लीव इन में रहने वाली महिला रखैल नहीं तो और क्या?

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2050

ए एन शिबली

गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने लीव इन में रह रही महिलाओं के संबंध में एक अहम फैसला देते हुये कहा की अगर कोई पुरूष रखैल रखता है , जिसको वो गुज़ारे का खर्च देता है और मुख्य तौर पर यौन रिश्तों के लिए या नौकरानी की तरह रखता है तो यह शादी जैसा रिश्ता नहीं है। इस फैसले के बाद बहुत से लोगों को रखैल शब्द पर आपत्ति है। प्रख्यात वकील और अडिशनल सॉलीसिटर जनरल इंदिरा जय सिंह ने लिव-इन रिश्तों में रह रही महिलाओं के लिए ‘ रखैल ‘ शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है की फैसले में इस्तेमाल किया गया रखैल शब्द बेहद आपत्तिजनक है और इसे हटाए जाने की जरूरत है। जयसिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट 21वीं सदी में किसी महिला के लिए ‘ रखैल ‘ शब्द का इस्तेमाल आखिर कैसे कर सकता है? क्या कोई महिला यह कह सकती है कि उसने एक पुरुष को रखा है?
यह सही है की कोई महिला यह नहीं कहेगी की उसने पुरूष रखा हुआ है मगर इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता की जिस प्रकार पुरूष महिला को बिना शादी के साथ में रखते हैं उसी प्रकार महिलायें भी पुरूष को बिना शादी के अपने साथ रखती हैं। अब इस के बाद एक अहम सवाल यह पैदा हो गया है और इस पर बहस की ज़रूरत है की ऐसी महिलाओं के लिए रखैल शब्द का प्रयोग उचित कियून नहीं है। यह अलग बात है की कानून के मुताबिक कोई भी बालिग लिव इन में रह सकता है या रह सकती है। मगर क्या भारत जैसे देश में इस रिश्तों को सही माना जाएगा या सही माना जाना चाहिए। कोई भी धर्म ऐसा नहीं हैं जिसमें बिना शादी के महिला और पुरूष को एक पति पत्नी की तरह रहने और शारीरिक संबंध बनाने की इजाज़त देता है। इस के बावजूद यदि कोई ऐसा करता है तो उसे बुरी नज़र से कियून नहीं देखा जाए। ऐसा नहीं हैं रखैल शब्द सिर्फ महिलाओं के लिए ही है यदि कोई पुरूष किसी महिला के साथ बिना शादी के रह रहा है और शारीरिक संबंध बना रहा है तो उसके लिए भी यही शब्द इस्तेमाल होना चाहिए। यह कहना की 21 वीं सदी में किसी महिला के लिए रखैल शब्द का इस्तेमाल सही नहीं है बेकार की बात है। यह 21 वीं सदी है, देश तरक़्क़ी कर रहा है, महिलायें भी जीवन के विभिन्न मैदानों में आगे बढ़ रही हैं इसका मतलब यह नहीं है की वो बिना शादी के किसी पुरूष के साथ पति पत्नी की तरह रहें। ईमानदारी की बात यह है और सच्चाई भी इसी में है की जो कोई महिला या पुरूष इस तरह लीव इन में रहता है या रहती वो सिर्फ और सिर्फ ऐसा मज़े के लिए और जिम्मेदारियों से भागने के लिए करता है। इस प्रकार के रिश्तों में रहने वालों के लिए नैतिकता की बात करना बेमानी है। यह इंसान की फितरत है और इस लिए एक लड़का और लड़की में पियार मुमकिन है ऐसे में यदि उन दोनों को साथ रहना है और दोनों बालिग हैं तो फिर उनके लिए शादी एक बेहतरीन तरीका है। ऐसे लड़के या लड़कियां शादी जैसे पवित्र बंधन में बांधने से कियून भागते है। अगर कोई शादी से भागता है तो इसका मतलब यह है की शादी के बाद आने वाली जिम्मेदारियों से भाग रहा है। और जो लोग समाज से भागते हों , सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागते हों ऐसे लोगों के साथ हमदर्दी किस बात की। एक आसान सी बात है जो हर किसी को समझना चाहिए की बिना शादी के शारीरिक संबंध बनाना ग़लत है और इसे ग़लत माना जाना चाहिए। जब बिना शादी के शारीरिक संबंध बनाने को ग़लत माना जाता है तो फिर लीव ईन में रहने और हर प्रकार के मज़े करने की जितनी भी निंदा की जाये कम है। जो लोग इस प्रकार के रिश्ता रखने वालों का साथ देते हैं, उनके साथ हमदर्दी रखते हैं और उनके हक़ की लड़ाई लड़ते हैं वो दरअसल भारत की संस्कृति के साथ मज़ाक करते हैं। मेरी जितनी समझ है उस से मुझे लगता है की लीव इन वेस्टर्न मुल्कों में फैली एक बुराई है जो अब बड़ी तेज़ी से भारत में भी फैलती जा रही है यदि ऐसे रिश्तों की निंदा नहीं की गयी तो धीरे धीरे शादी का सिस्टम ही खत्म हो जाएगा और पार्टनर बादल बदल कर मज़ा बदलने का रिवाज भी बढ्ने लगेगा.

12 COMMENTS

  1. Koee stree livein me rehti hai to ye uska qanooni adhikaar hai. Usko rkhel nhi kahaa ja skta kyonki purush bhi aise me usi haisiyt me hota hai jisme mahilaa rehti hai. Rhi dhrm aur snskriti ki baat uska dhong aur dava bahut ho chuka sb maamlo me ye nhi chl skta. Asli baat ye hai ke chnd logon ke cheekhne chillane se ye rukne vala nhi hai. Hm logon ne yoorup aur america ke tmaam taur treeqe apna liye hai baqi bhi aakr rhenge aap kuchchh bhi krlo. Ek misal velentineday ke baare me dekhi jaa skti hai snskriti ke thekedaaron ne tmaam zor lgaa liye lekin aakir me munh ki khaaee. Shivsena aur bhajpa to bahut pehle hi pyaar ke din ka virodh vaaps lekr tauba kr chuke hain. Jb gud khana hai to gulgulon se prhez nhi kiya ja skta. Livein relation do logon ka aapsi sehmti ka maamla hai is me kisi ko kya preshani hai?

    • इकबाल भाई, आपकी मानसकिता समझ से परे हैं….

      अमेरिका और यूरोप में तो पार्टनर बदल-बदल कर रहना, मुक्त सेक्स, खुला देह, बिना शादी के बच्चे आदि प्रचलित हैं… तो क्या … अन्य तथाकथित अल्पसंख्यक धर्म भी अपनी संस्कृति (जिसे आप कह रहे हैं की ढोंग है) छोड़ कर अपनाने के लिए तैयार हैं… या उसका विरोध करेंगे??…और अगर है तो कब से..?? फतवे क्या हैं….?? उस पर कोई फ़तवा निकलेगा या नहीं..?

      क्या अगर कोई चीज गलत है.. और हमारा धर्म संस्कृति के अनुरूप नहीं है.. तो उसका विरोध सिर्फ ढोंग होता हैं… या उसका विरोध नहीं करना चाहिए…पता नहीं… आप क्या सोच कर क्या लिखते हैं… सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गलत नहीं कहा… घर-गाँव से बहार जा कर नौकरी करने जाती स्त्री अपने बदन को किसी को ऐसे ही सोंप दे.. और उसके बाद उस आदमी से शादी की उम्मीद करें…क्यों..??? इसी के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया था…

  2. यदि आप मानवेतर प्राणियों में देखें तो पायेंगे कि वहां पर हर मादा को पूरी स्वतंत्रता है कि वह किसी भी नर-पशु से संबंध बनाये। यही स्वाभाविक भी है। इसके बावजूद मानव जाति ने सभ्यता के विकास के साथ-साथ विवाह संस्था को जन्म दिया है तो उसके अनेक महत्वपूर्ण कारण हैं। सभ्य मानव समाज में बच्चों के लालन – पालन की जिम्मेदारी अकेली महिला नहीं उठाती बल्कि पति – पत्नी मिल कर यह जिम्मेदारी उठाते हैं। भारत जैसे देश में तो पूरा संयुक्त परिवार आने वाले बच्चे की जिम्मेदारी उठाता है और लालन-पालन में बच्चे के माता-पिता के साथ पूरा सहयोग करता है। जानवरों में नर की जिम्मेदारी केवल मादा को गर्भधारण में सहयोग देने तक है, उसके बाद तू अपने रस्ते, मैं अपने रस्ते!
    कोई पुरुष बच्चे के लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाने को केवल इसलिये तत्पर होता है क्योंकि उसे यह विश्वास होता है कि बच्चा उसका अपना है और बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री जीवन पर्यन्त उसके साथ, केवल उसकी होकर रहने के लिये अपनी स्वीकृति दे चुकी है। स्त्री भी जीवन भर के लिये एक पति की होकर रहने के बदले अनेकों अधिकार प्राप्त करती है। यह सोची-समझी, सुविचारित सामाजिक व्यवस्था है जिसके चलते समाज इतना विकास कर सका है।

    जो लोग अपने आपको अति-आधुनिक समझते हुए विवाह संस्था को नकारते हैं, विवाहेतर संबंध कायम करते हैं, विवाह से पहले ही शारीरिक संबंध बनाते रहते हैं, लिव-इन रिलेशन शिप की परंपरा पालते हैं, समाज उनको बुरा – भला कहता है, उनको अपमानित करता है क्योंकि ऐसा करने से समाज की सहस्त्राब्दियों से चली आ रही व्यवस्था आहत होती है। इन सब हरकतों से सबसे ज्यादा घाटे में स्त्री ही रहती है। पर मजेदार बात ये है कि आज की पढ़ी – लिखी, फैशनपरस्त कुछ महिलाओं को अपने नफे-नुकसान का ज्ञान ही नहीं है।

    • सुशांत सिंघल्जी, बिलकुल सही कहा सर अपने …

      ..और …इसी में इकबाल भाई के लिए रही सहा जवाब भी छुपा है….वशर्ते अगर वो तथ्यों को खुल कर स्वीकार करतें हो…

      नमन.
      आर त्यागी

  3. प्रिय शिबली जी मै आपके बात से सहमत हु लेकिन एक सर्त के साथ की पुरषों को भी रखैल जैसे सरतो के साथ …क्योकि जो आदमी या ओरत यदि सादी पूर्व दैनिक जीवन में पति पत्नी की तरह रहने लगे ओभी बिना किसी पारिवारिक जिमेदारी को निभाए ओ कभी भी सादी सुदा जीवन में अपने लाइफ पार्टनर के साथ इमानदार नहीं हो सकते और ऐसे लोग अपने साथ दो परिवार को भी नरक में धकेलने से कभी बाज नहीं आयेंगे ऐसे में उन सारे लोग जो पुरुष हो या स्त्री इन्हें समाज में अश्लील उद्बोधन के माध्यम से जलील कर इन्हे समाज में पाव पसारने से रोका जा सकता है और यही हमारी नैतिक जिमेवारी समाज के प्रति है इन विषयो में हमेशा लोगो को हे दृष्टी से ही देखा जाना चाहिए क्योकि परंपरा बदल रहा है अब पुरषों से ज्यादा महिलाये अपने लिए रखैल रखने लगे है….

  4. कुछ लोग मजाक पसंद होते हैं, अछा मजाक कर लेते हैं; पर चुटकुलों से गंभीर मसलों का समाधान तो नहीं होता. स्त्रियों के सम्मान की बात करने वाले शायद अपनी बात को लेकर गंभीर नहीं. वरना वे अंतर्विरोधी बातें न करते. एक तरफ तो वेश्याओं जैसे जीवन को जीने यानी लिव इन रिलेशन का समर्थन और साथ ही स्त्रियों के सम्मान की बात. बड़ा क्रूर और बुद्धी हीनता से भरा मजाक है. बल्कि ये कहना होगा कि औरतों के सम्मान के साथ बलात्कार है. अरे भाई स्त्रियों के सम्मान की अगर चमुच चिंता है तो उन्हें चरित्रवान बनने और विधिवत घर बसाने की प्रेरणा दो न कि शारीरिक भूख मिटाने के लिए अस्थाई समझौते की. महिलाओं को पतित बनाकर फिर उनके सम्मान की बात ? क्या नाटक बाजी है यह ? बेचारियों को पतित और असुरक्षित बनाने के इलावा एक चरित्र हीन व पतित समाज बनाने का एक दुष्ट प्रयास नहीं है यह तो और क्या है ?

  5. गांधी जी लेख पढने और उस पर प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया. आपको बतादूँ की इस्लाम में चार बीवी की इजाज़त वैसे ही नहीं है उस के लिए कुछ शर्त है. यदि कोई व्यक्ति चारों बीवी के साथ बराबर का बरताव कर सकता है वही चार शादी कर सकता है. यदि वोह ऐसा नहीं करता तो उसे इसका गुनाह होगा. चारों बीवी की ज़रुरत पूरी करने पर ही चार बीवी रखने की इजाज़त है. ऐसा नहीं है की किसी एक को ज्यादह मनो और दुसरे को कम.

  6. राखी जी ,
    हो सकता है कि आप शिबली जी से सहमत न हो और स्वंय को उद्वेलित अनुभव कर रही हो लेकिन क्या आपको नहीँ लगता कि आपकी शुरुआत के लिये भी आप ही के शब्द उधार लिये जा सकते हैँ । खैर छोड़िये सभी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त है । लेकिन क्या आप जानती हैँ विचारोँ की इन्हीँ स्वतन्त्रताओँ ( या कहना चाहिये पश्चिम की पिछलगुत्ता ) और संस्क्रति की बात करने वालोँ को संकीर्ण निरुपित कर देने की प्रवत्ति ने भारतीय समाज की जड़े कितनी खोखली कर दी है । क्या आपको नहीँ लगता ‘ यह मेरी निजी जिँदगी है और मैँ जो चाहूँ करु ‘ की मानसिकता ने ” वसुधैव कुटुम्बकम् ” की गौरवशाली परम्परा और परिवारवाद की भावना को लगभग लुप्त होने की कगार पर पहुँचा दिया है । आपने पारिवारिक महिलाओँ के प्रति हिँसा को रेखांकित किया है लेकिन आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि रोजाना दर्ज होते प्रताड़ना के प्रकरणोँ मेँ से अधिकांश मेँ पुरुषोँ और उनके बुढ़े माँ बापोँ को जबरन झूठा फसाया जाता है और यह मैँ नहीँ आपकी सरकार के आँकड़े कहते हैँ चाहे तो पहली फुर्सत मेँ देख लीजियेगा ।
    कोई महिला स्वतन्त्रता के नाम पर मज़े के लिये , अपने स्वार्थो की सिद्धी के लिये पराये पुरुषोँ के साथ विवाह जैसे पवित्र बंधन को स्वीकार किये बिना पश्चिम के नंगेपन को अपनाकर लिव इन मेँ रहती है उनको रखैल के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है । क्या सती कहा जाये यह भी तो नहीँ कर सकते क्योँकि आधुनिक विचारोँ के नाम पर शहर भर को बदन दिखाती फिरती और शादी से पहले संभोग को स्वीकार करने वाली महिलायेँ सती और सतीत्व को क्या जाने ।
    शिबली जी ,
    आपने मज़े के लिये अपनाये ऐसे खोखले रिश्तोँ के अंत और इन रिश्तोँ से उत्पन्न होने वाली संतानोँ के विषय मेँ कुछ नहीँ कहा , फिर भी अच्छा लेख है ।

  7. शिवली
    भाषा की तरह विचार भी घटिया है. औरत के लिए जो शब्द उपयोग किये है वे संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है. सबाल उदो उन विवाहितों पर जो शादी की आड़ में हिंसा कर रहे है या फिर उन पर जो लड़कियों को आपनी हबस के लिए इस्तेमाल करते है. बे पुरुष कोण है, क्या कहोगे उन्हें ? ओर समाज लड़कियों को ऐसे तैयार कर रहा है की वो अत्याचार के खिलाफ आवाज ही नहीं उदा पा रही है.

  8. प्रिय शिबली जी आपका यह कथन की कोई भी धर्म बिना शादी के स्त्री पुरुष को साथ रहने और शारीरिक सम्बन्ध बनाने की इज़ाज़त नहीं देता- यथार्थ नहीं – इस्लाम में ..आदमी को एक समय में चार बीवियां तक रखने की इज़ाज़त है और इसके इलावा उतनी लौंडियाँ भी जितनी उसके बस में हों…(४.३)
    हाँ आप की इस बात में दम है की लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिला महिला रखैल ही है और हाँ पुरष के लिए भी यह बात इसी रूप में लागु होती है . अब आप पुरुष को क्या नाम देंगे … भडुआ ठीक रहेगा न !

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