स्वर्णिम मध्यप्रदेश के नाम पर जनता के साथ छलावा

swarnim_mpसिवनी। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में दोबारा भारतीय जनता पार्टी की सरकार को बने एक साल का अरसा बीत चुका है और इस पंचवर्षीय में सरकार विकास कार्य और नई घोषणायें करने की स्थिति मे नहीं लगती। प्रदेश में पूर्व से संचालित एवं घोषित योजनायें ही इतनी है कि उनके संचालन के लिये प्रदेश सरकार के पास खजाने में पर्याप्त धन नहीं है। अनेक केंद्र द्वारा संचालित योजनाओं में एवं मदों में प्रदेश सरकार को जो अंशदान देना होता है वह भी सरकार देने की स्थिति में नहीं है। प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व के कार्यकाल में घोषित की गई जननी सुरक्षा योजना, कन्यादान योजना, दीनदयाल उपचार योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, सायकल वितरण योजना जैसी अनेकाें जनहितकारी योजनाओं के लिये सरकार को धन उपलब्ध कराना भी मुश्किल पड रहा है। आगामी कार्यकाल सरकार को केवल प्रदेश की जनता को लोक लुभावने वायदों पर ही गुजारना है। इसी कार्यशैली का परिचय देते हुये प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के लिये संकल्प ले चुके है और इस दिशा में वे हर मंच से लच्छेदार भाषण जनता को पिला रहे है यह सच है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जमीन से जुडे हुये नेता है और वे जनता के दुख दर्दों को भली भांति जानते है। जनता की दुखती नब्ज पर हाथ रखने की उनमें कला है। स्वर्णिम प्रदेश बनाने की उनकी मंशा में कोई शंका नही की जा सकती परंतु यह मंशा उनकी अपनी व्यक्तिगत हो सकती है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता और इससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भली भांति परिचित भी है कि उनके अपने मंत्रिमंडल में शामिल अनेक मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुये है और इन मंत्रियों पर आरोप कोई मनगढंत भी नहीं है हालांकि इन्हें मंत्रिमंडल में मजबूरियों के चलते शामिल किया गया है। अनेक मंत्री विधायक भ्रष्टाचार में पैर से लेकर सिर तक आरोपित है। इन मंत्री विधायकों के भरोसे स्वर्णिम मध्यप्रदेश का निर्माण मुख्यमंत्री कैसे करेंगे यह समझ से परे है?

प्रदेश का प्रशासनिक तंत्र भी दोनों हाथों से सरकारी खजाने से आने वाले धन को घरों में भरने के लिये जुटा हुआ है। आम जनता बुरी तरह प्रताडित है। नौकरशाही चरम पर है। भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र पर लगाम कसने में असमर्थ है। प्रशासनिक उच्चाधिकारियों पर किसी न किसी नेता का खुला संरक्षण बना हुआ है। अनेक भ्रष्ट अधिकारी लोक आयुक्त जाँच के घेरे में है। सरकार इन अधिकारियों को हटाने या इन पर कार्यवाही करने की सोच भी नही पा रही है। अन्यथा इनके संरक्षणदाता सरकार के लिये मुसीबत बन जायेंगे। क्या शिवराज सिंह चौहान ऐसे भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र के भरोसे प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बना पायेंगे यह भी अपने आप मे एक अहम सवाल है? प्रदेश सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल घोषणाओं से भरा हुआ रहा उन घोषणाओं पर क्रियान्वयन तो दूर पहले से संचालित योजनाओं के लिये भी पर्याप्त धनराशि न होने के कारण योजनायें दम तोड रही है।

मंत्री विधायकों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के अतिरिक्त नगरीय निकायों एवं ग्राम निकायों की क्या दुर्दशा है यह किसी से छिपी नहीं है? नगरीय निकायों में भ्रष्टाचार नौकरशाही एवं आर्थिक तंगी अपने आप में बडी समस्याये है। नगरीय निकायों को विकास के नाम पर धन उपलब्ध कराने वाले मंत्रालय से संबंधित अधिकारी कमीशन लेकर आर्थिक स्वीकृति प्रदान कर रहे है। लघु उद्योग निगम के नाम पर की जाने वाली सप्लाई मे किस स्तर का भ्रष्टाचार है उसे उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। उसकी सच्चाई आम जनता से लेकर मुख्यमंत्री तक बेहतर जानते है। निर्माण कंपनी द्वारा जिस वस्तु की कीमत खुले बाजार मे 8 हजार रूपये होती है उसी वस्तु को लघु उद्योग निगम की सप्लाई बताकर 18 हजार रूपये में की जाती है। इससे अधिक अंधेरगर्दी का कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता। ग्राम निकायों में ग्राम पंचायतों के माध्यम से होने वाले विकास कार्य और सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के नाम पर किस स्तर का भ्रष्टाचार हो रहा है इसे भी किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। कागजों में काम दर्शाकर प्रमाणित फर्जीवाडे सामने आ रहे है। भोले भाले आदिवासी क्षेत्रों के सरपंचों पर धारा 40 की कार्यवाही कर उन्हें निलंबित और जेल हो रही है और पूरी बदनामी का ठीकरा उनके सिर पर फोडा जा रहा है। जबकि फर्जीवाडा अधिकारी वर्ग द्वारा नेताओ के इशारे पर ठेकेदार से सांठगांठ कर किया जा रहा है। ऐसी व्यवस्था से शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश को कैसे स्वर्णिम प्रदेश बनायेंगे यह भी अपने आप मे एक बडा सवाल है..?

कानून व्यवस्था के नाम पर भय और आंतक का माहौल बन गया है। आम आदमी अपमानित जी रहा है। यहां तक कि बडे-बडे नेता उद्योगपति गालिया खाने के बाद किसी का कुछ नहीं बिगाड पाते। सरकारी महकमे में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी कर्मचारी हर दिन गालियां खाते हैं, अपमानित होते है और स्वाभिमान गिरवी रखकर जिंदगी जी रहे है परंतु वही जनता की सुरक्षा के लिये जिम्मेदार सरकार की पुलिस पूरी गुंडागर्दी पर उतारू है। उसे किसी ने कुछ कहा तो उसके ऊपर शामत आ जाती है। इसका ताजा उदाहरण जबलपुर नगर निगम के लिये महापौर पद के प्रत्याशी प्रभात साहू के साथ घटित घटना सरकार की ऑंखे खोल सकती है कि पुलिस प्रदेश की सबसे बडी गुंडा है ऐसी कानून व्यवस्था की रक्षक पुलिस व्यवस्था के माध्यम से स्वर्णिम प्रदेश की मुख्यमंत्री कैसे कल्पना कर सकते है?

ऊपर उल्लेखित तथ्यों के संक्षिप्त उल्लेख से स्वर्णिम मध्यप्रदेश के निर्माण की कल्पना करना उसी कहावत को चरितार्थ करती है जैसे अंधे को आईना दिखाने के लिये कही जाती है।

संपादक यशोन्नति मनोज मर्दन त्रिवेदी

1 COMMENT

  1. बेहद एकतरफा लेख. मायावतियों, अशोक गहलोतो, शीला दीक्षितो और करुनानिधियो की तुलना में शिवराज बहुत अच्छा और सकारात्मक काम कर रहे हैं. आखिर १० साल तक राज करके दिग्विजय की कोंग्रेस सरकार ने मध्य प्रदेश का जो बंटाधार किया था, वह रातो-रात दुरुस्त होने वाला नहीं है. शिवराज एक स्पष्ट विजन वाले इमानदार नेता हैं. हाँ ये दीगर बात है की वह पत्रकारों को खुश नहीं रख पाते. उन्हें मीडिया प्रबंधन भी सीखना होगा.

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