प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक लाहौर पहुंचकर चमत्कारी काम किया है। वे गए थे, रुस और अफगानिस्तान अब पाकिस्तान भी उन यात्राओं में जुड़ गया। इन तीन देशों की एक साथ यात्रा आज तक किसी भी नेता ने कभी नहीं की! भारत, रुस, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की बात जाने दीजिए, किसी अमेरिकी या यूरोपीय नेता ने भी उक्त तीन देशों की यात्रा एक साथ कभी नहीं की। इस दृष्टि से मोदी की यह यात्रा अपूर्व रही। वह इस दृष्टि से भी अपूर्व थी कि दक्षिण एशिया के तीन बड़े बेटों का जन्म दिन उसी दिन था। मोहम्मद अली जिन्ना, अटलबिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ! याने यह दोहरा संयोग हुआ।
यह भी शायद पहली बार हुआ कि हमारे भारतीय लोगों का सुबह का नाश्ता काबुल में, मध्यान्ह-भोज लाहौर में और रात्रि-भोज दिल्ली में हुआ। मेरे सपनों का दक्षिण एशिया, जिसे मैं आर्यावर्त कहता हूं, वह यही है। पिछले 50 साल से मैं इसे ही साकार करने का प्रयास कर रहा हूं। क्या परसों तक कोई कल्पना कर सकता था कि एक ही दिन में कोई प्रधानमंत्री तीन देशों में जा सकता है? प्रधानमंत्री के साथ गए 100 लोगों से किसी ने लाहौर हवाई अड्डे पर यह नहीं पूछा कि आपके पास वीजा है या नहीं? हम सारे दक्षिण एशिया के डेढ़ अरब नागरिकों के लिए यह सुविधा क्यों नहीं दे सकते? मोदी की इस चंद घंटे की यात्रा ने पाकिस्तान को चमत्कृत कर दिया है। मोह लिया है। पिछले डेढ़ साल का जो समय मोदी ने अपनी नासमझी के कारण गवां दिया, आशा है, अब उसकी भरपाई हो जाएगी। मोदी ने मियां नवाज़ की माताजी के पांव क्या छुए, सारे पाकिस्तान के दिल को छू लिया। मियां नवाज़ ने भी, जैसा कि मैं उन्हें बरसों से जानता हूं, अपनी मेहमाननवाजी में कोई कमी नहीं रखी।
उनकी इस अपूर्व पहल से सदभावना की जमीन तैयार हुई है, उस पर सहज संबंधों के पौधे को रोपने के लिए पूरी कूटनीतिक तैयारी की जानी चाहिए। उसके लिए मोदी को अपनी पुरानी खोल उतारनी होगी, अफसरों की घेराबंदी लांघनी होगी और दूरंदेशी सोच से काम लेना होगा। यदि उनकी यह लाहौर-यात्रा सिर्फ दिखास (टीवी) और छपास (अखबार) की घटना बनकर रह गई तो मोदी की प्रतिष्ठा पैंदे में बैठे बिना नहीं रहेगी। उन्होंने यह जबर्दस्त खतरा मोल लिया है। जुआ खेला है। यदि इस मामले में वे सफल हो गए तो अगली बार भी उनका प्रधानमंत्री बनना तय है।