कंधमाल के बहाने चर्च कर रहा ब्लैकमेल

– डॉं. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

उड़ीसा के कंधमाल में दो साल पहले जन्माष्टमी के दिन स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की अमानुंषिक ढंग से हत्या कर दी गई थी। इस हत्या के बाद उपजी रोष लहर में पूरे जिला में हिन्दुओं और इसाईयों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। कुछ कीमती जाने भी गई। लेकिन धीरे धीरे कंधमाल में जीवन फिर अपनी रफ्तार पकड़ने लगा और घाव भरने लगे। यद्यपि अभी तक स्वामी जी के हत्यौरों को सजा नहीं हुई। जो लोग इस हत्या में पकड़े गये हैं वे सचमुच इस ‘षडयंत्र में शामिल थे या फिर असली हत्यारों को बचाने के लिए पुलिस ने कुछ लोग पकड़ लिये हैं ताकि कागजी खानापुरी भी हो जाये और असली हत्यारे बच भी जायें। परन्तु इसके बावजूद कंधमाल शांति की और बढ़ रहा है। लेकिन दुर्भाग्य से शांत कंधमाल चर्च को अनुकूल नहीं लगता। इसलिए इसाई मिशनियारियां कंधमाल में अविश्वास और दुर्भावना पैदा करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील हैं इसी रणनीति के तहत कुछ मास पहले चर्च ने यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधि मंडल को कंधमाल बुलाया था। यह प्रतिनिधि मंडल कंधमाल के अनेक गॉव में घूमा और वहॉ के प्रषासकिय अधिकारियों को गोरी चमड़ी के रौब में डराता धमकाता रहा। यहॉ तक कि यह प्रतिनिधि मंडल मुकदमों की सुनवाई कर रहे न्यायधीशों से भी मिलना चाहता था परन्तु वकीलों के विरोध के कारण मिल नहीं पाया। इस सारे प्रयोग में चर्च का एक ही उद्देश्य रहता है कि दुनियां भर में यह प्रचारित किया जाये कि कंधमाल में मतांतरित इसाईयों पर अत्याचार हो रहे हैं। यूरोप में इन अत्याचारों की काल्पनिक अत्याचारों की कथाए पढ़ कर चर्च को पैसा भेजते रहें।यह अलग बात है कि इस पैसे का एक हिस्सा मतांतरण के काम में खर्च होता है व दूसरा हिस्सा चर्च के अधिकारी डकार जाते है। और शायद एक हिस्सा उस सेक्सुयल एब्यूज में भी खर्च होता हो जिसकी खबरें आये दिन अखबारों में छपती रहती हैं। इस अभियान का एक दूसरा हिस्सा राज्य सरकार को ब्लेकमेल करना भी होता है क्योंकि जब चर्च पहले ही अपने पीड़ित होने का शोर मचाना शुरु कर देता है तो राज्य सरकार उन कुकृत्यों की जांच करने से घबराने लगती है जो मिशनारियों के कार्यालयों और चर्च की दिवारों के भीतर होते हैं।

कंधमाल को लेकर भी चर्च यही रणनीति अपना रहा है।चर्च जितनी जोर से अपने आपको पीड़ित पक्ष घोषित करेगा, उसे पता है उतना ही उड़ीसा सरकार स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती के असली हत्यारों को पकड़ने से डरेगी। इस रणनीति के तहत पिछले महीने चर्च ने दिल्ली में एक बौद्विक प्रयास का पाखंड किया। कंधमाल में स्वामी जी के हत्यारों को बेनकाब करने की प्राथमिकता को धूमिल करने के उद्देश्य से चर्च ने पचास तथाकथित संस्थाओं का एक नेशनल सोलीडेरीटी फोरम बनाया। ध्यान रहे जिन 50 संस्थाओं को उल्लेख चर्च कर रहा है वे 50 संस्थाएं इसाईयों की ही संस्थाएं हैं और इनमें से अधिकांश को देश- विदेश के संदिग्ध स्रौतों से पैसा मिलता रहता है। उड़ीसा के लोग मांग करते रहते हैं कि इन संस्थाओं की गतिविधियों और इनके आर्थिक स्रौतों की जॉंच करने के लिए आयोग बैठाया जाये इस नेशनल सोलीडेरीटी फार्म ने आगे एक और संस्था खड़ी कर दी जिसका नाम नेशनल पीपलस ट्रिब्युनल आन न कंधमाल रखा। इस ट्रिब्युनल ने पिछले महीने इसी प्रकार का एक बौद्विक अनुष्ठान किया। ट्रिब्युनल का कहना है कि उसने 13 सदस्यों की एक ज्यूरी का गठन किया है। इस तथाकथित ज्युरी ने 22 से लेकर 24 अगस्त तक दिल्ली में जन सुनवाई की और इसके अनुसार कंधमाल जिला से एसे 50 दुखी लोग अपनी कथा सुनाने के लिए आये जिनको वहां तंग किया गया है। जाहिर है कि उनके अनुसार ये सभी के सभी 50 दुखी लोग मतांतरित इसाई ही हैं। दिल्ली के वातानुकूलित कांस्टीच्यूशन कलब में बैठ कर ज्युरी ने कंधमाल के वनवासियों की व्यथा कथा सुनी और उसके बाद अंग्रेजी भाषा में अपनी रपट भी जारी की। रिकार्ड के लिए इस तथाकथित ज्युरी में जो लोग शामिल थे उनके नाम भी पढ़ लिये जाये। ज्यूरी के अध्यक्ष ए0पी0 शाह हैं जो कभी दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं। दूसरे सदस्य हर्ष मेंढर हैं जो सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य भी हैं। फिल्म बनाने वाले महेष भट्ट , योजना आयोग की सदस्या सैयदा हमीद और अपने आप को अन्तरराष्ट्रीय कानून की विशेषज्ञ बताने वाली वाहेदा नायेनार, जल सेना के पूर्व अध्यक्ष विश्णुभागवत, जिन्हें लेकर जल सेना में भी काफी विवाद हुआ था।

ताज्जुब है कि एन.पी.टी. ने स्वामी अग्निवेश, अरूणधती राय और तीस्ता सीतलबाड़ को ज्यूरी का सदस्य नहीं बनाया। वैसे हो सकता है कि उनके पास समय न रहा हो क्योंकि आजकल वे आतंकवादियों और माओवादियों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

वैसे पूछा जा सकता है कि यदि ए.पी. शाह और महेश भट्ट को कंधमाल के मतांतरित इसाईयों की सचमुच चिन्ता थी तो वे ज्यूरी का यह जनअधिवेशन कंध माल के जंगलों में ही करते ताकि वहॉ के बनवासी इन्हें सचमुच क्या हुआ यह बता सकते। ज्यूरी इतना तो जानती होगी कि कंधमाल के साधारण वनवासियों के लिए कंधमाल से दिल्ली आना सम्भव नहीं है यह अलग बात है कि चर्च कुछ गिने चुने लोगों को दिल्ली लाकर जो चाहे कहलवा सकता है और वही उसने किया भी। वैसे तो सुनामधन्य ज्यूरी को भी न्याय -अन्याय से कुछ लेना देना नहीं था उनको भी इसाईयों पर हो रहे तथाकथित अत्याचारों की रपट जारी करनी थी ताकि चर्च विदेशों से ज्यादा से ज्यादा पैसा बटोर सके और उड़ीसा सरकार को भयभीत करके उससे मनमाफिक काम करवाया जा सके। वैसे इस जमावड़े में राम दयाल मुंडा भी थे जो भारत सरकार को ललकार कर कहते हैं कि तुम माओवादियों को हरा नहीं सकते। वैसे मुंडा भी सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद में हैं और उनका घोषित एजेंडा झारखंड को पूरी तरह इसाई प्रदेश बनाना है। कंधमाल को लेकर की जा रही इस ब्लेकमेल से एक दिन पहले अपने आप को हिन्दुस्थान के इसाईयों की परिषद का महासचिव बताने वाले जॉन दयाल ने लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की दूसरी बरसी पर एक रपट राष्ट्र के नाम जारी की। रपट को पढ़कर एसा लगता है कि यह रपट भारत राष्ट्र के नाम पर नहीं है बल्कि वैटिकन राष्ट्र के नाम है । इस रपट के अनुसार कंधमाल में इसाईयों को बचाने में भारत सरकार भी असफल रही, उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार की तो उसमें हिस्सेदारी ही रही। उस समय के गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने इसाईयों के दुःखों से मुह मोड़ लिया। देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी इसाईयों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकी। प्रदेश की सारी नौकरशाही इसाईयों के खिलाफ है। कंधमाल जिले का जिलाधिकारी तो इसाईयों के खिलाफ वनवासियों से मिला हुआ है। सारी की सारी पुलिस मतांतरित इसाईयों की सहायता करने के स्थान पर कंध वनवासियों की सहायता कर रही है। न्याय पालिका न्याय नहीं दिला पा रही। जॉन दयाल के अनुसार थोड़ी बहुत आषा उन विदेशी प्रतिनिधियों से जागी थी जो कंधमाल में आकर मतांतरित इसाईयों के दुःखदर्द को समझ पाये थे। जाहिर है जॉन दयाल की यह रपट भारत राष्ट्र के खिलाफ अभियोग पत्र है जो उसने अप्रत्यक्ष रूप् से वैटिकन के दरबार में अथवा दूसरी विदेशी शक्तियों के दरबार में पेश किया है। आशा की जानी चाहिए कि देश के अन्य मतांतरित इसाई जॉन दयाल के इस राष्ट्र विरोधी कृत्य में शामिल नहीं हैं। ज्यूरी ने अपने इस तथाकथित जनअधिवेशन के बाद अनेक सिफारिशें की हैं उनमें एक सिफारिश ये भी है कि प्रदेश में मतांतरण को रोकने वाले अधिनियम पर पुर्नविचार किया जाये।

दरअसल पूरे नाटक का उद्देश्य बहुत गहरा है। चर्च का यह आरोप है कि कंधमाल में लगभग 300 चर्च नष्ट हुए हैं। दरअसल बनवासी क्षेत्रों में यदि किसी झोंपड़ी के बाहर क्रास का चिन्ह लटका दिया गया तो मिशनरियों ने उसे भी गिरजाघर घोषित कर दिया। जो पक्के गिरजाघर बने हुए हैं वे आमतौर पर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनाये गये हैं।अब मिष्नरियों की योजना है कि उड़ीसा सरकार को ब्लेकमेल करके सरकारी खर्चें पर कंधमाल जिला में 300 गिरजाघर बनवा लिये जाये और अवैध कब्जे को भी वैध घोषित करवा लिया जाये। चर्च के अपने आंकड़ों के अनुसार ही रोष लहर के कारण लगभग दस हजार परिवार अपने घर छोड़कर पुर्नवास शिबिरों में चले गये थे। उनमें से अधिकांश लोग वापिस आ गये हैं लेकिन चर्च उनकी वापसी से प्रसन्न नहीं है। चर्च की योजना है कि ये लोग षिवरों में ही रहे ताकि इनको दिखाकर विदेशों से पैसा बटोरा जा सके। दूसरे चर्च सरकार पर यह दवाब डाल रहा है कि इन लोगों को सरकारी जमीन आबंटित की जाये और उस पर सरकारी खर्चे से इनको मकान बनाकर दिये जायें। चर्च उड़ीसा की जनता के पैसे से कंधमाल मे कुछ शत प्रतिशत इसाई गांव बना लेना चाहता है।

ताजुब है कि चर्च के इस ड्रामा में नन बलात्कार के बारे में कुछ नहीं कहा गया। यह चुप्पी रहस्य जनक लगती है। 2008 में चर्च ने बहुत शोर मचाया था कि कंध माल के दंगों में मीना नाक की एक नन के साथ लोंगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। इस नन के साथ केरल का एक पादरी रहता था। उस पादरी ने भी कहा कि मुझे पीटते हुए लोगों ने जलुस निकाला। लेकिन कुछ दिनों के बाद पादरी और नन ने बलात्कार की कहानी सुनानी शुरु कर दी और उसे लेकर एफ0आई0आर0 भी लिखवाई। इसके कुछ दिन बाद नन गायब ही हो गई और पुलिस के लिए उसे ढुंढना मुश्किल हो गया। तब एक दिन अचानक वह दिल्ली में दिल्ली के आर्कबिशप के साथ प्रकट हुई। ये अलग बात है िकवह इस प्रकार पर्दे में छुपी हुई थी कि उसे पहचानना मुश्किल था। तब उसने रो रो कर बलातकार की कहानी पत्रकारों को सुनाई। सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई की बलात्कार की जांच सी0बी0आई0 करे। सर्वोच्च न्यायलय ने यह याचिका खारिज कर दी। लेकिन चर्च इस बलात्कार को लेकर इतना हा हा कार मचाता रहा कि उसकी गुंज विदेशों में भी सुनाई देने लगी।तब नन ने उड़ीसा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी कि मुझे कंधमाल में न्याय नहीं मिल सकता इसलिए वहॉं के न्यायलय से मेरा केस कटक में स्थानांतरित कर दिया जाये। उच्च न्यायलय ने नन की अर्जी स्वीकार करते हुए यह कैस कटक स्थानांतरित कर दिया और उसके आदेष पर जुलाई 2010 में इस पर सुनवाई शुरु हुई। तब से लेकर आज तक यह नन अपना ब्यान दर्ज करवाने के लिए बार बार समन भेजे जाने के बावजूद न्यालय में हाजिर नहीं हुई। हर बार बिमारी का कारण बताया जाता रहा। यह अलग बात है कि इसी बीच कटक में ही चौद्वार जैल में वह अपराधियों की शिनाख्त करने के लिए शिनाख्ती परेड में शामिल हुई। शिनाख्ती परेड में तथाकथित अपराधियों के साथ लोगों को भी खड़ा कर दिया जाता है। नन ने इस परेड में एक नकली को ही बलात्कारी बता दिया। कुछ ऐसा ही पादरी ने भी किया। जब एन0पी0टी0 की यह ज्यूरी कंधमाल को लेकर इतनी हायतौबा मचा रही थी तो नन के मामले में उसकी चुप्पी कई प्रश्नों को जन्म देती है। रिकार्ड क लिए कटक न्यायालय ने नन को 23अक्तूबर को न्यायलय में हाजिर होने के लिए अन्तिम अवसर प्रदान किया था और यह भी कहा था कि यदि वह हाजिर न हुई तो उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट निकाल दिये जायेंगे। लेकिन नन ने दो दिन पहले उड़ीसा उच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर कर यह मांग की कि कटक न्यायालय में चल रहे केस को स्थगित किया जाये। उच्च न्यायालय ने उसकी यह याचिका खारिज कर दी और नन 23-09-2010 को भी न्यायलय में हाजिर नहीं हुई। लगता है नन को लेकर चर्च ने जो ‘षडयंत्र रचा था और जिसके बलबुते वह स्वामी लक्ष्माणानंद सरस्वती के असली हत्यारों को बचाना चाहते थे वह धीरे धीरे बेनकाब होता जा रहा है। शायद इसलिए चर्च अब कंधमाल की लड़ाई दिल्ली में लड़ना चाहता है क्योंकि यहां उसे समर्थन करने वाले कुछ न कुछ लोग मिल ही जायेंगे जिनका न कंधमाल से वास्ता है न वनवासियों से।

3 COMMENTS

  1. धर्म ना बदला जा सके, जानो गहरी बात्। धर्म ना हिन्दू जैन है, धर्म नहीं इस्लाम्। धर्म नहीं इस्लाम-इसाई जानो भाई। फ़िर काहे का चर्च-मस्जिद, काहे लङाई। कह साधक कवि, मैं मानव हूं कभी ना बदला। समझो सच्ची बात, धर्म तो जाय ना बदला।

  2. चर्च के पादरियों के घिनौनी विलासिता के कारण विशेषतः पश्चिमी देशो में जो घटनाओं की सूचि बनी है, वह आप निम्न लिखित वेब साईट पर देख सकते हैं।
    उसके हरेक शीर्षकपर क्लिक करने से आपको पूरी की पूरी जानकारी प्राप्त होंगी। वैसे इसमें सभी का समावेश है।
    https://www.rickross.com/groups/clergy.html

  3. क्या करें सर यह इंडिया (भारत नहीं) है। जो सच है उससे सब मुंह फेरते हैं। यही काम किसी एक खास धर्म से जुड़े लोगों ने किया होता तो अभी तक नगाड़ा बजा दिया होता मीडिया और बुद्धिजीवियों ने।

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