कीठमझील-सूरसरोवर पक्षीअभयारण्य (आगरा) को अपने प्रोग्राम में शामिल करें

prvasi-pakshiडा. राधेश्याम द्विवेदी

प्रवासी पक्षियों का कलरव – चहचहावट आपका मन मोह लेगी :- जब पक्षियों के मूल निवास स्थान की झीलें और जलाशय बर्फ में तब्दील हो जाता है और भोजन की कमी होती है तब ये पक्षी अपेक्षाकृत गर्म इलाकों को अपना बसेरा बनाते हैं। वर्षाकाल समाप्त होते ही देश के प्रमुख झीलों, नदियों, तालाबों और समुद्र तटों पर प्रवासी पक्षियों की चहलकदमी शुरू होती है । प्रतिवर्ष जाड़े के दिनों में, जब प्रवासी पक्षी के देश में बर्फ जमने लगती है, भोजन मिलना मुश्किल हो जाता है, तब भारत की ओर रूख करते हैं। इन दिनों गोधूली के समय आप देख सकते हैं कि कतार के कतार विभिन्न प्रकार के पक्षी आकाश मार्ग से कलरव करते हुए हिमालय की ओर से चले आ रहे हैं। प्रवासी पक्षियों में सर्वाधिक संख्या जलतटीय पक्षियों की होती है। इनकी कतार देखकर ऐसा लगता है मानो सैनिकों की पंक्तियां किसी युद्ध स्थल की ओर जा रही हैं। चंबल की सुंदर वादियों में पहुंच रहे प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां व लगातार उड़ान भरते रहने के मनोहारी दृश्यों से वादियों की सुंदरता और बढ़ गई है। इस वजह से चंबल सेंचुरी का आकर्षण भी बढ़ गया है। चंबल सेंचुरी में विश्व के ठण्डे देशों स्विटज़रलैंड, साइबेरिया, जापान, रूस, आदि दर्जनों देशों में बर्फबारी के कारण हजारों मील की दूरी तय कर यहां भारी संख्या में प्रवासी पक्षी करीब चार माह तक प्रवास करते हैं तथा मौसम अनुकूल होने पर वसंत पंचमी के बाद अपने देश में लौट जाते हैं। तीन दर्जन से अधिक देश ऐसे हैं जहां बर्फबारी बहुत अधिक होती है। इनमें रूस, साइबेरिया आदि देशों के पक्षी शामिल हैं। इन पक्षियों की प्रजातियों में टर्न, बार हैडिड गोड, पिनटेल, पावलर, मलार्ड, गागरे, गोनी आदि प्रमुख हैं। चंबल में सर्दियों के मौसम में 280 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी भ्रमण करने आते हैं। मौसम बदलते ही सबसे पहले साइबेरिया के हंस और चीन से बतखों का आगमन होता है। इनकी मादाएं रास्ते में रुककर प्रजनन क्रियाएं मानसरोवर, पैगोंग, पाल्टी आदि झीलों के तट पर करती हैं। यहां कुछ दिनर रुककर अपने नवजात बच्चों के साथ मंजिल पर पहुंच जाती हैं। ये ऐसे पक्षी हैं जो प्रतिवर्ष निश्चित स्थान पर ही पहुंचते हैं। कुछ पक्षियों के पैरों में छल्ला पहनाकर देखा गया तो पता चला कि वे बिना भूल-चूक किये अगले वर्ष भी निर्धारित स्थान पर ही पहुंचे। इनके आने-जाने का समय और रास्ते निर्धारित हैं। अधिकांश पक्षी आसमान के नक्षत्रों से रास्ते का अनुमान लगाते हैं। कुछ पक्षी नदी-सरोवरों और घाटियों का सहारा लेते हैं। कीठमझील-सूरसरोवर पक्षीअभयारण्य की अवस्थित:- कीठम झील सिकंदरा से 12 किमी और आगरा से 20 किमी दूर नेशनल हाइवे 2 पर स्थित है। यह सुरम्य झील शांत वातावरण के बीच है और पिकनिक मनाने का एक बेहतरीन विकल्प मुहैया कराता है। साथ ही शहरी जीवन की भाग-दौड़ के बीच यहां आराम के कुछ पल बिताए जा सकते हैं। करीब 7.13 वर्ग किमी. के जलग्रहण क्षेत्र में पानी के जमा होने से बने यहां पंचभुजाकार कीठम झील में ढेर सारी पानी की पक्षियां हैं। साथ मछलियों की विशाल श्रृंखला से इसके सौंदर्य में और भी वृद्धि हो जाती है।

मथुरा रिफाइनरी के ट्रीटमेंट प्लांट से जमीन प्रदूषित:- कीठम बर्ड सेंचुरी क्षेत्र में मथुरा रिफाइनरी का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है। रिफाइनरी यमुना से तेल शोधन कार्य के लिए पानी लेती है। इसके लिए कीठम स्थित यमुना नदी पर पंप हाउस व वाटर प्यूरिफिकेशन का प्लांट लगा है। पानी में क्लोरीन आदि मिलाकर साफ करने को लेकर चीफ फॉरेस्ट ऑफिसर ने वातावरण व वन्य जीवों को नुकसान होना बताकर आपत्ति जताई थी। उन्हें क्लोरीनेशन से नुकसान न होने आदि के बारे में संतुष्ट कर दिया गया था । रिफाइनरी को पानी की आपूर्ति लगातार जारी है। यहां पर जल शोधन के लिए घातक केमिकलों का प्रयोग होता था। ट्रीटमेंट के बाद वेस्ट को सेंचुरी क्षेत्र में फेंकने से यहां की जमीन प्रदूषित होने लगी। इस संबंध में रिफाइनरी के ईडी को कई दफा वाइल्ड लाइफ के अधिकारियों ने नोटिस भेजा था, लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। रिफाइनरी की गाड़ियां भी सेंचुरी क्षेत्र से ही गुजरती हैं। केमिकलों का असर पक्षियों पर पड़ने की संभावना के मद्देनजर करीब दो सप्ताह पहले चंबल सेंचुरी के डीएफओ ने केमिकल से भरी गाड़ियों को जब्त कर लिया था । इसको छुड़ाने के लिये रिफाइनरी अधिकारियों ने तमाम प्रयास किए मगर सफलता नहीं मिली। इस प्लांट को केमिकल की आवाजाही में दिक्कत होने के कारण बंद करना पड़ा है। इस प्लांट में घातक केमिकलों का इस्तेमाल किया जाता था। कई बार नोटिस देने के बावजूद जल शोधन के बाद वेस्ट सेंचुरी क्षेत्र में ही फेंका जा रहा था। इसके बाद से प्लांट में कामकाज ठप है। डीएफओ चंबल सेंचुरी एस. बनर्जी ने बताया कि रिफाइनरी के लोग रात्रि में गाड़ियों से तेज आवाज में हार्न बजाते हुए जाते हैं। इससे कई दफा जंगली जानवर गाड़ियों की चपेट में आ जाते हैं। सेंचुरी के पक्षियों में भी डर पैदा होता है। ट्रैवल राइटर्स को प्रदेश भ्रमण पर बुलाया गया:-उप्र के पर्यटन स्थलों के प्रचार-प्रसार को प्रदेश सरकार 40 देसी-विदेशी ट्रैवल राइटर्स आमंत्रित किए । देसी-विदेशी पर्यटकों में लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार ने ख्याति प्राप्त ट्रैवल राइटर्स को प्रदेश भ्रमण पर बुलाया । इनमें से एक दल ताजनगरी आया । वह हेरिटेज आर्क में शामिल आगरा-लखनऊ-वाराणसी और उनके समीप स्थित पर्यटन स्थलों का भ्रमण 12 से 15 अक्टूबर तक किया ।16 अक्टूबर को वाराणसी में ट्रैवल राइटर्स कॉन्क्लेव, 2016 हुआ । वे ताजमहल, ताज नेचर वाक, आगरा किला, सिकंदरा, एत्माद्दौला, मेहताब बाग व कीठम बर्ड सेंचुरी देखें। दो दलों में विभक्त होकर वे चंबल सेंचुरी व मथुरा-वृंदावन, अलीगढ़ और फतेहपुर सीकरी गए और भ्रमण किए ।

सूर सरोवर पक्षी अभयारण्य:- कीठम झील के पास बना सुरम्य सूर सरोवर पक्षी अभयारण्य में स्थानीय व प्रवासी पक्षियों की 100 से ज्यादा प्रजातियां हैं। साथ ही 12 प्रजाति के स्तनपायी और 18 प्रजाति के सरीसृप का भी यह ठिकाना है। स्पूनबिल, साइबेरियन सारस, सरने सारस, ब्राहमनी बत्तख, बार-हेडेड गीसे और गाडवॉल्स व शोवेलर्स यहां पाई जानी वाली पक्षियों की कुछ प्रमुख प्रजातियां है। इस अभयारण्य तक कीठम रेलवे स्टेशन से आसानी से पहुंचा जा सकता है। उत्तरप्रदेश वन विभाग ने 27 मार्च 1991 को इस पूरे क्षेत्र को राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य का नाम दिया है।प्रवासी पक्षी जब भारत आते हैं तो उनकी यात्रा का एक पड़ाव आगरा-दिल्ली हाईवे स्थित कीठम पक्षी झील होता है । बीते सालों की तरह इस वर्ष भी सर्दियों की दस्तक के साथ ही साइबेरिया सहित कई देशों से आने वाले इन पक्षियों की आमद शुरू हो चुकी है। ग्रेट व्हाइट पेलिकन, बार हैडेड गूज, कॉम्ब डक, स्पाट बिल डक, स्पून बिल डक, फ्लेमिंगो आदि पक्षी इन दिनों कीठम में कलरव करते देखे जा सकते हैं। कभी झुंड में यह पक्षी झील में बने टापुओं पर बैठकर वहां की शोभा बढ़ाते हैं तो कभी एक साथ आकाश में उड़कर मनभावन आकृति सी उकेर देते हैं। फ्लैमिंगो तो करीब सौ की संख्या में एक साथ आए थे, मगर सिर्फ दो दिन रुककर आगे बढ़ गए। सेंचुरी प्रशासन को उम्मीद है कि अभी वो फिर आएंगे। सेंचुरी में इन दिनों इन पक्षियों का भारी शोर है। यह शोर भी बेहद सुरीला है । सुनने वालों के कानों में शहद घुल जाता है। एक ओर से पक्षियों की चहचहाट होती है तो दूसरी ओर से भी उसी अंदाज में जवाब मिलता है। कभी झील में कलरव , तो कभी आकाश में अठखेलियां होती है । कीठम झील की भी सुंदरता बढ़ गई है। सैकड़ों की संख्या में यहां आए विदेशी मेहमानों के चलते यह सब कुछ हुआ है । कीठम झील का आकर्षण इन पक्षियों को यहां लाता है। विदेशी मेहमानों के ठहराव और उन्हें प्राकृतिक वातावरण मुहैया कराने के लिए वन विभाग की ओर से झील के बीच करीब दर्जनभर स्थानों पर टापू बनवाए जाते हैं। मगर इन दिनों झील का ज्यादा पानी इन पक्षियों के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है। पक्षियों के लिए झील में अधिकतम 17-18 फुट पानी रहना चाहिए, मगर इन दिनों पानी इससे अधिक है। ऐसे में पक्षियों को दिक्कत हो रही है। यदि इन समस्याओं के निदान के लिए प्रशासन थोड़ा गम्भीर हो जाये तो आगरा में पर्यटकों को ठहरने के लिए एक आकर्षक स्थल के रूप् में यह विकसित हो सकता है।

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