खेलों में खत्म होना चाहिये लैंगिक आधार पर भेदभाव

(29 अगस्त 2016, खेल दिवस पर विशेष) dyan chandra bharat ji
खेल कई नियम कायदों द्वारा संचालित ऐसी गतिविधि है जो हमारे शरीर को फिट रखने में मदद करती है। आज इस भागदौड भरी जिन्दगी में अक्सर हम खेल के महत्व को दरकिनार कर देते हैं। आज के समय में जितना पढना-लिखना जरूरी है, उतना ही खेल-कूद भी जरूरी है। एक अच्छे जीवन के लिए जितना ज्ञानी होना जरूरी है, उतना ही स्वस्थ्य होना जरूरी है। ज्ञान हमें पढने-लिखने से मिलता है और अच्छा स्वास्थ्य शरीर हमें खेल-कूद से मिलता है।
दुनिया में खिलाडियों और खेल प्रेमियों की कमी नहीं है। दुनियां के प्रसिद्ध खेलों (फुटबाल, क्रिकेट, शतरंज, टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन तथा हॉकी-प्रशंसकों की हमारे देश भारत में भरमार है। चाहें क्रिकेट हो, चाहें हॉकी हो, चाहें बैडमिंटन हो, चाहें टेनिस हो, चाहें कुश्ती हो, चाहें निशानेबाजी हो और चाहें बॉक्सिंग हो इन सभी खेलों में भारतीय खिलाडियों ने सफलता के झंडे गाढे हैं। विश्व पटल पर भारत देश का नाम ऊँचा किया है और विभिन्न अन्तर्राष्टीय प्रतियोगिताओं में भारत को विभिन्न पदक दिलाये हैं। चाहे ओलम्पिक खेल हों, चाहें कॉमनवेल्थ गेम्स हों, चाहें एशियन गेम्स हों और चाहें विभिन्न प्रतियोगिताओं की विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिताएं हो हर जगह भारतीय खिलाडियों ने अपने खेल के माध्यम से देश का नाम रोशन करने के साथ-साथ खेल प्रेमियों का दिल जीता है।
रियो ओलंपिक में भी भारत कि बेटियों ने अपने देश का नाम रोशन किया है, किसी ने पदक जीतकर तो किसी ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर । बहुत सारी चुनोतियों का सामना करते हुए पीवी सिंधु ने व्यक्तिगत बैडमिंटन स्पर्धा में रजत पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया जो कि भारत के इतिहास में पहली बार हुआ। साक्षी मलिक ने पहलवानी में कांस्य जीतकर भारत के प्रत्येक माँ बाप को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि बेटियां भी समय आने पर देश का मान-सम्मान बचा सकती हैं। साक्षी मालिक ने साबित कर दिया कि भारत की बेटियां सिर्फ बैडमिंटन या टेनिस में ही नहीं बल्कि कुश्ती जैसे खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हैं और अपने विरोधी को पस्त कर सकतीं हैं। साक्षी ने जो कांस्य पदक जीता वह भी ऐतहासिक था। क्योंकि महिला कुश्ती में किसी ने पहली बार कोई पदक जीत था। ओलंपिक में जगह बनाने वाली भारत की पहली महिला जिमनास्ट दीपा कर्माकर कांस्य पदक से महज मामूली अंक के अंतर से चूक गयी लेकिन उनके प्रदर्शन ने देशवासियों का दिल जीत लिया। उडनपरी पीटी उषा के बाद ललिता बाबर ओलंपिक इतिहास में 1984 के बाद 32 साल बाद ट्रैक स्पर्धा के फाइनल के लिये क्वालीफाई होने वाली दूसरी भारतीय महिला बनी। ललिता बाबर ने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से 3000 मीटर स्टीपलचेज में 10वां स्थान कर एक रिकाॅर्ड बनाया। और भी कई खिलाडियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया, लेकिन पदक नहीं जीत सके, लेकिन उन्होने भविष्य में भारत के लिये द्वार खोल दिये। यह भारत देश और भारत के लोगों के लिए बडे ही गौरव की बात है। देश में प्रतिभाओ की कमी नहीं है बल्कि प्रतिभाओ को खोजने वाले संसाधनों की कमी है। भारत के जितने भी खेल संघ हैं। वे सब राजनीति छोड़कर अगर अपने क्षेत्र के खिलाडियों पर ध्यान दें। जिससे भविष्य में भारत देश के युवा खिलाड़ी अपना परचम लहरा सकते हैं, और देश का नाम रोशन कर सकते हैं। इसके लिए जरूरत है सरकारें भी उनका सहयोग करें। और अभी से टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी शुरू कर देनी चाहिये। जिससे कि टोक्यो ओलम्पिक में पदकों की संख्या बढ सके।
क्रिकेट के अलावा भारत में अन्य खेलों में खिलाडियों को कोचिंग की देश में उचित व्यवस्था नहीं मिलती और न ही देश और प्रदेश की सरकारें देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी और विभिन्नं खेलों पर ध्यान देती हैं। इसलिए देश के होनहारों का क्रिकेट के अलावा सारे खेलों से मोहभंग होता जा रहा है। इसके लिए जरूरत है सरकारों को क्रिकेट के साथ-साथ सभी खेलों को प्रोत्साहन देना चाहिए और ऐसे कार्यक्रम बनाने चाहिए जिससे कि सभी भावी खिलाडियों का रुझान क्रिकेट के साथ-साथ बाकी सभी खेलों की तरफ भी बढे। और विभिन्न खेलों में भी उन्हें अपना भविष्य नजर आये।
आज क्रिकेट की दुनिया में भारतीय टीम विश्व कि नंबर वन टीमों में गिनी जाती है। क्योंकि भारत देश में क्रिकेट को बढावा दिया जा रहा है। साथ ही साथ हम जितना आगे क्रिकेट में बढ रहे हैं, उतना नीचे बाकी खेलों में गिर रहे हैं। यह सच्चाई है, इसे कोई नकार नहीं सकता। इसके लिये जरुरत है सरकार के साथ-साथ भारत की जनता को भी सभी खेलों को ओलम्पिक के अलावा समर्थन करना चाहिये। अकसर भारत में देख जाता है कि सिर्फ ओलम्पिक, कॉमनवेल्थ गेम्स या एशियन गेम्स के समय ही खिलाडियों को उत्साहित किया जाता है। बाकी समय पर खिलाडियों को भुला दिया जाता है। इसके लिये जरुरत है कि भारत की जनता द्वारा हर एक खिलाडी को साल के 364 दिन प्रोत्साहित करना चाहिये।
बडा दुख होता है जब माता-पिता आज भी बच्चैं की खेल में रुचि हो, फिर भी चाहतें हैं कि उनका बेटा बडा होकर डाक्टर बने, इंजीनियर बने या उसे कोई अच्छी सी नौकरी मिले। लेकिन जरूरत है अपनी सोच और नजरिया दोनों बदलने की जिससे कि हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, शतरंज, कुश्ती, टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन तथा जितने भी खेल हैं उनका स्तर बढ सके और हर खेल में लोगों कि रूचि पैदा हो। और भारत देश खेलों के क्षेत्र में विश्व में अपना डंका बजा सके। साथ ही साथ जरूरत है कि भारत में लैंगिक आधार पर खेलों में भेदभाव खत्म हो। बेटा और बेटियों को खेलों में समान मौके मिलने चाहिये, क्योंकि बेटियां मुश्किल घडी में भी देश की लाज बचा सकती हैं। आज खेल दिवस है जो कि महान खिलाडी मेजर ध्यानचंद जी कि याद में मनाया जाता है। सालों से मेजर ध्यानचंद को भारत-रत्न देने कि मांग की जा रही है। लेकिन भारतीय सरकारें सालों से इस मांग को टाल रही हैं। मोदी सरकार को इस ओर विचार करना चाहिए।

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