दिल के रोगी रखें खानपान पर ध्यान

हृदय के प्रति थोड़ी सी भी लापरवाही काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। आमतौर पर धूम्रपान व शराब के सेवन एवं मोटापे की वजह से दिल की बीमारियां पैदा होती हैं। दिल के रोगों से बचने के लिए खानपान पर भी ध्यान देना जरूरी है।हृदय के रोगी को ऐसा भोजन करना चाहिए जिसमें शुगर कम एवं फाइबर की मात्रा अधिक हो। सब्जियाँ, अनाज, दालें, अण्डे की जर्दी , स्किम्ड मिल्क , खिचड़ी, उबला चावल, फ्रूट कस्टर्ड, पीले फल, कार्नफ्लेक्स, दलिया, हरी पत्तेदार सब्जियां, फलों का रस , अंकुरित दालें, पालक का सूप, उबले आलू, केला, बीन्स, टमाटर, खीरा, मूली, गाजर, लस्सी (नमक वाली), धनिया व पोदीना की चटनी फायदेमंद है। मक्खन, मलाई वाला दूध, मीट, अंडे का पीला हिस्सा, गीम, चीज, खोया, आइसक्रीम, पनीर, मिठाई उपरोक्त सभी चीजें कम या बिल्कुल न खाएं।

इन बातों पर ध्यान दें: * हर रोज निर्धारित समय पर ही भोजन करे। * खाना हल्का और जल्दी पचने वाला होना चाहिए। * भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए नींबू, सिरका, इमली, हर्ब्स (जडी बूटियों), हल्के मसाले प्याज, लहसुन का इस्तेमाल कर सकते है। * भोजन धीरे-धीरे एवं चबाकर खायें। * अपने वजन पर नियंत्रण रखें। * अगर भूख नहीं है तो खाना न खाएं। * आपके दोपहर व रात के खाने का तीन चौथाई हिस्सा सब्जियाँ, फल व अनाज का होना चाहिए। * हर रोज 30 मिनट हृदय संबंधी कसरत करें। चाहें, तो यह कसरत एक साथ कर लें या फिर थोड़े-थोड़े अंतराल में करें। * शारीरिक गतिविधियां बढायें जैसे ऑफिस या स्टोर तक पैदल जायें, सीढियों का इस्तेमाल करें, सैर या जॉगिंग करें।
(हिस/ॠचा/राजीव /31 अक्टूबर 2008)

4 COMMENTS

  1. अनिल सहगल जी ,
    एलोपैथिक चिकित्सा की यही वास्तविकता है कि एक बार रोगी बनकर इनके पल्ले पड़े तो जीवन भर के लिए रोगी हो गये; आजीवन दवाओं के भरोसे रहना पड़ता है.
    * ये कैसा इलाज है जिसमें आजीवन दवा लेनी पड़े? यानी एलोपैथी में इलाज नहीं होता, केवल रोगों को दबाया जाता है. ये चकित्सा पैलिएटीव है क्यूरेटिव नहीं है.
    * मधुमेह, ह्रदय रोग, थाईरोईड, ऐल्ज़ईमर आदि सभी दीर्घकालिक रोगों में ज़िंदा रहने तक दवाएं खानी पड़ती हैं.
    * इससे भी बड़ी मुसीबत यह है कि दवाओं के प्रभाव से अनेकों नए रोग लग जाते हैं. पिछले १५ साल में में हज़ारों ऐसे रोगी देख चुका हूँ जो अंग्रेज़ी दवाओं के प्रभाव के कारण अनेक नए रोगों के शिकार बन चुके हैं.
    * इसप्रकार एलोपैथिक इलाज का मतलब होता है आजीवन भारी खर्च और जल्दी मृत्यु. जितना जीना, दुःख पाकर जीना.
    * आप कहेंगे कि फिर समाधान क्या है? समाधान है , तभी मैं इतने विश्वास के साथ अपनी बात कह रहा हूँ. यहाँ चर्चा ह्रदय रोग की हो रही है तो ह्रदय रोगों का पारंपरिक इलाज जान लें और आजमा लें . अब तक मैं दर्जनों रोगियों पर यह इलाज आजमा चका हूँ, कभी असफल नहीं हुआ है.
    * ज्ञातव्य है कि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के ”राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ” द्वारा ‘प्रिवैटिव कार्डियोलोजी’ पर आयोजित संवाद्शाला के अवसर पर प्रकाशित खोज पत्रों में इस विषय पर मेरा 10 पृष्ठ का पत्र प्रकाशित होने का गौरव मुझे मिला. अर्थात मेरे द्वारा दी जा रही जानकारी प्रमाणिक व देश के जाने-माने चिकित्सा विशेषज्ञों में सम्मान्य है.
    ( हिमाचल के आयुर्वेद विभाग के ओएसडी डा. राकेश पंडित जी का मैं इस उपलब्धी के लिए आभारी हूँ जिन्हों ने मुझे समय-समय पर प्रेरित, प्रोत्साहित किया व मार्गदर्शन किया )
    # अधिकाँश ह्रदय रोगी केवल एक साधारण सी दवा या वन औषध प्रयोग से स्वस्थ हो सकते हैं. $पुनर्नवा पंचांग ( मूल, पत्र. टहनियां, पुष्प आदि) का चूर्ण बनाकर १-२ चम्मच का क्वाथ / काढा बनाकर प्रतिदिन लेते रहें. रोग अधिक गंभीर अवस्था में हो तो दिन में तीन बार लें अन्यथा केवन एक बार रोज़ लें.
    – ह्रदय के लगभग सभी रोग ठीक होने के इलावा एलोपैथिक दवाओं के लीवर, किडनी आदि पर हुए दुशप्रभाव भी समाप्त हो जायेंगे.
    – अपनी पहले से चल रही दवाओं को धीरे-धीरे सुधार होने के साथ-साथ घटाते हुए बंद कर दें. पर ध्यान रखे कि पहले से चल रही दवाओं को एकदम बंद करने से कुछ समस्या हो सकती है.
    – ऑपरेशन, बाईपास, स्टंट डले होने पर भी आप इस प्रयोग को कर सकते हैं.
    – सामान्य परहेज़ करते रहें.
    ह्रदय रोगों के कारण और निवारण पर लेख प्रेषित करने का प्रयास रहेगा. पर कोई प्रश्न हो तो इसी पृष्ठ पर या ई-मेल से करें.
    ई-मेल: dr.rk.solan@gmail.कॉम
    $ पुनर्नवा की पहचान के लिए किसी आयुर्वेद के जानकार की मदद लेना ठीक रहेगा. ताजी के गुण अधिक हैं, अतः अपने गमलों में इसे उगाना चाहिए. औषध विक्रेता से बाज़ार से लेकर भी प्रयोग कर सकते हैं. पंचांग न मिले तो केवल मूल का प्रयोग करें. इसका लैटिन नाम ‘ बोएर्हैविया डिफ्युज़ा ‘ है.

  2. I am having 2 stents for the past 5 years. I have had no complaints ever since having stents.
    Doctors have advised me never to discontinue taking medicines which appear to irreducible minimum.
    I do not know whether I should categorize myself as heart patient or a normal person – at my age of 69 years.
    Not even leading Ayurved, Nature Cure, Yoga specialists appear to approve my desire to discontinue medicines for the illusory heart ailment.
    Does it mean once a heart patient always a heart patient?

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