-श्रीराम तिवारी-
आज भी न बरसे कारे कारे बदरा,
आषाढ़ के दिन सब सूखे बीते जावे हैं ।
अरब की खाड़ी से न आगे बढ़ा मानसून ,
बनिया बक्काल दाम दुगने बढ़ावे है।
वक्त पै बरस जाएँ कारे–कारे बदरा ,
दादुरों की धुनि पै धरनि हरषावे है।।
कारी घटा घिर आये ,खेतों में बरस जाए ,
सारंग की धुनि संग सारंग भी गावै है।
बोनी की बेला में जो देर करे मानसून ,
निर्धन किसान मन शोक उपजावे है ।।