काशी ने दिया आतंक का जवाब….

varanasi20067 मार्च, 2006 शाम के 6.30 बजे थे। चारों ओर खुशनुमा माहौल था, क्योंकि काशीवासी तो वैसे भी अपने ही अंदाज में जिन्दगी जीते हैं, तभी अचानक से एक जबरदस्त धमाका होता है और चारों तरफ धुंआ ही धुंआ हो जाता है। उसी समय मैं एक मंदिर में प्रवेश कर रहा था कि तभी एक आदमी अचानक से मेरे सामने से दौड़ता हुआ आता है जिसे देख मैं अपने सुधबुध खो देता हूं।….आप सोच रहे होंगे कि मैं किस घटना की चर्चा कर रहा हूं। जी हां, यही वह दिन था। जब वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर व कैंट स्टेशन पर आतंकवादियों ने मासूमों के खून से होली खेली थी। संकटमोचन मंदिर में इस दिन दो जोड़ियां अपने वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने हेतु सप्तवदी के सातों संस्कारों को पूरा कर रहे थे तभी उनके आखिरी फेरे से पूर्व ही उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी। आतंक का यह नंगा नाच देख मेरे रोये खड़े हो गए।

अभी भी जब वह दृश्य मेरे आंखों के सामने आता है तो मैं घबरा सा जाता हूं। घटना के पश्चात् मैंने देखा चारों तरफ खून ही खून और इंसानों के शरीर के लोथड़े इधर उधर बिखरे पड़े हुए थे। प्रशासनिक कार्यवाही के बारे में कहे तो भारतीय पुलिस कितनी जागरूक है यह तो हर आम आदमी जानता है। घटना के घटित होने के घंटे भर बाद स्थानीय पुलिस का घटनास्थल पर आगमन हुआ, लेकिन दाद देनी होगी काशी की जनता का, कि वास्तव में भोले की नगरी कहलाने वाले इस नगरी ने अपनी सभ्यता और संस्कृति का परिचय देते हुए इस विषम परिस्थिति में उन पीडितों के लिए आगे बढ़कर हाथ बढ़ाया और सबसे पहले सहायतार्थ दौड़ पड़े। इस घटना के पश्चात कयास लगाये जाने लगे थे कि काशी का माहौल बिगड़ने वाला है लेकिन इन सबके बावजूद एक बार फिर गंगा-जमुनी तहजीब का परिचय देते हुए यहां की जनता ने सबके आशंकाओं पर पानी फेर दिया।

काशी की जनता ने तो अपनी सभ्यता और संस्कृति का परिचय दे दिया लेकिन तब से अब तक आतंक का यह गंदा खेल हमारे देश में खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। अगर देखा जाए तो वर्तमान समय में विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं है जो भारत से सीधे टक्कर लेने की हिम्मत रखता हो क्योंकि आज हमारी सैन्य शक्तियों से पूरा विश्व भलीभांति परिचित हैं। बावजूद इसके प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह आतंकवादी भारत की सीमाओं को पार कर भीतर प्रवेश कैसे करते हैं? अगर इस पर विचार किया जाए तो यह सोचनीय विषय है कि हमारे देश की सेना क्या कर रही है। माना जाता है कि सीमा पर जब जवान जागता है तो देशवासी चैन और सुकुन से सोता है। एक बार फिर प्रश्न उठता है कि क्या सचमुच आज सीमा पर जवान जाग रहा है?

हम ‘अतिथि देवो भवः’ को मानते है पर जब अतिथि अपने सत्कार करवाने के स्थान पर कत्ले आम करने लगे तो उसका जवाब भी हमें देने आता है।

सरकार से मेरा एक निवेदन है कि अब भी जाग जाए अन्यथा एक बार इसी तरह एक अतिथि भारत में प्रवेश कर यहां दो सौ वर्ष अपना अधिपत्य जमाया था दुबारा फिर से उस इतिहास को दुहराया जा सकता है।

धन्य है काशी की जनता जो अब भी अपने संस्कृति और सभ्यता को अपनाये हुए है और समय-समय पर उसका परिचय देने से मुकरती नहीं है।

-अमल कुमार श्रीवास्तव

2 COMMENTS

  1. kasi ki masti per yah daag vastav me khalal paida karne ka dussaha hai…
    vaise ganga .jamuni tahazeb ka sahar kashi ne is ghatna ke baad fir se usi fakkad andaz me jena suru kar diya..jo ki aatankiyo ko hatotsahit karne k liye kafi hai..
    aapki lakhani ko salam..

  2. सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है… वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।

    आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
    आप के अमूल्य सुझावों का ‘मेरी पत्रिका’ में स्वागत है…
    Link : http://www.meripatrika.co.cc

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