्य स्तरीय शिखर सम्मान के अंतर्गत ‘दुर्लभ वाद्य वादन’ के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिये जाने वाले सम्मान को जोड़ा गया है।
संस्कृति विभाग के अधीन उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत एवं कला अकादमी द्वारा रूपंकर कलाओं के क्षेत्र के लिए 21-21 हजार एवं लतीफ खाँ सम्मान 51हजार का पुरस्कार दिया जाता है। साहित्य अकादमी द्वारा अखिल भारतीय स्तर के 5, प्रादेशिक 10 एवं पाण्डुलिपि प्रकाशन सहायता योजना में 45 वर्ष की आयु के रचनाकारों की पहली रचना के प्रकाशन के लिए पुरस्कार दिया जा रहा है।
कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा अखिल भारतीय स्तर का कालिदास पुरस्कार एवं प्रादेशिक स्तर के तीन पुरस्कार दिये जाते हैं। सिन्धी साहित्य अकादमी द्वारा तीन प्रादेशिक पुरस्कार, मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा अखिल भारतीय स्तर के 5 एवं प्रादेशिक स्तर के 8 सम्मान से साहित्यकारों और लेखकों को नवाजा जाता है। भाषाओं के संरक्षण,संवर्धन एवं इन भाषाओं में साहित्य सृजन को प्रोत्साहन की दृष्टि से मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के अंतर्गत भोजपुरी साहित्य अकादमी, मराठी साहित्य अकादमी एवं पंजाबी साहित्य अकादमी भी स्थापित की गईं हैं।
अर्थाभावग्रस्त कलाकारों को सहायता

मध्‍यप्रदेश अपने अर्थाभावग्रस्त कलाकार और साहित्यकारों को मासिक पेंशन के साथ-साथ बीमारी के इलाज के लिए चिकित्सा सहायता प्रदान कर रही है। प्रतिभा प्रोत्साहन योजना में प्रतिभावान साहित्यकार एवं कलाकार को एकमुश्त आर्थिक सहायता 25 हजार रूपये एवं कुछ मामलों में इससे ज्‍यादा भी उपलब्ध करवाई जा रही है।

महत्वपूर्ण उत्सव एवं समारोह

प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर महत्वपूर्ण उत्सव एवं समारोह आयोजित किये जाते हैं। इनमें राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान अंलकरण (देवास), मालवा उत्सव (इंदौर), गीता फेस्ट (भोपाल), स्वतंत्रता दिवस पर भक्ति संगीत कार्यक्रम (दतिया), पं. विष्णु नारायण भातखण्डे स्मृति संगीत प्रसंग (भोपाल एवं सभी संगीत महाविद्यालय), राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान अलंकरण समारोह (खण्डवा), श्री रामलीला उत्सव (भोपाल), नर्मदा महोत्सव (भेड़ाघाट), शरदोत्सव (चित्रकूट), गीत-संगीत प्रस्तुति (भोपाल), मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह (भोपाल), पचमढ़ी उत्सव (पचमढ़ी), गढ़-कुण्डार महोत्सव (गढ़-कुण्डार),राष्ट्रीय कालिदास सम्मान अलंकरण समारोह (उज्जैन), राष्ट्रीय तानसेन सम्मान अलंकरण समारोह (ग्वालियर), भोजपुर उत्सव (भोजपुर), खजुराहो नृत्य समारोह (खजुराहो), लोक रंग उत्सव (भोपाल), अनुगूँज (उज्जैन), उत्तराधिकार (भोपाल) एवं महाबोधि उत्सव (साँची-रायसेन) प्रमुख हैं।
अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियाँ

प्रदेश में मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद गठित है। परिषद के अंतर्गत 9 अकादमियाँ, संगीत एवं नृत्य के विभिन्न केन्द्र, सृजन पीठें आदि संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए संचालित है। ग्वालियर में राजा मान सिंह तोमर के नाम पर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। इसके अलावा प्रदेश में 7शासकीय संगीत महाविद्यालय और 4 ललित कला संस्थान स्थापित है। वहीं एक पृथक से शासकीय संगीत एवं ललित कला संस्थान की स्थापना खण्डवा में की गई है।
रंग-अभिव्यक्ति केन्द्र के रूप में मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय की स्थापना यहां हुई है। इसके माध्यम से नाट्य जगत में बेहतर भविष्य की आकांक्षा रखने वाले युवाओं को एक बेहतर मंच प्रदान किया जा रहा है। इस नाट्य विद्यालय की एक सफलता यह भी है कि इससे प्रभावित होकर देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी स्‍वयं अपने ब्लाग में मध्यप्रदेश सरकार के नाट्य विद्यालय की सराहना तक की है। जिसमें उन्होंने कहा था कि इससे रंगमंच, टेलीविजन और सिनेमा तीनों माध्यम और समृद्ध हो सकेंगे। सिने-तारिका एवं राज्य सभा सदस्य श्रीमती जया बच्चन ने भी विद्यालय की स्थापना की सराहना की। सरकार भोपाल क्षेत्र में फिल्म सिटी की शीघ्र स्थापना करने जा रही है, जिसके लिए भोपाल के समीप ग्राम छावनी एवं मेण्डोरी में तथा रायसेन जिले के चिकलोद ग्राम में भूमि का चयन हो चुका है।
इस तरह देखें तो मध्‍यप्रदेश में इन दिनों जो वातावरण कला-संस्‍कृति के विस्‍तार का एवं उसके संरक्षण का दिखाई देता है, ऐसा वातावरण इतिहास में संभवत: पहले शायद ही कभी दिखाई दिया होगा। इन सब के बीच कहना होगा कि मध्यप्रदेश अपनी कला-संस्कृति की समृद्ध परंपरा को विस्तार देने में जिस तरह जुटा है उसके लिए आज प्रदेश की भाजपा सरकार की जितनी सराहना की जाए उतनी ही कम होगी।

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