जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है

जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है

जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है।

सुबह और होती है शाम कुछ और

गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है।

कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ

कभी कोई भी सजा दिला देती है।

चादर ओढ़ लेती है आशनाई की

हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है।

चलते चलते थक जाती है जिस शाम

मुसाफिर को कहीं भी सुला देती है।

आशनाई -अपरिचय

 

जवानी अपनी जवानी पर थी

निगाहें उसकी जवानी पर थी।

अज़ब खुमारी का माहौल था

दीवानगी पूरी दीवानी पर थी।

किसी को अपनी परवा न थी

शर्त भी रूहे-कुर्बानी की थी।

हुस्न भी सचमुच का हुस्न था

खुशबु भी तो जाफरानी पर थी।

वक़्त का पता नहीं कटा कैसे

चर्चा दिल की नादानी पर थी।

तैरने वाले भी तैरते भला कैसे

दरिया ए इश्क उफानी पर थी।

 

लकीर चेहरे पर उम्र का पता देती है

लकीर हाथ की मुकद्दर का पता देती है।

हवा नमकीन समंदर से उड़के आती है

उदास हो तो टूटे जिगर का पता देती है।

बेहद प्यार से संवारते हैं हम घर को

उजड़ी हवेली खंडहर का पता देती है।

दुखों का बंटवारा कर नहीं पाते हम

ख़ुशी किसी धरोहर का पता देती है।

कभी हंसी कोई जान निकाल देती है

कोई दिल के अन्दर का पता देती है।

गाँव बनावटीपन से बहुत दूर होता है

रोटी दिल लुभाते शहर का पता देती है।

 

एक बार लब से छुआ कर तो देखिये

चीज़ लाजवाब है पी कर तो देखिये।

बड़ी हसीं शय है कहते हैं इसे शराब

दवा दर्दे दिल है आजमाकर तो देखिये।

उदासी खराशें थकान मिट जाएँगी

जाम से जाम टकरा कर तो देखिये।

गम ही गम हैं यहाँ कौन कहता है

ख़ुशी महक उठेंगी पीकर तो देखिये।

इसका अलग निजाम है जान जाओगे

इसके साथ जरा लहरा कर तो देखिये।

तहे दिल से करोगे इसे तुम सलाम

एक बार अपना बना कर तो देखिये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here