नक्सलवाद की चुनौतियां विषय पर व्याख्यान

conferenceभोपाल, 6 मई। छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक और कवि विश्वरंजन का कहना है कि अब वक्त आ गया है कि हमें यह तय करना होगा कि हम लोकतंत्र के साथ हैं या नक्सलवाद के साथ। ये विचार उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग द्वारा नक्सलवाद की चुनौतियां विषय पर आयोजित व्याख्यान में व्यक्त किए।

विश्वरंजन ने कहा कि भारत में कुल हिंसक वारदातों का 95 प्रतिशत माओवादी हिंसक वारदातें हैं। नक्सलवाद आंदोलन के गुप्त दस्तावेजों तक हमारी पहुंच न हो पाने के कारण इसकी बहुत ही धुंधली तस्वीर हमारे सामने आती है जिससे हम इसके वास्तविक पहलुओं से वंचित रह जाते हैं। अगर इन दस्तावेजों पर नजर डालें तो मिलता है कि नक्सलवादी अपने शसस्त्र हिंसक आंदोलन के जरिए राजनीतिक ताकत को अपने कब्जे में करना चाहते हैं। ये अपने आंदोलन के जरिए राजनीतिक रूप से काबिज होकर देश में एक लाल गलियारे का निर्माण करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि नक्सली रणनीतिक स्तर पर राज्यविरोधी एवं राज्य में आस्थाहीनता दर्शानेवाले समस्त आंदोलनों का समर्थन करते हैं। माओवादियों के गुप्त दस्तावेजों का हवाला देते हुए विश्वरंजन ने बताया कि नक्सलियों की गतिविधियों गुप्त रहती है। किंतु इसमें दो तरह के कार्यकर्ता होते हैं एक पेशेवर और दूसरे जो अंशकालिक तौर पर कोई और काम करते हुए उनका शहरी नेटवर्क देखते हैं। आज माओवादी मप्र और छत्तीसगढ़ के अलावा देश के अन्य प्रदेशों में भी अपनी जड़ें मजबूत कर रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने मीडिया के छात्र-छात्राओं से अपील की कि वे इस विषय पर व्यापक अध्ययन करें ताकि वे लोंगों के सामने सही तस्वीर ला सकें। क्योकिं यह लड़ाई राज्य और नक्सलियों के बीच नहीं बल्कि लोकतंत्र और उसके विरोधियों के बीच है जो हिंसा के आधार पर निरंतर आम आदमी के निशाना बना रहे हैं।
प्रारंभ में जनसंचार विभाग की अध्यक्ष दविंदर कौर उप्पल ने श्री विश्वरंजन का स्वागत किया। आभार प्रदर्शन डा. महावीर सिंह ने किया। इस मौके पर जनसंपर्क विभाग के अध्यक्ष डा. पवित्र श्रीवास्तव, संजीव गुप्ता, सुनील तिवारी, डा. ज्योति वर्मा, डा. रंजन सिंह, मीता उज्जैन, बापूदेश पाण्डेय, आरती सारंग, डा. अविनाश वाजपेयी, शलभ श्रीवास्तव सहित तमाम छात्र- छात्राएं मौजूद थे।

– संजय द्विवेदी
रीडर- जनसंचार विभाग
मोबाइलः 098935-98888

4 COMMENTS

  1. श्री विश्वरन्जन जी की बातो मे सच्चाई है पर समस्या के सच को समझने के साथ ही समस्या के समाधान के उपाय भी अपरिहार्य है ,अब तक नक्सल आन्दोलन के उन्मूलन के लिए जो सख्त या लचीले प्रयास हुए है , उनकी कामयाबी ऐसी नही रही है कि जिससे आम जनता ,प्रशासन, और शासन राहत महसूस कर सके. नक्सल आन्दोलन के कारक चाहे जो भी रहे हो या है वह अपनी जगह अलग बात है पर कथित नक्सल आन्दोलन का वर्तमान स्वरुप अत्यत वीभत्स है. नक्सल परिवर्तन के लक्ष्य को भूलकर अपराधिक गिरोहो के जैसा आचरण कर रहे है , जिसका एकमात्र उद्देश्य पैसा बनना है और पैसा बनाने के लिए जरुरी दहशत फैलाने के लिए ,उन लोगो को निशाना बना रहे है और मार रहे है जिन लाचार लोगो की जिन्दगी की खुशहाली के लिए नक्सलियो की कथित क्रान्तिकरिता है. नक्सल आन्दोलन की कमर तोडने के लिए सबसे जरुरी काम है उनके आर्थिक स्त्रोतो को समाप्त करना है , क्योकि पैसे से ही हथियार और भाडे के नक्सली भी मिलते है.यहा गौर तलब बात यह है कि – आज-कल के नक्सली हमेशा ऐसे क्षेत्रो को कार्य-क्षेत्र बनाते है जहा आकूत सम्पदा हो . और इलाका को बुनियादी विकास की काफी जरुरत हो , यानि धन ऊगाही के बेहतरीन अवसर हो – फिर सम्पदा चाहे वन-सम्पति के रुप मे हो अथवा खनिज के रुप मे या विकास के मद्द का , नक्सलियो के लिए साक्षात कामधेनु है . ऐसी मोटी कमाई मे ,बिगडे हुए अधिकारियो और नेताओ की हिस्सेदारी से भी इन्कार इसलिए नही किया जा सकता है कि -गाहे बगाहे नक्सलियो की पुश्तपनाही की खबरे आम होती रही है .और नक्सल प्रभावित क्षेत्र का आपेक्षित विकास को नक्सली -हिसा के भय के बहाने जिताना सभव हो टाल जाता रहा है . वैसे तो जगल सन्थाल ,कनू सन्याल ,चारु मजूमदार, के जमाने नक्सल बाडी से शुरु हुए आन्दोलन मे भी भूमिहीनो को जमीन का मलिकाना मुख्य मुद्दा थी . आर्थिक हित के बाबजूद भी उक्त आन्दोलन के कु६ तर्क सगत आधार थे और माना जा सकता है कि अल्प समय के लिए ही सही नक्सल राबिन हुड वाली भूमिका मे थे पर आज के नक्सलियो ने तस्करो ,लूटेरो ,ह्त्यारो ,जालिमो , को अपनी करतूतो से मात दे दी है .६त्तीसगढ़ मे नक्सली दहशत के खिलाफ चले , सलवा -जूडूम जैसे आन्दोलन विफलता की भेट इस लिए बन गये कि ,राजनीति तय ही नही कर पायी कि , उसकी दिशा क्या है आन्दोलन नक्सलियो के खिलाफ जनता को खडे करने के बजाए जनता को जनता के खिलाफ खडे करने की जमीन बन कर रह गया . श्रेय की होड भी इस आन्दोलन एक कमजोर पहलू है जहा शहीदो की शहादत की जगह सुख से जी रहे जिन्दा राजनेताओ को याद करके काम चलाने की कोशिश की गयी . नक्सलियो के आर्थिक किले को घेरने के लिए उसके सगरक्षको को घेराना जरुरी है और इस बात की पतासाजी करना भी जरुरी है कि – नक्सली अपने काले धन को कहा और किसके पास हिफाजत के साथ रख रहे है और इस्तेमाल कर रहे है ? एक बार नक्सलियो का आर्थिक साप सरकारी पिटारे मे कैद हो जाये तो कम से कम बेकसूरो के खून बहना बन्द हो जाये ,पर विश्वरजन जी जैसे उच्च पदस्थ लोगो को इसका खयाल भी रखना होगा कि जिस नीरीह जनता और व्यवस्था को बचाने के लिए सैकडो जवानो और नागरिको ने शहादत दी है वही पीडीत वर्ग , नक्सल जैसी समकक्ष अन्य लूट से भी बच सके .अन्यथा नक्सल जैसे लूटेरे आते ही रहेगे कोई सीधे खून बहाकर और कोई बिना खून बहाए जनता के अरमानो का वध करता रहेगा और यथा -स्थिति बनी रहेगी . अततः श्री विश्वरजन जी को सच कहने और श्री सजय द्विवेदी जी को सच को रखने के लिए धन्यवाद

    जावेद उस्मानी
    बिलासपुर ,६तीसगढ़ .

  2. paatrkaar ko hemesha sach ka saath rahna chaahiya, lakin is rasste per syaad he koi chalta ho. durbhagya se kisse bhi samsya se ham air condition mein baith ker ladthe hein. mein naxel effected blet mein rahha hoon, is liye mujhe doono pakchoon ke manahsithi ka thoda ahsaas hai. samvaad ka label kya ho, abi to hamaari goverment yehi nahin tai kar pai hai. yaad rakhne vaykti ko maara ja sakta hai, vicchar ko nahin.

  3. नेपाल में माओवादीयो को स्केण्डेवीयन देशो से धन एवम सहयोग मिलता रहा है। अगर भारत मे कोई असली माओवादी या नक्सली है तो यह मेरे लिए खुशी की बात होगी। भगवान आपको जल्द ही उनके गुप्त दस्तावेजो तक पहुंचाए ।

  4. डीजीपी विश्वरंजन जी से सहमत हूं।यंहा कल ही कुछ माह पहिले भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड चुके नेता की नक्सलियो ने घर से निकाल कर हत्या कर दी।ये घटना राजनांदगांव ज़िले की है।एक दिन पहले बस्तर मे भी भाजपा के ब्लाक अध्य्क्ष की गोली मार कर हत्या कर दी गई। ऐसा आये दिन होता है।वैसे तो मुझे पुलिस का घोर विरोधी पत्रकार माना जाता रहा है लेकिन इस मामले मे मै पुलिस से सहमत हूं। सिर्फ़ छत्तीसगढ ही नही बल्कि सारे देश के मीडिया कइस मामले मे सोच समझ कर लिखने की ज़रुरत है क्योंकि ये लडाई बैलेट और बुलेट की ही।

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