एक बदलाव जो प्रदेश की जनता चाहती थी। 2007 में आई बीएसपी सरकार से छुटकारा पाने का नया विकल्प तलाश रही थी। मायावती की सरकार ने प्रदेश की कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त रखा था। पर सरकार की छवि विकास से डगमगा गई। मूर्तियों और पार्कों के निर्माँण ने सरकार पर उगुंली उठाई। जिसका ख़ामियाजा 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को उठाना पड़ा। कांग्रेस की छवि पहले महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर खराब थी और भाजपा में यूपी के लिए कोई बड़ा चेहरा उभरकर नही आया। जिसका पूरा फायदा सपा(समाजवादी पार्टी ) को मिला। सपा के पिछले कार्यकाल से लोग संतुष्ट नही थे पर विकल्प में और लुभावने वादों से जनता का दिल जीत लिया। जनता के लिए सूबे में एक नौजवान मुखिया चुना गया। एक बार फिर से सरकार बनते ही वही दौर शुरू हुआ। सरकार के 1 महीने के कार्यकाल को पार्टी मुखिया ने भी सराहा था। कुछ महीने बीतते ही प्रदेश में सपा कार्यकर्ताओं का दबदबा शुरू हुआ। माया सरकार में बनी मजबूत कानून व्यवस्था पर धीरे- धीरे सेंध लगना शुरू हुआ। जिसपर सूबे के मुखिया की नज़र नही पड़ी। कुछ महीनें में प्रदेश में कानून की धज्जियां उड़ने लगी। जनता को सूबे के नौजवान मुखिया से काफी उम्मीदे थी। पर प्रदेश की हालात देख ऐसा लग रहा था कि सइयां भए कोतवाल, अब डर काहे का। कुछ घटनाओं में तो सपा के कार्यकर्ताओं का और नेताओं का भी नाम आता रहा है। जिससे लगा कि राज्य में माफियों और बाहुबलियों का दौर फिर से जैसे लौट आया। मर्डर, चोरी, बलात्कार, लूटपाट की घटनाए दिन ब दिन बढ़ने लगी। राज्य के अंदर कानून का खौफ खत्म होने लगा। सपा सरकार की फ़जीहत मुजफ्फरनगर के दगों के साथ शुरू हुई। हर तरफ से आवाज आ रही थी सरकार चाहती तो दंगे को रोक सकती थी। इस दंगे में हजारों लोग घर से बेघर हो गए। इस दंगे में अधिकारियों का मनोबल भी घिरता गया। आखिर कुछ दिनों में मुजफ्फरनगर के दगों में काबू पाया गया पर प्रदेश की हालात खराब होते गए। महिलाओं की सम्मान की बात करने वाली इस सरकार में महिला उत्पीड़न के मामले सामने आने लगे। सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही थी। कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त रखने वाली पुलिस के हाथों से ये अपराधी खुलेआम अपने हौसले बुलंद कर घूम रहे थे। ऐसे में रेप जैसी घटनाओं पर सपा प्रमुख का बयान (लड़को से गलती हो जाती है) आग में जैसे घी का काम कर गया। ऊपर से नौजवान मुख्यमंत्री ने कानून व्यवस्था को सही करने के लिए अधिकारियों को हौसले बढाना छोड़ मीडिया पर अपना गुस्सा उतार रहे थे। हाल में हुए बदायूं गैंगरेप के बाद हत्या के मसले नें सरकार को फिर से घेर लिया। इस मामले के बाद तो प्रदेश में दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ने लगी कोई भी ऐसा दिन नही जा रहा था कि सुबह उठकर अख़बार देखो या न्यूज चैनल्स अधिकतर ऐसी घटनाएं यूपी से निकल कर आती थी। इस बात पर भी भरोसे मंद मुख्यमंत्री ने मीडिया को ही कोसा।
विपक्ष भी प्रदेश की कानून व्यवस्था को देखते हुए कहा कि प्रदेश के अधिकारी मुख्यमंत्री की बात नही सुनते है । ऐसे में जो सूबे का मुखिया हो उसकी बात को न मानना बहुता बड़ी बात है । बिजली सड़क की समस्या से जनता परेशान होने लगी। लोकसभा में करारी हार के बाद सपा को कोई खास सीख नही मिली। प्रदेश में समस्याओं का सिलसिला बढता गया। सरकार ने जिसे लेकर अधिकारियों के स्थानांतरण करना शुरू कर दिया। सरकार की साख बचाने में मुख्यमंत्री साहब जुट गए पर कहावत है अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। ऐसा ही हाल हुआ नौजवान सूबे के मुखिया का । जब जरूरत थी तब शख्त नही हुए अब अपनी बेबसी अधिकारियों के स्थानांतरण से दिखा रहे हो। मुखिया का प्रदेश के अधिकारियों पर बयान कि मेरी शालीनता को कमजोरी न समझे अपने आप में बहुत कुछ दर्शाता है । ऐसे में लग रहा है कि विपक्ष की तरफ से दिया गया वो बयान बिल्कुल सटीक निकला। जिससे आस लगाए जनता बैठी थी कि नौजवान होने के साथ होनहार मुखिया प्रदेश को मिला है वो इस बार प्रदेश के कानून व्यवस्था और विकास को एक ऊंचे शिखर पर ले जाएगा जो कि सिर्फ एक सपना रह गया। जिस बदलाव के लिए जनता ने बसपा को ठुकराया ये दौर उससे भी बुरा निकला। अब मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि 2017 के चुनाव में सपा की असली परीक्षा होनी है । हालात को देखते हुए इन तीन सालों में इस परीक्षा को पास करने के लिए सपा को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। नतीजा बताने वाली ये जनता सब कुछ समझ रही है।
प्रदेश की व्यवस्था और मुखिया का कहना कि मेरी शालीनता को कमजोरी न समझे इससे तो लग रहा है कि फैलते गुंडाराज से बेबस हो गए हो सूबे के मुखिया।
रवि श्रीवास्तव