कट्टरपंथी धर्मगुरु कर रहे समाज को भ्रमित

सरदार अहमद
सांप्रदायिक सद्भाव का पहला दायित्व मुसलमानों का है। इस्लाम की महान परंपराएं हमें ऐसा करने का आदेश देती हैं। इस्लाम इस बात को स्थापित करता है कि किसी की जाति, धर्म, नस्ल न पूछी जाए।

तिहास के परिप्रेक्ष्य में जाएं तो इस्लाम का उदय आतंकवाद, शोषण और परस्पर ंिहंसा के विरोध में ही हुआ था। यह एक ऐसा पूर्ण आध्यात्मिक अभियान था, जिसमें दिग्भ्रमित जनजातियों तथा समस्त मानवता को इस बात का संदेश दिया गया कि आपसी रिश्तों में बन्धुत्व भाव को कायम किया जाए। छठी शताब्दी में मध्य एशिया की बर्बर जनजातियां एक-दूसरे के विरुद्घ आतंक का पर्याय बन चुकी थीं। निर्बल व्यक्ति के जीवन का कोई महत्च नहीं रह गया था। समाज बाहुबल तथा धनबल के आधार पर विभाजित था। ऐसे में इस्लाम की रोशनी ने सबको समानता का दर्जा देने की बात की और जनजातीय आतंकवाद से वहां के नागरिकों को मुक्त कराया। यदि इस्लाम के उदय तथा उसके प्रसार के प्रभाव का अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्टï हो जाता है कि मध्य एशिया को पहली बार अनुशासित, मानव कल्याण सापेक्ष तथा व्यवस्थित जीवन दृष्टि मिली। इसका स्वागत दुनिया भर में हुआ।
समाज का कोई भी व्यक्ति ऐसी सोच के मध्य नहीं रहना चाहता जो हिंसा के लिए प्रेरित करती हो या दूसरों के अधिकारों का हनन करती हो। कुछ समय तक ऐसे विचार जीवित रह सकते हैं, लेकिन दीर्घकाल तक नहीं। इस्लाम में दृष्टिï की व्यापकता है। वह आत्मा को संकीर्ण संस्कारों के आवरण की कैद से मुक्त कराता है। स्वपोषण को इस्लाम पाप मानता है। वह पूरी मानव जाति का हित चिंतन करता है। इसलिए उसे संकीर्णता की परिधि में कैद नहीं किया जा सकता।
इस्लाम का चौथा फरीजा जकात है, वह यह स्पष्ट करता है कि हम केवल अपने लिए न जीए, दूसरों के कष्टïों तथा अभावों को समझें तथा अपनी आय का निश्चित अंश उन लोगों को दें, जो अभाव में हैं। यह आध्यात्मिकता वर्ग सहयोग की व्यवस्था है। कार्ल माक्र्स जिस समता मूलक समाज की परिकल्पना वर्ग संघर्ष द्वारा करता है, इस्लाम उसे वर्ग सहयोग द्वारा करने का आदेश देता है। मुसलमान इस्लाम की जकात तथा खैरात की भावना को ठीक से समझ लें तो संसार में कोई भूखा नहीं होगा।
इस्लाम इस बात को अनिवार्य रूप से स्थापित करता है कि किसी भी वंचित तथा अभावग्रस्त व्यक्ति की जाति, धर्म तथा नस्ल न पूछी जाए। जो सहायता करनी है, वह बिना भेदभाव के तथा विनम्र भाव से की जानी चाहिए। अहंकार से की गई सहायता निर्मूल हो जाती है। पवित्र कुरान में जकात के महत्व को अनेक स्थान पर प्रतिपादित किया गया है। हम इसे बड़ी बिडम्बना ही मानते हैं कि आज कुछ स्वार्थी संगठन इस्लाम का नारा देकर संसार भर में आतंक फैला रहे हैं। अपने को शक्तिशाली प्रमाणित करने के लिए सामान्य जन पर अत्याचार इस्लाम का सिद्घान्त नहीं हो सकता।
किसी को दुखी देखना इस्लाम गंवारा नहीं करता। इस बात को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि इस्लाम की गलत व्याख्या कुछ कट्टरपंथी धर्मगुरु कर समाज को भ्रमित कर रहे हैं। हमें ऐसे धर्मगुरुओं की आलोचना करने का साहस करना चाहिए, जो धर्म की परिभाषा को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं। समाज शिक्षित हो, हमारी शिक्षा ही उन लोगों के लिए एक तमाचा होगी, जो हमें गलत राह पर ले जाना चाहते हैं। सूरतुल मरयम प. १६ आयत ३१ में भी जकात के लिए आजीवन पाबंद किया गया है। ऐसा विचार जो प्राणिमात्र की दैनिक आवश्यकता के प्रति इतना अधिक गम्भीर हो, वह कभी भी लोगों की हत्या करने तथा आस्था के नाम पर नरसंहार करने की अनुमति प्रदान नहीं कर सकता।
संसार में हमारा व्यवहार कैसा हो? इसके लिए पवित्र कुरान का आदेश अपने में विलक्षण और अद्वितीय है। कहा गया है कि हर व्यक्ति से अच्छी तरह से बात करो। (सूरतुल फुर्कान प. १९ आयत ६३) यहां बात का अभिप्राय हमारे सम्पूर्ण लोक व्यवहार से है। इसी आयत में यह भी बताया गया है कि हम अनावश्यक हिंसा से दूर रहें। इस्लाम में आदेश है कि जब तुम से कोई शत्रुता करे, या आपकी बुराई करे तो शत्रुता का उत्तर शत्रुता या बुराई करके मत दो। उसके साथ ऐसा व्यवहार करो कि वह आपका मित्र बन जाए।
इस्लाम इंसान को हर प्रकार के आतंकवाद से रोकता है, चाहे वह हथियारों का हो या शब्दों का। लेकिन संसार में जो कुछ हो रहा है उससे भी हम आंखें बंद नहीं कर सकते। इस्लामी आंतकवाद नाम की पदावली का प्रयोग पश्चिमी जगत कर रहा है। जो आतंकवाद के नाम पर राजनीतिक सत्ता कायम करना चाहते हैं, वे इसे धर्मयुद्ध का नाम दे रहे हैं। जो इस्लाम को ठीक से नहीं जानते, वे इसी धारणा को स्वीकार कर लेते हैं कि यह मजहब का ही अंग है। अनेक मुस्लिम विचारकों ने पंथनिरपेक्षता को अस्वीकार किया है। प्रसिद्ध विचारक मुशीरूल हक ने लिखा है कि भारतीय मुसलमानों का एक छोटा वर्ग ही धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करता है, बहुसंख्यक वर्ग नहीं। अधिकांश उलेमा का विश्वास है कि राज्य तो धर्मनिरपेक्ष रहे, लेकिन मुसलमान धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार या अस्वीकार शरीयत के आधार पर करें। अनेक इस्लामी उलेमा मानते हैं कि सरकार धर्मरिपेक्ष हो, मुसलमान धर्मनिरपेक्ष न हो। (इस्लाम इन सेक्युलर इंडिया पृ. १-१५)
यह धारणा समाज में शंका पैदा करती है। यदि शासन का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष है तो प्रत्येक नागरिक को उसका आदर करना चाहिए। भारत जैसे देश में जहां विभिन्न मतों को मानने वाले एक साथ रहते हैं, वहां धर्मनिरपेक्षता पर अनास्था प्रकट करना राष्ट्रिय एकता के लिए घातक हो सकता है। धर्म को निजी जीवन तक ही सीमित रखें तो सारी व्यवस्थाएं ठीक से कार्य करती हैं। अन्यथा सामाजिक टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। भारत में धर्मनिरपेक्षता यहां का स्वाभाविक संस्कार है।
एक-दो घटनाओं को छोड़ दें तो भारत में धार्मिक कारणों से विवाद नहीं होता। विवाद का कारण राजनीति या अपने समाज का वर्चस्व प्रदर्शित करना अधिक होता है। पाकिस्तान घोषित रूप से इस्लामी देश है। लेकिन वहां आए दिन नमाजियों पर हमले होते हैं, उनकी हत्याएं की जाती हैं। भारत के इतिहास में ऐसी घटना नहीं हुई। ईश्वर का स्मरण करते हुए किसी व्यक्ति पर आघात नहीं किया जाता। यह भारत की विशेषता है। इस्लाम यह संदेश देता है कि ‘तेरा धर्म तुझे मुबारक, मेरा धर्म मुझे मुबारक। तब वर्गीय संकीर्णता पर प्रश्न नहीं उठना चाहिए।
सामाजिक सौहार्द्र कायम करने का पहला दायित्व मुसलमानों का है। कारण यह है कि इस्लाम की महान परम्पराएं हमें ऐसा करने का आदेश देती हैं। परन्तु समाज में क्या हो रहा है, ये सभी जानते हैं। समाज दिशाविहीन हो रहा है। कुछ धर्म के ठेकेदारों के कारण हमें अपने विवेक के सहारे समाज में भाईचारा पैदा करना है। भ्रमित करने वाले स्वार्थियों का मुकाबला करना है। हमें राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित होकर भारतीय होने पर गर्व करना होगा। मजहब की गलत व्याख्या के कारण मुस्लिम समाज विकास की दौड़ में काफी पीछे रह गए हंै। उन्हें भी समय के साथ पथसंचलन करना चाहिए।

1 COMMENT

  1. Prawakta com shi vishy utha rha hai.aam muslim ko aisey platform ki bahot jrurat thi.
    Islam apni jagah shi hai.is web pega par apni ray denewale ko yah malum hona chahiye ki Islam ek dharm hai.mulim ek jati hai.Jo iska anukarn karti hai.agar koi muslim Islam ka naam lekar much galat karta hai to iske liye Islam jummedaar nhi ho sakta.
    RAM ka naam lekar,bhagwa chola of kar bjp rajkaran karti hai.danga karati hai.to kyaa ham Hindu dharm ko dosh Dena thika hoga?
    Nhi,to for muslim ki kartut par Islam jummedaar nhi ho sakta.lekhko ko is par baat air likhnalikhna chahiye.

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