सभी विकल्प खुले रखे सरकार

Sonia-Gandhi-and-Manmohan-Singhइसे भारत सरकार की दिग्भ्रमिता कहें या विपक्ष की ओर से पड़ता चौतरफा दबाव, कश्मीर के पुंछ में पाकिस्तान के कायरतापूर्ण हमले का सीधा असर अब दोनों देशों की बातचीत पर पड़ता नजर आ रहा है। दोनों देशों के बीच सचिव स्तर की बातचीत फिलहाल रोक दी गई है। दरअसल अक्टूबर तक हर महीने भारत और पाकिस्तान के बीच उच्च स्तरीय बातचीत की जानी थी।यह बातचीत सर क्रीक के जरिए पानी की साझेदारी पर चल रही थी। पाकिस्तान ने अगली बातचीत के लिए तारीखें सुझाई थी, लेकिन सीमा पर बढ़े तनाव के बाद भारत ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। कुल मिलाकर फिलहाल जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे यही लगता है कि मौजूदा हालात में भारत पाकिस्तान से किसी भी स्तर की बातचीत के लिए तैयार नहीं है| बड़ा सवाल यह भी है कि क्या अगले महीने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भी मनमोहन सिंह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात करेंगे? वैसे सरकार पर बन रहे चौतरफा दबाव को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि मनमोहन इस मुलाकात को भी टाल सकते हैं। हालांकि नवाज़ शरीफ ने इस्लामाबाद में सीमा पर बढ़े तनाव पर अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद दिए बयान में उम्मीद जताई है कि अगले महीने मनमोहन सिंह से होने वाली मुलाकात में विश्वास-बहाली और दूसरे मुद्दों पर चर्चा हो पाएगी, किन्तु अब तक के संकेतों से मनमोहन सिंह का रुख उनके लिए कड़वा हो सकता है| यह सर्वविदित है कि स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री स्व. पं जवाहरलाल नेहरु द्वारा १९४८ में भारत-पाक मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना ही पाकिस्तान के अस्तित्व को आज तक बचाए रखे है अतः पाकिस्तानी हुकूमत यह अच्छी तरह जानती है कि यूएन में इस मुद्दे को ले जाना भी उसके लिए सामरिक दृष्टिकोण से सही है। इससे अव्वल तो वह किसी भी संभावित युद्ध के खतरे से बाख जाएगा; दूसरे स्वयं को आतंकवाद से पीड़ित होने के मगरमच्छी आंसू उसे जांच में बरी कर देंगे और सारा दोष आतंकी संगठनों पर मढ़ दिया जाएगा जिनसे पार पाने में अमेरिका तक के पसीने छूट रहे हैं। यानी पाकिस्तान ने अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने की पूर्व नियोजित रणनीति भी तैयार कर ली है। हो सकता है नवाज़ की भी यही सोच हो? हालांकि बैठक के बाद दिए बयान में शरीफ ने पुंछ हमले का जिक्र तक नहीं किया। उन्होंने बस इतना कहा कि एलओसी पर युद्धविराम बहाल करने के लिए वह भारत के साथ मिलकर कदम उठाएंगे। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के हित में है कि हालात न बिगड़ने दिए जाएं। वहीं २६/११ का मास्टरमाइंड और जमात-उल-दावा का मुखिया हाफिज सईद भी दोनों देशों के बिगड़ते संबंधों की आड़ में दहशतगर्दी फैलाने की मंशा पाले हुए है। सूत्रों के अनुसार सईद दिल्ली में हमले की योजना को साकार कर सकता है। आईबी ने इस संबंध में दिल्ली पुलिस को एक चिट्ठी भी लिखी है। सईद ने लाहौर में हजारों लोगों के साथ ईद की नमाज अता करने के बाद एक रैली में साल २००० में दिल्ली में लालकिले पर किए गए आतंकी हमले को दोहराने की धमकी दी है| सईद का कहना है कि भारत में भी दूसरे देशों की तरह जेहाद फैलाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि जमात-उल-दावा के प्रमुख हाफिज सईद पर अमेरिका ने १० मिलियन डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है। अमेरिका का कहना है कि वो हाफिज से जुड़ी सूचनाओं पर लगातार नजर रखे हुए है जो उसे कानून के शिकंज में ले सके। २६/११ हमले को लेकर भारत में मोस्ट वांटेड और लश्कर ए तोएबा का संस्थापक सईद आज भी पाकिस्तान में एक आम नागरिक की हैसियत से कहीं भी आने-जाने को आजाद है। हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में भी हाफिज ने कहा था कि वो पाकिस्तान में कहीं भी आने-जाने को आजाद है और उसकी किस्मत अमेरिका नहीं बल्कि खुदा के हाथ में है। 
 
सईद को लेकर भारत की चिंताएं दूसरी हैं और अमेरिका की दूसरी; पर यहां सवाल यह है कि भारत-पाकिस्तान के बीच ज़ारी तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनज़र क्या दोनों देशों का बातचीत से मुंह मोड़ना उचित है? हालांकि पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि उसने एक ओर भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है तो दूसरी ओर पीठ में खंजर भौंकने में भी गुरेज नहीं किया है। पिछले ५ माह में २८ बार संघर्ष विराम का उल्लंघन पाकिस्तान की दोस्ती को परिलक्षित करने हेतु काफी है। इससे पूर्व भी ८ जनवरी २०१३ को पाक सेना ने जिस तरह संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए बर्बरता की हद को अंजाम देते हुए दो भारतीय सैनिकों के सर काट डाले थे, उससे भी शान्ति वार्ता की दोनों देशों की लगभग खत्म हो चुकी उम्मीदों को करारा झटका लगा था। यह बात और है कि वैश्विक दबाव के चलते पाकिस्तान ने भारत की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया था किन्तु शायद भारत सरकार उसके रक्तरंजित हाथों में छुपे हुए खंजर को नहीं देख पाई। खैर जो पांच सैनिक सीमा पर शहीद हुए हैं वे तो वापस नहीं आ सकते किन्तु पाकिस्तान को यूं ही माफ़ किया जाना इस बार उनकी शहादत से धोखा ही होगा। सरकार को पाकिस्तान से बातचीत जारी रहते हुए ही उसपर दबाव बनाना होगा वरना तो पाकिस्तान की सेना ऐसे कायरानापूर्ण हमलों को अंजाम देती रहेगी और यहां देश की संसद में पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को गरियाते हुए अपनी राजनीति को पुष्ट करते रहेंगे। और हां यदि इस बार पाकिस्तान से युद्ध की नौबत भी आती है तो सरकार को पीछे नहीं हटना चाहिए। हो सकता है सरकार के १० वर्षों के सारे पाप पाकिस्तान मुद्दा धो दे। चूंकि देश में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है और खासकर युवावर्ग अधिक उद्वेलित है, अतः सरकार को जनभावनाओं के अनुसार ही पाकिस्तान के विरुद्ध आचारण करना चाहिए। फिर पाकिस्तान जैसा मुल्क जिसकी कनपटी पर बंदूक लगी होने के बावजूद भी वह दुनिया के लिए नासूर बन चुका है; उसके प्रति कैसा दया भाव? क्षमा भी उसी को शोभा देती है जो उसकी कद्र करना जानता हो। एक ऐसे राष्ट्र के प्रति कैसी दया जिसने दया को ही भारत की कमजोरी समझ लिया हो? कुल मिलाकर इस बार सरकार के समक्ष हथौड़ा गर्म है, बस देर है तो सही चोट की।
सिद्धार्थ शंकर गौतम 
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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