कुम्भ पर्व का आगाज, मध्य रात्रि के बाद शुरू हुआ मकर संक्रान्ति का स्नान

अवनीश सिंह

माघ मकरगत रवि जब होइ, तीरथ पतिहिः आव सब कोइ। सोमवार को मध्य रात्रि के बाद तीर्थराज प्रयाग में पवित्र संगम के किनारे मकर संक्रान्ति के स्नान के साथ कुम्भ पर्व का आगाज हो गया। जैसे ही घड़ी की सुई बारह से आगे बढ़ी पवित्र संगम व गंगा के किनारे बने दर्जनो स्नान घाटो पर जुटे लाखो की संख्या में श्रद्वालुओं ने हर हर गंगे की आवाज करते हुए पुण्य की एक डुबकी लगा कर अमृत पाने की इच्छा में गंगा में कूद पड़े। भोर के तीन बजे तक लाखो श्रद्वालु गंगा व संगम के पवित्र जल में डुबकी लगा चंुके थे।

मकर संक्रान्ति के स्नान पर्व पर गंगा में डुबकी लगाने के लिए श्रद्वालुओ के मेला क्षेत्र में आने का सिलसिला यद्यपि रविवार की सुबह से ही शुरू हो गया था लेकिन रात्रि नौ बजे के बाद तो ऐसा लगा जैसे आस्था का सैलाब संगम की ओर उमड़ पड़ा हो। मेला प्रशासन ने मकर संक्रान्ति के अवसर पर एक करोड़ दस लाख श्रद्वालुओ के आने का अनुमान लगाया है। इसके मद्देनजर प्रशासन ने पूरे मेला क्षेत्र का सुरक्षा घेरा भी मजबूत कर दिया है। मेला क्षेत्र के अलावा इलाहाबाद शहर को भी कमांडो के घेरे में ले लिया गया है, पुलिस हर आने जाने वालो पर नजर रख रही है।

मकर संक्रान्ति के अवसर पर शुरू हो रहे कुम्भ पर्व में रात्रि तीन बजे के बाद जहां संगम तट पर श्रद्वालुओं का रेला जारी है, वही तमाम श्रद्वालु गंगा में डुबकी लगा कर अपने घर को वापस भी हो रहे है। रामगढ़ बिहार की रहने वाली सावित्री देवी ने अपने परिवार समेत एक बजे ही संगम में डुबकी लगा ली, उसके बाद वह परिवार के साथ सीधा रेलवे स्टेशन के लिए चल दी। वही छत्तीसगढ़ के बेमतरवा निवासी तेज सिंह अपनी पत्नी सुनीता देवी और पड़ोसी छेदीलाल और अन्य के साथ गंगा में डुबकी लगाने के बाद अपने घर के लिए रवाना हो गये। खागा फतेहपुर के भीम सिंह भी अपने पड़ोसियों के साथ ढ़ाई बजे तक गंगा में डुबकी लगा चंुके थे।

 

नेपाल के श्रद्वालुओं ने भी लगायी डुबकी

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पवित्र जल में नेपाली श्रद्वालुओं ने भी रात बारह बजे के बाद ही डुबकी लगा ली। नेपाल की राजधानी काठमांडू के केशव कृष्ण अपनी पत्नी के साथ बड़ी श्रद्वा के साथ आज ही तीर्थराज प्रयाग में आये और कुम्भ पर्व का आगाज होते ही संगम में डुबकी लगा लिये। स्नान के बाद नेपाली श्रद्वालु ने मकर संक्रान्ति के अवसर पर ब्राळमणो को दान दक्षीणा दिया और अपने देश को वापस जाने के लिए रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिये। नेपाल के सरलाही जिला से नरेन्द्र महतो समेत और कई लोग भी कुम्भ पर्व पर संगम में डुबकी लगाने तीर्थराज प्रयाग पहंुचे है।

मकर संक्रान्ति के स्नान पर्व पर गंगा में डुबकी लगाने के लिए श्रद्वालुओ के मेला क्षेत्र में आने का सिलसिला यद्यपि रविवार की सुबह से ही शुरू हो गया था लेकिन रात्रि नौ बजे के बाद तो ऐसा लगा जैसे आस्था का सैलाब संगम की ओर उमड़ पड़ा हो। मेला प्रशासन ने मकर संक्रान्ति के अवसर पर एक करोड़ दस लाख श्रद्वालुओ के आने का अनुमान लगाया है। इसके मद्देनजर प्रशासन ने पूरे मेला क्षेत्र का सुरक्षा घेरा भी मजबूत कर दिया है। मेला क्षेत्र के अलावा इलाहाबाद शहर को भी कमांडो के घेरे में ले लिया गया है, पुलिस हर आने जाने वालो पर नजर रख रही है।

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माघ मास में व्रत एवं पर्वो का महात्म्य

$img_title (श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज)
ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार भारतीय संवत्सर को दो अघनों में बांटा गया है – एक उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायण। यह सौर मास के अनुसार मकर संक्रांति से लेकर मिथुन राशि तक के छःमास तक उत्तरायण और कर्क राशि के सूर्य से लेकर धनु राशिस्थ सूर्य के छःमास तक की कालावधि को दक्षिणायण माना गया है। एक संक्रांति से लेकर दूसरी संक्रान्ति तक का समय सौर मास तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक के समय को चान्द्रमास कहा जाता है। वर्ष भर मंे मेष आदि बारह राशियां होती है और प्रत्येक राशि में सूर्य एक मास तक रहता है और एक राशि से जब सूर्य दूसरी (अगली) राशि मंे प्रवेश करता है तो उस सन्धि (संक्रमण) काल को ही संक्रांति कहते हैं। इस प्रकार सौर गणना के अनुसार बारह राशियों के बारह मास होते हैं। भारतीय संवत्सर का दसवां सौर मास तथा ग्यारहवां चान्द्रमास ‘माघ’ कहा जाता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर राशि से कुम्भराशि तक के सूर्य-संचरण काल को सौर माघ मास कहते हैं। सूर्य के समान ही चन्द्रमा भी मेषादि बारह राशियों में क्रमशः संचरण करता है। जिसे चांद्र मास कहा जाता है। चान्द्रमास में दो पक्ष होते हैं – एक कृष्ण पक्ष दूसरा शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या तथा शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इसे माघमास कहा जाता है। इस प्रकार सौर मास और चांन्द्रमास को मिलाकर कुल चालीस दिन तक का समय माघमास माना जाता है।
धार्मिक व आध्यात्मिक साधना तपस्या की दृष्टि से समस्त सत्कर्मानुष्ठान के लिए माघ उत्तम फलद एवं पुण्य प्रद माना गया है। माघ मास जहाॅं स्वास्थ्यवर्धक और आरोग्य प्रदाता माना जाताा है, वहीं गंगादि पुण्य सलिला नदियों के जल में स्नान, दान, पूजन-अर्चन, देव-पितृ तर्पण उनके तट पर अथवा समीप में वास करते हुए उनके अमृतवत् जल का सेवन, भगवन्नाम जप एवं संकीर्तन आदि का विशद् महात्म्य बताया गया है।
माघ मास के महात्म्य का वर्णन पद्यपुराण के उत्तरखण्ड में करते हुए कहा गया है कि भगवान श्री मन्नारायण को व्रत, दान, अनुष्ठान एवं तपस्या आदि से उतनी प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती, जितनी माघ मास में स्नान करने से होती है। इसलिए भगवान श्री हरि की प्रसन्नता, प्रीति, उत्तमलोक की प्राप्ति, समस्त पापों से मुक्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ मास स्नान संकल्पित भाव से करना ही चाहिए:-
  व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च, न तथा पीयते हरिः। माघमज्जन मात्रेण यथा प्रीणाति केशवः।।
  प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः।।

विशेषतः माघ मास में अन्तः एवं बाह्य शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं औदार्य व्रत का संकल्प लेकर नित्य गंगा स्नान, एक समय दृविष्य का भोजन, इन्द्रिय निग्रह, वाणी पर संयम, ईष्या-द्वेष भाव से रहित होकर भगवान श्री हरि के नाम जप का व्रत लेकर भागवत आदि सद्ग्रन्थों का परायण, श्रवण, सत्संग-सेवन, सदाचार का पालन, परोपकारी आदि सत्कर्मो का नियम पालन करना चाहिए। ब्राह्मणों का तिल, गुड़, भोजन, कम्बल, ऊनी, सूती वस्त्र आदि का दान, गरीब असहायों को भोजन एवं शीतबाधा निवारण के लिए ऊनी-सूती वस्त्र सहित शीतबाधा निवारण के उपाय जैसे पुण्य-कर्म करना चाहिए। माघ मास देव पित तर्पण श्राद्ध आदि पितृकर्म के लिए भी प्रशस्व माना गया है। ये समस्व सत्कर्म अत्यन्त पुण्य फलदाता है और भगवान माधव की प्रति कराने वाले हैं।
वैसे तो माघ मास की प्रत्येक विधि पर्व ही है। किन्तु किसी कारण वश अशक्तावस्था में पूरे माघ महीने भर स्नान दान का व्रत न ले सके तो शास्त्रों ने ऐसे व्यक्तियों के लिए भी व्यवस्था दी है कि तीन दिन, एक दिन का व्रत लेकर स्नान करने से उन्हें पुण्य फल प्राप्त होता ही है – माघमास पर्यंन्त स्नानासम्भवे तु ´यहमेकाहं, वा स्नायात्।
माघ मास का यह अपूर्व वैशिष्ट्य है कि जहां कहीं नदी, सरोवर में पर्याप्त जल हो, वह गंगा जलवत् ही पवित्र होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, मथुरा, नैमिषारण्य, हरिद्वार, पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गंगा सागर तथा नर्मदा, मंदाकिनी, क्षिप्रा आदि पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है। श्रद्धालु भक्तजन प्रयाग में माघ मास भर (मकर संक्रांति से कुम्भ संक्रांति तक अथवा माघ कृष्ण प्रतिपदा से माघी पूर्णिमा तक) सविधि कल्पवास का संकल्प धारण कर निवास करते हैं। शास्त्रानुसार ब्रह्मा का एक दिन ही ‘कल्प’ कहा जाता है, जिसका मान संधि सहित चैदह-मन्वन्तरों के समय के बराबर होता है अर्थात् एक हजार महायुग या चार अरब बतीस करोड़ मानव वर्षो के बराबर होता है। इस प्रकार ‘कल्पवास’ का व्रत लेकर नियम पालन करने से एक माह में ही इतने लम्बे समय तक के पुण्यार्जन का फल मिल जाता है। असत् कर्मो के प्रध्वंस तथा पुण्यार्जन एवं भगवान की प्रसन्नता के लिए प्रयाग पावन क्षेत्रों में कष्ट सहकर भी श्रद्धालु विद्वत्जन एवं विवेकी सद्गृहस्थ एवं सन्त एक माह का कल्पवास करते हैं और शास्योक्त सत्कर्म करने में रत रहते हैं। श्री गंगा आदि तीर्थ क्षेत्रों में पापाचार को प्रयत्नपूर्वक त्याग कर मनोवाक्कर्म से धर्म संग्रह करने से ऐहिका मुष्मिक अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है। गंगा स्नान के लिए गंगा तट पर पहुॅंचकर तृप्त भाव से यह प्रार्थना पूर्ण निवेदन कर गंगा जी में स्नान करना चाहिए-
देवी त्वदर्शनादेव महापातकिनो मम।
          विनष्टमभवत्पापं जन्मकोटिसमुभ्दवम्।।
अर्थात हे देवि! अपने नेत्रों से ब्रह्मद्रवस्वरुपा आपका साक्षात् दर्शन करने मात्र से मुझ महापातकी के करोड़ो जन्मों के संचित पाप आज विनष्ट हो गये। इस प्रकार की भावना मन में रखकर प्रसन्नचित्त हो गंगा स्नान, तर्पण संध्या आदि करनी चाहिए।
प्रयाग में तो विशिष्ट ग्रह संयोग से कुम्भ और अर्धकुम्भ जैसे पावन पर्व भी माघ मास (मकरस्थ सूर्य चन्द और वृषस्थ बृहस्पति) में क्रमशः प्रत्येक बारह वर्षो और छःवर्षो के अन्तराल से पड़ते हैं। जिनसे इस मास का महत्व एक लाख गुना अधिक हो जाता है।
यद्यपि माघमाह की प्रत्येक तिथि पुण्यार्जन के लिए प्रशस्त है तथापि इस मास में कुछ ऐसे पर्व हैं जिनका विशेष महात्म्य है। इन तिथियों में किया गया स्वल्प सत्कर्म भी महान फलद होता है। जिनमें ‘मकर संक्रांति’ का मुख्य (प्रथम) स्थान है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर स्नान का शास्त्रों में अमोघ फल बताया गया है। द्वितीय स्नान पर्व षट्तिला एकादशी (माघ कृष्ण एकादशी) है, इस दिन तिल का छः प्रकार के उपयोग का विधान है, जिससे इसे षट्तिला एकादशी कहा जाता है – इसदिन तिल का उबटन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल से हवन, तिल युक्त जल का पान, तिल का भक्षण तथा तिल का दान करने से समस्त पापों का नाश होता है –
   ‘तिल स्नायी, तिलोद्वर्ती, तिलहोयी, तिलोदकी।
          तिलभुक् तिलदाता च षट्तिला पापनाशनाः।।
माघ मास की अमावस्या मुख्य (तृतीय) पर्व है जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। सोमवार को अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं, इसका शास्त्रों में अधिक महत्व वर्णित है। इस दिन त्रिवेणी तट पर प्रयाग में स्नान-दान की अपार महिमा है। इस दिन पितरों के श्राद्ध का विशेष महत्व है। विशेषतः इसदिन मौन व्रत या वाक् संयम आवश्यक कहा गया है। माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी (वसंत पंचमी) पर्व स्नान दान के साथ ही भगवती वागीश्वरी के पूजन अर्चन का विधान है, जिससे वाक्सिद्धि प्राप्त होती है। माघ शुक्ल सप्तमी अचला सप्तमी नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन नम रहित भोजन अथवा फलाहार की विधि है। माघ शुक्ल अष्टमी को जलदान का विधान है, जिससे संतति वृद्धि-पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति होती है। दक्षिणाय मुख होकर निम्न मंत्र पढ़ कर तिलांजलि देने का विधान है –
   वैयाघ्रपदगोेत्राय, सांकृत्य प्रवराय च।
             गंगा सुताय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।’
माघी पूर्णिमा माघमास स्नान दान का अंतिम पर्व हैं। इस दिन कल्पवास व्रत पूर्ण हो जाता है। इस दिन प्रातः गंगा स्नान, गंगा पूजन, तुलसी पूजन, साधु-संतों को भोजन तथा भिक्षुकों को भोजन एवं दान का विधान है। इस प्रकार माघमास स्नान एवं कल्पवास की विधि पूर्ण हो जाती है।

पुलिस वालो ने मेला क्षेत्र में मकर संक्रान्ति के अवसर पर सालिनता का एक अच्छा नमूना पेश किया। उन्होंने रीवा मध्य प्रदेश की एक बीमार महिला को यातायात प्रतिबन्ध के बावजूद संगम तक रिक्से से जाने दिया। दरअसल रीवा की रहने वाली उषा उपाध्याय के रीढ़ की हड्डी में परेशानी है जिसके वजह से वह पैदल चलने में असमर्थ थी। बावजूद इसके वह डाक्टरो से इजाजत ले कर रिक्से से जब मेला क्षेत्र में प्रवेश की और अपनी स्थिती से पुलिस वालो को अवगत कराया तो पुलिस ने उनको बाइज्जत संगम क्षेत्र तक जाने की इजाजत दे दी।

 

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