सुवर्णा सुषमेश्वरी
कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था पर आधारित होने के कारण कृषि के विकास के लिए विभाजित भारत में भारत सरकार के द्वारा समय –समय पर अनेक कार्यक्रमों , योजनाओं का प्रारम्भ किया गया , लेकिन भारतीय कृषि के विकास के लिए ये योजनायें ढाक का पात ही साबित हुई हैं । विभाजन के पश्चात कृषि विकास हेतु अनेकों योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद भी कृषि क्षेत्र की अनिश्चिताओं का समाधान नहीं हो सका है , जिससे आज इक्कीसवीं सदी में भी भारतीय कृषि व कृषक सुरक्षित नहीं है। मोदी सरकार के द्वारा सत्ता में आने के बाद से भारत के सर्वांगीण विकास के प्रोत्साहन के लिये अनेक योजनाओं को प्रारम्भ किये जाने के क्रम में किसानों की फसल के संबंध में अनिश्चितताओं को दूर करने के लिये, भारत के प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट ने, 13 जनवरी 2016, बुधवार को, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (प्राईम मिनिस्टर क्रॉप इनश्योरेंस स्किम) को मंजूरी दे दिए जाने के बाद किसान हित के लिए चिंतित लोग कुछ संतुष्ट नजर आ रहे हैं । लोगों का कहना है कि चलो , वर्षों बाद ही सही मोदी को कृषकों की चिन्ता पर सोचने का कुछ तो ख्याल आया और आखिर तेरह जनवरी को कृषकों के त्यौहार लोहड़ी के शुभ अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री, नरेंन्द्र मोदी ने किसानों के लिए तौहफा की घोषणा कर ही दी। अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से किसानों की फसल को प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई हानि को किसानों के प्रीमियम का भुगतान देकर एक सीमा तक कम करने का कार्य किया जा सकेगा ।
उल्लेखनीय है कि भारत के प्रधानमंत्री, नरेंन्द्र मोदी के द्वारा प्रस्तावित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के शुरु करने के प्रस्ताव को 13 जनवरी 2016, को केन्द्रीय मंत्रीपरिषद ने अपनी मंजूरी दी है। इस योजना के लिये 8,800 करोड़ रुपयों को खर्च किया जायेगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अन्तर्गत, किसानों को बीमा कम्पनियों द्वारा निश्चित, खरीफ की फसल के लिये 2% प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान करेगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पूरी तरह से किसानों के हित को ध्यान में रख कर बनायी गयी है। इसमें प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हुई फसल के खिलाफ किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली बीमा की किस्तों को बहुत नीचा रखा गया है, जिनका प्रत्येक स्तर का किसान आसानी से भुगतान कर सके। यह योजना न केवल खरीफ और रबी की फसलों को बल्कि वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी सुरक्षा प्रदान करती है, वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिये किसानों को 5% प्रीमियम (किस्त) का भुगतान करना होगा। सरकारी सब्सिडी पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यदि बचा हुआ प्रीमियम 90% होता है तो यह सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। शेष प्रीमियम बीमा कम्पनियों को सरकार द्वारा दिया जायेगा। यह राज्य तथा केन्द्रीय सरकार में बराबर-बराबर बाँटा जायेगा। यह योजना राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एन.ए.आई.एस.) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एम.एन.ए.आई.एस.) का स्थान लेती है। इसकी प्रीमियम दर दोनों योजनाओं से बहुत कम है साथ ही इन दोनों योजनाओं की तुलना में पूरी बीमा राशि को कवर करती है। इससे पहले की योजनाओं में प्रीमियम दर को ढकने का प्रावधान था जिसके परिणामस्वरुप किसानों के लिये भुगतान के कम दावे पेश किये जाते थे। ये कैपिंग सरकारी सब्सिडी प्रीमियम के खर्च को सीमित करने के लिये थी, जिसे अब हटा दिया गया है और किसान को बिना किसी कमी के दावा की गयी राशी के खिलाफ पूरा दावा मिल जायेगा। प्रधानमंत्री फसल योजना के अन्तर्गत तकनीकी का अनिवार्य प्रयोग किया जायेगा, जिससे किसान सिर्फ मोबाईल के माध्यम से अपनी फसल के नुकसान के बारें में तुरंत आंकलन कर सकता है। सभी प्रकार की फसलों के प्रीमियम को निर्धारित करते हुये सभी प्रकार की फसलों के लिये बीमा योजना को लागू करने वाली प्रधानमंत्री फसल योजना के अन्तर्गत आने वाले 3 सालों के अन्तर्गत सरकार द्वारा 8,800 करोड़ खर्च करने के साथ ही 50% किसानों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है। मनुष्य द्वारा निर्मित आपदाओं जैसे- आग लगना, चोरी होना, सेंध लगना आदि को इस योजना के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जाता है। प्रीमियम की दरों में एकरुपता लाने के लिये, भारत में सभी जिलों को समूहों में दीर्घकालीन आधार पर बांट दिया जायेगा। यह नयी फसल बीमा योजना एक राष्ट्र एक योजना विषय पर आधारित है। ये पुरानी योजनाओं की सभी अच्छाईयों को धारण करते हुये उन योजनाओं की कमियों और बुराईयों को दूर करता है।
दरअसल कृषि प्रधान भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भारत सरकार ने समय-समय पर कृषि के विकास के लिये गहन कृषि विकास कार्यक्रम (1960-61), गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (1964-65), हरित क्रान्ति (1966-67), सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (1973) आदि अनेक योजनाओं को शुरु किया। लेकिन इन सभी योजनाओं के बाद भी कृषि क्षेत्र की अनिश्चिताओं का समाधान नहीं हुआ, जिससे आज 21वीं सदी में भी किसान सुरक्षित नहीं है। इन अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए ही नई फसल वीमा आरम्भ करने की आवश्यकता पड़ी । विश्व में सबसे अनोखी अर्थव्यवस्था धारण करने वाले भारतीय अर्थव्यवस्था को कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था कहा जाता है क्योंकि भारत की लगभग 71% जनसंख्या कृषि आधारित उद्योगों से अपना जीवन -यापन करती है। पूरे विश्व में लगभग 1.5% खाद्य उत्पादकों का निर्यात भी करता है। भारत दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पादक देश है जो सकल घरेलू उत्पादन का लगभग 14.2% आय का भाग रखता है। इस तरह यह स्पष्ट है कि भारत की लगभग आधी से ज्यादा जनसंख्या और देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 14% आय का भाग कृषि से प्राप्त होता है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार मिलता है। अतः कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कही जाती है। कृषि की इतनी अधिक महत्ता के बाद भी भारतीय कृषि, प्रकृति की अनिश्चित कालीन दशा पर निर्भर है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारतीय सरकार ने देश के विकास के लिये औद्योगिकीकरण पर विशेष बल दिया। जिसमें कहीं न कहीं कृषि पिछड़ गयी, हांलाकि, कृषि के विकास के लिये भी भारतीय सरकार ने अनेक कार्यक्रम चलाये जिसमें हरित क्रान्ति (1966-67 में शुरु) किसानों की फसल के लिये सबसे बड़ी योजना थी, जिसने कृषि के क्षेत्र में एक नयी क्रान्ति को जन्म दिया और भारत में गिरती हुयी कृषि की अवस्था में सुधार किया। लेकिन सरकार द्वारा किये गये इन प्रयासों के बाद भी भारतीय कृषि संरचना की स्वरुप में बदलाव नहीं हुआ। हालाँकि भारत में कृषि के विकास से संबंधित अनेक योजनाएं अस्तित्व में है, किन्तु वो पूरी तरह से किसानों के कृषि संबंधित जोखिमों और अनिश्चिताओं को कम नहीं करती हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बहुत हद तक सूखा, बाढ़, बारिश आदि प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को सुरक्षा प्रदान करती है। यह पुरानी योजनाओं में व्याप्त बुराईयों को दूर करके बीमा प्रदान करने वाले क्षेत्रों और बीमा के अन्तगर्त आने वाली सभी फसलों की सही-सही व्याख्या करती है। कृषकों का कहना है, यह योजना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण योजना है क्योंकि ये भारतीय अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार कृषि से जुड़ी हुई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसे समय में अस्तित्व में आयी है जब भारत दीर्घकालीन ग्रामीण संकट का सामना कर रहा है, इसलिये इस योजना का महत्व खुद-ब-खुद बढ़ जाता है। इस बीमा योजना की प्रीमियम की दर बहुत कम है जिससे किसान इसकी किस्तों का भुगतान आसानी से कर सकेंगे। यह योजना सभी प्रकार की फसलों को बीमा क्षेत्र में शामिल करती है, जिससे सभी किसान किसी भी फसल के उत्पादन के समय अनिश्चिताओं से मुक्त होकर जोखिम वाली फसलों का भी उत्पादन करेंगे। बहरहाल यह योजना किसानों को मनोवैज्ञानिक रुप से स्वस्थ्य बनायेगी। जिससे किसानों में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होगा परिणामस्वरूप किसानों की कार्यक्षमता में सुधार होगा।और निश्चितरूपेण भविष्य में सकल घरेलू उत्पादकता को बढ़ाने वाली सिद्ध होगी । जिसके कारण सूखे और बाढ़ के कारण आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में कमी आयेगी।
नमस्कार आपका लेख बहुत अच्छा हैं, क्या हम इसे आपकी अनुमति से हमारे बैंक की राजभाषा दर्पण पत्रिका में छाप सकते हैं।