केसर की क्यारी में बारूदी गंध

uri-1डा. अरविन्द कुमार सिंह

अट्ठारह सैनिकों की शहादत को प्रणाम करते हुए कुछ निवेदन करना चाहूॅगा। दिल भरा है, माॅ सरस्वती शब्दों को सन्तुलित करे यही प्रार्थना है। देश की आजादी के बाद – पाकिस्तान को कश्मीर चाहिए था और कुछ लोगों को हिन्दुस्तान की गद्दी। इन दो चाहतो ने दोनो देश के हुक्मरानों का दिमाग फिरा दिया। एक चाहत ने देश के हुक्मरान को तानाशाह बना दिया और दूसरी चाहत ने राजनीत को वेश्या बना दिया। देशहित तुष्टीकरण का मंत्र बन गया। इन्ही दो चाहतो के बीच आज की समस्या है।

भारतीय विसंगतियो की चर्चा करते हुये, अपनी बात कहना पसंद करूंगा। जो कुछ कहने जा रहा हूॅ, उसे पढकर ना ही आप चैकेगे और ना ही आपको दुख होगा। क्योकि यही इस दौर का अभिशप्त मिजाज है या फिर आप कह सकते है, स्टाईल है। क्या आप को पता है? हमारी सरकार ओलम्पिक में निशानेबाजी में गोल्ड मेडल जीतने वाले निशानेबाज को तीन करोड रूपया देती है पुरस्कार राशी के रूप में। वही आतंकवादीयों से लडते हुये वीरगति को प्राप्त भारतीय सेना के निशानेबाज को महज एक लाख रूपया देती है। टी टवन्टी का मैच बिना खेले खिलाडी पाता है तीन करोड और यदि नकस्लवादीयों के द्वारा एक सैनिक मारा जायेगा तो पायेगा महज एक लाख रूपया। खैर ये सब तो आपको पता ही होगा? लेकिन क्या आप को ये पता है? अमरनाथ के तीर्थ यात्रियों से जम्मू कश्मीर सरकार टैक्स वसूलती है और वही हमारी भारत सरकार मुसलमानो की हज यात्रा के लिये आठ सौ छब्बीस करोड रूपया मुहैया कराती है।

वो कौन है? जो देश की सरहदो पर अपनी जान देश के लिये न्योक्षावर कर रहा है? वह कौन है जो आतंकवादी घटनाओ में अपनी जान गवाॅ रहा है? बम ब्लास्टो में किसका सुहाग उजड रहा है? वह कोई भी हो सकता है पर यकिनन किसी राजनेता का पुत्र नही। राजनेता भी नही। राजनेता शब्द आते ही कुछ पुरानी यादे उभर आयी है। भारतीय जनता पार्टी ने आतंकवादी अजहर मसूद को कंधार ले जाकर सौप दिया । कहा राष्ट्रहित का मामला था। काग्रेस पार्टी ने हजरतबल में सेना के द्वारा घीरे आतंकवादीयो को बीरयानी ही नही खिलायी वरन सकुशल उन्हे सेना की गिरफत से बाहर निकल जाने दिया। कहा राष्ट्रहित का मामला था। जनता पार्टी के शासन काल में एक राजनेता की बेटी का सौदा आतंकवादीयों के बदले हुआ था।

इतना ही नही यह हमारी ही सरकार के राजनेता है, जो किसी घटना के होने के बाद पुरजोर शब्दो में जनता को आश्वस्त करते दिखायी दे जायेगें, कि घटना में लिप्त किसी भी दोषी को बक्शा नही जायेगा। सख्त से सख्त कारवायी की जायेगी। अपराधी पकडे जाते है, सुप्रीम कोर्ट से फाॅसी की सजा होती है। अब कमाल की बात देखीये हम उन्हे लटकाने को ही तैयार नही है। अब जरा राजनेताओ की बात सुनीये – फाॅसी की सजा मानवता के विरूद्ध है। इस पर देश में चर्चा होनी चाहिये। जनाब यदि मेरी माने तो एक सवाल सूचना के अधिकार के तहद् पूछिये ना सरकार से। हूॅजूर फाॅसी की सजा पाये इन आतंकवादीयों पे जनता की कितनी गाढी कमाई आपने अभी तक खर्च की है? विश्वास जानिये रकम आपके होश उडा देगी। मुझे नही पता राईफल की एक बुलेट की किमत कितनी है? तुष्टी करण की राजनीति हर पार्टी का इमान धर्म है। जो वोट के टकसाल पर नये सिक्के की तरह खनकता है। कश्मीर में पत्थरबाजों पर पैलेट गन चलने पर पूरा विपक्ष इसके बरखिलाफ हो जाता है। जेएनयू में देशविरोधी नारे लगने पर पूरा विपक्ष विश्वविद्यालय में दौड जाता है। पर अट्ठारह सैनिकों के मरने पर विपक्ष काश्मीर नहीं दौडता? उनके घरों पर मातम मनाने नहीं जाता?

यदि ऐसा न होता तो कश्मीर की केसर की क्यारीयों से आज बारूदी गंध न आती। वहाॅ समस्या बेरोजगारी की है। समस्या उनकी भावनाओ को समझने की है। युवाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोडने की है। लेकिन सरकारे कश्मीर को वोट बैक के रूप में देखती है। और यही हमारी चूक है।

एक छोटा सा राष्ट्र जब पाता है कि आमने – सामने की लडाई में हम भारत से पार नही पायेगे तो वह अपनी स्टाईल बदल कर गुरिल्ला युद्ध पर उतर आता है। अब न वह राष्ट्र हमसे सम्भलता है और न अपना कश्मीर। हमारी सरकारो के पास मात्र एक ही ब्रहम वाक्य है। पाकिस्तान हमारे ध्ैार्य की परीक्षा न ले।

लेकिन पाकिस्तान कहाॅ मानने वाला था उसने परीक्षा ली। संसद पर ही हमला कर दिया। हमने कुछ नही किया। मुम्बई के ताज होटल पर हमला कर दिया। हमने कुछ नही किया। पठानकोट पर हमला कर दिया। हमने कुछ नही किया। दो सैनिको का सर काट लिया। हमने कुछ नही किया। अट्ठारह सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। हमने कुछ नही किया। हम अमेरिका थोडे ही है जिसने वल्र्ड टेªड सेन्टर पर आतंकवादी हमले के ऐवज मे अफगानिस्तान को ही रौद दिया। पाॅच आतंकवादी पूरे मुम्बई को ही बधंक बना लिये और हमारे राजनेता को दुख इस बात का था कि इतने कम आदमी क्यों मरे? यह जनरल नालेज का प्रश्न भी हो सकता है बच्चों के लिये। ऐसा किस राजनेता ने कहा था?

जरा सोचिए दुनिया कौन सी ऐसी टीम है जिसने अपने डी पर पूरे समय मैच खेलकर मैच जीता है? अपने डी पर मैच खेलकर या तो मैच ड्रा किया जा सकता है या फिर मैच हारा जा सकता है। मैच जीतने के लिए विपक्षी टीम के डी पर हमला बोलकर गोल मारना होगा। भारत 1947 से लगातार अपने डी पर मैच खेल रहा है। अब वक्त आ गया है कि हम पाकिस्तान को बताये पाक अधिकृत कश्मीर हमारा है और इसे हम लेकर रहेगें। साथ ही बलूचीस्तान भी हम आजाद करा देगें।

अगर पूर्वी पाकिस्तान की कहानी मात्र बहत्तर घंटे में समेटी जा सकती है और निन्यान्बे हजार सैनिका का आत्मसर्मपण कराया जा सकता है, तो आप ही बतलाईये आजाद कश्मीर को समेटने में भारतीय सेना को कितना समय लगेगा ?बस थोडी देर के लिये राजनेता अपनी प्रेतछाया से देश को मुक्त कर दे, समस्या सुलझती नजर आयेगी।

अगर पाकिस्तान आतंकवाद की लगातार घटना भारत में पूरी बेशर्मी से करने के बाद भी इस बात के लिए आश्वस्त है कि पूरी दुनिया और भारत उसका कुछ नहीं बिगाड सकते तो भारत किस मुगालते में है? विश्वास जानिए अब वातावरण पूरा तैयार हो चुका है। भारत की जबावी कार्यवाही पर पूरी दुनिया में कोई हलचल नहीं होगी। शिशुपाल की सौ गलतियों के उपरांत कृष्ण के द्वारा उसकी गर्दन उतारने पर भरी सभा में जुम्बीश तक नहीं हुयी। कुछ ऐसा ही हाल पाकिस्तान का होगा। कोई परमाणु बम नहीं चलेगा। चलाने के बाद अपना भी हश्र पाकिस्तान समझ ले।

न तलवार उठेगा, न खंजर चलेगा।
ये बाजू मेरे आजमाये हुए है।।

तीन शिकस्ते 1965, 1971 एवं 1999 खाने के बाद भी पाकिस्तान अभी मुगालते में है ? जरूरत आज उसके भ्रम के आईने को तोडने की हैं।

राजनेताओ से भी कुछ अर्ज करना चाहूॅगा – हूॅजूर वोट के अलावा राष्ट्र नाम का भी कुछ अपने राष्ट्र में है। देश के सैनिको की लाशों पर दो फूल चढाने और उनकी विधवाओं को सिलाई मशीन देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझने की आदतो से बाहर आकर इन आतंकवादीयों को उनके अजांम तक पहुॅचाने की पहल करे। प्रत्येक नागरिक को सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य करे। और अपने लिये विशेष सैन्य प्रशिक्षण का प्रावधान करे। इसके आभाव में चुनाव लडने पर बैन करे। इस विश्वास के साथ कि राष्ट्र आपकी सुरक्षा करे, आप राष्ट्र की सुरक्षा करे। याद रखे – राष्ट्र जिन्दा रहेगा तभी हमारा वजूद जिन्दा रहेगा।

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