पूरी दुनिया के लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद पर हमलें के आरोपी, आतंकवादी मोहम्मद अफजल को अंततः फांसी दे ही दी गई. फांसी का निर्णय केंद्र मैं बैठी कांग्रेसी सरकार ने लिया तो अवश्य किन्तु इसके पीछे मानसिकता और विचार कौन सा चल रहा था यह विचार किया जाना आवश्यक है. कहना न होगा कि संसद पर हमलें के मुख्य सूत्रधारों में से एक रहे अफजल को मृत्यु दंड न्यायालय ने सुनाया किन्तु उसके बाद जिस प्रकार उसे फांसी पर टांग देनें के निर्णय पर पिछले दस वर्षों से कांग्रेसी सरकार अनिर्णय और असमंजस के झंझावात में अनावश्यक फंसी रही उन परिस्थितियों पर विचार करना आवश्यक हो जाता है. आखिर इस देश में कौन सी ऐसी अन्तर्प्रवाहित विचारधारा है और कौन सा ऐसा अंतर्विचार निरंतर प्रबल हो रहा है जिसमें केंद्र में बैठी सरकार एफ डी आई या अन्य विवादित प्रावधानों और कानूनों को तो जोड़ तोड़ की राजनीति और घोड़े खरीदनें की घृणित प्रवृत्ति से पारित करा लेती है किन्तु अफजल और कसाब जैसे देशद्रोहियों, आंतकवादियों और हिंसा और नफरत के प्रतीकों को न्यायालय के निर्णय के पश्चात भी कुचलने में उसकी दृढ़ मानसिकता और विचार शक्ति का परिचय नहीं मिल पाता है.
आज जब हम पुरें देश में पहले कसाब और अब अफजल के फांसी को लेकर आतंक के विरूद्ध संकल्प शक्ति के प्रबल और प्रखर प्रकटीकरण के दौर में आ गएँ हैं तो हमें केवल फांसी दे दिए जानें के क्षण का आनंद ही नहीं उठाना चाहिए अपितु इसके साथ साथ उन कारणों और परिस्थितियों पर विचार किया जाना चाहिए जिनकें कारण फांसी दिए जानें में विलम्ब हुआ या जिनकें कारण फांसी देनें के न्यायलिन निर्णय को केंद्र सरकार क्रियान्वित करा सकी. निश्चित तौर पर इस देश के सबसे पुरानें और सबसे बड़े किन्तु चरमराते ढांचें वाले राजनैतिक दल कांग्रेस में उसके प्रदर्शित और घोषित विचार के पीछे कुछ अन्तर्निहित विचार ऐसे चल रहें हैं और उसकी राजनैतिक विचार धारा में कुछ ऐसे विघटनकारी और राष्ट्र विरोधी तत्व अन्तर्प्रवाहित हो रहें है जिनकी पहचान कांग्रेस हित में भी होगी और देश हित में भी. ये ही वे तत्व हैं जिनकें कारण अफजल और कसाब की फांसी में हुआ विलम्ब जिम्मेदार है. राजनीति में वोटों की चिंता एक परम आवश्यक पक्ष होता है किन्तु इस पक्ष के साथ जो राजनैतिक दल अप्रिय किन्तु देश हित के निर्णय लेनें का दुस्साहस करता है उसे बहुतेरी वोट सम्बन्धी चिंताओं से अपनें आप ही मुक्ति मिल जाती है इस तथ्य को संभवतः छोटी और अल्पकालिक सोच का वर्तमान कांग्रेसी नेतृत्व आत्मसात नहीं कर पाया है.
अफजल कसाब की फांसी को लेकर सत्ता में बैठी कांग्रेस के विषय में और अधिक व्यापकता से विचार करें तो ये तथ्य स्पष्ट समझ में आता है कि हमारी पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने निश्चित ही इस सम्बंध में निर्णय शक्ति का परिचय नहीं दिया. किन्तु संसदीय राजनीति के अंतर्तत्व को पहचाननें वालों को निश्चित ही यह समझ में आता है कि राष्ट्रपति को दोष देना उचित नहीं है. उस समय केंद्र में बैठी कांग्रेस की सरकार ने संकल्प शक्ति का परिचय नहीं दिया केवल यही एक मात्र कारण है अफजल कसाब की फांसी में हुई देरी का. देश की राजनीति और सामाजिक जनजीवन का एक अविभाज्य, अपरिहार्य और आवश्यक पक्ष बन गई आर एस एस की विचारधारा के लोगों ने इन देशद्रोही आतंकवादियों को फांसी देनें की मांग पिछले दशक भर से उठाई हुई है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इसके सेकड़ों मैदानी और वैचारिक संगठनों ने आतंकवाद के विरूद्ध जनमानस के जागरण और जनता के विरोध के प्रकटीकरण को निरंतर और सशक्त मंच प्रदान किया हुआ है. इस मंच का ही परिणाम रहा है कि देश में आम जनता की आवाज और भावनाओं का भावुक प्रस्तुतीकरण और शक्तिशाली प्रकटीकरण विभिन्न अवसरों और कालखंडों में होता रहा जिसके कारण कांग्रेस की विचलित, दिग्भ्रमित, तुष्टिकरण कारी, अनिर्णय की बीमारी से रोग ग्रस्त सरकार इस निर्णय को ले पाई.
कहना न होगा कि पिछले दशक भर के अफजल और कसाब को बिरयानी परसते रहनें के दौर में संघ विचार के लोग और संघ का नेतृत्व इस बात की सतत निरंतर आलोचना करता रहा और देश प्रेम और देश रक्षा के संकल्प को प्रदर्शित करनें के निर्णय लेनें और आतंवाद के विरूद्ध जिद्दी आचरण को प्रकट करनें की भूमिका बनाता रहा वरना कांग्रसी तो इस घटना और इसके दोषियों के मुस्लिम भर होनें के कारण से इन्हें तुष्टिकरण की राजनीति की बलि चढानें के परम मूड में थे. इस देश के राष्ट्रवादी चरित्र के निर्माण में यदि स्वतन्त्रतापूर्व के अनेकों अनगिनत स्वातन्त्र्य वीरों का अमर बलिदान है तो उस चरित्र को समय समय पर पोषित और सशक्त करनें का कार्य संघ शक्ति ने ही किया है.
अफजल की फांसी के सम्बंध में कई अन्य प्रकार के आश्चर्य चकित कर देनें वालें दृष्टिकोण भी सामनें आयें हैं. अफजल को पकड़े जानें के बाद इस देश के कुछ बुद्धिजीवियों किन्तु आंतरिक दुश्मनों ने अफजल की मासूमियत और निरपराध होनें जैसे शर्मनाक वाक्य कहे थे. इस देश की ही धरती है और इस देश का ही विवेकशील कानून है जिसनें इन देशद्रोहियों की बात को सहन कर लिया यदि ये लोग अमेरिका में होते और आतंकवादी हमलावरों के पक्ष में सुहानुभूति की बातें करतें तो इन्हें उठाकर कभी दोबारा न दिखनें वाली जगहों पर भेज दिया जाता और इस बात की भनक किसी को भी न लग पाती. अभी हाल ही में अफजल को एन फांसी दिए वाले डिबन ही एन डी टी वी पर एक लाइव बहस के दौरान इस देश के एक तथाकथित बुद्धिजीवी और भुक्कस प्रगतिशील कहे जानें वालें एक दुष्ट और नाकारा व्यक्ति प्रो. अपूर्वानंद ने अफजल का बचाव करते हुए इस देश की न्याय प्रक्रिया की आलोचना तक कर डाली. यद्दपि इस अपूर्वानंद की बात का एन डी टी वी के मंच पर मुखर विरोध हुआ और बहस में भाग ले रहे भाजपा के नकवी और कांग्रेस के राशिद अल्वी दोनों ही ने इस कुतर्क कारी की आलोचना की और उसे पर्याप्त अपमानित भी किया तथापि इस व्यक्ति के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना के आरोप में एफ आई आर होनें का काम अभी बाकी है. पुरे देश की राष्ट्रवादी मानसिकता का यह आग्रह है कि नकवी और राशिद अल्वी दोनों एक साथ जाकर इस अपूर्वानंद के विरुद्ध एफ आई आर लिखवाकर एक नया अध्याय प्रस्तुत करें.
आज यदि हम अफजल और कसाब की फांसी के बाद के दृश्य को देख पा रहें है तो निश्चित तौर पर इस देश की राजनीति में चल रहें संघ तत्व का ही परिणाम है. मैं यह नहीं कहना चाहता हूँ कि संघ विचार के अलावा विचार वालें लोग राष्ट्रवादी नहीं हो सकते हैं!!! निश्चित तौर पर और भी विचारधारा के लोग राष्ट्र वादी और देश भक्त हैं किन्तु उनका सशक्त प्रस्तुतीकरण और प्रकटीकरण तुष्टिकरण और अवसरवाद की कांग्रेसी मानसिकता के कारण हो नहीं पाता है और देश उनकें इस देश पूजा के विचार का लाभ नहीं उठा पाता है. आज यदि अफजल कसाब को फांसी हो गई है तो निश्चित ही यह कहना आवश्यक, प्रासंगिक, सान्दर्भिक और समयोचित है कि यह फांसी और न्यायालय के निर्णय का पालन संघ विचार का ही विलंबित किन्तु आंशिक क्रियान्वयन है.