किसानों के दर्द में ऐसा जुड़िए जैसा जुड़ते हैं शिवराज

1
198

संजय द्विवेदी

किसानों की बदहाली, बाढ़ व सूखा जैसी आपदाएं भारत जैसे देश में कोई बड़ी सूचना नहीं हैं। राजनीति में किसानों का दर्द सुनने और उनके समाधान की कोई परंपरा भी देखने को नहीं मिलती। किंतु पिछले कुछ दिनों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस शैली में अपनी पूरी सरकारी मशीनरी में किसानों के दर्द के प्रति संवेदना जगाने का प्रयास कर रहे हैं वह अभूतपूर्व है।

मध्यप्रदेश जिसने लगातार तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर कृषि कर्मण अवार्ड लेकर कृषि के क्षेत्र में अपनी शानदार उपलब्धियां साबित कीं, उसके किसान इस समय सूखे के गहरे संकट का सामना कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के 19 जिलों के 23 हजार गांवों में कोई 27.93 लाख किसानों की 26 लाख हेक्टेयर जमीन सूखे की चपेट में है। जाहिर तौर पर संकट गहरा है और शिवराज सरकार एक विकट चुनौती से दो-चार है। ऐसे कठिन समय में दिल्ली में एक अनूकूल सरकार होने के बावजूद मध्यप्रदेश को राहत के लिए केंद्र सरकार से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिले हैं। प्रधानमंत्री,वित्तमंत्री और गृहमंत्री से मिलकर मदद की गुहार लगा चुके शिवराज सिंह चौहान किसानों को कोई बड़ी राहत नहीं दिला सके हैं। सिवाय इस आश्वासन के कि केंद्र की टीम इन क्षेत्रों की स्थिति का जायजा लेगी। इस निराशा की घड़ी में कोई भी मुख्यमंत्री स्थितियों से टकराने के बजाए दम साध कर बैठ जाता। क्योंकि केंद्र में बैठी अपने ही दल की सरकार का विरोध तो किया नहीं जा सकता। ना ही केंद्र की इस उपेक्षा के राजनीतिक लाभ लिए जा सकते हैं। हाल-फिलहाल मप्र के लोकसभा,विधानसभा, स्थानीय निकाय से लेकर सारे चुनाव निपट चुके हैं, सो जनता के दर्द से थोडा दूर रहा जा सकता है। विपक्ष का मध्यप्रदेश में जो हाल है, वह किसी से छिपा नहीं है। यानि शिवराज सिंह चौहान आराम से घर बैठकर इस पूरी स्थिshivrajति में निरपेक्ष रह सकते थे। किंतु वे यथास्थितिवादी और हार मानकर बैठ जाने वालों में नहीं हैं। शायद केंद्र में कांग्रेस या किसी अन्य दल की सरकार होती तो मप्र भाजपा आसमान सिर पर उठा लेती और केंद्र के खिलाफ इन स्थितियों में खासी मुखर और आंदोलनकारी भूमिका में होती। शिवराज ने इस अवसर को भी एक संपर्क अभियान में बदल दिया। अपने मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों और सरकारी अफसरों-नौकरशाहों को मैदान में उतार दिया। वे इस बहाने बड़ी राहत तुरंत भले न दे पाए हों किंतु उन्होंने यह तो साबित कर दिया कि आपके हर दुख में सरकार आपके साथ खड़ी है। देश में माखौल बनते लोकतंत्र में यह कम सुखद सूचना नहीं है। यह साधारण नहीं है मुख्यमंत्री समेत राज्य की प्रथम श्रेणी की नौकरशाही भी सीधे खेतों में उतरी और संकट का आंकलन किया। यह भी साधारण नहीं कि मुख्यमंत्री ने इन दौरों से लौटे अफसरों से वन-टू-वन चर्चा की। इससे संकट के प्रति सरकार और उसके मुखिया की संवेदनशीलता का पता चलता है। अपने इसी कार्यकर्ताभाव और संपर्कशीलता से मुख्यमंत्री ने अपने राजनीतिक विरोधियों को मीलों पीछे छोड़ दिया है, वे चाहे उनके अपने दल में हों या कांग्रेस में। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इस लोकप्रियता को चमकते शहरों में ही नहीं गांवों की पगडंडियों में भी महसूस किया जा सकता है।

यह उनकी समस्या के प्रति गहरी समझ और किसानों के प्रति संवेदनशीलता का ही परिचायक है कि वे अपनी सरकार की सीमाओं में रहकर सारे प्रयास करते हैं तो उन्हें विविध संचार माध्यमों से जनता को परिचित भी कराते हैं। वे यहीं रूकते। केंद्र की अपेक्षित उदारता न देखते हुए वे किसानों की इस आपदा से निपटने के लिए कर्ज लेने की योजना पर भी विचार करते हैं। किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा किसानों के दर्द में इस प्रकार के फैसले लेना एक मिसाल ही है। किसी भी राजनेता के लिए यह बहुत आसान होता है कि वह केंद्र से अपेक्षित मदद न मिलने का रोना रोकर चीजों को टाल दे किंतु शिवराज इस क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए दिखते हैं। यह बात खासे महत्व की है कि अपने मुख्यमंत्रित्व के दस साल पूरे होने पर भोपाल में एक भव्य समारोह का आयोजन मप्र भाजपा द्वारा किया जाना था। इस आयोजन को ताजा घटनाक्रमों के मद्देनजर रद्द करने की पहल भी स्वयं शिवराज सिंह ने की। उनका मानना है कि राज्य के किसान जब गहरे संकट के सामने हों तो ऐसे विशाल आयोजन की जरूरत नहीं है। ये छोटे-छोटे प्रतीकात्मक कदम भी राज्य के मुखिया की संवेदनशीलता को प्रकट करते हैं। यह बात बताती है किस तरह शिवराज सिंह चौहान ने राजसत्ता को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने का काम किया है। चुनाव दर चुनाव की जीत ने उनमें दंभ नहीं भरा बल्कि उनमें वह विनम्रता भरी है जिनसे कोई भी राजनेता, लोकनेता बनने की ओर बढ़ता है।

वैसे भी शिवराज सिंह चौहान किसानों के प्रति सदैव संवेदना से भरे रहे हैं। वे खुद को भी किसान परिवार का बताते हैं। कोई चार साल पहले मप्र में कृषि कैबिनेट का गठन किया। यह सरकार का एक ऐसा फोरम है जहां किसानों से जुड़े मुद्दों पर समग्र रूप से संवाद कर फैसले लिए जाते हैं। इस सबके बावजूद यह तो नहीं कहा जा सकता कि राज्य में किसानों की माली हालत में बहुत सुधार हुआ है। किंतु इतना तो मानना ही पड़ेगा राज्य में खेती का रकबा बढ़ा है, किसानों को पानी की सुविधा मिली है, पहले की अपेक्षा उन्हें अधिक समय तक बिजली मिल रही है। इस क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद कहते हैं कि खेती को लाभ का धंधा बनाना है, जाहिर है इस दिशा में उन्हें और राज्य को अभी लंबी यात्रा तय करनी है।

1 COMMENT

  1. मान गए शिवराज को। यह काफी अनुकरणदायक उदाहरण है। केंद्र भी इस समाचार का संज्ञान तो लेता ही होगा। पर शिवराज जी के इस पहलु का दर्शन अभिभूत कर गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here