लद्दाख के लिए करामाती है ग्रीनहाउस

स्‍टांजिंग कुजांग आंग्‍मो      

लद्दाख पश्चिम हिमालय में बसा एक ऐसा क्षेत्र है जो कठोर वातावरण का सामना करता है। नवंबर के शुरूआत के साथ ही ठंड का बढ़ना, बर्फीली हवाओं का चलना और तापमान का शून्य से भी नीचे चला जाना इसकी प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है। एक बार फिर लद्दाख अगले 6 माह के लिए दुनिया से कट कर और सिमट कर रह जाएगा। दोनों ही राष्‍ट्रीय राजमार्ग चाहे वह लेह मनाली राष्‍ट्रीय राजमार्ग हो या फिर श्रीनगर लेह राष्‍ट्रीय राजमार्ग, बर्फबारी के कारण बंद हो जाएंगे। इस दौरान ऐसा महसूस होता है कि मानों पूरा क्षेत्र सफेद चादर से ढ़ंक गया है। दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों, जो पर्यटक के रूप में आते हैं उनके लिए यह एक सफेद स्वर्ग की तरह होता है। परंतु आम लद्दाखी के लिए यह वक्त एक बार फिर सबसे कठिन दौर बन जाता है जहां उन्हें जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए केवल संघर्श ही करना होता है।

लद्दाख की लगभग 90 प्रतिशत आबादी कृषि पर आधारित है और अपनी जीवनकोपार्जन के लिए इसी निर्भर करती है। ज्यादातर शीत ऋतु के रहने एवं बहुत ही कम वक्त के लिए ग्रीश्म ऋतु के कारण किसानों के लिए बर्फ की चादरों से लिपटे खेतों में फसल उगाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। फलों एवं सब्जियों की उपलब्धता मौसम पर निर्भर हो जाती है क्योंकि यहां फसल उगाने के लिए मात्र मई से अक्टूबर का महीना मिलता है। ठंड में तो सब्जियों का मिलना मुश्किल हो जाता है और जो सब्जियां मिलती हैं वह बहुत ही महंगी होती हैं क्योंकि उन्हें हवाई मार्ग से मंगाया जाता है वह भी सीमित मात्रा में।

इन सबका अनुभव मुझे है क्योंकि मैं स्वंय एक कृषि पृष्‍ठभूमि से संबंध रखती हूं। जब मैं छोटी थी तो मेरे दादा-दादी मुझे अक्सर खेतों में ले जाते थे। जहां वह लगभग 5-6 फीट गडडा खोदा करते थे, तब मैं अक्सर उनसे पूछा करती थी कि उन्होंने किस मकसद से गडडा खोदा है। तब मेरे दादा-दादी बताया करते थे कि आने वाले ठंड के दौरान सब्जियों की होने वाली किल्लत को दूर करने का उपाय कर रहे हैं। इन गडडों में आलू, गाजर, शलजम, मूली का भंडार रखा जाता था। इन्हें इस तरह गाड़ा जाता था कि यह अगले मौसम तक खराब न हों और इनकी जब जरूरत हो उपयोग में लाई जा सके। मगर बदकिस्मती से नई पीढ़ी सब्जियों को बचाने के दादा-दादी के इस अनोखे नुस्खे को सीख पाने में असफल रही। परिणामस्वरूप गडडों में भंडार की गई सब्ज़ियां या तो पूरी तरह से खराब हो जाती हैं अथवा उसके कुछ हिस्से इतने खराब हो जाते हैं कि यदि कोई उनका उपयोग करे तो वह विभिन्न प्रकार की बिमारियों से ग्रसित हो जाए।

समय बदलने के साथ ही आधुनिक तकनीक ने लद्दाख के लोगों की समस्याओं का भी बहुत हद तक हल कर दिया है। लद्दाख के किसान नई तकनीक ग्रीन हाउस को अपना रहे हैं, जो उन्हें सालों भर सब्जियां उगाने में सक्षम बना देता है। लद्दाख की एक प्रकृति प्रदत विशेषता यह है कि यहां ठंड के मौसम में सूर्य की रौशनी ज्यादा होती है। सूर्य की रौशनी की प्रचुर उपलब्धता के कारण ही जम्मु-कष्मीर सरकार ने ग्रीन हाउस का अनोखा डिजाइन तैयार किया है जिससे सर्दियों में ज्यादा हरी पत्तेदार सब्जियां उगाई जा सकें। सर्दियों में सब्जियां उपलब्ध कराने के लिए बागवानी विभाग, कृशि विभाग एवं डीआरडीओ तथा स्थानीय संस्था ‘स्कूस्ट’ संयुक्त रूप से काम कर रही है। गैर सरकारी संगठन ‘लीहो’ भी किसानों को इस तकनीक की जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। साथ ही किसानों को हाइब्रिड बीज भी उपलब्ध करा रही है। ये सरकारी और गैर सरकारी संगठन काफी जोर-शोर से काम कर रही है और स्थानीय किसानों को ग्रीन हाउस बनाने के लिए ऋण और पॉली फिल्म बनाने के लिए सब्सीडी भी दे रही है। अब किसान चीकू, खीरा, बैंगन, गोभी और मंगुल जैसे सब्जियां भी उगा रहे हैं। जिनका इस्तेमाल घरेलू खपत के साथ साथ व्यापार के लिए भी किया जा रहा है। जो आय का बेहतर साधन उपलब्ध करा रहा है। अब किसान अपने पौधों को बहुस्तर पर उगा रहे हैं। इनमें प्याज, टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च और गोभी के सभी किस्म शामिल हैं। जिन्हें ठंड में भी ग्रीन हाउस की बदौलत आसानी से उगाया जा सकता है। वास्तव में इस तकनीक के आ जाने से किसान अब अपनी फसल को 20 से 30 दिन अतिरिक्त समय तक उगा सकते हैं तथा उनके प्रजनन में भी अतिरिक्त समय तक कार्य कर सकते हैं। जिसे ग्रीश्म ऋतु में ही नहीं बल्कि शरद ऋतु में भी किया जा सकता है। ग्रीन हाउस तकनीक आ जाने के बाद किसानों को न सिर्फ अपनी सब्जियां ठंड के मौसम में भी आसानी से उगाने में सफलता मिली है बल्कि अब उन्हें अपनी बीजों के संरक्षण में भी फायदा मिल रहा है।

वास्तव में लद्दाख के लिए ग्रीन हाउस बहुत ही प्रभावी और कामयाब तकनीक साबित हो रहा है। इस तकनीक से जहां आम लद्दाखी को अब सालों भर सब्जियां उपलब्ध हो रही हैं वहीं किसानों को भी आर्थिक लाभ मिल रहा हैं और उनमें आत्मविश्‍वास बढ़ रहा है। इस तकनीक ने स्थानीय निवासियों को कम कीमत पर बेहतर और स्वास्थ्यवर्धक सब्जियां उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है, ताकि वह अपनी जरूरतों को संतोषजनक रूप से पूरा कर सकें। वह दिन सभी लद्दाख वासियों के लिए खुशी का दिन होगा जब वह ठंड में भी महंगी सब्जियां खरीदने की बजाए ग्रीन हाउस से उत्पादित सस्ती सब्जियां खरीद सकेंगे। (चरखा फीचर्स) 

1 COMMENT

  1. लेखिका ने लद्दाख की कठिनाईयों और उसके निवारण में ग्रीन हॉउस तकनीक के प्रयोग के बारे में तो लिखा है,पर यह ग्रीन हॉउस तकनीक क्या है,इसपर कोई प्रकाश नहीं डाला.अगर वे इसके बारे में भी विस्तृत रूप में कुछ बताती तो मेरे जैसे आम पाठकों की ज्ञान में वृद्धि होती.

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