खुर्शीद कसूरी : शिवसेना की मसखरी

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की पुस्तक का विमोचन-समारोह 12 अक्तूबर को मुंबई में होनेवाला था| इसका आयोजन सुधींद्र कुलकणी ने किया था| नेहरु केंद्र में होनेवाले इस आयोजन को खंड-बंड करने की धमकी शिवसेना ने दी है| हालांकि महाराष्ट्र की सरकार ने कहा है कि वह कार्यक्रम में सुरक्षा की व्यवस्था करेगी| यही बात महाराष्ट्र सरकार ने गुलाम अली के गजल-कार्यक्रम के लिए कही थी लेकिन उस कार्यक्रम को भी डर के मारे आयोजकों ने रद्द कर दिया| सरकार कुछ नहीं बोली और अब भी सरकार कुछ नहीं बोलेगी| सरकार में शिवसेना shivsenaशामिल है| यदि सरकार में दम होता तो वह कहती कि कार्यक्रम होकर रहेगा| देखें किसकी हिम्मत है कि वह टांग अड़ाता है?

मुझे लगता है कि यह मामला गुलाम अली या खुर्शीद कसूरी का नहीं है| इसका पाकिस्तान से कुछ लेना-देना नहीं है| इस समय कोई भारत-पाक युद्ध नहीं चल रहा है| यह मामला भाजपा-शिव सेना युद्ध का है| भाजपा को नीचा दिखाना शिव सेना का मुख्य लक्ष्य है| मुख्यमंत्री की कुर्सी में चाहे भाजपा का आदमी बैठा हो लेकिन मुंबई पर राज तो शिव-सेना का ही है| शिव-सेना ने यह सिद्ध कर दिया| वह चुनाव में हार गई लेकिन दादागीरी में जीत गई| उसकी दादागीरी सिर्फ मुंबई तक सीमित है| यदि उसमें दम होता और उसकी बात में ज़रा-सा भी राष्ट्रवाद होता तो उसकी दिल्ली और लखनऊ में भी चलती लेकिन कसूरी की पुस्तक का विमोचन दिल्ली में बड़ी धूमधाम से हुआ और उसमें ला.कृ. आडवाणी भी आमंत्रित थे| गुलाम अली को दिल्ली और लखनऊ की सरकारों ने भी आमंत्रित कर लिया है| जहां तक शिव-सेना द्वारा पाकिस्तान-बहिष्कार का सवाल है, अभी कुछ दिन पहले पाकिस्तानी गायक राहत फतेहअली के कार्यक्रम में बाल ठाकरे परिवार का होनहार स्वयं उपस्थित था|

खुर्शीद कसूरी को मैं पिछले 20-25 साल से जानता हूं| वे अत्यंत सुशिक्षित और सुसंस्कृत व्यक्ति हैं| मुशर्रफ के जमाने में उन्होंने कश्मीर समस्या के हल के लिए जो चार-सूत्री समझौता तैयार किया था, यदि वह लागू हो जाता तो आज भारत-पाक रिश्तों का नक्शा ही कुछ दूसरा होता| उनकी यह पुस्तक भी पठनीय है| वर्तमान नेताओं के लिए मार्गदर्शक है| ‘आब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन’ के निदेशक सुधींद्र कुलकर्णी को कौन नहीं जानता? उनकी देशभक्ति और निष्ठा संदेह के परे हैं| वे विद्वान हैं और उन्होंने भारत-पाक रिश्तों को सुधारने के लिए भरसक प्रयत्न किया है| वे आडवाणीजी के बौद्धिक सहायक रहे हैं लेकिन शिवसेना के लोग अपने आप को ब्रह्म से भी बड़ा ब्रह्मवादिन समझते हैं (याने पोप से भी अधिक पवित्र)| इसीलिए वे बार-बार मसखरे की भूमिका में उतर आते हैं|

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