आंखों देखा हाल : बनारस में केजरीवाल की चौपाल

विपिन किशोर सिन्‍हा

kejriwal sabhaभाजपा के प्रधान मंत्री के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ ताल ठोंक रहे आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल दिनांक १७-४-१४ को दिन भर बनारस और आसपास के क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे। उन्हें हर जगह खट्टे-मीठे और तीखे अनुभवों से गुजरना पड़ा। उनके साथ भ्रमण करने वाली टीम में स्थानीय कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व लगभग शून्य था। वे हमेशा दिल्ली से आये कार्यकर्ताओं के घेरे में ही रहे जो आप की टोपी लगाए थे। कई स्थानों पर उनको सुनने वालों से अधिक भीड़ सुरक्षा बलों की थी। जिन स्थानों पर उन्होंने जनता से सीधा संवाद स्थापित किया, उनमें से कुछ के दृश्य —–

लंका – काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से लेकर अस्सी तक फैले क्षेत्र को लंका कहा जाता है। विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में लंका से संबन्धित दृश्यों का मंचन कभी यही किया जाता था। इसीलिये इस जगह का नाम लंका पड़ा जो आज भी अपरिवर्तित है। राजनीतिक दृष्टि से यह बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। यहां से आप पूरे बनारस की नब्ज़ टटोल सकते हैं। अन्ना आन्दोलन के दौरान यहा २४ घंटे सभायें हुआ करती थीं और वातावरण अन्ना और केजरीवाल के ज़िन्दाबाद के नारों से गूंजता रहता था। भ्रष्टाचार के विरोध में नित्य ही प्रभात फेरी निकलती थीं और सायं जुलूस। लंका में रविदास गेट पर बनारसी पान की सर्वाधिक चर्चित केशव पान भंडार है। यहां आकर पान खाना बनारसी ग्लैमर का अंग बन चुका है। कई फिल्मी सितारे और राजनेता स्वयं चलकर केशव की दूकान पर खड़े होकर पान खा चुके हैं जिनकी तस्वीरें दूकानदार ने बड़े करीने से अपनी दूकान में लगा रखी है। ऐसे में केजरीवाल भला केशव की दूकान का पान खाने के लोभ से अपने को कैसे रोक पाते? वे पहुंच गये केशव पान भंडार, पान खाने। दूकान पर हमेशा १५-२० लोगों की भीड़ रहती है। पान नंबर से ही मिलता है। केजरीवाल को भी पान के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस समय का उपयोग उन्होंने लोगों की राय जानने और नरेन्द्र मोदी को गाली देने के लिये करना शुरु किया। देखते ही देखते माहौल गरम हो गया। मोदी के लिये अभद्र भाषा का इस्तेमाल सुनकर स्थानीय जनता भड़क उठी। अरविन्द केजरीवाल को चप्पल-जूते दिखाये गये, उनपर टमाटर और अंडे फेंके गये, उनके खिलाफ़ जबर्दस्त नारेबाज़ी आरंभ हो गई। डरकर केजरीवाल को बेसमेन्ट में शरण लेनी पड़ी। अगर पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज नहीं किया होता, तो कुछ भी अप्रत्याशित हो सकता था। पुलिस ने बड़ी कठिनाई से उन्हें बाहर निकाला। केजरीवाल ने केशव की दूकान से मीठा पान खाया, सादा पान खाया या सूरती वाला कड़वा पान खाया, यह तो वही जाने, लेकिन इस घटना की चर्चा मुंह में पान घुलाते हुए बनारसी हफ़्तों करेंगे।

दिन के समय केजरीवाल ने बनारस के गांवों का दौरा किया। भीषमपुर गांव में चौपाल के दौरान केजरीवाल ने लोगों से पूछा कि कितने लोग नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। अधिकांश लोगों ने हाथ उठाए, तो उन्होंने दूसरा सवाल जड़ा कि वे मोदी को क्यों पसन्द करते हैं? इसपर किसी ने मोदी को डिसिजन मेकर, तो किसी ने क्षमता वाला नेता कहा। कुछ लोगों ने कहा कि वे भाजपा के पक्ष में नहीं हैं लेकिन मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं क्योंकि वे भारत का विकास चाहते हैं। केजरीवाल ने जब अपने बारे में जनता की राय पूछी तो लोगों ने बेबाकी से कहा कि उनमें अनुभव और हिम्मत की कमी है। वे जिम्मेदारी संभालने के बदले भागना पसन्द करते हैं। फिर क्या था दिल्ली से आए केजरीवाल के समर्थकों और स्थानीय लोगों के बीच लहज़ा इतना सख्त हो गया कि माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए सुरक्षाकर्मियों को चौपाल बीच में ही रुकवानी पड़ी।

गुरुवार को ही जलालपुर, रसूलहा, बरस्तां, बरियारपुर और मुबारकपुर में भी केजरीवाल ने चौपाल लगाई। इस दौरान भी उन्हें तीखे सवालों का सामना करना पड़ा। जलालपुर में बेरुका निवासी सत्य नारायण सिंह ने केजरीवाल से पूछा कि आपने अपने बच्चों की कसम खाई थी, बावजूद इसके कांग्रेस से समर्थन क्यों लिया? अरविन्द ने अपने उत्तर से उन्हें संतुष्ट करने का भरसक प्रयास किया लेकिन बात और उलझती गई। सत्यनारायण के तेवर सख्त होने पर पुलिस ने उन्हें चौपाल से बाहर कर दिया। केजरीवाल ने प्रत्येक चौपाल में मोदी पर सीधा हमला किया और हर जगह उन्हें भयंकर विरोध का सामना करना पड़ा। सभी चौपालों में खास बात यह रही कि जन-संवाद में अधिकतर लोग आप की टोपी पहने थे लेकिन सवाल-जवाब के दौरान उनका ही लहज़ा इतना सख्त हो गया कि हर चौपाल में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

32 COMMENTS

  1. आर.सिंह. जी केजरीवाल से अत्यधिक प्रभावित है. मुझे उनके भोलेपन पर दया आती है.

    • एक युवक को उस आदमी के भोलेपन पर दया करने की आवश्यकता तो नहीं, जो कॅम से कॅम स्वतंत्र भारत के उतार चढ़ाव और नेताओं के बॅड बोला पॅन को पच्चास के दशक से देखता आ रहा है।रही बात किसी व्यक्ति विशेष से प्रभावित होने की बात,तो वह उस व्यक्ति विशेष पर नहीं ,बल्कि उसके विचारों और चरित्र पर निर्भर करता है।प्रवक्ता के पृष्ठों पर मेरी जितनी भी टिप्पणियाँ या मेरी रचनाएं हैं,वे इसको प्रमाणित करती है। ऐसे बहुत बार मेरे दूसरों को समझाने के प्रयत्न उसी तरह व्यर्थ हो जाते हैं, जैसे की कुत्ते की दूम सीधी करने के प्रयत्न,पर फिर भी मैं प्रयत्न करता रहता हूँ।

      • हिमवंत के विचार वास्तविकता के विचार हैं क्योंकि विनोबा भावे के “गीता प्रवचन” में बकरी की मैं मैं स्वरूप वातावरण में पल रहे भारतीय युवा अब ऊब से गये है और कुत्ते की दुम सीधी करने के अप्राकृतिक प्रयास में समय न व्यर्थ कर देश की दयनीय दशा को सुधारने का सोचते हैं| जहां तक मुहावरे की बात है, तनिक सोचें दुम का टेडापन (यदि यह आपको घृणित प्रतीत होता है) सचमुच देश में दयनीय दशा ही है| इस टेड़ेपन का सीधा संबंध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कुशासन से है और इसे सीधा करने जैसा भीमकाय कार्य बच्चों से नहीं हो सकता| उन्हें दिशा देनी होगी| अभी तो उनके हाथों से झाड़ू लेकर उन्हें पाठशाला जाने को कहो| चलो, हम मंदिर चलें| हिमवंत और उनके युवा साथियों को बहुत सा काम करना है|

        • मंदिर किसलिये? पत्थर के सामने शीश झुकाने या उसकी गंदगी साफ करने? एक लघु कथा का रूपांतरण आप ही जैसे युवाओं के लिये किया था। यह लिंक देखिये।https://www.pravakta.com/short-stories-the-priest-of-the-temple
          रही बात कुत्ते की दुम सीधी करने की,तो वह मुहावरा भारत के यथास्थिति पसंद करने वालों के लिये है। भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग,जिसमे युवा भी शामिल हैं,यथास्थिति से चिपटे रहना चाहता है और उन्हे इस स्थिति से इतना प्यार है कि वे किसी भी नवीनता को स्वीकार नहीं करना चाहते।इस पर मैं इतना लिख चुका हूँ कि अब लिखने या उसको दुहराने की इच्छा भी नहीं हो रही है।मुझे इन्ही पृष्ठों में बड़े बड़े विद्वानों द्वारा चुनौती दी गयी है कि आपके पास नमो के विकास माडल के विरुद्ध कहने के लिये कुछ भी नहीं है और जब मैने वह चुनौती स्वीकार करके सप्रमाण उसकी पोल खोली है,तो उत्तर नदारद हो गया है। नमो को कांग्रेस से बेहतर रेप्लेसमेंट ( बदलाव )मानने में मुझे कोई एतराज नहीं है।इन्ही पन्नो में मैने लिखा है कि नमो की तुलना रागा से करके आपलोग नमो का कद छोटा कर रहे हैं,पर जब बात आती है सर्वांगीण विकास की ,तो मुझे विकास का यह माडल अधूरा लगता है।इसी लिये मैं नमो को विकल्प नहीं मानता।नमो या संसार के किसी भी आर्थिक माडल का विकल्प मैं महात्मा गाँधी या पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के आर्थिक माडल को मानता हूँ। आआप उसी माडल को अपना कर आगे बढ़ना चाहती है,इसी लिये मैं उस पार्टी के साथ हूँ। मेरे लिये केवल विचार और सिद्धांत का महत्व है।व्यक्ति गौड़ है।व्यक्ति के रूप में भी ऐसे नमो मेरे आदर्श नहीं हो सकते,क्योंकि मेरी निगाह में गृहष्ठ धर्म का पालन और माता पिता की सेवा का कॅम महत्व नहीं है। जो आदमी बारह वर्षों से मुख्य मंत्री है।अगर वह कहता है कि मेरी माँ आज भी ८*८ के कमरे में रहती है,तो मेरे लिये यह गर्व करने की नहीं डूब मरने की बात है।

          • रमश सिंह जी, यदि मंदिर नहीं तो चलो चौपाल पर ही जा कर बैठते हैं| मैं आयु में आप से कुछ वर्ष बड़ा ही हूँ। आपके विस्तृत अभ्यास और मुझ पंजाबी गंवार के समझे-बूझे विचारों के लेन देन से बुढ़ापे को शिष्टाचारपूर्वक और मनोहर ढंग से बिताने की युक्ति ढूँढ निकालेंगे|

          • आपको मंदिर नहीं तो चौपाल पर आ बुढ़ापे को शिष्टाचार और मनोहर ढंग से काटने के लिए अपनी टिप्पणी पर जो निमंत्रण दिया था वह अभी आपके समक्ष नहीं आया है लेकिन मैं आपको अच्छी नीयत (आपकी मंदिर के पुजारी की कहानी) से सीख देने के विचार से फिर यहाँ लौट आया हूँ| आप मंदिर में मर्यादा पुरुषोतम श्री भगवान राम जी की प्रतिमा को पत्थर समझ शीश नहीं झुकायेंगे लेकिन आर्य समाज में निष्ठा रखते आप अपने तर्क की पुष्टि के लिए राम चरित मानस का उद्धरण अवश्य देंगे| अब बुढ़ापे की हठधर्मी को तनिक छोड़ सोचें कि क्या यह ही हिंदुत्व नहीं है? शेष चौपाल पर|

      • दूध का जला छाछ को भी फूंक कर पीता है. आपकी अपेक्षाओं और विगत में भारत पर शाषण करने वालो ने जो दिया उसके बीच का फर्क बड़ा था, लगता है की आपका भरोसा चुक गया है. लेकिन मैं आपसे थोड़ा जवान हूँ, मैंने उतने पतझड़ नहीं देखे जितने आपने देखे है. मै आशाओं से भरा हूँ. लेकिन मैं किसी ऐसे आदमी पर विश्वास नहीं कर सकता जिसकी पैदाइश विदेशी धन से चलने वाले आई.एन.जी.ओ. के रूप में हुई, मै ऐसे आदमी पर विश्वास नहीं कर सकता जिसने वादें तो ढेरों किए लेकिन दिल्ली की सत्ता मिलने के बाद बड़ी सत्ता हासिल करने के लिए भाग खड़ा हुआ. १२५ करोड़ लोगो ने तय किया है की नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेगे. मुझे विश्वास है की वह कुछ बेहतर अवश्य देंगे. भारत सम्भावनाओं के ढेर पर बैठा है. जरूरत है राष्ट्रवादी सोच और संकल्प की.

  2. सिन्हा जी अच्छा हुआ आपकी मेरे बारे में ग़लतफहमी दूर हो गयी. मैं तो स्वयं अपने को समझदार नहीं मानता. आज के सब समझदार नमो की तलवे चाटने की होड़ में लगे हुए हैं,उस अवस्था में भी जो व्यक्ति उस महान अवतार के विरुद्ध आवाज़ उठाता है,वह समझदार हो ही नहीं सकता. न मैं इतना प्रसिद्ध हूँ न मुझसे किसी को कुछ अपेक्षा है,अतः थप्पड़ खाने की उम्मीद तो नहीं है. अगर किसी ने यह हिमाकत कर ही दीतो मैं उसे एक के बदले दो थप्पड़ लगाने के बाद पूछूँगा कि उसने मुझे थप्पड़ क्यों मारा? रही समझने की और समझाने की बात ,तो जो लोग चारण की भूमिका निभा रहे हैं और जिनके विचारों की सुई एक जगह अटकी हुई है,वे सचमुच मुझ जैसे लोगों को नहीं समझा सकते.

      • प्रमोद जी ,बहुत लोगों ने आआप को कांग्रेस का बी टीम कहा है,पर आज तक किसी ने इसको सप्रमाण सिद्ध नहीं किया। उसमे आपने अपना नाम भी लिखवा लिया।ऐसे कांग्रेसी इसको भाजपा का बी टीम कहते हैं। मुझे तो राम चरित मानस की यह चौपाई याद आ रही है। जाकि रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

        • आप कांग्रेस का एजेंट है, क्या इसे अब भी सिद्ध करने की जरुरत है? AK-49 और आपको स्मृति-दोष हो सकता है लेकिन भारत की जनता को नहीं. दिल्ली में 49 दिन की अल्पमत सरकार किसके समर्थन से चली?

  3. शिवेंद्र मोहन जी,मैं नहीं मानता कि किसी ख़ास दिशा में अनुभव का सीधा सम्बन्ध उम्र से है.मेरे विचार से आपलोगों की सुई एक जगह पर इसलिए अंटकी हुई है,क्योंकि वह आपलोगों के लिए सुविधा जनक है. जो लोग अपनी बात कहते समय अन्य सभी पहलुओं को ताक पर रख देते हैं,उनके लिए मैं भर्तृहरि के नीति शतक के इस श्लोक का प्रयोग करता हूँ.अगर मैं सप्रमाण यह कहता हूँ कि Modi’s turf flops on edu. Health ,तो मैं यह उम्मीद करता हूँ कि आप सप्रमाण कहें कि यह गलत है.अगर मैं किसी न्यूज चॅनेल का हवाला देकर और नमो के वक्तव्य को दुहरा कर यह कहता हूँ कि गुजरात में बहुत अधिक संख्या में बच्चे खासकर बच्चियां कुपोषण की शिकार है,तो मैं अपेक्षा करता हूँ कि आप इसे स्वीकार करें या सप्रमाण इसको गलत सिद्ध करे. इसी तरह के बहुत से बाते हैं,जिन्हे मैं अपनी टिप्पणियों या आलेखों के जरिये कहता रहता हूँ.मेरा विचार गलत भी हो सकता है,पर इसे गलत ठहराने के लिए आपको प्रमाण देना पड़ेगा.यह बहस ऐसे ही चलती रहेगी,क्योंकि मैं विचारोंका आदर करता हूँ,किसी व्यक्ति विशेष का नहीं. सबसे बड़ी बात यह है कि मैं अपने को आज भी एक विद्यार्थी मानता हूँ.और नयी से नयी चीज सीखना चाहता हूँ. मैंने सीखा है और मैं जहां भी रहा हूँ,अपनी टीम को सिखाया है कि मैनेजमेंट में सबसे निकृष्ट शब्द मैं है.जब कोई बकरी की तरह मैं मैं करता है या यह कहता है कि सबको भूल जाओ ,केवल मुझे याद रखो,क्योंकि मुझे ईश्वर ने भेजा है ,तो सोचना पड़ता है,खासकर उस व्यक्ति के लिए ,जो हेलीकॉप्टर और वायुयान के नीचे पैर नहीं रखता.. जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप में अपने को अविवाहित घोषित करता है.आज भी जब यह जग जाहिर हो चूका है कि वह विवाहित है,पत्नी को अज्ञात स्थान पर भेज देता है,जो फक्र के साथ कहता है कि आज भी मेरी माँ गरीबी में दिन काट रही है,उसके लिए मेरे जैसे लोग तो श्रद्धा भाव नहीं ही रखेंगे और न यह विश्वास करेंगे कि उस व्यक्ति से देश का कुछ भला होगा. ऐसे ऐसा लिखना या बोलना मेरे जैसों के लिए भारी भी पड़ सकता है,पर अब मैं उम्र के उस पड़ाव पर हूँ कि यह भारी और हल्का मेरे लिए बेमानी हो गया है. मौत से तो खैर मैं ऐसे भी नहीं डरता,क्योंकि १९८८ से मैं ऐसी अग्नि दुर्घटना से निकल कर बाहर आया हूँ,जहां से उसके पहले कोई बाहर नहीं आया था.शिवेंद्र जी,ऐसे भी न मैं सफल व्यक्ति हूँ न व्यवहारिक. स्पेड को स्पेड कहने में विश्वास रखता हूँ.
    रही बात आम आदमी पार्टी के उद्देश्यों की ,तो पार्टी अभी भी अपने उद्देश्य से नहीं भटकी है,इसी लिए नमो के विरुद्ध यदि अरविन्द हैं ,तो राहुल के विरुद्ध कुमार विश्वास हैं,क्योंकि भ्रष्टाचार के मामले में दोनों पार्टियोंमें आआप की निगाह में उन्नीस बीस का ही फर्क है,अतः दोनों पार्टियों के अतः दोनों पार्टियों के चेहरे को हराने की पार्टी भरपूर कोशिश कर रही है
    एक बात और आप अपनी तरफ से चाहे जो टिप्पणी करें .अब मैं इस सम्बन्ध में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा.

    • जब बोलना जानते हैं तो सुनने का भी दम होना चाहिए। आप लोगों की सबसे बड़ी यही कमजोरी हैं सिर्फ बोलना जानते हैं, जवाब सुनना आप लोगों की आदत नहीं है और यही मैंने अपनी पिछली टिप्पणी में भी लिखा था।

      “आप” (आआपा) का सिर्फ यही एक एजेंडा है आरोप लगाओ भाग जाओ, और आप बखूबी इसी का पालन कर रहे हैं। आप लोग पार्टी से बंधे हैं और सिर्फ उतना ही देख सकते हैं जितना आपको देखने सुनने की इजाजत है। जैसे घोड़े को चमड़े चश्मा लगा दिया जाता है की वो सिर्फ सामने ही देखे, उससे इतर देखने की उसको आजादी नहीं है. ठीक वही हाल आप लोगों का है। अंध भक्त और अंधी भक्ति में यही अंतर है। अंध भक्त हो हल्ले और गुल गपाड़े में रास्ता भूलता है लेकिन अंधी भक्ति वाला सब कुछ जानते सुनते हुए भी बुद्धि का इस्तेमाल बंद कर एक खास मकसद के पीछे चल देता है। और यही हाल आप लोगों का है।

      बेवक्त यार मेरा नाराज हो गया।
      मैंने तो उसे बस आइना दिखाया था।।


      सादर,

      • शिवेंद्र मोहन जी,अगर तर्क संगत बात की जाए तो मैं हमेशा सुनने और बोलने केलिए तैयार हूँ,पर अगर किसी का मष्तिष्क पूर्वाग्रह पूर्ण हो तो,वहां विचार पूर्ण वार्तालाप का कोई स्थान नहीं रहता .अभी जहाँ मैंने वार्तालाप बंद करने की बात कही है,वहां चंद प्रश्न उठाये हैं .अच्छा होता अगर आप उन प्रश्नो का समुचित उत्तर देते हुए वार्तालाप को आगे बढ़ाते,पर आपने वह तो किया नहीं ,अपनी राग अलापने लगे ,जिसमे कुछ भी नया नहीं है,अतः इस तरह के वार्तालाप को आगे बढ़ाने में केवल समय की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं.

  4. snatak hone se ya bada hone se koi gyata nahi ban jata bat hai koman sens ki usase aage ek general sense hoti hai vo sabhi jivo me hoti hai jaise ki bhay ke karan bhagna pashu or insan me dono me ye general sens hai magar bhed isme apvad hai —— aap ki bato se muje aisa lagta hai ki aap ki chal bhed chal hai aap idhar udhar ki kuch nahi sochte —iske liye aap ko kya kahu ap me or mujme 9 sal ka antar hai —–mai to sirf itna janta hun ki aaj desh ko majbut netrutv ki jarurat hai jo aap ka kejrival kadapi nahi de sakta !!!!

    sirf or sirf jiski subah-sham- desh ke liye ho vohi de sakta hai vo hai narendra modi-

  5. मान्यवर समीर जी,आपके अंग्रेजी टिप्पणी का हिंदी में उत्तर दे रहा हूँ,बुरा तो नहीं मानियेगा. अगर आप किसी को देश द्रोही इसलिए कह रहे हैं कि आपके वह आपके आराध्य नमो का विरोध कर रहा है तो मैं उस श्रेणी में जाने के लिए तैयार हूँ.ऐसे देश द्रोही कौन है ,इसपर मेरा एक आलेख भी प्रवक्ता डाट कम पर मौजूद है,जिसका लिंक है:https://www.pravakta.com/who-traitor
    मोदी के विरोध के कारणों पर प्रकाश डालते हुए ,मेरे एक या दो आलेख के अतिरिक्त मेरी अनगिनत टिप्पणियां भी है.
    अगर परिपक्वता का मतलब लकीर का फ़क़ीर बनना या भेंड़ों की तरह जिधर झुण्ड जा रहा हो,उसी दिशा में चल देना है,तो मुझमे यह परिपक्वता कभी नहीं आएगी. मैं अधिक अनुभव का भी दावा नहीं करता,क्योंकि कोई पहले इस दुनिया में आ गया ,इसीलिये वह ज्यादा अनुभवी हो गया यह मैं नहीं मानता. ऐसे मैं आज भी अपने को मैनजमेंट का छात्र मानता हूँ,जहां “मैं “शब्द सबसे निम्न श्रेणी में आता है,अतः हर बात में बकरी तरह मैं मैं करने वाले से मुझे ऐसे भी चिढ है.

  6. उपकार फिल्म का एक डायलागदोहराने की इच्छा हो रही है,” मैं दिन में वह बोलता हूँ,जो होना चाहिए. रात में वह कहता हूँ,जो हो रहा है” मैं इस हो रहा है और होना चाहिए को एक साथ रख कर ,सही हो या गलत अपने ढंग से विश्लेषण करता हूँ.आर्थिक प्रशासनिक और सामाजिक विचारों में मैं एक तरह से गांधियन हूँ.मेरे ख्याल से पंडित दीन दयाल उपाध्याय भी बहुत हद तक उन्ही विचार धाराओं को मान्यता देते थे,खासकर आर्थिक और प्रशासनिक विचारों का. मैं भारत के उत्थान और विकास के लिए उनको रामवाण समझता हूँ. मेरे विचार से अभी तक जो भी हो रहा है या नमो जो कह रहे हैं,वह उन विचार धाराओं से अलग हो रहा हैऔर हमारा राष्ट्र दो आयातित विचार धाराओं के बीच पेंडुलम की तरह झूल रहा है. अभी तक कोई भी पार्टी या दल पेंडुलम के इस निर्धारित पथ सेअलग नहीं हुआ. आम आदमी पार्टी ने जो पथ अख्तियार किया है, वह इस पेंडुलम वाले पथ से अलग है.वह उन्हीं दोनों महिषियों द्वारा निर्धारित पथ पर आधारित है. अनुभवहीनता उनके मार्ग का रोड़ा अवश्य बन रही है,पर अभी तक मुझे वे अपने असली उद्देश्य से भटकते नहीं दिखाए दे रहे हैं. इस सन्दर्भ में आप यह लिंक भी देखिये. https://www.pravakta.com/short-stories-the-priest-of-the-temple

  7. विपिन किशोर सिन्हा जी,अगर आप बुरा न माने ,तो एक बात पूछूँ? मेरे विचार से आँखों देखा हाल लिखने के लिए उस स्थान पर उपस्थिति आवश्यक है.महाभारत में संजय भले ही इसके अपवाद है,,तो मैं यह मान लूँ कि आप उस दिन अरविन्द केजरीवाल के दल के साथ हर जगह मौजूद थे?

  8. किसी का विरोध करके कोई भी अच्छा आदमी नहीं कहलवा सकता है केजरी वाल हर बार नरेन्द्र मोदी को बुरा कहकर खुद बुरा होते जा रहे है । जो इंसान खुद अच्छा होगा उसको दुसरों मे भी अच्छाइयां नजर आएगी और जो स्वयं बुरा होगा उसे दुसरों मे भी बुराइयां नजर आएगी। जिसके पास जैसा दिमाग होगा वो वैसा ही सोचेगा।

  9. क्या वाकई यह आँखों देखा हाल है ?फिर तो ‘आप’ के लिए विचारणीय बात है.वैसे ‘आप’ को ज्यादा से ज्यादा दो या तीन सीटें मिलेंगी यदि मिली तो.लेकिन केजरीवाल के लिए यह बड़ा झटका होगा जो उन्होंने छब्बे जी बनने के लिए खुद ही आमंत्रित किया.डेल्ही में बैठ सरकार चलाते खुद को सिद्ध करते तब बात थी.जरुरी नहीं की एक आंदोलन कारी एक अच्छा नेता भी हो, यह अब केजरीवाल को समझ लेना चाहिए.

  10. Kejariwal is an agent of Americans and takes money from anti India organisations which is now proved beyond any doubt. I think he has no trust in democracy and one can not trust him the way he took support from Congress and ran away from Delhi so he is mentally unstable like Mohammad Toughalak.
    We have another half mad politician who wants to become P.M. of India yestarday..
    He has betrayed Anna so he can dump anybody without second thought so dump him now before it he ruins India.

    • डाक्टर शर्मा,आपकी इस बेबुनियाद टिप्पणी से दो तीन बातें उभर कर सामने आई हैं.अमेरिका का एजेंट कहना हम भारतीयों का तकिया कलाम है.पहले जो नेहरू और बाद में इंदिरा का विरोध करता था,उसे अमेरिका का एजेंट कहा जाता था. बाद में ऐसे लोगों को सी.आई.ए. का भी एजेंट कहा जानेलगा,पर न तब किसी के पास प्रमाण था और न अब है. आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का सपोर्ट लिया नहीं,बल्कि उसपर सपोर्ट थोपा गया.आआप ने जब तक हो सका ,उसको जनता की भलाई के उपयोग किया,पर जब कांग्रेस ने देखा कि यह दाव उल्टा पड़ाऔर आआप की लोकप्रियता बढ़ने लगी ,तो उसके कान खड़े हुए और भाजपा के साथ मिलकर आआप को अल्पमत में ला दिया.अगर आआप का मंत्रिमंडल इस्तीफा नहीं देता तो उन्हें कुर्सी से चिपके रहने वालों की उपाधि दी जाती.अब जब उन्होंने कुर्सी छोड़ दी तो उन्हें भगोड़ा कहा जाने लगा.यह हुआ न चिट भी मेरी पट्ट भी मेरी. नमो अगर गुजरात के मुख्य मंत्री रहकर एम.पी के लिए चुनाव लड़ सकते हैं,तो अरविन्द केजरीवाल भी ऐसा कर सकते थे. रही बात अन्ना को धोखा देने दी,तो आप जैसे लोग समझ बूझ कर इसको उछाल रहे हैं.३ अगस्त २०१२ को अन्ना ने स्वयं कहा थी कि अब विकल्प जरूरी है.उनका यह वक्तव्य अभी भी यु ट्यूब पर मौजूद है.भाजपा के गाजियावाद के प्रत्याशी इसके साक्षी हैं. अन्ना की पूरी कलई तो उस समय खुल गयी,जब उन्होंने त्रिमूल कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही और रामलीला मैदान में सभा का आयोजन करा कर स्वयं कन्नी काट गए. तब भी आपलोग अन्ना हजारे की बड़ाई और अरविन्द के धोखे की गाथा गाये जा रहे हैं. उसके बाद तो आपलोगों की समझ में यह बात आ जानी चाहिए थी कि वास्तव में अरविन्द ने अन्ना को नहीं,बल्कि अन्ना ने अरविन्द को धोखा दिया.

      • आर सिंह जी। मैं आपका कमेन्ट पढ़ता हूँ लेकिन उत्तर नहीं देता हूँ। कारण यह है की अन्य पाठक ही सटीक जवाब भेज देते हैं। अरवीनद केजरीवाल की तरह ही आप भी बेसिरपैर का आरोप लगाते है। क्या आप ज्योतिषाचार्य हैं जो चुनाव के बाद की भविश्यवाणी कर रहे है? हमने जो समीक्षा की है वह केजरीवाल के (कु)कर्मों पर आधारित है और आपके कमेन्ट hypothesis के अधार पर हैं। आप मुझसे बड़े हैं इसलिए आपका सम्मान करता हूँ। पर इतना अवश्य कहूँगा कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छुपा लेने से तूफान नहीं रुकता। रतौंधी का टी तो इलाज संभव है लेकिन खुली आँखों से कुछ नहीं देखने वालों का इलाज संभव नहीं।

        • “आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का सपोर्ट लिया नहीं,बल्कि उसपर सपोर्ट थोपा गया.आआप ने जब तक हो सका ,उसको जनता की भलाई के उपयोग किया,पर जब कांग्रेस ने देखा कि यह दाव उल्टा पड़ाऔर आआप की लोकप्रियता बढ़ने लगी ,तो उसके कान खड़े हुए और भाजपा के साथ मिलकर आआप को अल्पमत में ला दिया.अगर आआप का मंत्रिमंडल इस्तीफा नहीं देता तो उन्हें कुर्सी से चिपके रहने वालों की उपाधि दी जाती.अब जब उन्होंने कुर्सी छोड़ दी तो उन्हें भगोड़ा कहा जाने लगा.यह हुआ न चिट भी मेरी पट्ट भी मेरी.”

          आर सिंह जी की टिप्पणी का ये हिस्सा पढ़ कर हंसी रुक ही नहीं रही है, कभी कभी सिंह साहब इतने अच्छे जोक मार देते हैं कि पूछिये मत। और आप भी सिन्हा साहब जब तब सिंह साहब को छेड़ देते हैं, कम से कम उनकी उम्र का तो लिहाज करते। बुजुर्गों को छेड़ा नहीं जाता हैं बल्कि उनकी हाँ में हाँ मिलाई जाती है। सूरदास की लकुटि कमरिया चढ़ो ना दूजो रंग। सिन्हा साहब छेड़ने से बाज आया कीजिये।


          सादर,

          • शिवेंद्र मोहन जी,आप जैसे लोगों के साथ उसी धरातल पर तो मैं नहीं उतर सकता,पर यह जो आपने बुजुर्गियत की बात कही तो मेरी उम्र आप सबसे ज्यादा अवश्य है. .सिन्हा साहब से भी मैं इंजीनियरिंग के स्नातक के वर्ष के अनुसार करीब बारह वर्ष बड़ा हूँ(सिन्हा जी ने शायद 1976 में अभियंत्रणा में स्नातक की उपाधि हासिल की थी,जब मैं १९६४ में अभियंत्रणा में स्नातक हो गया था),पर इससे क्या?जब मैं किसी वार्तालाप में हिस्सा लेता हूँ,तो मैं एक ही बात ध्यान रखता हूँ कि हो सकता है कि किसी का संस्कार अकारण गाली देने को भी अच्छा समझता हो,पर मेरा संस्कार मुझे इसकी इजाजत नहीं देता,इससे ज्यादा कुछ नहीं.मैं जानता हूँ कि बहुत से लोगों के विचारों की सूई इसी बात पर अटक गयी है कि अरविन्द केजरीवाल भगोड़े हैं. क्या कोई सप्रमाण बता सकता है कि अगर वे दिल्ली का तख़्त नहीं छोड़ते और लोकसभा के चुनाव में कूद पड़ते तो उनका क्या बिगड़ता? क्या वे किसी स्कैंडल में फंसे थे? क्या उन पर कोई मुकदमा दायर हुआ था? यह सही है कि वे मंजे हुए राजनेता नहीं हैं,अतः वह कमीनापन भी उनमे नहीं आ पाया है,जो राजनैतिक अनुभव से आता है. यही अंतर है अरविन्द केजरीवाल और दूसरे राजनेताओं में.. रही बात मेरी तो मैं ,तो एक आदमी हूँ. पर इतना अवश्य है कि,मेरे लिए कोई भी नाम बड़ा नहीं है.मैं अपने ढंग से किसी के भी कार्य की समीक्षा करता हूँ और उसी पर मेरा निर्णय आधारित होता है. हाँ यह जोक वाली बात आपने अच्छी कही. क्या आप अपनी इस बात पर मुझे हँसने की इजाजत देंगे?

          • बड़े बड़ाई ना करें बड़े ना बोले बोल।
            रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल।।

            निसंदेह सिंह साहब आप मुझसे बड़े हैं उम्र, शैक्षिक और अनुभव लिहाज से, आपकी मेरी बराबरी नहीं हो सकती। रही बात संस्कारों की तो ये परिवार और समाज प्रदत्त होती है, और इसमें भी मैं आपसे तो बराबरी कभी नहीं करूंगा। (सुजाता मिश्रा जी के लेख में भी मैंने आपके ऊपर कटाक्ष किया था, कारण आप अच्छी तरह से जानते होंगे, और ये मैंने आपकी कई टिप्पणियों में आने के बाद की थी, ये “मूर्ख” की उपाधि आपने कइयों को दी है, संस्कार आप अपने चेक कीजिये, “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” ना हो )

            ये लोक सभा का चुनाव है, ना की विधान सभा का। ये बात सभी को पता है। इसके लिए मुख्य मंत्री पद छोड़ने की क्या जरूरत थी वो भी इस तरह ? मोदी तो प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार हैं जैसा की उनकी पार्टी ने घोषित कर दिया था पहले ही। इसके बावजूद वो अपना चुनावी कम्पैन और राज्य की जिम्मेवारी दोनों देख रहे हैं। केजरीवाल जी के सम्मुख ऐसी कौन सी आफत आ गई थी ? केजरीवाल जी को अभी तक उनकी पार्टी ने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित भी नहीं किया है। फिर दिल्ली को बिलखता छोड़ अपनी जिम्मेवारी छोड़ लोक सभा के चुनाव में कूदना पड़ना ? दोनों जिम्मेदारिओं का निर्वहन क्यों नहीं ? वो त्याग की मूर्ति हैं या नहीं इसके लिए आपसे प्रमाण लेने की कोई जरूरत नहीं है किसी को। केजरीवाल आपके लिए (आआपा ) सीता होगें। हमारे लिए वो सिर्फ भगोड़े थे और भगोड़े ही रहेंगे। जिसे आप त्याग बोल रहे हैं वो लालच और धूर्तता की मिसाल है। लालच में पलायन का निकृष्ट उदहारण हैं केजरीवाल। आधी छोड़ पूरी को धावे आधी रहे ना पूरी पावे। का सा हाल होना है केजरीवाल जी का।

            “आप” का गठन केंद्रीय सत्ता के भ्रष्टाचार के विरोध में हुआ था, फिर ये मोदी विरोध में कैसे मुड़ गया कहीं भी केंद्रीय सत्ता के मुखिया और मुखिया के भी “मुखिया” (मुखिया का मुखिया कौन है ये सर्व विदित है ) के विरुद्ध कोई आवाज नहीं, ऐसा क्यों? धृतराष्ट्र की तरह पट्टी आपने ने अपनी आँखों पर बाँध रखी है, मैंने नहीं।

            आप लोग उस धारा का प्रतिनिधत्व करने लगे हैं जो ये समझते हैं सिर्फ मैं ही ठीक हूँ, अपने विरुद्ध कुछ सुनना नहीं चाहते हैं। अगर सुनना चाहते हैं तो सिर्फ प्रशंसा। विरोध आपके लिए नया है। इसलिए आपको बरदास्त नहीं। आप लोग विरोध तो कर सकते हैं लेकिन स्वयं का विरोध हो ये आप लोगों के बर्दास्त के बाहर हैं। अगर ठेठ शब्दों में कहूँ तो वर्तमान कांग्रेसी मानसिकता या कम्युनिस्ट विचार धारा जिसे अपना विरोध पसंद नहीं है। प्रैक्टिकल और किताबी ज्ञान में जमीन आसमान का अंतर होता है। प्रैक्टिकल के लिए आँखें खुली रखनी होती हैं, अंध भक्ति का चश्मा नहीं लगाना होता है। जब विचार धारा में विरोध हो तो कटाक्ष सुनने की क्षमता विकसित कर लेनी चाहिए। उम्र में बड़ा होना और समझ में बड़ा होना इस दोनों में जमीन आसमान का अंतर होता है।

            सादर,

      • मान्यवर सिंह साहब आप की बातें काफी हद तक सही है . यह हम भारतियों का स्वभाव है की हम किसी पर भी बिना किसी प्रमाण के आरोप लगा देते हैं. अमेरिकी एजेंट कहना, पाकिस्तान का एजेंट कहना , या आर एस एस का एजेंट कहना हमारा शगल बन गया है . मै आप की इस बात से भी सहमत हूँ की अरविन्द ने नहीं बल्कि अन्ना ने अरविन्द को धोखा दिया. लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है की क्या अरविन्द वही नहीं काट रह हैं जो उन्होंने ही बोया था . याद कीजिए इंडिया अगेंस्ट करप्सन के शुरुआती दौर में यह अरविन्द ही थे जो बाबा राम देव, श्री श्री रवि शंकर , किरण बेदी जस्टिस संतोष हेगड़े आदि को किनारे लगाने के लिए अन्ना हजारे का उपयोग किया अन्ना से अनशन करवा कर माहौल बनाया , लोकपाल जैसे मुद्दे को हवा दे कर अन्ना के विरोध के बावजूद पालिटिकल पार्टी बनायीं . लेकिन तब तक अन्ना को अरविन्द केजरीवाल के वास्तविक मकसद का पता चल चूका था अतः वह अपने को इस्तेमाल करनेवालों से दूरी बना लिया. अरविन्द केजरीवाल किसी पर भी बिना प्रमाण के आरोप लगा सकते है मोदी को अम्बानी का एजेंट बता सकते है तो फिर दुसरे यदि उन्हे अमरीकी एजेंट कहते हैं तो इतनी है तोबा क्यों ?
        मैं अरविन्द को कांग्रेस का एजेंट तो नहीं मानता परन्तु उनका प्रकारांतर से कांग्रेस के विरुद्ध पनपे आक्रोश को बाँट कार बी जे पी को सत्ता से रोक कार अंततः कांगेस का ही मदद कार रहें है. सोनिया गाँधी के खिलाफ उनका नरम रवैया भी उनकी मनसा पर प्रश्न चिन्ह लगता है. उत्तर प्रदेश विशेष कर वाराणसी की जनता भले ही दिल्ली वालों जैसी प्रबुद्ध न हो परन्तु राजनैतिक समझ के मामले में बीस साबित होगी .

        • आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की निगाह में नमो या रागा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,अतः उन दोनों को हराना पार्टी का पहला लक्ष्य है.आदमी पार्टी की निगाह में नमो नयी बोतल में पुरानी शराब की तरह हैं. फिर भी अगर नमो वाराणसी में हार भी जाएँ तो उनका क्या बिगड़ेगा? उनके लिए तो दूसरी सुरक्षित सीट तो है ही. रागा का भविष्य अवश्य बर्बाद हो जाएगा.

          • Respected Mr R Singh,
            Looking at your photo one expects a matured and learned person ..at least experienced if not learned ! Your comments belie both ..
            Farziwal jaise deah drohi ka saath dete huye kam se kam apni umar ka to lihaaz kiya hota !

          • मैं तो आपको समझदार समझता था, ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्ली की जनता AK को समझती थी. जब वह AK-49 बना तो ऑटो चालक लाली ने उसके गाल पर सच्चाई की मुहर लगा दी. आप नहीं समझेंगे. बालक को समझाना आसान होता है, वृद्ध को भी समझाया जा सकता है पर वृद्ध बालक को समझाना? बाप रे बाप! नामुमकिन.

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