‘‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’’


वीरेन्द्र सिंह परिहार
सी.बी.आई. द्वारा 7 जुलाई को राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव से जु़ड़े 12 ठिकानों पर छापेमारी करने और उनके समेत 7 लोगों पर एफ.आई.आर. करने के चलते वह बुरी तरह बौखला गए हैं। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व भी 16 मई को आयकर विभाग ने लालू से जुड़े 22 कम्पनियों पर छापेमारी की गई थी। अब इस छापेमारी के चलते जहां तब के रेलमंत्री के हैसियत से लालू प्रसाद यादव के विरुद्ध एफ.आई.आर. की गई है, वहीं बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के छोटे बेटे एवं बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नाम भी एफ.आई.आर. में है। इसके अलावा सरला गुप्ता जो आर.जे.डी. नेता और पूर्व केन्द्रीयमंत्री प्रेमचंद गुप्ता की पत्नी है, पी.के. गोयल जो पूर्व एम.डी. आईआरसीटीसी हैं। विजय कोचर एवं विनय कोचर जो क्रमशः होटल चाणक्य और सुजाता होटल के डायरेक्टर के साथ मेसर्स लारा प्रोजेक्ट्स के विरुद्ध भी मामला दर्ज किया गया है। यह मामला सी.बी.आई. द्वारा धोखाधड़ी एवं आपराधिक साजिश का दर्ज किया गया है। सी.बी.आई. के अनुसार 2006 में जब लालू रेलमंत्री थे तब रेलवे के पुरी और रांची स्थिति बी.एन.आर. होटलों के रखरखाव और इम्प्रूव करने के लिए आईआरसीटीसी को लीज पर ट्रांसफर किया था। इसके लिए टेंडर विनय कोचर की कम्पनी सुजाता होटल्स को दिए गए। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया में हेरफेर किया गया। इस हेरफेर में तब के आईआरसीटीसी के एम.डी. पी.के. गोयल की विशेष भूमिका थी। इस टेंडर को पाने के एवज में कोचर बंधुओं ने पटना शहर की 3 एकड़ जमीन सरला गुप्ता की कम्पनी मेसर्स डिलाइट मार्केटिंग कम्पनी लिमिटेड (डीएमसील) को 1.47 करोड़ रुपये में बेंच दी। इसे एग्रीकल्चर लैण्ड बताकर सर्कल रेट से काफी कम में बेंचा गया, स्टाम्प ड्यिुटी में गड़बड़ी की गई। बाद में 2010 से 2014 के बीच यह बेनामी प्रापर्टी लालू की फैमिली की कम्पनी लारा प्रोजेक्ट को सिर्फ 65 लाख में ट्रांसफर कर दी गई। जबकि सर्कल रेट के तहत इसकी कीमत 32 करोड़ रुपये और मार्केट रेट 94 करोड़ रुपये था। एफआईआर में यह भी आरोप है कि कोचर ने जिस दिन डीएमसीएल के फेवर में यह सौदा किया, उसी दिन रेलवे बोर्ड ने आईआरसीटीसी को उसे बीएनआर होटल्स सौंपे जाने के अपने फैसले के बारे में बताया।
सी.बी.आई. की इस छापेमारी के बाद दूसरे दिन यानी 8 जुलाई को ई.डी. ने लालू यादव की बेटी मीसा और दामाद शैलेष से जुड़े तीन ठिकानों पर छापे मारे। जिन ठिकानों पर छापे मारे गए वे मीसा के पति शैलेष और मेसर्स मीशैल प्रिन्टर्स एण्ड पैकर्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े हैं। इस छापेमारी के पीछे ईडी को यह शक है कि कारोबारी वीरेन्द्र जैन और सुरेन्द्र कुमार जैन ने करीब 8000 करोड़ की मनी लान्ड्रिंग की है। जिन्हें पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। इन पर कई हाई प्रोफाइल लोगों के कालेधन सफेद करने का आरोप है। जैन ब्रदर्स ने ही मीसा को मनी लान्ड्रिंग के जरिए दिल्ली के बिजवासन में करीब डेढ़ करोड़ का फार्म हाउस दिलाया था। मई में इसी मनी लान्ड्रिंग केस में मीसा के चार्टर्ड एकाउन्टेंट (सीए) राजेश अग्रवाल को ईडी ने गिरफ्तार किया था। यह भी उल्लेखनीय है कि ई.डी. ने मीसा को दिल्ली एयरपोर्ट के नजदीक स्थित बिजवासन फार्म हाउस को भी जब्त कर लिया है।
ऐसी स्थिति में लालू यादव कह रहे हैं कि मोदी सरकार बदले की भावना से उनके और उनके बच्चों के खिलाफ काम कर रही है। तो दूसरी ओर लोगों का यह कहना है कि लालू यादव खुद तो गए ही, बच्चों को भी निबटा दिए। यह भी उल्लेखनीय है- अभी कुछ दिन पहले यह जानकारी सामने आई कि श्रीमती रमा देवी जो वर्तमान में सांसद हैं, उनसे भी मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनकी साढ़े तीन एकड़ जमीन लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप के नाम लिखा ली थी। यह भी उल्लेखनीय है कि उस समय तेज प्रताप की उम्र साढ़े तीन बरस की थी, और यह जमीन रमा देवी से तेज प्रताप के नाम सेवा करने के लिए लिखाई गई। भला समझा जा सकता है। इसी तरह से श्रीमती कान्ति सिंह से केन्द्रीय मंत्री बनाने के एवज में 5 करोड़ रुपये का फ्लैट लिखा लिया गया। सूत्रों का कहना है कि मंत्री, सांसद, विधायक एवं दूसरे पद देने की एवज में लालू यादव बतौर रिश्वत जमीने लेते थे। खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री पद पर लालू और राबड़ी देवी के रहते और लालू के रेलमंत्री रहने के दौरान इस परिवार ने दसों हजार करोड़ रुपये की सम्पत्ति इकठ्ठा की। जहां तक लालू की ईमानदारी का प्रश्न है तो यह सर्वविदित है कि वह बिहार में अपने मुख्यमंत्रित्व काल मं 900 करोड़ के चारा घोटाले में दोषसिद्ध हैं, और कई महीनों तक जेल में रहने के दौरान फिलहाल जमानत पर हैं। इतना ही नहीं चारा घोटाले के दूसरे प्रकरणों में भी उन पर ट्रायल चल रहे हैं। यह भी बताना प्रासांगिक होगा कि लालू यादव अपने को धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय का बहुत बड़ा मसीहा मानते हैं। इससे यह समझा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय भारतीय राजनीतिक परिवेश में लूट-खसोट के माध्यम बन गए हैं। लोगों की याददाश्त में यह भी होगा कि लालू राज में बिहार में एक ही उद्योग फला-फूला था और वह था अपहरण उद्योग। वस्तुतः सीबाीआई का दुरुपयोग मोदी सरकार के दौर में नहीं, बल्कि मनमोहन सरकार के दौर में हुआ, जिसमें सोहराबुद्दीन कांड में भाजपा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को फंसाकर वर्षों जेल में रखा गया, जिन्हें बाद में न्यायालय द्वारा आरोप-मुक्त कर दिया गया। अब विरोधी भले कहें कि अमित शाह को तड़ीपार किया गया था, पर हकीकत यही है कि यह सब सत्ता के दुरुपयोग एवं बदले की भावना के चलते किया गया था। तभी तो यू.पी.ए. शासन के दौर में सर्वोच्च न्यायालय ने सी.बी.आई. को तोता की उपाधि दे दी थी। पर अब हकीकत इसके उलट है। अब संवैधानिक संस्थाएॅ और जांच एजेन्सियाॅ अपना काम करने को स्वतंत्र हैं। पर लालू जैसे लोगों को भ्रम था कि सबकुछ चलता है। पर स्थिति यहां तक आन पहंुची कि वह दूतों के माध्यम से अपने और अपने बच्चों को बचाने के लिए सरकार से सौदेबाजी का प्रयास कर रहे थे, यहां तक कि नीतीश सरकार को गिराने के लिए भी तैयार थे। पर उन्हें पता नहीं था कि अब सत्ता में ऐसे लोग बैठे हैं जिनके लिए निजी हित और सत्ता नहीं वरन राष्ट्र सर्वोपरि है।
लोगों को यह भी पता होगा कि वर्ष 2013 में जब भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को भाजपा का चेहरा बनाया गया था, तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया था और लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित होने के चलते बिहार विधानसभा चुनावों में लालू यादव की पार्टी राजद से हाथ मिला कर पुनः बिहार के मुख्यमंत्री की गद्दी हासिल कर ली थी। लेकिन वर्तमान घटनाक्रम को देखकर ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार की स्थिति ‘‘भई गति साॅंप छछुन्दर वाली’’ हो गई है। यह हकीकत है कि नीतीश कुमार की छवि एक सुशासन बाबू की है। इसी के चलते नोटबंदी जैसे ज्वलंत मुद्दे पर मोदी सरकार के समर्थन में खड़े रहे। राष्ट्रपति चुनाव में भी वह एन.डी.ए. उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। जी.एस.टी. के मुद्दे पर भी वह अमूमन मोदी सरकार के साथ हैं। लालू और उनके परिवार के खिलाफ पड़े छापों को लेकर भी उन्होंने कहीं सार्थक एवं प्रभावी विरोध नहीं जताया है। अलबत्ता उनकी मजबूरी है कि जब तक राजद के साथ वह सरकार चला रहे हैं, उनके विरुद्ध बोल भी नहीं सकते। बड़ा सवाल यह है कि जब जदयू यह मान रहा है कि भाजपा के साथ सत्ता में रहते उनके ज्यादा सहज रिश्ते थे, फिर भी राजद के साथ ऐसी विषम परिस्थितियों में रिश्ता क्यों नहीं तोड़ रहा है? खासतौर से जब नीतीश कुमार यह बखूबी समझ चुके हैं कि अब भविष्य में भी उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी की कोई सभावना नहीं है। (क्योंकि प्रधानमंत्री की कुर्सी को दृष्टि में रखते हुए उन्होंने भाजपा से संबंध तोड़ा था।) नीतीश कुमार यह भी देख रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी के प्रति भारतीय जन मानस का समर्थन दिनोंदिन दृटका देकर भाजपा के साथ खड़े दिखाई दे, और मोदी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को मजबूती दें। 11 जुलाई को अपनी पार्टी की बैठक में नीतीश कुमार ने यह कहकर कि तेजस्वी यादव के मामले में लालू यादव 4 दिन के अन्दर फैसला लें। इससे यह पर्याप्त संभावना है कि बिहार में राजद और जदयू के रास्ते अतिशीघ्र अलग-अलग हो सकते हैं। रहा सवाल लालू यादव की इस बात का कि वह भाजपा और मोदी सरकार को हटा के ही दम लेंगे यह बात ‘‘खिसयनी बिल्ली खम्भा नोचे’’ की कहावत को ही सार्थक करती है।

 

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