केंद्र और राज्यों में भाजपा सरकारें, हिन्दू एकता और जातीय संघर्ष

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जब हरियाणा में भाजपा की सरकार सत्ता में आयी तो तुरंत बाद वहां जाट आरक्षण की आग लगा दी गयी!
महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता में आयी तो वहां मराठा आंदोलन शुरू कर दिया गया!
गुजरात में चुनाव होने वाले हैं अतः प्रधान मंत्रीश्री नरेंद्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में पटेल आंदोलन खड़ा कर दिया गया!
राजस्थान में चुनाव आने वाले हैं अतः वहां भी गुर्जर आरक्षण को भड़काने की साज़िश शुरू हो गयी है!
केंद्र में मोदी जी की सरकार बनते ही देश में तथाकथित ‘असहिष्णुता’ का शोर मचने लगा!
जेएनयू, दिल्ली यूनिवर्सिटी,और अन्य शिक्षण संस्थानों में देश तोड़ने के नारे और अव्यवस्था भी इसी की एक कड़ी है!
अब उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में बन जाने से जातिवाद, और वोट बैंक की राजनीती करने वालों की छाती पर सांप लौटने लगा है!और उन्हें यह समझ में आ गया है की अब “बांटो और राज करो” की राजनीती नहीं चलने वाली है! अब देश का राष्ट्री समाज, हिन्दू समाज, जाग गया है और जाती और वर्गों के भेद से ऊपर उठकर देशहित में सोचने लगा है! अतः भाजपा से मुकाबला करने के लिए उन्हें यही लगता है की इसके लिए हिन्दू एकता को तोडना होगा!और इसी उद्देश्य को ध्यान में सहारनपुर में हिन्दू समाज के ही दो घटकों में संघर्ष कराया गया है! जिसमे आग में घी डालकर आहुति देने का काम “तिलक,तराजू और तलवार……” का नारा देने वाली ‘बहनजी’ ने किया और वहां आग लगादी गयी!
१९७७ में आपातकाल के बाद हुए ऐतिहासिक चुनावों में श्रीमती इंदिरा गाँधी सत्ता से बाहर हो गयी थीं!और मोरारजी देसाई जनता पार्टी के नेता के रूप में प्रधान मंत्री बन गए थे! उस समय ऐसा समझा जा रहा था की अंदरखाने भारतीयजनसंघ और चौधरी चरण सिंह के बीच एक सहमति बन गयी है! लेकिन उस समय भी बहुत से तत्व थे जो इसको हिन्दू एकता के रूप में देखते थे क्योंकि कहीं न कहीं जनसंघ की सहमति बाबू जगजीवन राम से भी बनी थी!ऐसे में कुछ लोग इस सहमति को तोड़कर इस बढ़ती हुई हिन्दू एकता को रोकने में लग गए थे! हिंदी साप्ताहिक “रविवार” में सितम्बर १९७७ में एक लेख छपा था जो वामपंथी राजनितिक विश्लेषक केवल (या कपिल?)वर्मा ने लिखा था! उसमे स्पष्ट तौर पर लिखा था कि लोकदल घटक के चौधरी चरण सिंह और भारतीय जनसंघ घटक के बीच आपसी सहमति का कोई ‘मिलान बिंदु’ नहीं है क्योंकि लोकदल की ताकत जातियों में विभक्त हिन्दू समाज में है जबकि भारतीय जनसंघ की शक्ति जाती विहीन संगठित हिन्दू समाज में है! और अंत में वामपंथी सफल रहे और चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी तोड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई और गैर कांग्रेसी सरकार का यह प्रथम प्रयोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ!
आज जो समाचार छापे हैं उनके अनुसार सहारनपुर में संघर्ष एक गहरी साज़िश का परिणाम है! भीम सेना के प्रमुख चंद्र शेखर के बैंक खातों में पिछले कुछ समय में पचास लाख रुपया जमा कराया गया है! यह किन्होंने जमा कराया है और कहीं इसका कोई विदेशी स्रोत तो नहीं है इसकी गहराई से जांच के पश्चात् ही पूरे षड्यंत्र का खुलासा हो सकेगा! लेकिन अपुष्ट समाचारों के अनुसार इसमें कुछ मुस्लिम नेताओं का हाथ है! जो संगठित होते हिन्दू समाज को अपनी अलगाववादी गतिविधियों के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है!
वास्तव में देश तोड़क तो अपना काम करेंगे ही! लेकिन क्या सत्ता में आने के बाद सरकारी अमले को इस ओर सतर्क रहने की हिदायत दी गयी थी?
२०११ में श्री राजीव मल्होत्रा और अरविंदन नीलकंदन जी की शोधपूर्ण वृहद् पुस्तक “ब्रेकिंग इंडिया” प्रकाशित हुई थी! और उसमे यह विस्तार से लिखा गया था की देश तोड़क देशी और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां वास्तव में देश में दो फाल्ट लाइन्स बना चुकी हैं! ‘दलित’ और ‘द्रविड़’!यह पुस्तक देश के सभी प्रशासनिक अधिकारीयों और सुरक्षा बलों के अधिकारीयों के लिए एक अनिवार्य अध्ययन हेतु निर्धारित की जानी चाहिए थी! लेकिन संभवतः छद्म ‘धर्मनिर्पेक्षता’ के चलते इससे परहेज किया गया हो या पिछली सरकार पर इतालवी प्रभुत्व के चलते इससे दूरी बनायीं गयी हो! लेकिन नयी राष्ट्रवादी सरकार को सत्ता में आये तीन वर्ष हो गए हैं! और आज पूरे देश में मोदी जी की सरकार की तीसरी वर्षगाँठ का जश्न मनाया जा रहा है!इस अवसर पर घरेलु सुरक्षा के मोर्चे पर असफलता पर भी गंभीर चिंतन होना आवश्यक है!आखिर देश का इतिहास क्या चीख चीख कर यह सन्देश नहीं देता है कि हम आक्रमणकारियों के अधिक शक्तिशाली होने के कारण पराजित नहीं हुए बल्कि अपनी असावधानी और अनअपेक्षित उदासीनता और उदारता के कारण पराजित हुए! क्या संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने देश की सुरक्षा के लिए सतत जागरूकता का सन्देश नहीं दिया था?क्यों हम बार बार गफलत का शिकार बनते हैं? क्यों हम अग्रिम सुरक्षा तैयारिया नहीं रखते हैं? क्या हम देश तोड़कों के संभावित कामों और क़दमों की पूर्व कल्पना करके उससे निबटने की तैयारी नहीं कर सकते?देश के प्रत्येक जिले में सेंट्रल इंटेलिजेंस अधिकारी होते हैं! वो क्या करते हैं? प्रदेश सरकारों की स्थानीय अभिसूचना इकाईयां और गुप्तचर विभाग क्या करते हैं?क्या पाकिस्तान से आने वाले विज़िटर्स के वीसा बढ़वाने की संस्तुतियां स्थानीय अभिसूचना विभाग ही नहीं करता है?
मेरा सुझाव है कि आंतरिक मोर्चे पर सुरक्षा तंत्र को अधिक प्रभावी बनाया जाये और इसके लिए विभिन्न स्थितियों के मॉड्यूल बनाकर अग्रिम तैयारी का गहन प्रशिक्षण सुरक्षा से जुड़े सभी अधिकारीयों कर्मचारियों को दिया जाये! साथ ही देश के सभी प्रशासनिक अधिकारीयों और पुलिस तथा पैरा मिलिट्री संगठनों को राजीव मल्होत्रा जी कि उपरोक्त पुस्तक “ब्रेकिंग इंडिया” का पाठन करना अनिवार्य किया जाये और मसूरी तथा अन्य प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में भी यह पुस्तक अनिवार्य रूप से लागू की जाये!
साठ के दशक में जब देश के कुछ भागों में हिंदी विरोधी आंदोलन हुए थे तो उस समय रा.स्व.स. के सरसंघचालक पूज्य माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरूजी ने कहा था कि उस आंदोलन में कुछ विदेशी एजेंसियों का हाथ होने की पुख्ता जानकारी उन्हें प्राप्त हुई थी! आज भी ऐसे बहुत से देश हैं जो ऊपर से तो हमारे दोस्त बनने का दावा और दिखावा करते है लेकिन पीछे से हमारे देश को तोड़ने के लिए गहरी साज़िशें करते हैं!इन सब के बारे में हमें अधिक जागरूक होने और वन अपमेनशिप का परिचय देने की आवश्यकता है! हम भी उनके साथ अच्छे दोस्त होने का दावा करने के साथ साथ अपने हितों के प्रति सतत जागरूक रहें!और उनके मंसूबों पर पानी फेरते रहें! भारत सरकार ने पिछले तीन वर्षों में हज़ारों एनजीओज़ पर प्रतिबन्ध लगाकर एक अच्छी पहल की है! लेकिन यह पर्याप्त नहीं है और इससे नए एनजीओ खड़े होने पर कोई पकड़ नहीं है! अतः इस ओर भी सतर्क रहना अभीष्ट होगा!

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  1. पहले पहल मैं अनिल गुप्ता जी को उनके विश्लेषणात्मक लेख के लिए उन्हें सहृदय धन्यवाद दूंगा| यह लेख समस्त भारत में अन्य सभी भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में मुद्रित किया जाना चाहिए| विशेषकर विभिन्न राष्ट्र-द्रोही आंदोलनों को लेकर लेख का विषय भारतीय सुरक्षा दलों द्वारा शान्ति-स्थापना जैसे महत्वपूर्ण कार्य में उनकी दैनिक कार्य-प्रणाली का आवश्यक अंग होना चाहिए|

    कैसी विडंबना है कि १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में दीर्घकालिक नेता रह चुके प्रणब मुखर्जी ने रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में दिए भाषण में कहा कि देश में निर्णय लेने की प्रक्रिया में बातचीत और असहमति ज़रूरी हैं| कल तक के दूषित राजनैतिक वातावरण में स्थिरता की आवश्यकता को निष्प्रभावित करता उनका वक्तव्य, “जो लोग सत्ता में हैं, उनसे सवाल किए जाने की ज़रूरत है” अवश्य ही आज के राष्ट्र-द्रोही आंदोलनों को प्रोत्साहित कर कांग्रेस के “बांटो और राज करो” जैसी राजनीति को बढ़ावा दिए जाने जैसा प्रतीत होता है| भारत की अखंडता केवल हिन्दू संगठन में ही है व विभिन्न धर्मों के धर्मावलंबीयों में भाईचारा और आत्म-विश्वास जगाता हिंदुत्व उस अलौकिक अखंडता का मूलाधार होना चाहिए|

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