कनिष्क कश्यप: उस रेत पे अपना नाम लिख ता-उम्र निशानी दे चलो

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मुझे ख्वाहिसों की कस्ती पे
सागर के पार ले चलो
ज़हां हर लहर लिख जाती
रेत पर एक नयी कहानी
कुछ बरसते बादल और हवाएं
मिटा देते उनकी निसानी
उस रेत पर अपना नाम लिख
ता-उम्र निशानी दे चलो

है पार सागर के अपना जहां
किसी को है इंतज़ार वहां
इस भंवर से निकल
आँखों मे उतर
जहां तारे हज़ार, ले चलो

युं आँखो में हम उतर चले
बुझती उम्मीदों को आस मिले
जहां बरसे खुमार
पलतें हैं बहार
जहां खुशियां बेसुमार, ले चलो

कुछ दूर इतना कि बस
परछाइयां भी खो जायें
हम भुल कर हर बात
उस रौशनी में सो जायें
जहां दूँ जब पुकार
बजते हैं सितार
जहां बसता मेरा प्यार, ले चलो
मुझे ख्वाहिसों की कस्ती पे
सागर के पार ले चलो

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