कर्म की प्रेरणा देने वाले- योगेश्वर श्रीकृष्ण

janmashtami
मृत्युंजय दीक्षित
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पर्व है श्री कृष्णजन्माष्टमी। महाभारत युद्ध के दौरान श्रीमद्भवद्गीता के रचयिता श्रीकृष्ण। योगेश्वर श्रीकृष्ण के गीता के उपदेश अनादिकाल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते हैं। जन्माष्टमी का पर्व भारत मंे ही नहीं अपितु विदेशों में बसे भारतीय भी इस पर्व को पूरे भक्तिभाव व उल्लास के साथ मनाते हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में कंस के अत्याचार का समापन करने के लिए जन्म लिया। चूकिं स्वयं भगवान इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अतः इस दिन को श्रीकृष्णजन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। अष्टमी दो प्रकार की होती है एक जन्माष्टमी और दूसरी जयंती।
स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और विष्णुरहस्यादि ग्रंथों में पर्व का उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण एक ऐसे नायक हैं जिनमें जीवन के सभी पक्ष विद्यमान हैं। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं में माहिर थे। भगवान श्रीकृष्ण की 16कलाओ से तात्पर्य यह है कि उनकी वाणी मन मोहने वाली थी। उन्होनें बचपन में मनोहर और रोचक बाल लीलाएं की है। जिनका वर्णन हिंदी साहित्य में भरपूर मिलता है। वे श्याम वर्ण के होते हुए भी कांतिमय सौंदर्य के धनी थे । उनकी छवि अत्यंत सुंदर तथा मनमोहक थी। वे वेद, युद्ध, संगीत, कला की सभी प्रकार की विद्याओं में पारंगत थे। वे कुशल रणनीतिकार ,राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ थे। वे न्याय करने में पारदर्शिता रखते थे। उनका पूरा का पूरा जीवन आज के व भविष्य के समाज के लिए बेहद प्रेरणादायी है। वे ज्ञान नीर क्षीर विवेक के साथसह आंकलन करने में परिपूर्ण थे। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं लगातार कर्म करते और कर्म करने की प्रेरणा देते रहते हैं। वे योगेश्वर थे और गीता में कई जगह योग पर बल दिया है। उनके जीवन ओैर कथा से विनयशील होने और अहंकार छोड़ने की प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन सत्य पर आधारित था उनका जीवन सदा दूसरों पर उपकार करने वाला ही थां। भगवान स्वयं गीता में इस बात का उल्लेख करते है।गीता में भगवान का कहना है कि हर मनुष्य के लिए मैंने कुछ न कुछ निर्धारित अवश्य कर रखा है। इसलिए मानव समाज को किसी बात की चिंता किये बिना भगवान श्रीकृष्ण को याद करके केवल अपने कर्म को ही करते चले जाना चाहिये ।
एक प्रकार से देखा जाये तो भगवान श्रीकृष्ण आज के युवाओं को नैतिकता और व्यावहारिकता की परिपक्व सीख दे रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण प्रेम भी करते हंै और रास भी रचाते हैं। लेकिन उसमें अश्लीलता और उच्छृंखलता का भाव नहीं होता है। लेकिन वर्तमान समय में विदेशी सभ्यता से ओतप्रोत साहित्यकारों व सतरंगी फिल्मी दुनिया ने इसे बेहद विकृत कर दिया है। आज के युग में युवाओं मंे व्यक्तित्व विकास को बढ़ावा देने व उसका और अधिक विकास करने मंे श्रीकृष्ण का जीवन एक परम उदाहरण है। भगवान श्रीकृष्ण घोर निराशा व अधंकार के दौर में भी लगातार कर्म करने की प्रेरणा देते है।
जब महाभारत की लडा़ई प्रारम्भ होने ही जा रही थी उसी समय अर्जुन ने युद्ध से मुंह मोड़ लिया और एक प्रकार से निराशावादी स्वर के साथ समर्पण सा कर दिया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिये वह गीता के रूप में अमर हो गये । श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा अनुपम ग्रंथ हैं जो लोगों को आज भी कर्म करते रहने की प्रेरणा देता है।
प्रत्येक व्यक्ति को यह जानना चाहिए कि श्रीकृष्ण कितने महान हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने ज्ञान के लिए गीता अवश्य पढ़नी चाहिये। भगवान श्रीकृष्ण गीता में स्वयं कहतेे हैं कि, “मैं घोर अंधकार में उत्पन्न हुआ था।“भगवान में अपार शक्तियां विद्यमान हैं।कहा गया हे कि गीताका मनन करने वाला व्यक्ति परम मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। यदि मानव को अपने जीवन का उददेश्य समझा है तो उसे गीता अवश्य पढनी चाहिये। यदि कोई गीता को निष्ठा तथा गंभीरता के साथ पढ़ता है तो भगवान की कृपा से उसके पूर्व जन्मों के सभी पाप व दुष्कर्मो का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
चंूकि गीता स्वयं भगवान के श्रीमुख से निकली है इसलिए कोई अन्य वैदिक साहित्य पढ़ने की आवश्यकता नहीं रह जाती है। वर्तमान समय में लोग एक शास्त्र, एक ईश्वर, एक धर्म तथा एक वृत्ति के लिए अत्यंत उत्सुक हंै। अतः वर्तमान समय के लिए गीता ही सर्वथा उपयोगी जीवन को नयी दिशा और दशा प्रदान करने वाला ग्रंाि है जिसके रचयिता स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं।
गीता के सतत पाठन और अभ्यास करने से विकास की अनंत संभावना को बल मिलता है।गीता का अध्ययन करने से नुष्य में भी 26 गुणों का समावेश हो सकता है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में आज के युवाओं को भी कर्म करते रहने की अद्भुत प्रेरणा दे रहे है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं , ”तेरा कर्म करने मे ही अधिकार है। उसके फल में कभी नही। इसलिए तू कर्म के फल का हेतु मत हो तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो ।”
कर्म फल में अधिकार नहीं कर्म, फल का कारण नहीं एवं आलस्य भी नहीं फिर भी कर्म में पूरी तन्मयता कैसी अदभुत दृष्टि है यह। गीता मंे कहा गया हैं कि विविधता ही मानव विकास की संुदरता की गारंटी है। जीवंत धर्म के प्रतीक हैं श्रीकृष्ण। भारत के सभी महान पुरूषों ने अपने जीवन में गीता का कई – कई बार अध्ययन किया है।
भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी का पर्व छः दिन तक मनाया जाता है। इन छः दिनों में भगवान के कई रूपों व कथानकों के दर्शन हो जाते हैं। उप्र में मथुरा – वृंदावन में तो उल्लास व उमंग का विशेष वातावारण उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा पूरे उत्तर भारत में जगह जगह भगवान श्रीकृष्ण की सुदर झांकियां सजायी जाती हैं व रासलीलाओं व नाटकों आदि का भव्य मंचन व प्रदर्शन किया जाता है। सभी कृष्ण मंदिरों को बेहद भव्य तरीके से सजाया जाता है।

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