आओ! मोदी के नये भारत की अगवानी करें

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 ललित गर्ग 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी नया भारत बनाने की बात कर रहे हैं। वे भारत को भौतिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि नैतिक दृष्टि से भी सशक्त बनाना चाहते हंै। स्वतंत्रता के सातवें दशक में पहुंचकर पहली बार ऐसा आधुनिक भारत खड़ा करने की बात हो रही है जिसमें नये शहर बनाने, नई सड़कें बनाने, नये कल-कारखानें खोलने, नई तकनीक लाने, नई शासन-व्यवस्था बनाने के साथ-साथ नया इंसान गढ़ने का प्रयत्न हो रहा है। एक शुभ एवं श्रेयस्कर भारत निर्मित हो रहा है।
जबसे नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, एक नई सभ्यता और एक नई संस्कृति करवट ले रही है। नये राजनीतिक मूल्यों, नये विचारों, नये इंसानी रिश्तों, नये सामाजिक संगठनों, नये रीति-रिवाजों और नयी जिंदगी की हवायें लिए हुए आजाद मुल्क की एक ऐसी गाथा लिखी जा रही है, जिसमें राष्ट्रीय चरित्र बनने लगा है, राष्ट्र सशक्त होने लगा है, न केवल भीतरी परिवेश में बल्कि दुनिया की नजरों में भारत अपनी एक स्वतंत्र हस्ती और पहचान लेकर उपस्थित है। चीन की दादागिरी और पाकिस्तान की दकियानूसी हरकतों को मुंहतोड़ जबाव पहली बार मिला है। चीन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि सीमा विवाद को लेकर डोकलाम में उसे भारत के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। यह सब मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का प्रभाव है। उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई, देश के युवाओं के लिए वह आशा की किरण हैं। इसका कारण यही है कि लोग ताकतवर और तुरन्त फैसले लेने वाले नेता पर भरोसा करते हैं ऐसे कद्दावर नेता की जरूरत लम्बे समय से थी, जिसकी पूर्ति होना और जिसे पाकर राष्ट्र केवल व्यवस्था पक्ष से ही नहीं, सिद्धांत पक्ष भी सशक्त हुआ है। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की इमारतों की ऊंचाई से नहीं मापी जाती बल्कि वहां के राष्ट्रनायक के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है।
हमारे राष्ट्रनायकों ने, शहीदों ने एक सेतु बनाया था संस्कृति का, राष्ट्रीय एकता का, त्याग का, कुर्बानी का, जिसके सहारे हम यहां तक पहंुचे हैं। मोदीजी भी ऐसा ही सेतु बना रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी उसका उपयोग कर सके। मोदीजी चाहते हैं कि हर नागरिक इस सेतु बनाने के लिये तत्पर हो। यही वह क्षण है जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और यही वह सोच है जिसका आह्वान  है अभी और इसी क्षण शेष रहे कामों को पूर्णता देने का, क्योंकि हमारा भविष्य हमारे हाथों में हैं।
हमारी सबसे बड़ी असफलता है कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हम राष्ट्रीय चरित्र नहीं बना पाये। राष्ट्रीय चारित्र का दिन-प्रतिदिन नैतिक हृास हो रहा था। हर गलत-सही तरीके से हम सब कुछ पा लेना चाहते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कत्र्तव्य को गौण कर दिया था। इस तरह से जन्मे हर स्तर पर भ्रष्टाचार ने राष्ट्रीय जीवन में एक विकृति पैदा कर दी थी। न केवल यूपीए के 10 वर्ष के शासन से बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों एवं राज्यों में उनकी अलोकतांत्रिक एवं भ्रष्ट गतिविधियों से जनता ऊब चुकी थी और विपरीत एवं अराजक स्थितियां जनता को बार-बार अहसास दिला रही थी कि देश को एक ताकतवर नेता की जरूरत है जो कड़े त्वरित फैसले ले सके। लोग मोदीजी के हर फैसले का सम्मान कर रहे हैं। जब राजनीति निर्णायक हो तो चुनावी राजनीति भी निर्णायक हो जाती है। भारत की यह खासियत है कि जब-जब संक्रमणकाल आया, जनता ने स्वयं अपना नेता चुन लिया। नरेन्द्र मोदी को जनता ने स्वयं चुना है इसलिए वे जन-जन के नेता बन चुके हैं, सशक्त एवं तेजस्वी जननायक हैं।
नरेन्द्र मोदी शून्य से शिखर तक पहुंचे राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि कुशल प्रशासक एवं प्रखर राष्ट्रनिर्माता हैं। राजनीतिक सफलता के लिये कूूटनीति एवं राजनीतिक दांवपेंच जरूरी होते हंै और इसमें मोदीजी मोहिर है, सिद्धहस्त है, लेकिन उनकी नजरों में  सत्ता से ज्यादा अहमियत सिद्धान्तों की है। उनकी अपनी मौलिक सोच है, संकल्प है, सपना है और सार्थक प्रयत्न है। जिस दौर में लोगों की राजनीतिज्ञों के प्रति कोई आस्था नहीं, उस समय मोदीजी की लोकप्रियता में कोई कमी न आना, उनका जादू कायम रहना, चुनाव में भी कुछ बाधाओं को छोड़कर भाजपा को जीत दिलवाना और अपने विदेश दौरों के दौरान लगातार कूटनीतिक सफलताएं हासिल करना हैरान कर देने वाला है। इसका कारण है कि बदलती भारत की व्यवस्था के मंच पर बिखरते मानवीय मूल्यों के बीच अपने आदर्शों को, उद्देश्यों को, सिद्धान्तों को, परम्पराओं को और राजनीतिक जीवनशैली को वे नया रंग दे रहे हैं कि उससे उभरने वाली आकृतियां हमारी  न केवल वर्तमान पीढ़ी को बल्कि भावी पीढ़ी को भी आश्वस्त कर रही है, सही रास्ता दिखा रही है। दरअसल उन्होंने जनता का भरोसा जीत लिया है। दिन-रात अथक परिश्रम करके उन्होंने देश-विदेश में भारत को गौरव दिलाया है। वह गौरव जिसकी राष्ट्र को कई वर्षों से दरकार थी। सर्जिकल स्ट्राइक, स्वच्छता अभियान, योग को विश्व गरिमा प्रदान करना, नोटबंदी, भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर नकेल कसना और जीएसटी जैसे बड़े फैसले लेकर उन्होंने दिखा दिया कि एक ईमानदार एवं पारदर्शी सरकार क्या-क्या कर सकती है।
नरेन्द्र मोदी एक दृृढ़ संकल्पी एवं मनोबली व्यक्तित्व है। एक दृढ़ मनोबली व्यक्ति के निश्चय के सामने जगत् किस तरह झुक जाता है। बाधाएं अपने आप हट जाती हैं। जब कोई मनुष्य समझता है कि वह किसी काम को नहीं कर सकता तो संसार का कोई भी दार्शनिक सिद्धांत ऐसा नहीं, जिसकी सहायता से वह उस काम को कर सके। यह स्वीकृत सत्य है कि दृढ़ मनोबल से जितने कार्य पूरे होते हैं उतने अन्य किसी मानवीय गुणों से नहीं होते। मोदीजी जैसे मनोबली राजनीतिज्ञ दूसरा व्यक्तित्व न उनके अपने दल में है और न विपक्ष में।
मोदीजी का एक नया भारत बन रहा है। नये भारत का एक ऐसा प्रारूप प्रस्तुत हो रहा है जिसमें गरीबी, राजनीतिक भ्रष्टाचार, धार्मिक संघर्ष, अस्पृश्यता, नशे की प्रवृत्ति, मिलावट, रिश्वतखोरी, शोषण, दहेज और वोटों की खरीद-फरोख्त को विकास के नाम विध्वंस का कारण माना जा रहा है। भ्रष्टाचार और सुशासन में भाजपा को कोई घेर नहीं सकता। जनता को लोकतंत्र का असली अर्थ समझ में आने लगा है। जानकारी का अभाव मिटने लगा है। लोकतंत्र के सूरज को घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेरना बन्द कर दिया है। ज्यादा समय नहीं लगेगा कश्मीर की समस्या को सुलझने में। आतंकवाद और नक्सलवाद को भी समाप्त होना ही है। हमें ऐसी ही किरणों को जोड़कर नया सूरज बनाना होगा, नया भारत बनाना होगा। कुछ चीजों का नष्ट होना जरूरी था, अनेक चीजों को नष्ट होने से बचाने के लिए। जो नष्ट हो चुका वह कुछ कम नहीं, मगर जो नष्ट होने से बच गया वह उस बहुत से बहुत है।
‘मन की बात’ करने वाले मोदीजी देश के लिये ही सोचते हैं, देश के लिये ही करते हैं, देश के लिये ही जीते हैं। जबकि अब तक की राजनीति में सब कोई अपने लिये और अपने स्वार्थों के लिये जी रहे थे। सबसे बड़ी पार्टी की कुछ ऐसी ही गलत नीतियां रही है कि आज उसका सफाया हो चुका है। भारत को कांग्रेस मुक्त करने के संकल्प को पूरा करने में मोदी को ज्यादा वक्त नहीं लगा। भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जगह ले ली है। बात कांग्रेस की ही नहीं, बात राष्ट्रीय चरित्र को धुंधलाने की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने बिहार में चुनावी हार को जीत में बदलने में कितना समय लिया? देश की कुल आबादी के करीब सत्तर फीसदी पर भाजपा का शासन हो चुका है। यह सब मोदी का नहीं, उन मूल्यों का जादू है जिनसे लोकतंत्र मजबूत बनता है, राष्ट्र मजबूत बनता है, समाज मजबूत बनता है और व्यक्ति मजबूत बनता है। कोई भी व्यक्ति दूसरों की नकल कर आज तक महान् नहीं बन सका। सफलता का अनुकरण नहीं किया जा सकता। मौलिकता अपने आप में एक शक्ति है जो व्यक्ति की अपनी रचना होती है एवं उसी का सम्मान होता है। संसार उसी को प्रणाम करता है जो भीड़ में से अपना सिर ऊंचा उठाने की हिम्मत करता है, जो अपने अस्तित्व का भान कराता है।

ललित गर्ग

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