क्रीमिलेयर की औलादें

संजीव खुदशाह

एक डिप्टी कलेक्टर ने अपनी विद्वता को प्रदर्शित करते हुए बड़े ही गंभीर लहजे में कहा-”यार आरक्षण जैसी सुविधायें अत्यंत पिछड़े लोगों के लिए है उपर उठे लोग यानी क्रीमिलेयर को चाहिए की वे अपने अन्य भाई बन्धुओं के लिए आरक्षण का लाभ लेना बंद कर दे ताकि उन्हे भी मौका मिल सकें। हम जैसे लोगों को भी लाभ लेना बंद कर देना चाहिए।“ क्रीमिलेयर को इस तरह परिभाषित करने तथा आरक्षण पर ऐसे तर्क देने पर मुझे उस अधिकारी पर बड़ा आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इसलिए और भी ज्यादा हुआ की वे स्वयं सुनार जाति के है जो ओ.बी.सी. से ताल्लुक रखती है।

भारतीय समाज में सुनारों की स्थिती किसी से छिपी नही है। सेठों के यहां जेवरों के लेबर के रूप में ये जातियां कालकोठरी नुमा परिस्थियों में काम करती है। बारीक तकनीकि काम तथा रसायनिक धुयें से घिरे होने पर इन्हे दमा, फेफड़े सम्बधी बिमारियों की शिकायत आमतौर पर रहती है। उस पर भी काम की महत्ता के अनुपात में बेहद कम मजदूरी इन्हे दी जाती। सोने जैसी महत्वपूर्ण धातु के कारीगर होने के गुमान तथा ज्वैलरी के चमकधमक भरे शोरूम में इनकी आवाज कण्ठ से उपर नही निकल पाती है।

यह चिन्ता का विषय है कि कितनी सोनी जाति के लोग प्रथम श्रेणी अधिकारी बने है? कितने मंत्री बने है? कितने लोग ज्वैलरी शोरूम के मालिक है? इन प्रश्न के उत्तर में आकड़ा नगण्य है। सिर्फ सुनार ही नही सारी अगड़ी/पिछड़ी माने जानी वाली ओ.बी.सी. की जातियों की स्थिति ऐसी ही है। क्रीमिलेयर एक ऐसा शब्दचक्र है जो सामान्य बुध्दिवाले व्यक्ति का दिवाला निकाल दे। आईये इस शब्द से मै आपका परिचय कराता हूं।

क्रीमिलेयर शब्द गरम दूध के उपर जमी मलाई की परत के लिए इजाद हुआ है। यानी दूध का वो उपरी हिस्सा जिसमें क्रीम ही क्रीम है। पिछड़ा वर्ग आरक्षण के संबंध में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में किया गया था। बस इस शब्द को सामंतवादियों ने कैच कर लिया और आरक्षण को भोथवा (प्रभाव कम करने) करने के लिए इसे एक औजार के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी हुए। यहां मै आपकों ये बताना भी जरूरी समझता हूं कि कानून में इस शब्द का कही प्रयोग नही किया गया है, न ही सरकारी तौर पर इस मामले में सर्वस्वीकृत शब्द है। फिर भी सामंतवादियों ने तथा उनके प्रतीनिधियों ने (जो प्रगतिशीलता या बुद्धजीवियों का मुखौटा पहने हुए है) ने अतिपिछड़ी जातियों के आरक्षण जैसी सुविधाओं के विरोध में इस शब्द का जम कर प्रयोग किया। दरअसल उनके निशाने में वे लोग थे जिन्होने आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी में अपना स्थान बनाया। ये बात सामंतवादियों के सहन से बाहर थी कि एक निम्न जाति का व्यक्ति उनके बराबर आकर बैठे। इसलिए सबसे पहले उन्होने क्रीमिलेयर और नान क्रीमिलेयर दो पार्ट किये। क्रीमिलेयर को कहा अपने से नीचे के लिए ये सुविधायें लेना बंन्द कर दो। नान क्रीमिलेयर से कहा क्रीमिलेयर तुम्हारा हक मार रहे है। अब तुम्हे इनसे संघर्ष करना है। ये प्रक्रम फूट डालों, राज करो की नीति जैसा था। नानाक्रीमिलेयर (ऐसे स्वजाति बंधु जिन्होने आरक्षण का लाभ अभी तक नही लिया है) तो इन बातों में नही आये, लेकिन अपने आपको क्रीमिलेयर समझने वाले लोग जल्द ही इनके झांसे में आ गये। इन्होने न तो सही वस्तुस्थिती को समझने की कोशिश की, न ही आकड़ों पर ध्यान दिया। भ्रमीत तर्को पर वे गुमराह होते गये। भले ही इन लोगों ने आरक्षण का लाभ लेना नही छोड़ा, किन्तु इन सामंतवादियों के सिद्धांत के समर्थन में आ खड़े हुए। सच्चाई क्या है?

सच्चाई यह है कि कुल आरक्षण हितग्राहियों का मात्र ७% प्रतिशत ही क्रीमिलेयर में आता है। जो इनकी आखों में खटकते है। दूसरी ओर आज भी हजारों बैकलाग (बैकलाग वह खाली पड़े आरक्षित पद है जो अजा अजजा तथा पिछड़ा वर्ग द्वारा आज तक नही भरे जा सके।) खाली पड़े है जिन्हे भरने हेतु आरक्षण हितग्राही आवेदन भी नही दे रहे है। यदि क्रीमिलेयर भी अपना अधिकार छोड़ दे तो बैकलाग पूरी की पूरी खाली रह जायेगी और इनकी शातिर चाल कामयाब हो जायेगी। क्योकि खाली पद को उपयुक्त आवेदक नही कहकर जनरल शीट घोषित कर दिया जाता है। इस प्रकार प्रगतिशीलतावादियों की चाल कामयाब हो जाती है। अब प्राकृतिक न्याय की कसौटी पर यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या ऐसे क्रीमिलेयर को आरक्षण आदि लाभ लेना छोड़ देना चाहिए? इसके जवाब में एक प्रश्न और उदित होता है कि आरक्षण का मुख्य लक्ष्य क्या था? वास्तव में उस प्रश्न का जवाब इस प्रश्न के उत्तर में छिपा है ।

आरक्षण का मुख्य उद्देश्य है सामाजिक समानता लाना है न की आर्थिक समानता। समाजिक समानता हेतु शासन प्रशासन में बराबर की भागीदारी आवश्यक है। और समाजिक समानता का अर्थ यह नही है कि एक साथ बैठकर खाना, घूमना या पिक्चर देखना। सामाजिक समानता की पुष्टी इस बात से होगी जब ब्राम्हण अपनी बेटी का रिश्ता लेकर दलित के घर जायेगा। यानी जाति का महत्व खत्म हो जायेगा। जब तक एक जाति अपने आपको उची समझती रहेगी दूसरी छोटी जाति प्रताड़ित होती रहेगी। दिखावटी समानता चाहे कितनी भी हो जाय। चाहे क्रीमिलेयर कितना ही तरक्की कर जाये जाति के लांछन से नही बच पाता है। जब उसे उतनी ही लांच्छना का शिकार होना पड़ता है जितना उसके गरीब समाजिक बंधु तो क्यो क्रीमिलेयर आरक्षण के अधिकार को छोड़ दे।

मै ऐसे भंगी जाति में जन्मे व्यक्ति को जानता हूं जो राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर आने के बाद भी जातिगत लांच्छन से नही बच सके। उसी प्रकार सवर्ण मीडिया द्वारा लालु यादव को मसखरा तथा मायावती को बदमीजाज प्रचारित करना उसी जातिगत लांछना का ही परिणाम है। अब क्रीमिलेयर या उनकी औलादों को कौन सिखाये की कुत्ता का गूं बनना या धोबी का कुत्ता बनना एक ही मतलब है बताया तो उसे जा सकता है जो ये माने की उसे जानना बांकी है जो स्वयंभू ज्ञाता है उन्हे तो समय ही सिखा सकता है । काश समाजिक चेतना की बयार जो नीचे के तबके में बह रही है उपर के तबके को भी कुछ हवा देती (क्रीमिलेयर से आश्य है)।

3 COMMENTS

  1. संजीव खुद शाह महोदय स्वयं को किसी विषय का अधिकृत विद्वान मान लेने से व्यक्ति वास्तव में उस विषय का विद्वान नहीं हो जाता. समझदार व्यक्ति को चाहिए की अपने ज्ञान में सुधार करता रहे अन्यथा तालाब का ठहरा जल बन कर रह जाता है. के.एस.द्विवेदी जी के विचारों पर ज़रा गौर फरमाएं.

  2. दूसरों को छोडिये, क्या आप अपने द्वारा दिए गए तर्कों से सहमत हैं?? (इस प्रश्न का उत्तर मत दीजिये, सिर्फ सोचिये)

    वैसे आपका आलेख पढ़कर ये लगा की आप बहुत ही कट्टर जातिवादी हैं… आरक्षण या उस जैसे किसी सामाजिक जैसे मुद्दे से आपको कोई सरोकार है नहीं है, और इन के बारे में आपका ज्ञान उतना ही है जितना दिग्विजय सिंह का आई क्यू.

  3. You have written a good thing but my question is-
    1. in almost all the developed countries No reservation policy is there, in this situation aren’t they developed?
    2. In a long journey of Reservation, why not the situation of those people (belongs to these casts) is going better?
    3. when the schools are there, SSA type events are there, Books are same, Opportunity to learn are same in class- why Reservation in Service?
    4. if a person get service then the work performance played a role in getting promotion, then —why Reservation?

    Actually reservation is the demarcation and highlighter for those castes. there is no use of it if we want to be developed.

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