राकेश कुमार सिंह
मुसाफिर चलता जा,
कोशिस करता जा,
गम के बादल छट जायेगे,
खुशिओं के दिन फिर आयेंगे !
मंजिल जब मिल जायेगी !
मेहनत से इतिहास बदल दो,
दुनिया का आगाज बदल दो,
लहू से अपने सींच धरा को,
फिर से अपनी परवाज बदल दो,
खुशिओं के दिन फिर आयेगे !
मंजिल जब मिल जायेगी !
बन नयी क्रांति के नये उपाशक,
नव चेतना का बिगुल बजाकर,
गति हीन शिथिल जन जीवन में,
नव जागरण का अमृत भर दो,
खुशिओं के दिन फिर आयेगे !
मंजिल जब मिल जायेगी !
सास्वत सत्य यही हमेशा,
कर्म ही जीवन कर्म ही पूजा,
जीवन दर्शन कर्म समाहित,
कर्म ही हितकर कर्म प्रवाहित,
खुशिओं के दिन फिर आयेगे !
मंजिल जब मिल जायेगी !